बीकानेर, राजस्थान। हमारे देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर करती है। आज भी देश की 74 प्रतिशत आबादी यहीं से है। लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र आज भी कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। इनमें सड़क की समस्या भी अहम है। कुछ दशक पूर्व देश के ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों की हालत काफी खराब थी। लेकिन वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के लांच होने के बाद से इस स्थिति में काफी सुधार आया है।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना के शुरू होने से पूर्व देश के गांव और बस्तियां ऐसी थीं जो पूरी तरह से सड़क विहीन थीं। यहां सड़कें केवल नाममात्र की थीं। इसका सीधा असर ग्रामीण जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता था। जिसकी वजह से न केवल गांव का विकास प्रभावित हो रहा था बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था, क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और सड़क की खस्ताहाल के कारण कई बार समय पर अनाज मंडियों तक नहीं पहुंच पाते हैं।
केवल अनाज ही नहीं बल्कि और भी कई ऐसे मुद्दे हैं जो केवल सड़क नहीं होने के कारण प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य प्रभावित होते हैं। अभी भी देश के कई ऐसे गांव हैं जहां विकास के लिए सड़कों का होना बहुत ज़रूरी है।
इन्हीं में एक राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर का ढाणी भोपालराम गांव भी है। जहां कच्ची और नाममात्र की सड़क होने के कारण न केवल गांव का विकास प्रभावित हो रहा है बल्कि इससे किशोरियों की शिक्षा भी प्रभावित हो रही है।
इस संबंध में गांव की 21 वर्षीय किशोरी जेठी कहती है कि “मैं कॉलेज की छात्रा हूं, लेकिन में बहुत कम कॉलेज जा पाती हूं क्योंकि गांव में सड़क ठीक नहीं है, ऐसे में हमारे माता-पिता हमें कॉलेज भेजने से डरते हैं क्योंकि सड़क ख़राब होने की वजह से कई बार दुर्घटना हो चुकी है। ऐसे में वह हमारी सलामती के लिए मुझे कॉलेज जाने से रोकते हैं।”
उनका कहना है कि “यदि एक्सीडेंट से मुझे कोई शारीरिक हानि पहुंचती है तो भविष्य में मेरी शादी होने में कठिनाई आ सकती है।” जेठी कहती हैं कि “हमने बचपन से गांव में सड़क की ऐसी ही हालत देखी है, जिसकी वजह से कई बार दुर्घटना हो चुकी है। सड़क इतनी कच्ची है कि इस पर बड़ी मुश्किल से गाड़ियां गुज़रती हैं।”
एक अन्य किशोरी सुमन कहती हैं कि “सबसे अधिक समस्या बारिश के दिनों में होती है जब जर्जर और कच्ची सड़क पूरी तरह से चलने लायक नहीं रहती है। इस दौरान इस सड़क पर गाड़ियां फंस जाती हैं। कई बार स्कूटर और मोटरसाइकिल दुर्घटना का शिकार हो चुकी हैं। जिससे लोगों को काफी परेशानी होती है, वहीं हम छात्राओं को भी इस सड़क के कारण स्कूल छोड़ना पड़ता है, क्योंकि स्कूल जाने का रास्ता यही एक सड़क है और बारिश में यह चलने लायक नहीं रह जाती है।”
वहीं एक अभिभावक कहते हैं कि “सड़क ख़राब होने के कारण हमें अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डर लगता है। सड़क कच्ची होने के कारण अक्सर दुर्घटना का खतरा बना रहता है। पिछले कई वर्षों से रख रखाव नहीं होने के कारण यह सड़क बिल्कुल ख़राब स्थिति में पहुंच चुकी है। बारिश ने इसकी हालत को और भी बुरा बना दिया है।”
उन्होंने कहा कि “सड़क पर बड़े बड़े गड्ढे बन चुके हैं। जिससे होकर किसी भी बड़ी गाड़ी का गुजरना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों का ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जिसे इसकी वजह से कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। चाहे वह बुज़ुर्ग हों, मरीज़ हों, आम आदमी हों या फिर स्कूली छात्र-छात्राएं, सभी यहां की जर्जर सड़क से आए दिन किसी न किसी प्रकार की परेशानियों का सामना करते रहते हैं।”
उन्होंने कहा कि “सड़क की खराब स्थिति का खामियाजा ग्रामीणों को दैनिक जीवन में भुगतना पड़ता है। इसकी वजह से कोई भी सवारी गाड़ी गांव में नहीं आती है। लोगों को शहर जाने के लिए गांव से पैदल चलकर मुख्य सड़क तक आना पड़ता है, जहां से फिर उन्हें गाड़ी मिलती है।”
इस संबंध में गांव की 76 वर्षीय बुज़ुर्ग शिबानी कहती हैं कि “गांव में 9 किमी तक सड़क बिलकुल खराब अवस्था में है जिसकी पिछले कई सालों से मरम्मत नहीं हुई है। इससे हम बूढ़ों को बहुत समस्या आती है। हमें कहीं भी आने जाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गाड़ियां इस सड़क से इस तरह गुज़रती हैं कि जैसे हमारी जान ही निकल जाए। कई बार तो कुछ बुज़ुर्ग केवल ख़राब सड़क के कारण अपना इलाज कराने शहर नहीं जा पाते हैं।”
उन्होंने ने कहा कि “यह गांव की मुख्य सड़क है जो गांव को शहर से जोड़ती है लेकिन जब यही सड़क इतनी जर्जर होगी तो भला शहर से इसके जुड़ने का क्या अर्थ रह जाता है? उन्होंने कहा कि इसके कारण गांव में कोई उद्योग भी नहीं खुल पाता है और न ही किसान इसकी वजह से अपनी फसल को शहर ले जा पाते हैं।”
वहीं दुकानदार मुकेश कुमार माली कहते हैं कि “इस सड़क के बारे में कई बार पंचायत में भी बात की गई। पंचायत के माध्यम से उच्च अधिकारियों को भी अवगत कराया गया। कुछ महीने पूर्व कुछ अधिकारी भी आये थे और इस जर्जर सड़क की फोटो भी लेकर गए थे, उन्होंने गांव वालों को आश्वासन भी दिया था कि जल्द ही इस समस्या का समाधान किया जाएगा लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।”
उन्होंने कहा कि “यह सड़क आज भी पहले की तरह ही जर्जर हालत में बनी हुई है। स्थानीय जनप्रतिनिधि भी इस संबंध में उदासीन हैं। उन्हें गांव वालों की कठिनाइयों से कोई वास्ता नज़र नहीं आता है।”
बहरहाल, गांवों के लोगों के लिए सड़क का नहीं होना किसी अभिशाप की तरह है। ऐसा नहीं है कि गांव वाले इसके लिए गंभीर नहीं हैं। लोग सड़क की हालत सुधारने के लिए गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं। धीरे धीरे उनकी उम्मीदें भी टूटने लगी हैं। अब देखना यह है कि उनकी उम्मीदें कब पूरी होंगी?
लेकिन एक सवाल उठता है कि क्या सड़कों की ज़रूरत केवल शहर वालों के लिए होती है? क्या गांव वालों के लिए सड़क की अहमियत नहीं है? क्या सरकार, स्थानीय जनप्रतिनिधि और विभाग को यह लगता है कि सड़क के बिना भी गांव का विकास संभव हो जाएगा?
(राजस्थान के बीकानेर से अंजू नायक की रिपोर्ट।)
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