प्रयागराज। मौनी अमावस्या की रात… श्रद्धालुओं की भीड़… आस्था का ज्वार… और फिर अचानक मची भगदड़। सैकड़ों लोग इधर-उधर बिखर गए, कुछ अपने परिवार से अलग हो गए, कुछ हमेशा के लिए खो गए। प्रयागराज के संगम तट पर मौनी अमावस्या के पावन स्नान के दौरान अचानक भगदड़ मच गई। श्रद्धालुओं का अपार सैलाब, आस्था की ऊंची लहरें और बीच में एक अनहोनी, जिसने कई परिवारों को बिछड़ने का घाव दे दिया।
बलिया से आए बलजीत सिंह अपनी पत्नी मीरा के साथ महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर संगम स्नान के लिए आए थे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह संगम, जो जीवन का पावन मिलन स्थल है, आज उन्हें उनकी जीवन संगिनी से सदा के लिए जुदा कर देगा। भगदड़ में मीरा दब गईं, चारों ओर चीख-पुकार मच गई, लेकिन जब तक मदद पहुंची, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनकी आंखों में सैलाब था, शब्द कांप रहे थे, और एक ही दर्दनाक सवाल, “अगर व्यवस्था ठीक होती, तो क्या यह हादसा टल नहीं सकता था?”

सुनीता की आंखों में आंसू ठहरते नहीं हैं। कांपती आवाज़ में कहती हैं, “मम्मी को ढूंढते-ढूंढते पूरा मेला छान लिया, हर अस्पताल के चक्कर काट लिए, लेकिन वो कहीं नहीं मिलीं। हमने पुलिस स्टेशन में फोटो और एड्रेस भी दिया, मगर कोई खबर नहीं। अब थक गई हूं… घर लौट रही हूं, लेकिन बिना मां के लौटना कितना मुश्किल है, ये मैं ही जानती हूं।”
सुनीता की मां ललिता देवी का अब तक कोई पता नहीं। बेटी ने हर खोया-पाया केंद्र की खाक छान डाली, मगर सब बेकार। आरा (बिहार) की रहने वाली यह बेटी अब उम्मीद छोड़ चुकी है। आंखों में नमी, दिल में दर्द और होठों पर कंपकंपाते शब्द… “काश! एक बार उनकी आवाज़ सुन पाती, उनका हाथ पकड़ पाती…।” यह कहते ही औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की सीताबाई फफक पड़ती हैं। उनका पूरा शरीर हिल जाता है, सांसें भारी हो जाती हैं।

सीता की बहन सावित्री देवी भी इस भगदड़ में कहीं खो गईं। कभी रेलवे स्टेशन, कभी संगम घाट, कभी पुलिस थाना-हर जगह खोजा, मगर कहीं कोई सुराग नहीं। थककर बैठ जाती हैं, फिर अचानक उठती हैं और किसी नए ठिकाने पर उन्हें खोजने निकल पड़ती हैं। चेहरे पर एक ही सवाल-क्या अब कभी बहन को देख भी पाएंगी?
ऐसा दर्द अकेले सुनीता और सीताबाई का नहीं। इस महाकुंभ में हजारों लोग अपने अपनों को ढूंढ रहे हैं। किसी का बेटा गुम हो गया, किसी की मां बिछड़ गई, कोई पत्नी को खोज रहा है, तो कोई बूढ़े पिता को। खोया-पाया केंद्रों पर ऐसी कहानियों की भरमार है, और हर चेहरा बेबस, हर आंख नम।
‘मुझे ढूंढने वाला भी कोई नहीं’
प्रयागराज रेलवे स्टेशन के खोया-पाया केंद्र पर बैठी एक वृद्धा टकटकी लगाए राह देख रही हैं। कोई पास जाता है, तो सहमी हुई आवाज़ में पूछती हैं, “बेटा, कोई आया क्या मेरा नाम पूछने?” कोई जवाब नहीं देता। वो अपनी धोती से आंसू पोंछती हैं और खुद ही बुदबुदाती हैं, “मेरे घर में कोई नहीं, कोई मुझे ढूंढने नहीं आएगा। मेरे पास न फोन है, न पैसा, अब कहां जाऊं?”
उनकी आवाज़ सुनकर बगल में बैठी लता मिश्रा भी अपने आंसू रोक नहीं पातीं। वो पत्रकारों को देखकर भागकर आती हैं, उनका हाथ पकड़ती हैं और रोते हुए कहती हैं, “आप ही कुछ कर सकते हैं। मेरी बेटी नहीं मिल रही, तीन दिन हो गए। हर जगह ढूंढ लिया, लेकिन कहीं कोई खबर नहीं। पुलिस बस बोल देती है-इंतजार करो! पर कब तक?”

महाकुंभ मेला क्षेत्र में 10 खोया-पाया केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें से 9 सेक्टर-3 से लेकर सेक्टर-24 तक फैले हैं और एक प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर है। सेक्टर-4 का केंद्र। यहां हर तरफ रोते-बिलखते चेहरे हैं। कोई किसी से लिपटकर रो रहा है, कोई अपने गुमशुदा की तस्वीर बार-बार दिखा रहा है, कोई उम्मीद और मायूसी के बीच झूल रहा है।
मंगलवार की रात भगदड़ के बाद से अब तक 1484 से ज्यादा लोग इन केंद्रों तक पहुंच चुके हैं। पर यह आंकड़ा अधूरा है। कई लोग पुलिस और प्रशासन की मदद से घर लौट चुके हैं, तो कई अब भी अपनों को खोजने में लगे हैं। लेकिन किसी के पास इसका जवाब नहीं कि अब तक कितने लोग मिल चुके हैं और कितने अब भी गुमशुदा हैं।
सच यही है कि महाकुंभ में आए ये श्रद्धालु अपनों के साथ आए थे, मगर कई अब अकेले लौट रहे हैं। कुछ की गोद सूनी हो गई, कुछ के कंधे पर अब किसी का सिर नहीं टिका। कहीं कोई भाई बेहाल है, कहीं कोई पिता बेसुध। आस्था के इस महासंगम में न जाने कितने रिश्ते बिछड़ गए, न जाने कितनी कहानियां अधूरी रह गईं…।

मौनी अमावस्या की रात बीत चुकी है, लेकिन दर्द की यह रात अभी खत्म नहीं हुई। प्रयागराज के संगम तट पर हजारों श्रद्धालु अपनी आस्था लिए पहुंचे थे, लेकिन अब कुछ हाथ जोड़कर दुआ मांग रहे हैं, तो कुछ रोते-बिलखते अपनों को खोज रहे हैं। आंखों में आंसू, दिल में बेचैनी और होठों पर एक ही सवाल- “हमारा अपना कहां है?”
आरा की सरोज अपनी थकी हुई आवाज़ में बताती हैं, “हम परिवार के नौ लोग संगम स्नान के लिए आए थे। 28 जनवरी की रात हम संगम के पास ही सड़क पर सो रहे थे। रात 10 बजे पुलिस ने अनाउंसमेंट करके उठा दिया। फिर रात 12 बजे हम संगम नोज पर नहाने पहुंचे। सबको हिदायत दी थी कि अगर कोई बिछड़ जाए तो लेटे हुए हनुमान जी मंदिर पर मिलें। सब वहां पहुंच गए, पर मेरी मां… वो अभी तक नहीं मिलीं।” बोलते-बोलते सरोज की आंखों में आंसू उमड़ आते हैं।
चित्रकूट जिले के गोपाल, जिनके चेहरे पर लाचारी और आंखों में इंतज़ार है, डिजिटल खोया-पाया केंद्र में कई दिनों से ठहरे हुए हैं। वो हताश होकर बताते हैं, “मेरी पत्नी, आशा देवी, भगदड़ में खो गईं। कई दिन हो गए, पर अब तक कोई खबर नहीं। पुलिसवालों से पूछो तो बस इतना कहते हैं कि आगे चलिए… लेकिन मैं कहां जाऊं? मेरी पूरी दुनिया तो इसी मेले में खो गई है।”

समस्तीपुर (बिहार) के जनार्दन की भी कहानी कुछ अलग नहीं। वह कांपती आवाज़ में कहते हैं, “मैं 17 लोगों के परिवार के साथ आया था। मौनी अमावस्या के दिन रात 3 बजे भगदड़ मच गई। सब कुछ बिखर गया… हमारे 5 लोग लापता हो गए। पुलिस स्टेशन, खोया-पाया सेंटर और हॉस्पिटल-सब जगह रिपोर्ट कर चुका हूं, लेकिन कोई जवाब नहीं। जाने वो किस हालत में होंगे?”
माला देवी, समस्तीपुर से ही आई हैं। उनकी आंखें लाल हो चुकी हैं, वो बेसुध सी कहती हैं, “बहन संगम नोज पर मेरे साथ थी। हमने स्नान किया और लौट रहे थे कि तभी भीड़ में फंस गईं। जब होश आया, तब तक बहन न जाने कहां चली गई। कहीं से कोई खबर नहीं मिल रही। वो जिंदा भी है या नहीं, मैं नहीं जानती।” उनके शब्दों में इतना दर्द था कि वहां मौजूद हर शख्स गहरी उदासी में डूब गया।
गया (बिहार) के बैजनाथ सिंह, जो अब डिजिटल खोया-पाया केंद्र में सहारे की तलाश में बैठे हैं, धीमे स्वर में कहते हैं, “पत्नी के लिए कपड़े दिए और संगम स्नान करने चला गया। वापस आया तो देखा कि पत्नी कहीं नहीं थी। अब इस भीड़ में कहां ढूंढूं उसे? ऐसा लग रहा है जैसे सब कुछ खो गया हो… सिर्फ़ आस्था बची है, उम्मीद बची है।”
अफरा-तफरी के बीच अनसुनी चीखें
28 जनवरी की ठंडी रात, संगम तट पर आस्था की लहरें उमड़ रही थीं। हर तरफ भक्तों का रेला था, गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर अमृत स्नान का पुण्य कमाने के लिए लाखों लोग जुटे थे। लेकिन इसी पवित्रता के बीच एक अनसुनी चीख गूंज रही थी-कहीं कोई बिछड़ गया था, कोई बेहोश पड़ा था, कोई दर्द से कराह रहा था, तो कोई अपनों को खोजने की जद्दोजहद में था।

घाट पर भगदड़ मच चुकी थी। कुछ लोग बताते हैं कि पुलिस ने भीड़ को संभालने के लिए जबरदस्त लाठीचार्ज किया, तो कुछ कहते हैं कि लोग खुद ही अफरा-तफरी में एक-दूसरे को रौंदते चले गए। हकीकत जो भी हो, एंबुलेंस की लगातार आवाज़ें और हर तरफ बिखरी चप्पलें, बैग, बोतलें इस हादसे की गंभीरता को बयां कर रही थीं।
ऐसे ही कई परिवार अपने प्रियजनों को ढूंढ रहे हैं। कोई अपने भाई को पुकार रहा है, कोई अपने बच्चे की तस्वीर हाथ में लिए प्रशासन से गुहार लगा रहा है। कुछ लोग अस्पतालों के बाहर किसी चमत्कार की आस में बैठे हैं, तो कुछ श्मशान घाट पर अपने अपनों को अंतिम विदाई देने की हिम्मत जुटा रहे हैं।

आजमगढ़ के पत्रकार अमित कहते हैं, “महाकुंभ, जो मोक्ष की यात्रा का प्रतीक है, आज कुछ लोगों के लिए अपनों की अंतिम यात्रा बन गया। क्या यह हादसा टल सकता था? क्या इन जिंदगियों को बचाया जा सकता था? प्रशासन की अव्यवस्था पर सवाल उठते रहेंगे, लेकिन जिनकी दुनिया उजड़ गई, उनके लिए अब कोई जवाब मायने नहीं रखता।”
“मेरा परिवार कहां है?”
समस्तीपुर के रामनरेश, जिनका पूरा परिवार 28 जनवरी की रात संगम नोज पर स्नान कर रहा था, वह अपने पांच लापता परिजनों की तलाश में जगह-जगह भटक रहे हैं। खोया-पाया केंद्र, पुलिस स्टेशन, अस्पताल-हर जगह रिपोर्ट दर्ज करा चुके हैं, लेकिन कोई जानकारी नहीं। हमने डिजिटल खोया-पाया केंद्र पर जाकर अधिकारियों से बात करने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद प्रभारी ने कोई भी आंकड़ा देने से इनकार कर दिया।
नाम न बताने की शर्त पर कुछ कर्मचारियों ने बताया कि सिर्फ 28 जनवरी की रात से 30 जनवरी की सुबह तक 850 से ज्यादा लोग गुमशुदा हो चुके थे। इसके बाद आंकड़ा बढ़ता चला गया। कुछ को परिवार ने खोज लिया, लेकिन कई अब तक लापता हैं। 29 जनवरी की सुबह 5 बजे से महामंडलेश्वरों की शाही सवारी संगम की ओर जाने वाली थी। इसके लिए घाट को पूरी तरह खाली कराया गया था, लेकिन इससे पहले हादसे की काली छाया मेले की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर चुकी थी।

मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं का आस्था से भरा मेला, इस हादसे के चलते मातम में बदल गया। कोई अपनों को खोजने की दौड़ में था, तो कोई इस भीड़ के बीच सहमा खड़ा था-न जाने अगला कौन खो जाए। महाकुंभ की इस पवित्रता में कहीं कोई मां अपने बेटे को ढूंढ रही थी, कहीं कोई पति अपनी पत्नी के इंतजार में था, तो कहीं कोई बहन भाई के लौट आने की उम्मीद लगाए बैठी थी। संगम की लहरों में भले ही आस्था की शक्ति हो, लेकिन उन आंखों में आज बस इंतजार है-शायद कोई लौट आए।
शो-पीस बने हेल्पलाइन कियोस्क
महाकुंभ मेले का प्रशासन इस पर कुछ भी कहने से बच रहा है। जब हमने एसडीएम मेला विवेक चतुर्वेदी से पूछा कि मौनी अमावस्या के बाद कितने लोग लापता हैं, तो उन्होंने कहा, “अभी प्रमुख सचिव और अन्य अफसरों की बैठक चल रही है। उसके बाद ही कोई जानकारी दे पाएंगे।”
लेकिन यहां अपनों को खोजते लोगों की आंखों में आंसू और दिल में बेचैनी इस बात की गवाही देते हैं कि आंकड़े चाहे कुछ भी कहें, इस भगदड़ ने कई जिंदगियों को बिखेर दिया है। यहां हर किसी की जुबां पर बस एक ही सवाल है, “क्या हमारा अपना फिर से लौट आएगा?”
उत्तर प्रदेश पुलिस ने महाकुंभ मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करने के लिए दस अत्याधुनिक डिजिटल ‘खोया-पाया केंद्र’ स्थापित किए हैं। इन केंद्रों में 55 इंच का एलईडी स्क्रीन लगाया गया है, जिसे लाउडस्पीकर से जोड़ा गया है। एडीजी भानु भास्कर कहते हैं कि महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। उनके सुरक्षित आवागमन और स्नान की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है।
खोए-पाए व्यक्तियों की जानकारी कंप्यूटर में दर्ज की जा रही है। सूचना देने वाले को कंप्यूटराइज्ड रसीद दी जा रही है। सभी केंद्र आधुनिक संचार प्रणाली से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, जिससे सूचना का त्वरित आदान-प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, सूचना का प्रसारण फेसबुक, एक्स (ट्विटर), व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से भी किया जा रहा है।

महाकुंभ मेले में श्रद्धालुओं की सहायता के लिए विभिन्न स्थानों पर पूछताछ केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों पर महाकुंभ, प्रयागराज शहर और मेला क्षेत्र से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध होंगी। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुलिस थानों, चौकियों, फायर स्टेशन, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और प्रमुख अधिकारियों के कार्यालयों का विवरण भी उपलब्ध रहेगा, लेकिन वहां सटीक जानकारी देने वाला कोई नहीं है।
अपनों की तलाश में पहुंचने वालों को वहां तैनात कर्मचारियों की डाट-फटकार सुननी पड़ रही है। यही हाल प्रयागराज बस और रेलवे स्टेशनों पर है। ट्रेनों की समय-सारणी, तीर्थ स्थलों, मंदिरों, ऐतिहासिक स्थलों तक पहुंचने के साधन और मार्गों की जानकारी नहीं मिल पा रही है।
कुंभ स्नान शुरू होने से पहले मुख्य मेला अधिकारी विजय किरण आनंद ने दावा किया था कि मेले में अब नहीं बिछड़ेगा कोई अपना, भीड़ के बीच भी मिनटों में मिलेगा खोया शख्स। तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए एआई आधारित डिजिटल खोया-पाया केंद्र बनाए जाएंगे, जिससे तीर्थयात्रियों को अपने प्रियजनों से जल्दी और आसानी से मिलने में मदद मिलेगी।
विजय आनंद ने यह भी कहा था कि नई पहल सुरक्षा, जिम्मेदारी और तकनीक का अद्भुत संगम है, जो महाकुंभ मेले को सुरक्षित और सुखद अनुभव में बदल देगी। पहले की कहानियों में जहां बिछड़ने का दर्द और फिर मिलने की खुशी का एक लंबा सफर होता था, अब सरकार की इस पहल ने इस प्रक्रिया को सरल, तेज और सुरक्षित बना दिया है। मुख्य मेला अधिकारी के दावों पर भरोसा करें तो स्थिति बहुत भयावह है। सरकार और प्रशासन की सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है।
शंकराचार्य ने मांगा योगी से इस्तीफा
इस बीच शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस्तीफे की मांग की है। प्रयागराज में परमधर्म संसद में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सरकार ने संत समाज और श्रद्धालुओं के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि भगदड़ की घटना को छिपाया गया और इसे अफवाह बताकर जनता को गुमराह किया गया।
गुरुवार को शंकराचार्य ने कहा, “यह लोग पूरी तरह अयोग्य हैं। जब इतनी बड़ी घटना घटी, तब सरकार ने सही जानकारी देने के बजाय उसे छुपाया। यह संत समाज के साथ धोखा था।” उन्होंने कहा कि मृतकों की आत्मा की शांति के लिए संतों को उपवास रखने का अवसर तक नहीं दिया गया।
शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से अनुरोध किया कि वे योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी सक्षम व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए। उनका कहना था कि सरकार आगामी भीड़ को भी सही तरीके से नहीं संभाल पाएगी, बल्कि केवल लीपापोती करेगी।
अविमुक्तेश्वरानंद ने आरोप लगाया कि कुंभ क्षेत्र में मौनी अमावस्या के एक दिन पहले हुई भगदड़ की घटना को सरकार ने छिपाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “30 जनवरी तक यह साफ हो चुका था कि कई स्थानों पर भगदड़ हुई, जिसमें कई श्रद्धालुओं की जान गई। लेकिन सरकार ने इसे अफवाह बताकर इस घटना को ढकने का प्रयास किया।”
परमधर्म संसद ने इस घटना को दुखद बताते हुए मृतकों की आत्मा की शांति और उनके परिवारों को धैर्य प्रदान करने की प्रार्थना की। संसद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस बयान की आलोचना की, जिसमें उन्होंने भगदड़ को अफवाह करार दिया। संत समाज ने इसे श्रद्धालुओं और संतों के साथ छल बताया।
संसद ने उल्लेख किया कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल के उदाहरण से यह साबित होता है कि जब गंभीर घटनाएं होती हैं, तो जिम्मेदार मंत्री इस्तीफा देते हैं। शास्त्री ने आंध्र प्रदेश की रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, और पाटिल ने मुंबई हमलों के दौरान आलोचना के बाद गृह मंत्री पद छोड़ा था।
संत समाज और श्रद्धालुओं के बीच नाराजगी बढ़ रही है, और संसद ने सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि कुंभ क्षेत्र में आगे कोई दुर्घटना न हो, और श्रद्धालुओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
(प्रयागराज के कुंभ से आराधना पांडेय की ग्राउंड रिपोर्ट)
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