मुझे गांधी विचार में शाश्वत राष्ट्रीय चरित्र दिखता है: मंजू दांतरे

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वाराणसी। न्याय के दीप जलाएं-100 दिनी सत्याग्रह। हमारी विरासत हमारे पूर्वजों के चरित्र से सिंचित है, इसका इतिहास आज भी चैतन्य हैं। इस विरासत में ही भारत की आदिम सभ्यता व संस्कृति विकसित हुई है। इसे बचाने के लिए यदि हमें अपनी कुर्बानी भी देना पड़े तो हम देंगे।

यह कोई कृपा भिक्षा नहीं बल्कि हमारे हिस्से का न्याय है, जिसे हम लेकर ही रहेंगे। यह कहना है 45 वें दिन के उपवास सत्याग्रही 80 वर्षीय रामदुलारे पाठक का।

रामदुलारे पाठक मध्य प्रदेश के चंबल घाटी क्षेत्र के वरिष्ठ सर्वोदयी कार्यकर्ता हैं, जो भूदान-ग्रामदान से लेकर बागी समर्पण के अहिंसक प्रयोग के साक्षी हैं। आज भी वे चंबल घाटी क्षेत्र में आदिवासी समाज के अधिकारों हेतु संघर्षरत हैं।

आज के दूसरे सत्याग्रही बुंदेलखंड क्षेत्र के तरुण सिंह सिकरवार हैं जो एक सामाजिक, राजनीतिक चिंतक होने के साथ-साथ अंतिम व्यक्ति के संघर्ष में सहभागी होकर उनकी जीविका व सपनों को साकार करने में साझा रूप से प्रयासरत है। इसी प्रयास के तहत उन्होंने मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे पवई में 2018 में तीन बच्चों को लेकर एक खेल अकादमी शुरूआत की, जिसमें आज लगभग 1800 बच्चे हैं।

यह अकादमी के खिलाड़ी जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक खेल प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है जिले की एकमात्र बालिका फुटबॉल टीम।

इसी तरह वे वंचित वर्ग की महिलाओं के अधिकारों तथा गैरबराबरी पाटने हेतु समरसता कार्यक्रम आयोजित करते हैं। साथ ही सर्वोदय विचारधारा से नई पीढ़ी के नौजवान जुड़े, इस उद्देश्य से देश के अलग-अलग राज्यों में सर्वोदय संकल्प नाम से शिविरों का आयोजन एवं प्रशिक्षण देने का कार्य भी करते हैं।

उनके ये सभी रचनात्मक कार्य समाज में बहुआयामी परिवर्तन चाहने वाले महात्मा गांधी के ध्येय से प्रेरित हैं। इसमें उन्हें गांधी की शांति, अहिंसा, करुणा, साधन शुद्धि, सर्वधर्म समभाव के रूप दिखाई देते हैं। इसलिए वे इन गांधीवादी संस्थाओं की महत्व व प्रभाव को समझते हुए कहते हैं कि आज मानव को पूर्ण विकसित होकर स्वतंत्र विचरण करने व अपनी क्षमताओं को समृद्ध करके विराट हृदय बनने की जरूरत है।

जबकि आज संकीर्ण मानसिकता वाली कब्जाधारी सरकार देश में चल रही है। ये साधारण से व्यक्ति से लेकर महापुरुषों तक को अतिक्रमणकारी घोषित कर उनके आशियानों को ध्वस्त कर रही है। वे कहते हैं कि इस सरकार के लोगों की सद्भावना व सद्मार्ग हेतु ही आज उपवास पर बैठे हैं। मुझे इन पर भरोसा तो नहीं है फिर भी मैं मानता हूं कि एक दिन इन्हें अपने किए का पश्चाताप जरूर होगा।

वहीं आज की तीसरी सत्याग्रही ग्वालियर की समाजसेवी, सर्वोदय में विश्वास रखने वाली मंजू दांतरे हैं जो एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार से आती हैं। वे कोहार महिला मंडल नाम के संगठन के माध्यम से वंचित तबके के बीच लगातार सक्रिय रहकर उनके अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।

वह कहती हैं कि मुझे गांधी विचार में शाश्वत राष्ट्रीय चरित्र दिखता है, क्योंकि यह सत्य व अहिंसा जैसे मानवीय नैतिक मूल्यों के आधार से बना है। वे मानती हैं कि जब हमारे महापुरूषों ने हिंसा का कभी सहारा ही नहीं लिया तो वे अतिक्रमणकारी कैसे हो सकते है।

उन्होंने तो अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन काल में ही सब कुछ देश के लिए कुर्बान कर दिया। यहां तक कि अपने बदन के कपड़े भी अंतिम आदमी को देखकर पहने। वह मानती हैं कि हमारी आज की सरकार विकास की इस पागल दौड़ में अंधी हो गई है, जिसे पूंजीवाद की चकाचौध में अब महापुरुष भी अतिक्रमणकारी लगने लगे हैं।

यह केवल हम गांधीजनों की समस्या नहीं है बल्कि सरकार के इस पागलपन से हमारा समाज भी पीड़ित है। इस हेतु हम सबको सरकार के सामने अपने नैतिक बल से खड़ा होना ही होगा।

विदित है कि पिछले 11 सितंबर से सर्व सेवा संघ परिसर राजघाट के न्याय हेतु 100 दिवसीय क्रमिक सत्याग्रह जारी है। जिसका आज 45 वां दिन है।

आज के सत्याग्रह में उपवासकर्ता सत्याग्रही रामदुलारे पाठक, मंजू दांतरे व तरुण सिंह सिकरवार के अलावा सत्यनारायण प्रसाद, अनिल कु सिंह, अलख भाई, अरविंद कुशवाह, शक्ति कुमार,महेश चौधरी, ध्रुव भाई, पूनम, जागृति राही, नंदलाल मास्टर, अरविंद अंजुम, तारकेश्वर सिंह, महेश अजनबी, अंकित मिश्रा, अवनीश, महेंद्र,सुरेंद्र नारायण सिंह आदि शामिल हुए।

(प्रेस विज्ञप्ति।)

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