छत्तीसगढ़। टमाटर का गढ़ कहे जाने वाले दुर्ग और धमधा के अलावा कई जिलों में टमाटर का उत्पादन करने वाले किसान इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं। बंपर उत्पादन होने की वजह से किसानों को टमाटर सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
वहीं कुछ किसानों ने फेंके गए टमाटर को मवेशियों के खाने के लिए छोड़ दिया है। अधिकांश किसानों ने तो 2 माह से फसल की तोड़ाई भी नहीं की है। एक अनुमान के मुताबिक जिले में लगभग 50 से 60 करोड़ रुपये के टमाटर की फसल का नुकसान हुआ है।
धमधा ब्लॉक टमाटर उत्पादन में सबसे आगे है। छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों के साथ पूरे दक्षिण भारत में दुर्ग से टमाटर बाहर भेजा जाता है। धमधा का टमाटर पाकिस्तान भी निर्यात किया जाता है। इस बार इस क्षेत्र में टमाटर की बंपर पैदावार हुई है।
प्रोसेसिंग यूनिट की बेहद कमी और इसकी तुलना में अधिक उत्पादन ही अब किसानों के लिए निराशा का कारण बना हुआ है।
दक्षिण भारत सहित अन्य राज्यों में भी इस बार का मौसम टमाटर की फसल के लिए अनुकूल रहा है। इस कारण अबकि बार दूसरे राज्यों से मांग भी ज्यादा नहीं हुई।
खेतों में टमाटर की फसल पड़ी हुई है। उचित कीमत नहीं मिलने का कारण इसकी तोड़ाई भी नहीं की जा रही है। वहीं कुछ किसानों ने जहां अपने मवेशियों को खेत में खाने को छोड़ दिया है तो वहीं कई किसान टमाटर को सड़कों के किनारे फेंकने को मजबूर हो रहे हैं।
दुर्ग जिले के उद्यानिकी विभाग की उप संचालक पूजा कश्यप साहू ने बताया कि दुर्ग जिले में 9560 हेक्टेयर में टमाटर की खेती की जा रही है। पूरे देश सहित दुर्ग में भी टमाटर की फसल का अधिक उत्पादन हुआ है।
इस कारण से दुर्ग और धमधा के किसानों को ट्रांसपोर्टिंग की जो सही कीमत थी वह नहीं मिल पा रही थी। और खरीददारी में भी बहुत कमी हुई है। नुकसान का सही आंकलन दो से तीन महीने बाद ही हो पायेगा।
कन्हारपुरी गांव के किसान पीला लाल कश्यप और जाताधर्रा के पवन पटेल कहना है कि इस बार 90 प्रतिशत किसानों ने लागत नहीं मिलने से टमाटर की तोड़ाई बंद कर दी। एक और किसान रामकृष्ण पटेल का कहना है कि उन्होंने 60 एकड़ जमीन में टमाटर की फसल लगाई है मगर अब तक लागत राशि भी नहीं मिल पाई है।
तोड़ाई करने पर प्रतिदिन हजार कैरेट टमाटर निकलता है मगर प्रोसेसिंग प्लांट में दो-तीन सौ कैरेट टमाटर ही जा पाता है। बाकी टमाटर खेतों में ही खराब हो जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि उन्होंने 3 एकड़ में टमाटर की फसल उगाई थी जो खरीददार नहीं मिलने पर मजबूरी में पशुओं को खिलाना पड़ा गया है। वहीं उनके चाचा नरेंद्र वर्मा ने 4 एकड़ में टमाटर लगाया है जो खेतों में पड़े-पड़े ही खराब हो रहे हैं। किसान शेरसिंह ठाकुर का कहना है कि इस बार स्थिति बहुत खराब है। छोटे टमाटर उत्पादक किसानों को तो और भी ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
इस विषय को लेकर किसान नेता राजकुमार गुप्ता ने बताया कि जिले के किसानों को लागत से आधे कीमत पर टमाटर बेचने को मजबूर होना पड़ा है। जितने रकबे पर फसल बोया गया है उसके अनुसार छोटे-बड़े किसानों को 50 से 60 करोड़ का नुकसान हुआ है।
इस तरह के नुकसान टमाटर उत्पादक किसानों को आगे भी होते रहेंगे, जब तक कि राज्य सरकार टमाटर प्रोसेसिंग यूनिट के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती।
(छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)
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