मुगलसराय, चंदौली। इस हाड़ कंपाती ठंड में आधे-अधूरे गर्म कपड़ों में लिपटी महिलाएं और बच्चे-बच्चियां अपने छप्परनुमा घरों में दुबके हुए थे। एक हैंडपंप भी बस्ती में मिला, जो चारों ओर से कीचड़ और गंदा पानी से घिरा है। नल-जल योजना का पाइप पहुंचा है और नल भी लगा है, लेकिन लोगों ने बताया कि कभी पानी आया ही नहीं।
योजना के नाम पर महज अंगुली पर गिनती के परिवार को राशन मिलता है, शेष 50 से अधिक परिवार दिहाड़ी यानी अपने खून-पसीने की कमाई से अपने और परिवार को जिलाये रखा है।

अब इनकी समूची गृहस्थी को बुलडोजर से गिराने और यहां से भाग जाने की धमकी स्थानीय प्रधान व दबंग दे रहे हैं। ऐसे पीड़ित वनवासियों का आरोप है। सभी वनवासी लोग अनपढ़ और अपने हक़-अधिकारों की जानकारी से नावाकिफ है। अशिक्षा ही इनकी समस्या की सबसे बड़ी वजह में से एक मालूम पड़ती है।
वनवासी महिलाओं ने बताया कि, आंगनबाड़ी व आशा बहुएं इनकी बस्ती तक पहुंचती हैं और इनके नौनिहालों का टीकाकरण करती हैं। लेकिन इन नौनिहालों के नाम पर आने वाला राशन, तेल, घी, दाल, दहिया आदि का हड़प कर जाती हैं।
मसलन, आज देश की आजादी के 77 साल बाद भी इस वर्ग को पेट भरने के लिए रोटी, तन ढकने के लिए कपड़ा और रहने के लिए पक्का आवास की दरकार है। इनके अभाव में इनका जीवन मुख्यधारा से छिटक चुका है, जिसे पटरी पर लाने का कोई ठोस प्रयास तो फिलहाल नहीं दिख रहा है।
चंदौली जनपद के मुगलसराय तहसील के धरना गांव के लगभग 75 मुसहर (वनवासी) परिवारों ने 24 दिसंबर 2024 को प्रदर्शन कर अपनी पीड़ा प्रशासन तक पहुंचाने और समाज को बताने का प्रयास किया।
प्रदर्शन कर रहे वनवासी परिवारों का आरोप है कि, मुग़लसराय के सिकटिया स्थित कब्रिस्तान के पास गांव धरना में उनको वर्ष 1976 में भूमि बसने के लिए आवंटित की गई थी।

वनवासियों का कहना है कि वर्तमान ग्राम प्रधान श्याम गुप्ता और बाहरी व्यक्ति कृष्णा प्रसाद मिलकर उनकी सन 1976 में आवंटित जमीन पर जबरिया कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। ये भूमाफिया गरीबों की जमीन हड़प कर प्लॉटर्स को बेचने की योजना बना रहे हैं।
अपनी जमीन से बेदखल होने के डर और भूमाफिया की धमकियों से आजीज आकर पीड़ित वनवासी लोगों ने 24 दिसम्बर को सैकड़ों की तादात में इकट्ठा होकर प्रदर्शन किया।

इसके बाद 26 दिसम्बर को अपनी बस्ती की असुविधाओं को दूर करने लिए मुख्यमंत्री के नाम आवेदन दिया। इसके ठीक दो दिन बाद 28 दिसम्बर 2024 को थाना दिवस में अधिकारियों को स्थानीय ग्राम प्रधान श्याम गुप्ता पर बनवासी बस्ती में लोगों की मड़ई गिराने और लोगों को भगाने का आरोप लगाते हुए प्रार्थना पत्र दिया है।

जानकारी के अनुसार इस वंचित वर्ग के पास यदि कुछ है तो सिर्फ इनको विरासत में मिली जमीन, जिसपर ये पीढ़ियों से ईंट की चारदीवारी पर घास-फूस का छप्पर डालकर बस किसी तरह से उपेक्षित और अभावग्रस्त जीवन जीने को विवश हैं।
जबकि, राज्य और केंद्र सरकार की दर्जनों कल्याणकारी योजनाएं, दलित, वंचित, आदिवासी, अनुसूचित, पिछड़े व पसमांदा वर्ग के विकास के साथ-साथ आगे बढ़ाने के लिए चलाई जा रही है।
वनवासियों की बस्ती की जमीनी हकीकत यह है कि इनमें से योजनाओं का ऑक्सीजन वनवासियों की बस्ती में पहुंचने से पहले ही ख़त्म हो जा रहा है।
मिहेन्दर वनवासी की पत्नी कुमारी देवी एक हल्की शॉल में लिपटी हुई हैं और गोद में एक बच्चे को लिए हुई हैं। “जनचौक” को बताती हैं कि “पति सुबह ही सात बजे लेबर मंडी चले जाते हैं और देर शाम को 200-300 रुपए की दिहाड़ी कमाकर लौटते हैं।

हमारे परिवार में किसी का भी आधार कार्ड नहीं बना है। जमीन कब्जाने वाला धरना गांव का प्रधान सादे कागज़ पर अंगूठे का निशान मांगता है।”
“हम लोग डरे हुए हैं, कि वह हमारे अंगूठे के निशान का गलत इस्तेमाल न कर ले। प्रधान पर भरोसा नहीं है। वह हम मुसहरों की बस्ती को गिराने-ढहाने को कहता है। साहब, सास-ससुर से मिली इसी जमीन पर हमारा परिवार जिंदा है। इससे भी हमलोगों को भगा दिया जाएगा तो मैं अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहां जाऊंगी ?
यह प्रधान हमलोगों को सादे कागज़ पर अंगूठा का निशान मांगता है, इसके लिए अपने घर बुलाता है। कहता है तभी न कागज बनाएंगे। इससे पहले मेरे ससुर से धोखे से सादे कागज पर अंगूठा लगा लिया गया था। वे भी अनपढ़ थे, हमलोग भी अनपढ़ हैं। तकरीबन तीन विस्वा जमीन एक गोंड समाज के व्यक्ति को बिना पैसे में ही देना पड़ गया।”

ज्योति कहती हैं “ठंडी में मेरे मरद को काम नहीं मिल रहा है। उनको दिहाड़ी के लिए कभी लेबर मंडी तो कभी मुगलसराय बाजार तक की खाक छाननी पड़ती है।
मुसहर जाति की वजह से होने के चलते हमलोगों को उपेक्षा और तिरस्कार सहना पड़ता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके घर-दरवाजे के पास से हमलोग और हमारे समाज के बच्चे गुजरते हैं तो गाली देने और ऊंची आवाज में भगाने लगते हैं। क्या हमलोग इंसान नहीं है ?”
“आशा बहू आती हैं, बच्चों का टीकाकरण करती हैं और आंगनबाड़ी बच्चों का नाम पता दर्ज करने आती है, लेकिन इन बच्चों के नाम पर सरकार-शासन से मिलने वाला राशन हड़प कर जाती है। नौनिहालों के राशन के बारे में पूछने पर भगा देती है। दाल, घी, तेल, दलिया आदि हमारे बच्चों को कुछ नसीब नहीं।
ग्राम प्रधान हम वनवासियों की कोई दुःख-तकलीफ नहीं सुनता है, उल्टे उजाड़ने और भगाने की धमकी दे रहा है। इतनी ठंडी पड़ रही है। हमलोग दिहाड़ी मजदूरी करके अपने व बच्चों को जीवित बचाये रखने के लिए जूझ रहे हैं। ऐसे विपरीत समय में ग्राम प्रधान हमलोगों को उजाड़ने और हमारी जमीन को प्लॉट काटकर बेचने की फ़िराक में हैं।”
अभाव व तकलीफों की साये में रोटी-जीवन के लिए जूझते धरना गांव के वनवासी परिवारों को देखकर पड़ोस में रहने वाली माला कुमारी का हृदय पसीज गया और वे इनके अधिकार और जमीन बचाने के लिए आरोपियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। स्थानीय रिंकू पटेल भी वनवासियों की जमीन बचाने और हक़-अधिकार की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहे हैं।
माला “जनचौक” से कहती हैं “वनवासी समाज में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो शव सुबह से शाम तक पड़ा रहता है। रुपए की तंगी में ये बेबस होते हैं। किसी वनवासी गर्भवती महिला का प्रसव कराना हो, कोई आगे नहीं आता है।
कोई मानवता के नाम पर थोड़ा बहुत सहयोग करता है, अन्यथा मैं स्वयं अपना पैसा लगाकर गमी (शव की अंत्येष्ठी) और ख़ुशी (प्रसव आदि के समय) सहयोग करती हूं, आखिर ये लोग भी बेचारे इंसान है।

बस पैसे और आमदनी न होने से परेशान और निर्धन हैं। स्थानीय ग्राम प्रधान इनको फूटी आंख भी देखना नहीं चाहता है, जबकि ये मुसहर बस्ती के लोग अपना कमाते-खाते हैं। और सन 1976 में आवंटित भूमि नियमानुसार बसे हुए हैं।”
“थाना दिवस में एप्लीकेशन दिया गया है, जांच चालू है। प्रधान की गुंडई का आलम यह है कि उसने थाना परिसर में भी वनवासी परिवारों को धमकी दी और भाग जाने को कहा। बताइये प्रधान कानून से ऊपर हैं? इनपर दलितों को सताने और उत्पीड़न करने चलते कब कार्रवाई होगी?”
पैंसठ वर्षीय विधवा रुक्मिना ने बताया कि “हम वनवासियों के प्रति ग्राम प्रधान श्यामगुप्ता की नीयत ठीक नहीं है। वह जमीन बेचने-खरीदने, खरीदवाने, बेचवाने का काम करते हैं। उनके काम से हमलोगों को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सरकार-प्रशासन से वर्ष 1976 में धरना गांव में वनवासी (मुसहर) जाति के गरीब-निर्धन लोगों को आवंटित भूमि से वह हटाने वाला कौन होता है?

यह जमीन सरकार ने हमलोगों को दी थी, जिसपर वनवासी समाज पीढ़ियों से रहता आ रहा है। यह जमीन हमारी है। हम किसी को नहीं देंगे। जरूरत पड़ेगी तो लखनऊ जाकर भी धरना-प्रदर्शन कर योगी जी को अपनी पीड़ा बताएंगे और इंसाफ मांगेंगे।”
“यह प्रधान श्याम गुप्ता तकरीबन दो-तीन साल विधवा पेंशन बनवाने के लिए 1000 रुपए मांगे थे। मैंने बुढ़ापे में मेहनत-मजूरी कर 1000 हजार रुपए बचाकर दिया था। मेरा पेंशन भी नहीं बनवाया आज तक। अब मैं इनके नीयत और ईमानदारी के बारे में और क्या कहूं ?”
गौरतलब है मुसहर (वनवासी) समाज वंचित है, जो जनपद चंदौली में अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी। इसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं।
2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी। चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है।
मुगलसराय उप जिलाधिकारी आलोक कुमार ने “जनचौक” को बताया कि “दलित-वंचित वर्ग जहां कई पीढ़ियों से निवास कर रहा है, ये लोग जहां बसे हुए हैं। इनको कोई हटा नहीं सकता। धरना गांव के वनवासी परिवारों को यदि कोई डरा-धमका कर बलपूर्वक हटाने का प्रयास करेगा, उनपर नियमानुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। मुगलसराय के धरना गांव से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
+ There are no comments
Add yours