एनआईए द्वारा अटकलों के आधार पर आरोपी बनाये गये कश्मीरी पत्रकार को जमानत, ऑल्ट न्यूज़ के मो जुबैर को पॉक्सो एक्ट में क्लीन चिट

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किस तरह पुलिस और जाँच एजेंसियां कानून का दुरुपयोग करके उत्पीड़ात्मक कार्रवाई करती हैं उसकी पोल अदालतों में खुल जा रही है। आल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर पर पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज़ करने वाली पुलिस अब अदालत में कह रही है कि जुबैर द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट में कोई अपराध नहीं पाया गया है वहीं दूसरी ओर पटियाला हाउस कोर्ट ने यह कहते हुए कि एनआईए ने अटकलों के आधार पर आरोपी बनाया, आतंकवाद के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए गए श्रीनगर के एक कश्मीरी पत्रकार को जमानत पर रिहा कर दिया।

एक ओर दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया कि अगस्त 2020 में एक ट्विटर यूजर को जवाब देते हुए फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट में कोई अपराध नहीं पाया गया है। इससे पहले पुलिस ने उनके खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत एक एफआईआर दर्ज की थी। वहीं दूसरी ओर आतंकवाद के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए गए श्रीनगर के एक कश्मीरी पत्रकार को एक साल से अधिक समय के बाद मंगलवार (3 जनवरी) शाम को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। जमानत आदेश में, दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने उनके खिलाफ आरोपों को ‘कल्पना मात्र’क़रार देते हुए कहा कि साक्ष्य नहीं, एनआईए ने अटकलों के आधार पर आरोपी बनाया।

श्रीनगर के बटमालू के रहने वाले मोहम्मद मनन डार, जो एक स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट के रूप में काम करते थे, को एनआईए ने उनके भाई हनान डार सहित 12 लोगों के साथ अक्टूबर 2021 में गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारियां उन सिलसिलेवार हुए लक्षित हमलों के बाद हुई थीं जिनमें संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों और प्रवासी मजदूरों को गोली मारी गई थीं।

अदालत ने सोमवार (2 जनवरी) को सुनाए अपने जमानत आदेश में कहा कि मनन के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी के सबूत यह साबित करने के लिए ‘पर्याप्त नहीं’हैं कि वह ‘भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद दिल्ली समेत जम्मू कश्मीर राज्य और भारत के अन्य हिस्सों में हिंसक आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने’ की साजिश का हिस्सा थे।

एजेंसी ने कहा था कि ‘अक्टूबर 2021 में घाटी में लक्षित हत्याओं को अंजाम देने की साजिश’कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के एक अम्ब्रेला संगठन पाकिस्तान के यूनाइटेड जिहाद काउंसिल के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन, कश्मीर निवासी (जिनके बारे में कहा जाता है कि वे पाकिस्तान में रह रहे हैं) बशीर अहमद पीर और इम्तियाज कुंडू और हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, अल-बद्र एवं अन्य अज्ञात आतंकी संगठनों के अज्ञात कमांडरों ने की थी।

एजेंसी ने आईपीसी की धारा 120बी, 121ए, 122 एवं 123 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-1967 की धारा 18, 18ए, 18बी, 30 एवं 39 के तहत वर्ष 2021 में मामला दर्ज किया था। मामले में पिछले साल एनआईए अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया था।

अदालत ने फैसला सुनाया कि अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए गए सबूतों के साथ-साथ गवाहों के बयान यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि मनन किसी भी आतंकवादी गतिविधि में शामिल थे।

अपने आरोप पत्र में एजेंसी ने गवाहों और मनन के फोन से बरामद डेटा का हवाला देते हुए दावा किया था कि 23 वर्षीय मनन- जिन्हें गिरफ्तारी से पहले श्रीनगर के क्लस्टर विश्वविद्यालय में एकीकृत पत्रकारिता और जनसंचार पाठ्यक्रम के 2022 समूह में शामिल होने के लिए चुना गया था- ‘एक फोटो जर्नलिस्ट की आड़ में’ आतंकवादी संगठनों के साथ कश्मीर में सुरक्षा बलों और उनकी तैनाती के बारे में जानकारी साझा कर रहे थे ।

एक फोटो जनर्लिस्ट के तौर पर मनन द्वारा जुलाई 2021 में श्रीनगर में हुई मुठभेड़ के बाद ली गई एक तस्वीर को गार्जियन के ‘ट्वेंटी फोटोग्राफ्स ऑफ द वीक’ सेक्शन में दिखाया गया था।

हालांकि, एजेंसी ने अदालत को बताया कि मारे गए उग्रवादियों की तस्वीरें और पोस्टर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों और छात्रों को स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल न होने की धमकी देने वाले उग्रवादी संगठनों के बयान और ‘मारे गए आतंकियों को शहीद’ बताने वाली टेलीग्राम चैट मनन के फोन में पाए गए, जो आतंकी गतिविधियों में उसकी संलिप्तता बताते हैं।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के थवाहा फसल बनाम भारत संघ, 2021 के मामले का हवाला देते हुए कहा कि ‘आतंकवादी गतिविधियों का मामला बनाने के लिए सिर्फ कुछ पोस्टर, बैनर या अन्य आपत्तिजनक सामग्री का होना पर्याप्त नहीं है।’

एनआईए के दावे को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ‘आरोपों के समर्थन में प्रत्यक्ष साक्ष्य होना चाहिए। अदालत ने कहा कि ऐसे तथ्यों को स्थापित करने के लिए केवल अनुमान या अधूरे सबूत पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। साथ ही कहा कि गवाहों के बयान आतंकवादी गतिविधियों में मनन की संलिप्तता साबित करने के लिए अनिर्णायक हैं।’

पॉक्सो केस में मोहम्मद ज़ुबैर को क्लीनचिट

यह मामला ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर द्वारा अगस्त 2020 में किए गए एक ट्वीट से संबंधित है, जिसमें उन्होंने एक यूज़र की प्रोफाइल पिक्चर शेयर करते हुए पूछा था कि क्या अपनी पोती का फोटो लगाकर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करना सही है। इसके बाद यूज़र ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करा दी थी।

दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया कि अगस्त 2020 में एक ट्विटर यूजर को जवाब देते हुए फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट में कोई अपराध नहीं पाया गया है। इससे पहले पुलिस ने उनके खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत एक एफआईआर दर्ज की थी ।दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अधिवक्ता नंदिता राव ने जस्टिस अनूप जयराम भंभानी से कहा कि जुबैर का नाम एफआईआर के संबंध में दायर आरोप-पत्र में भी नहीं है। अदालत ने अब मामले को 2 मार्च को सूचीबद्ध किया है और पुलिस को आरोप-पत्र को रिकॉर्ड पर रखने के लिए कहा है।

दिल्ली में दर्ज एफआईआर में जुबैर के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम, आईपीसी की धारा 509बी, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और 67ए लगाई गई थीं। मई 2022 में दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया था कि जुबैर के खिलाफ कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता है।

हालांकि, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने तर्क दिया था कि पुलिस द्वारा अपनी स्थिति रिपोर्ट में दी गई जानकारी से पता चलता है कि जुबैर जांच से बचने की कोशिश कर रहे थे और पूरी तरह से सहयोग नहीं कर रहे थे।

जुबैर को जस्टिस योगेश खन्ना द्वारा 9 सितंबर 2020 को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया था । अदालत ने साइबर सेल के पुलिस उपायुक्त को इस मामले में की गई जांच पर एक स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल करने के लिए कहा था। अदालत ने ट्विटर इंडिया को भी निर्देश दिया था कि वह दिल्ली पुलिस की साइबर सेल द्वारा किए गए अनुरोध पर तेजी दिखाए।

इससे पहले जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर को हिंदू देवता के बारे में उनके कथित ‘आपत्तिजनक ट्वीट’ करने के मामले में उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी मामलों में जमानत दे दी थी। पीठ ने जुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को भी समाप्त करने का निर्देश दिया था।

मोहम्मद जुबैर को बीते 27 जून 2022 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए किया गया जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) और 153 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच विद्वेष को बढ़ाना) के तहत दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज कर गिरफ़्तार किया गया था ।बीते दो जुलाई 2022 को दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर में आपराधिक साजिश, सबूत नष्ट करने और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 35 के तहत नए आरोप जोड़े थे। ये आरोप जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की दखल का द्वार खोलते हैं।

जुबैर की गिरफ्तारी 2018 के उस ट्वीट को लेकर हुई थी, जिसमें 1983 में बनी फिल्म ‘किसी से न कहना’का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया गया था। उत्तर प्रदेश में जुबैर के खिलाफ कुल 7 एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिनमें दो हाथरस में और एक-एक सीतापुर, लखीमपुर खीरी, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और चंदौली पुलिस थाने में दर्ज की गई है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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