झारखंड। झारखंड के बोकारो के धनघरी गांव में 15 मार्च की सुबह-सुबह उस वक्त अफरा-तफरी का माहौल बन गया जब लंबे समय से पुनर्वास व मुआवजे की मांग को लेकर धरना दे रहे आंदोलनकारियों को भारी संख्या में आई पुलिस फोर्स ने आंसू गैस, रबर बुलेट फायरिंग के साथ लाठी चार्ज कर दिया।
1985 में भोजूडीह से चन्द्रपुरा तक रेलवे ट्रैक बिछाया गया था, जिसका धनघरी के ग्रामीणों ने विरोध किया था और जमीन अधिग्रहण के मुआवज़े की मांग की थी। रेलवे विभाग ने बताया था कि उसने यह जमीन बीएसएल (बोकारो इस्पात संयंत्र) से लिया है और इस लाइन से बीएसएल कारखाने के लिए भी कच्चा माल ट्रान्सपोर्ट किया जाना है। चूंकि उस वक्त इस रेलवे लाइन को बिछाने के क्रम में किसी के घर को कोई नुकसान नहीं हुआ था, अतः ग्रामीणों ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
लेकिन 37 वर्षों के बाद 24 सितम्बर 2022 को तब पूरे क्षेत्र में खलबली मच गई जब रेलवे प्रशासन ने बिना सूचना दिए अचानक धनघरी के 24 परिवारों के 16 घरों को जमींदोज कर दिया। नोटिस भी नहीं दी गई और बिना पुनर्वास और मुआवज़ा दिये रेलवे विभाग ने पुलिस फोर्स के साथ आकर घरों को तोड़ दिया। इस क्रम में बिना तैयारी के ही घर के लोग जैसे-तैसे अपना सामान लेकर बाहर निकले पर बहुत से लोगों का सामान मलबे में ही दबा रह गया।
धनघरी एक मुस्लिम बहुल गांव है, जहां 16 घरों के खतियानी 25 परिवार बसते हैं। जिनको विगत 24 सितंबर को बिना व्यक्तिगत नोटिस दिए अहले सुबह 5 बजे रेलवे प्रशासन द्वारा हजारों की संख्या में पुलिस बल तैनात कर बुलडोजर से जमींदोज कर दिया गया। इन परिवारों के घर सहित लाखों की संपत्ति जमींदोज हो गयी (वैसे कहने को जनवरी 2021 में अखबार में नोटिस जारी की गई थी)।
इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि एक परिवार की बेटी की शादी कुछ दिनों बाद ही तय थी और शादी के लिए घर में रखे गए सारे सामान भी जमींदोज हो गये। इन खतियानी और रैयती घरों को अतिक्रमणकारी कह कर तोड़ा गया था जबकि यहां के रैयतों को ना नियोजन दिया गया, ना मुआवजा और ना ही पुनर्वास।

घरों को तोड़ने के बाद जब रेलवे विभाग ने इस ट्रैक के दोहरीकरण की तैयारी शुरू की, तब ग्रामीणों ने इसके विरोध में कार्य स्थल पर ही धरना शुरू कर दिया। ग्रामीणों का कहना था कि यह जमीन उनकी है, जिसका न तो कोई मुआवज़ा मिला है, न ही इसके बदले में पुनर्वास दिया गया है, तो हम जाएं कहां?
वहीं रेल विभाग का कहना है यह जमीन उन्होंने बीएसएल से ली है। ग्रामीण उस कागजात की मांग कर रहे थे जिसे बीएसएल ने दिया है, लेकिन रेलवे प्रशासन ने किसी भी तरह के कागजात नहीं दिखाए जिससे यह साबित हो जाए कि यह जमीन बीएसएल ने दी है। जाहिर है रेलवे और स्थानीय जिला प्रशासन की मिलीभगत से उक्त जमीन को जबरन कब्जा कर रेल ट्रैक का दोहरीकरण किया जा रहा है।
ताजा घटनाक्रम को देखें तो 15 मार्च 2023 को सुबह 4:00 से 5:00 बजे के बीच हजारों की संख्या में आरपीएफ और पुलिस बल के साथ जब जिला प्रशासनिक अधिकारी बोकारो उत्तरी क्षेत्र के गांव धनघरी मलबा उठाने आए तब गांव वालों ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 के अंतर्गत उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के तहत कहा कि “हमारी जमीन का अधिग्रहण करने के लिए पहले हमें नोटिस करें तथा अब तक हुए मानवाधिकार के हनन का मुआवजा दें, जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होगी तब तक, हम मलबा हटाने नहीं देंगे।”
इस मसले को लेकर पिछले 173 दिन से अर्थात 25 सितंबर 2022 से ही लोकतांत्रिक तरीके से धरने पर बैठे ग्रामीणों से अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए पुलिस बल प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज किया। ग्रामीण इसका विरोध करते हुए रेलवे और स्थानीय पुलिस के जवानों के लाठी-डंडे पकड़ने लगते हैं। ग्रामीणों को पुलिस और आरपीएफ के जवान बेरहमी से मारना चालू रखते हैं और प्रदर्शनकारियों को घसीट-घसीट कर रोड पर फेंकने लगते हैं। ग्रामीणों ने प्रशासन से बात सुनने की गुहार की लेकिन उल्टे प्रशासन ने उनपर पथराव और अधिकारियों पर हमले का आरोप लगाते हुए बेरहमी से पीटना जारी रखा।
जिला प्रशासन के इस निर्मम रवैये से ग्रामीणों के बीच दहशत फैल जाती है और खुद को बचाने के लिए कुछ ग्रामीण पुलिस से धक्का-मुक्की करते हैं तो कुछ अपनी जान-बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगते हैं। जिला प्रशासन और रेलवे पुलिस ग्रामीणों को खदेड़ते हुए उनके ऊपर पथराव करती है, रबर की गोलियां दागती है, आंसू गैस के गोले छोड़ती है। घरों में घुसकर पुलिस महिलाओं, बच्चों, पुरुषों और बुजुर्गों की निर्मम तरीके से पिटाई करती है। पुलिसिया दमन के इस खेल में 25 से ज्यादा पुरुष और 8 महिलाएं घायल होते हैं, जिसमें से 5 अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं।
मानवाधिकार की सभी सीमाओं को लांघते हुए जिला प्रशासन बहुत ही क्रूरता से धरना प्रदर्शन को भंग करने में सफल रहता है। धरने को भंग करने में सफल होने के साथ ही पुलिस बल प्रशासन के आदेश पर अपने साथ लाये गये 5 बुलडोजर पहले से जमींदोज हुए घरों के मलबे को साक्ष्य मिटाने के लिए हटाने में लगा देता है। महिलाएं, बच्चे और पुरुष रोते-बिलखते रहते हैं लेकिन किसी की भी गुहार सुनी नहीं जाती है।
तत्कालीन बिहार सरकार की अधिसूचना संख्या B/7/498/52/9060 दिनांक 09/08/1956 और B/7/498/52/9059 दिंनाक 10/08/1956 तहत देश के चतुर्थ इस्पात कारखाने के निर्माण के लिए तत्कालीन हजारीबाग और धनबाद जिले के 49 मौजा (गांव) की जमीन का भू-अर्जन अधिनियम, 1894 के तहत अधिग्रहण करने के लिए अधिसूचित किया गया था। जिसका कुल रकबा लगभग 45,000 एकड़ से ज्यादा है।
इसमें से 29 मौजा अर्थात 29 राजस्व गांव को पूर्ण अधिग्रहित किया गया और बोकारो इस्पात संयंत्र के नाम से देश के चौथे इस्पात कारखाने की नींव रखी गई। बाकी बचे 20 मौजा को अधिसूचना के बाद ना ही भौतिक कब्जा लिया गया ना ही इस अधिसूचना को रद्द किया गया। कुछ गांव में आंशिक रूप से पेमेंट तो हुआ लेकिन कम्पनी द्वारा भौतिक कब्जा नहीं लिया गया था।

भू-अर्जन अधिनियम 1894 के तहत यदि रैयतों की भूमि पर 30 वर्षों के अंदर भौतिक कब्जा नहीं लिया गया है तो उक्त जमीन स्वत: ही रैयत की हो जाएगी।
मुआवजा नहीं मिलने एवं अधिसूचना नहीं रद्द होने के कारण 20 गांव के ग्रामीणों ने भू-अर्जन अधिनियम 1894 के सेक्शन 18 में प्राप्त अधिकारों के तहत भू-अर्जन न्यायालय, धनबाद में केस किया कि हमें मुआवजा नहीं मिला है और जिन्हें मिला है उन्हें बहुत कम मिला है।
इसके बाद 1 अप्रैल 1968 को बोकारो इस्पात संयंत्र द्वारा 7,000 एकड़ जमीन को सरप्लस घोषित कर दिया गया।
पुनः 25 मार्च 1969 को इस्पात संयंत्र द्वारा 7,300 एकड़ जमीन को सरप्लस घोषित कर दिया गया। इसका मतलब है कि इस जमीन की जरूरत अब इस कंपनी को नहीं है।
ऐसे में उक्त भूमि पर ग्रामीण रैयत अपने पुश्तैनी घरों में बसे रहे और खेती-बारी करके अपना जीवन-यापन करते रहे।
इसके बाद वर्ष 1973 में बोकारो इस्पात संयंत्र अपने फिजिकल पोजीशन को दिखाते हुए लगभग 16,500 एकड़ (29 मौजा की) जमीन पर अपनी चहारदीवारी का निर्माण कर प्लांट प्रिमाईसेस की कंपाउंडिंग कर लिया।

वर्तमान में प्लांट की चहारदीवारी के अंदर इतनी अतिरिक्त भूमि पड़ी है कि इस प्लांट को वर्तमान क्षमता 4.5 मिलियन टन से 10 मिलियन टन क्षमता तक आसानी से विस्तारीकरण किया जा सकता है।
इसके बाद वर्तमान में विवादित भूमि (धनघरी टोला, मौजा बैदमारा) से सटे हुए मौजा रानीपोखर को दिनांक 11 अगस्त 1978 को 1250.48 एकड़ जमीन वापस कर दी गई। (अधिघोषणा सं० 93 दिनांक 16/09/1978, जिला धनबाद वर्तमान बोकारो।)
31 अगस्त 1987 को रैयतों द्वारा न्यायालय में किए गए केस का जजमेंट रैयतों के पक्ष में आ गया। फैसले के अनुसार रैयतों द्वारा मांगी गई वृद्धि राशि का भुगतान बोकारो इस्पात संयंत्र (SAIL, बोकारो) को करना है।
बोकारो इस्पात संयंत्र के द्वारा बोकारो इस्पात संयंत्र बनाम राज्य सरकार, बिहार (वर्तमान झारखण्ड) इस वृद्धि राशि को कम करवाने के लिए उच्च न्यायालय, रांची में चुनौती दी गई। इस केस में केस संख्या FA 45-46/1991 में रैयतों को ना पार्टी बनाया गया ना ही इंटरविनर।
केस संख्या FA 45-46/1991 का जजमेंट उच्च न्यायालय रांची के चीफ जस्टिस एमवाई इकबाल ने दिनांक 6 दिसंबर 2007 को रैयतों के अधिकार को मद्देनजर रखते हुए किया। जजमेंट में कहा गया कि 50 वर्षों में ह्यूमन राइट्स का हनन हुआ है इसलिए रैयतों को इंटरेस्ट के साथ मुआवजा मिलना चाहिए।
बोकारो इस्पात संयंत्र ने माननीय उच्च न्यायालय के इस जजमेंट की अवहेलना की और इस केस FA 45-46/1991 के जजमेंट के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) 4682-4683/2008 दायर किया।

स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) 4682-4683/2008 आगे चलकर सिविल अपील 3986-3987/2010 में परिवर्तित हो गया। यह केस लंबे समय तक चला और 18 सितंबर 2018 को अधिवक्ताओं द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय को बताया गया कि “अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता हो गया है और फाइल संबंधित मंत्री और कैबिनेट के अनुमोदन के लिए लंबित है, तदनुसार अपील निष्फल रही है। किसी भी मामले में अपीलों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है तो इन अपीलों को पुनर्जीवित करने के लिए झारखंड राज्य सरकार पहल कर सकती है।”
इतना बड़ा मुद्दा जिसमें 20 गांव में बसने वाले 1,50,000 की आबादी के अस्तित्व का सवाल है। ऐसे गंभीर विषय में झारखंड की तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की रघुवर सरकार ने न्यायालय में चल रहे केस को डिस्पोज करने के लिए बोकारो इस्पात संयंत्र से न्यायालय के बाहर रैयतों की सहमति के बिना वर्ष 2018 में समझौता कर लेती है, जिसे संवेदनहीनता नहीं तो और क्या कहा जाए।
इतना ही नहीं बोकारो इस्पात संयंत्र, तत्कालीन झारखंड सरकार से मिलीभगत करके वर्ष 2018 में ही बैंक डेट से अर्थात 2 सितंबर 2014 से ही 20 गांव के रैयतों की जमीन का बंदोबस्ती कराते हुए इन गांवों के नाम सहित इसमें बसने वाले 1,50,000 की आबादी को सरकारी रिकॉर्ड में दुनिया के नक्शे से गायब कर उक्त जमीन को ग्रीन लैंड बताया जाता है और खतियानी, पुश्तैनी, रैयती घरों को अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया जाता है।
पीछे की तारीखों में जाएं तो वर्ष 2002 में 50 साल बाद, 20 मौजा में से 12 मौजा (भतुआ, जरीडीह, धरमपुरा, नरकेरा, करहरिया, रानीपोखर, उकरीद, धनडबरा, पिपराटांड़ (चास थाना नं० 36), मानगो, बोदरोटांड़, कनारी, को पंचायती राज झारखंड, रांची पत्र संख्या 343/ ग्राम पंचायत, दिनांक 17 दिन 2002 को गजट नोटिफिकेशन कर झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 13 के तहत 12 पंचायतों में वर्गीकृत कर पंचायती राज में शामिल कर लिया जाता है तत्कालीन रूप से। जबकि सरकारी रिकॉर्ड में ये भी 13 गांव के लोगों के खतियान नक्शे से गायब हैं।

बाकी बचा हुआ 8 मौजा (शिबुटांड, कुण्डौरी, पंचौरा, बैदमारा, महेशपुर, महुआर, बनशिमली और कनफट्टा) जस के तस रह गए। इन गांव को पंचायत का भी दर्जा नहीं दिया गया। 8 मौजा के ग्रामीणों को ना पंचायत में रखा गया है ना ही नगर निगम में, इन्हें तीसरा वोट देने का अधिकार ही नहीं है। इनका जाति, आवासीय, आय प्रमाण पत्र भी नहीं बनाया जाता है।
यदि नक्शे से गायब किए गये इस गलत निर्णय की तिथि 02/09/2014 से 12 साल के अंदर दिनांक 01/09/2026 से पहले सुधारा नहीं जाता है तो 20 गांव के लोगों का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा। इस कार्य के लिए भी यहां के लोग लंबे समय से संघर्षरत हैं।
दूसरी तरफ सरकारी रिकॉर्ड से गायब होने के बाद इस 20 गांव की जमीन पर भू-माफियाओं की नजर पड़ गई है और यहां की जमीन को टुकड़ों में विशेष भू-अर्जन विभाग, डीपीएलआर विभाग और सेल प्रबंधन के अधिकारी से मिलीभगत करके वहां सदियों से बसे रैयतों की अनुमति लिए बिना भू-माफियाओं और छोटी-छोटी कंपनियों को बेचने का सिलसिला शुरू किया जा रहा है।
जबकि वर्ष 1956 की अधिसूचना में यह कहा गया है कि उक्त जमीन केवल चतुर्थ इस्पात कारखाने के निर्माण के लिए उपयोग में ली जाएगी, इसके अतिरिक्त यदि उक्त जमीन को किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में लाया जाएगा तो रैयतों की अनुमति ली जायेगी।
वर्तमान समय में जिन 8 मौजा में पंचायत नहीं है और जो तथाकथित रूप से अतिक्रमणकारी घोषित हैं, उन्हीं मौजा में से मौजा बैदमारा, टोला धनघरी में उपरोक्त घटना घटित हुई है।
इन तमाम मामलों पर माले विधायक बिनोद सिंह ने 16 मार्च को झारखंड विधान सभा में अपनी बात रखी जबकि क्षेत्र के भाजपा के विधायक ने उक्त घटना पर चुप्पी साध रखी है।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)
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