अमेरिका में सत्ता का असली केंद्र अब वॉशिंगटन डीसी में नहीं, बल्कि एलन मस्क के निजी दफ्तरों में है। और इस पूरे खेल में सबसे बड़ा मोहरा है “Department of Government Efficiency” (DOGE)-मस्क की वह रहस्यमयी एजेंसी, जिसे सरकारी संस्थानों को ‘सुधारने’ के नाम पर बनाया गया था, लेकिन असल में यह सरकारी तंत्र पर कब्जा जमाने और लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करने की संगठित साजिश है।
Department of Government Efficiency (DOGE) को ट्रंप प्रशासन ने अघोषित कार्यकारी आदेश के तहत स्थापित किया था, और इसकी कमान पूरी तरह मस्क के हाथों में थी। यह कोई पारंपरिक सरकारी एजेंसी नहीं थी, बल्कि निजी ‘स्ट्राइक फोर्स’ थी, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी संस्थाओं को नष्ट करना और प्रशासन को ट्रंप समर्थकों के हवाले करना था। एलन मस्क, जो खुद को लोकतंत्र का उद्धारक कहते थे, असल में इसके माध्यम से डिजिटल तानाशाही की नींव रख रहे थे।
DOGE ने सत्ता संभालते ही जो कदम उठाए, वे किसी भी लोकतंत्र के लिए भूकंप से कम नहीं थे-
- DOGE की पहली कार्रवाई: अमेरिकी वित्त मंत्रालय के सर्वरों पर अघोषित धावा, जिससे सरकारी डेटा की सुरक्षा खतरे में पड़ गई। DOGE के एजेंटों ने सरकारी कर्मचारियों के लॉगिन एक्सेस को ब्लॉक कर दिया, फाइलें डिलीट कर दीं, और खजाने से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों तक जबरन पहुंच बनाई। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से गुप्त लेन-देन भी किए।
- DOGE की दूसरी कार्रवाई: USAID को जबरन बंद कर दिया गया। बिना किसी कानूनी मंजूरी के, इस एजेंसी को खत्म कर दिया गया, जो अमेरिका की विदेश सहायता का प्रबंधन करती थी। DOGE ने USAID के कंप्यूटर सिस्टम पर कब्जा कर लिया और वहां काम कर रहे हजारों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। मस्क ने ट्वीट किया- “USAID is a criminal organization. Time to shut it down.” क्या अमेरिका की विदेश नीति अब ट्विटर पोल से तय होगी?
- DOGE का तीसरा हमला: न्याय विभाग और FBI में बड़े पैमाने पर सफाई अभियान। DOGE ने उन सभी अधिकारियों की सूची तैयार की, जिन्होंने 6 जनवरी के दंगाइयों पर जांच की थी। FBI के वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया, और उनकी जगह ट्रंप के वफादारों को नियुक्त किया गया। इसके पीछे स्पष्ट उद्देश्य था-ट्रंप और उनके सहयोगियों के खिलाफ किसी भी जांच को कुचल देना।
- DOGE का चौथा हमला: सरकारी दक्षता बढ़ाने के नाम पर एक गुप्त आदेश जारी किया गया, जिसके तहत हर सरकारी विभाग में कुशलता की आड़ में छंटनी की जाने लगी। लेकिन असल में यह ट्रंप विरोधियों की सफाई का अभियान था। रिपोर्टों के अनुसार, व्हाइट हाउस के कई कर्मचारियों को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप में निकाल दिया गया, जबकि उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने ट्रंप की नीतियों की आलोचना की थी।
- DOGE की अंतिम चाल: सरकारी कर्मचारियों को जबरन इस्तीफा देने के लिए प्रेरित करने का अभियान। DOGE ने ट्विटर की तर्ज पर सरकारी कर्मचारियों को धमकी भरा ईमेल भेजा, जिसमें उन्हें दो विकल्प दिए गए-“Resign with dignity or face consequences.” (इस्तीफा दो, या परिणाम भुगतो)। कई कर्मचारियों ने इसे ब्लैकमेल करार दिया, लेकिन ट्रंप प्रशासन की तरफ से इस पर कोई सफाई नहीं दी गई।
Department of Government Efficiency (DOGE) के पूरे ऑपरेशन को देखकर यह सवाल उठता है-क्या यह सिर्फ सरकारी दक्षता बढ़ाने का प्रयास था, या फिर ट्रंप और मस्क की निजी मिलिशिया थी, जो लोकतंत्र को खत्म करने के लिए बनाई गई थी? इतिहास में जब भी लोकतंत्र का पतन हुआ है, तब ऐसी ही निजी एजेंसियों का इस्तेमाल किया गया है। हिटलर का गेस्टापो, पुतिन का FSB और अब ट्रंप-मस्क का DOGE-क्या यह महज संयोग है?
ट्रंप प्रशासन का संदेश अब स्पष्ट है-सरकारी संस्थाओं को या तो ट्रंप के प्रति वफादार होना होगा, या फिर वे खत्म कर दिए जाएंगे। FBI, न्याय विभाग, शिक्षा विभाग, पर्यावरण एजेंसी-हर जगह DOGE की दखलंदाजी शुरू हो चुकी है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है-क्या अमेरिका इस अधिनायकवादी कब्जे को रोक पाएगा? या फिर आने वाले सालों में हम एक नए ट्रंप साम्राज्य को स्थापित होते देखेंगे, जहां न्याय, प्रशासन और सत्ता पूरी तरह से एक व्यक्ति के नियंत्रण में होगी? अगर इसे अभी नहीं रोका गया, तो चार साल बाद जब अगला राष्ट्रपति पद संभालेगा, तब तक अमेरिका का लोकतंत्र खोखले ढांचे में बदल चुका होगा। और जब लोकतंत्र अपनी संस्थाओं को खो देता है, तो वह फिर कभी वापस नहीं आता।
(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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