सीवर और सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतों पर संसद के विशेष सत्र में बहस हो: सफाई कर्मचारी आंदोलन

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नई दिल्ली। सफाई कर्मचारी आंदोलन ने मांग की कि है नए संसद भवन के भीतर हो रहे संसद के विशेष सत्र में देश के भीतर सीवर व सेप्टिक टैंकों में हो रही मौतों को तुरंत रोकने के लिए एक मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाई जाए।

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने कहा कि हमारे देश का पुराना संसद भवन कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी रहा है और उसमें पिछले 75 सालों के भीतर कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए हैं। उनमें से कई विधेयक नई जमीन बनाने वाले कानूनों में तब्दील हुए हैं, जैसे कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा का निषेध करने वाले दो कानून जो क्रमशः 1993 व 2013 में पारित किए गए।

लेकिन इन दोनों कानूनों समेत कई कानून जो यहां पारित हुए, वे कभी भी अपनी मूल भावनाओं व मकसद को हासिल नहीं कर सके। यही कारण है कि हमारे समाज में आज भी जाति आधारित व्यवसाय और जातिगत हिंसा व ज्यादतियां खत्म नहीं हुई हैं। यही कारण है कि आज भी हमारे देश में रोजाना सफाई कर्मचारी सीवर व सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मारे जा रहे हैं।

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने कहा कि अब जबकि हम देश के नए संसद भवन की तरफ बढ़ रहे हैं, यह वक़्त और भी कुछ नई शुरुआत करने का है। संसद को हमारे समाज के सबसे कमजोर तबकों को सशक्त बनाने का संकल्प लेना चाहिए जो सदी-दर-सदी जातिगत उत्पीड़न का दंश झेलते आ रहे हैं, और उनके लिए उपयुक्त बजटीय आवंटन करना चाहिए।

हमारी मांग है कि संसद के नए भवन के भीतर हो रहे संसद के विशेष सत्र में देश में दलितों की स्थिति और खास तौर पर सीवर व सेप्टिक टैंकों में निरंतंर हो रही मौतों के बारे में विशेष बहस की जाए। यह केवल राष्ट्रीय महत्व का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय शर्म का भी मुद्दा है कि इतनी प्रौद्योगिकीय तरक्की करने के बाद भी हम इन मौतों को रोकने का कोई तरीका नहीं ख़ोज पाए हैं, जबकि संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को गरिमा से जीवन जीने का अधिकार देता है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन इन सीवर व सेप्टिक टैंकों की मौतों के खिलाफ पिछले साल 11 मई 2022 से निरंतर देश में अलग-अलग जगहों पर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहा है। पिछले 496 दिनों से यह प्रदर्शन निरंतर चले आ रहे हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है, इसके उलट वह संसद के भीतर व बाहर सीवर में हो रही मौतों के आंकड़ों की ही हेराफेरी में ध्यान लगा रही है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने कहा कि हमें उम्मीद है कि नए संसद भवन में हमारे नीति-निर्माताओं के सोचने-विचारने का जातिगत रवैया भी बदलेगा और वे नई प्रतिबद्धता दिखलाएंगे।

(सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन द्वारा जारी विज्ञप्ति पर आधारित)

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