राज्यपालों की नई सूची में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस. अब्दुल नजीर का नाम भी शामिल है। जस्टिस नजीर को आंध्र प्रदेश का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। कानूनी प्रणाली के भारतीयकरण के समर्थक जस्टिस नजीर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच के सदस्य रहे हैं। इस बेंच की अगुवाई करने वाले पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजा जा चुका है।
अवकाश ग्रहण के ठीक पहले जस्टिस नजीर की पीठ ने नोटबंदी को उचित ठहराया था। मोदी सरकार में सबसे पहले जस्टिस सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था । जस्टिस सदाशिवम सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ में थे जिसने फर्जी मुठभेड़ मामले में शाह के खिलाफ दूसरी एफआईआर को रद्द कर दिया था।
देश के 13 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को नए राज्यपाल मिल गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कुछ नए चेहरों को राज्यों में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि बनाकर भेजा है तो कुछ राज्यपालों का ट्रांसफर किया गया है। राष्ट्रपति भवन से जारी राज्यपाल के 13 नामों की लिस्ट में जो सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रहा है, वो है- जस्टिस (रिटायर्ड) एस. अब्दुल नजीर का। जस्टिस एस. अब्दुल नजीर पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट जज के पद से रिटायर हुए हैं।
जस्टिस नजीर अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई करने वाले पांच जजों की पीठ का हिस्सा रह चुके हैं। जस्टिस नजीर तीन तलाक के खिलाफ फैसला देने वाली सुप्रीम कोर्ट बेंच के भी सदस्य रहे थे। जस्टिस नजीर अडानी को राहत देने वाली पीठ में भी शामिल रहे थे।
13 राज्यपालों की ताजा लिस्ट में शिव प्रताप शुक्ल, लक्ष्मण आचार्य, गुलाबचंद्र कटारिया, लेफ्टिनेंट जनरल कैवल्य त्रिविक्रम परनाइक समेत कुछ अन्य शख्सियतों को पहली बार राज्यपाल बनाया गया है। इसी लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। वहीं, फागू चौहान, अनुसइया उइके, रमेश बैस आदि को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर किया गया है।
जस्टिस (रिटायर्ड) एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया (Andhra Pradesh New Governor) गया है जहां वाईएसआर कांग्रेस का शासन है और मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी हैं। केंद्र की सत्ता में आसीन बीजेपी की नजर दक्षिण राज्यों पर है। पार्टी आंध्र प्रदेश में भी अपनी संभावनाएं तलाश रही है। जस्टिस नजीर खुद दक्षिण के राज्य कर्नाटक से हैं, इस कारण बीजेपी को आंध्र प्रदेश में अपना मकसद साधने में आसानी हो सकती है।
गौरतलब है कि जनवरी, 2022 में उच्चतम न्यायालय के जज रहते हुए आरएसएस से जुड़े एक संगठन द्वारा आयोजित एक समारोह में जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने कहा था कि भारतीय कानूनी प्रणाली “मनु, कौटिल्य, कात्यायन, बृहस्पति, नारद, याज्ञवल्क्य और प्राचीन भारत के अन्य कानूनी दिग्गजों के अनुसार कानूनी परंपराओं” के महान ज्ञान की उपेक्षा करती रही है। भारतीय न्याय व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर उन्होंने अपनी शपथ का उल्लंघन किया था।
26 दिसंबर, 2021 को, उन्होंने हैदराबाद में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद (एबीएपी) की 16वीं राष्ट्रीय परिषद की बैठक को ‘भारतीय कानूनी प्रणाली के उपनिवेशीकरण’ विषय पर संबोधित किया था। जस्टिस नज़ीर ने घोषणा की थी कि भारतीय कानूनी प्रणाली औपनिवेशिक थी, जो “भारतीय आबादी के लिए उपयुक्त नहीं है। समय की मांग कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण है।
जस्टिस एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनवरी, 2023 में नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 4-1 के फैसले में कहा था कि 8 नवंबर, 2016 को जिस अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार ने 1,000 रुपये और 500 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों को प्रचलन से बंद करने का फैसला लिया था, वह वैध है और इसे रद्द नहीं किया जा सकता है। फैसले में कहा गया था कि नोटबंदी की अधिसूचना आनुपातिकता की कसौटी पर भी खरी उतरती है।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने संसद के उच्च सदन राज्यसभा के लिये नामित कर दिया था। मोदी सरकार में सबसे पहले तत्कालीन चीफ जस्टिस सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया था। जस्टिस सदाशिवम सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ में थे जिसने फर्जी मुठभेड़ मामले में शाह के खिलाफ दूसरी एफआईआर को रद्द कर दिया था। पीठ ने कहा था कि यह सोहराबुद्दीन शेख हत्या के बड़े मामले से जुड़ा हुआ है और इसे अलग किए जाने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि जस्टिस सदाशिवम को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जुड़े उनके फैसले के लिए इनाम दिया गया है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार औऱ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
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