जैसी कि उम्मीद की जा रही थी, वैसा ही हुआ। देश के सामने जाति जनगणना का मुद्दा आते ही समूचा नैरेटिव ही बदल गया। आज मीडिया से लेकर आम लोगों की बहस में अचानक से जाति जनगणना की आंधी इतनी जोर से चली कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया की सामरिक ताकतें भी राहत की सांस ले रही होंगी। निश्चित रूप से कई लोग इसे मोदी की टैक्टिकल समझ-बूझ बता सकते हैं, जिसमें पाकिस्तान के साथ बड़ी जंग की आशंका भी निर्मूल साबित हुई और प्रशासनिक चूक पर भी सवाल उठने बंद हो जायेंगे।
फिलहाल तो जाति जनगणना का श्रेय लेने के लिए होड़ सी मची है। विपक्ष के पास बढ़त है, क्योंकि बीजेपी का रिकॉर्ड कल तक जाति जनगणना के खिलाफ रहा है। इसलिए उसके नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। कल राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीपीए) का प्रस्ताव सुनाने वाले भले ही केंद्रीय मंत्री, अश्विनी वैष्णव रहे हों, लेकिन बीजेपी ने इस मोर्चे पर अब अपने दो ओबीसी केंद्रीय मंत्रियों, शिवराज सिंह चौहान और धर्मेंद्र प्रधान को तैनात कर दिया है।
गृह मंत्री, अमित शाह से लेकर रक्षा मंत्री, राजनाथ सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तक ने कल के फैसले का स्वागत करते हुए अपने-अपने सोशल मीडिया हैंडल से इसे मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला बताया है।
उदहारण के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुताबिक, “140 करोड़ देशवासियों के समग्र हित में आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व में CCPA द्वारा जाति जनगणना को आगामी जनगणना में शामिल किए जाने का निर्णय अभूतपूर्व एवं स्वागत योग्य है।
वंचित, पिछड़े और उपेक्षित वर्गों को सही पहचान और सरकारी योजनाओं में उनकी उचित भागीदारी दिलाने की दिशा में यह एक निर्णायक पहल है। आदरणीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार, जिनके नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सामाजिक न्याय और डेटा-आधारित सुशासन को वास्तविकता में बदलने का यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है।”
भाजपा के नेताओं के इस पलटीमार बयानों से देश हैरान है, लेकिन सवर्ण हिंदुत्ववादी समर्थकों के तो होश उड़े हुए हैं। उन्हें तो ऐसा जान पड़ रहा है कि उन्हें आसमान से धरती पर पटक दिया गया है। X पर जिस किसी भी भाजपा नेता ने जाति जनगणना के पक्ष में पोस्ट की है, उसके कमेंट में शायद ही ओबीसी या दलित समुदाय के किसी सोशल मीडिया यूजर ने शुक्रिया के दो शब्द कहे हों। अधिकांश टिप्पणी उन भाजपा समर्थकों की है, जो इस फैसले से खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं।
खुद को बड़ी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर समझने वाली अनुराधा तिवारी ने अमित शाह की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, “पाकिस्तान से लड़ना था, पर आपने तो देश के अंदर ही जंग छेड़ दी !” अनुराधा ने इस फैसले के खिलाफ आम लोगों से विरोध में काली पट्टी, बैंड या टोपी, कपड़े पहनकर पोस्ट करने तक की अपील की है।
अजीत भारती को सोशल मीडिया में घोर दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी माना जाता है, और X पर 4.5 लाख फॉलोवर्स हैं। भारती ने अपनी टिप्पणी में कहा है, “सरकार से NRC मांगा, सरकार ने जातिगत जनगणना दे दी है। जब राहुल गांधी से संसद में कहा था कि वो करवा लेगा, तो वो जानता था कि भाजपा ये करेगी। विपक्ष में बैठ कर सरकार चलाई जा रही है, और भाजपा चला भी रही है।
कोई मास्टरस्ट्रोकी अब बताएगा कि राहुल गांधी से उसका मुद्दा ही छीन लिया गया। बहुत बढ़िया है। अब सौ प्रतिशत आरक्षण करवा कर, वो मुद्दा भी छीन लो। जो जनगणना इनको करनी है, जिसमें वही शब्द है- NRC और NPR वो इनसे हो नहीं रहा।
भाजपा अम्बेडकरवादी हो चुकी है। मेरी राय में इसे रावण की पार्टी में विलय कर के, उसे प्रधानमंत्री बना देना चाहिए, ताकि किसी को भ्रम न रहे।”
यह हताशापूर्ण बयान किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि लाखों सवर्णों का है, जिन्होंने आंख मूंदकर बीजेपी/आरएसएस पर अपना दांव लगाया हुआ था। ये वे घोर दक्षिणपंथी ताकतें हैं, जो भाजपा के कोर आइडियोलॉजी को आकार देते हैं। इनका सरोकार अखंड हिंदू राष्ट्र में है, और चुनावी लाभ के लिए दांवपेंच से परहेज है। अभी तक भाजपा नेतृत्व ने कई बार अपनी कोर आइडियोलॉजी से समझौता किया हो, लेकिन इन्हें पूर्ण विश्वास रहा कि अंततः उनकी अर्थात सवर्ण हिंदुत्ववादी शक्तियों की पहुंच से बाहर भाजपा नहीं जायेगी। लेकिन इस फैसले ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है।
यहां तक कि जयपुर डायलॉग जैसे राईट विंग यूट्यूब चैनल ने भी अपने हैंडल से टिप्पणी की है:
गोदी मीडिया की मशहूर एंकर चित्रा त्रिपाठी तक को इस विषय पर चर्चा चलाने में अच्छी खासी तकलीफ हो रही है। उन्हें भी लगता है कि अभी तक जाति जनगणना पर जैसी बीजेपी सरकार की राय थी, उसी के मुताबिक वे और उनका न्यूज़ चैनल बहस चला रहा था। नेता तो पलट गये, लेकिन उनके लिए पलट पाना उतना आसान नहीं है। इसीलिए उन्होंने बीजेपी प्रवक्ता गुरुप्रसाद पासवान को बार-बार टोककर बताने की कोशिश की कि यही मांग तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी उठा रहे थे।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री, धर्मेन्द्र प्रधान ने भाजपा की ओर से मोर्चा संभाल रखा है। प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से उन्होंने इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरते हुए कहा है कि कल जब यह निर्णय लिया गया तो कुछ लोग बौखलाए हुए हैं। वे कहते हैं, ‘सरकार उनकी है, पर सिस्टम हमारा है।’
मगर सवाल ये है कि 1951 में सरकार और सिस्टम किसके हाथ में था? तब यह निर्णय क्यों नहीं लिया गया? ऐसा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी सहित पूरी कांग्रेस जातिगत आरक्षण की सबसे कट्टर विरोधी थी। अगर बापू, सरदार पटेल, संविधान सभा न होते तो कांग्रेस आरक्षण भी नहीं होने देती। काका कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट को सामने नहीं लाने का निर्णय किसने किया?”
इसके जवाब में उन्हें सैकड़ों लोगों ने खरी-खोटी सुनाई है। एक टिप्पणी में कहा गया है, “नेहरु आरक्षण के विरोधी थे और आप आरक्षण के समर्थक तो स्वर्ण समाज के 80% वोट आपको अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के लिए दे रहा था क्या?” लेकिन मोदी-मोहन भागवत की पीएम हाउस में मीटिंग के बाद लिए गये इस फैसले को लेकर बीजेपी आलाकमान निश्चित रूप से आश्वस्त होगा कि हिंदू सवर्ण के पास उनको समर्थन देने के अलावा विकल्प ही क्या बचता है?
असली बात तो यह है कि बीजेपी के कर-कमलों से जाति-जनगणना का फैसला वास्तव में स्वागत योग्य है। कल्पना कीजिये, अगर यही काम इंडिया गठबंधन की केंद्र सरकार को करना होता तो देश में आज क्या स्थिति होती? 1989 के मंडल कमीशन की सिफारिशों को याद करें कि किस प्रकार से उत्तर भारत में हिंसा और आगजनी की बाढ़ सी आ गई थी। वीपी सिंह की सरकार में होते हुए भी भाजपा ने मंडल के खिलाफ कमंडल की राजनीति का फैसला लिया था, और रामजन्मभूमि अभियान के लिए लालकृष्ण अडवाणी ने गुजरात से रथयात्रा अभियान की शुरुआत कर दी थी।
यह उसी रथयात्रा का कमाल था, जिसमें वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी को भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व के साथ नजदीकी बढ़ाने का मौका मिला और बीजेपी ने भी पहली बार खुद को ब्राह्मण, बनिया पार्टी से विस्तारित कर ओबीसी और दलित समाज में पैठ बनाई। सवर्ण हिंदू पूरी तरह से भाजपा के फोल्ड में आ गये, और हिंदुत्व की अनूठी सोशल इंजीनियरिंग का ही फल है कि 2014 से भाजपा लगातार तीसरी बार देश की सत्ता पर काबिज है।
पहली बार लगातार दो-दो बार बुरी हार का सामना कर रही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के सामने तेजी से बिखरती कांग्रेस और नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी की घेराबंदी मुंह बाए खड़ी थी, उन्हीं क्षणों में भारत जोड़ो यात्रा के उनके फैसले ने उन्हें वास्तविक देश के दर्शन करने का मौका दिया। कन्याकुमारी से कश्मीर की यह यात्रा ही थी, जिसने पार्टी नेतृत्व को नया आत्मविश्वास और साथ ही व्यापक स्तर पर हाशिये पर पड़े दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के दुःख-दर्द को नजदीक से जानने और समझने का मौका दिया।
यह दोनों के लिए एक दूसरे के साथ की ही जरूरत थी, जिसे राहुल गांधी ने अंततः आत्मसात किया, जो कांग्रेस मुख्यालय या इक्का-दुक्का मौकों पर पहल लेने से पूरी तरह से अलग था। यही कारण है कि राहुल गांधी न सिर्फ जाति जनगणना की अपनी मुहिम को बोर करने की हद तक बार-बार घिसे टेप की तरह दुहराते रहे हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड सहित राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और दक्षिण के राज्यों में एक बड़े वर्ग और राजनीतिक दलों का भरोसा जीतने में सफल रहे हैं।
कई लोगों का मानना है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार ने यह फैसला लिया है। बिहार में नीतीश कुमार विभिन्न कारणों से अलोकप्रिय हुए हैं, उधर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन का पलड़ा भारी है, जिसे देखते हुए यह फैसला जरुरी था। लेकिन बिहार से भी महत्वपूर्ण यह फैसला उत्तर प्रदेश के मद्देनजर लिया गया है। आज समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने दलित सांसद, रामजी लाल सुमन के ऊपर करणी सेना के लगातार हमलों के विरोध में प्रदेश भर में धरना प्रदर्शन आयोजित किया हैं, वो साफ़ बताता है कि बीजेपी राज्य में तेजी से उच्च जातियों की पार्टी में तब्दील होती जा रही है।
इसके लिए मुख्यतया बीजेपी के राज्य और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सत्ता संघर्ष मुख्य वजह है, लेकिन इसका भारी नुकसान तो उत्तर प्रदेश में उसके आधार में गिरावट में नजर आ रहा था। सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा पिछले लोकसभा में पहले ही पिछड़ चुकी है, अब अगले डेढ़ वर्ष में यदि विधानसभा चुनाव में इससे भी बुरा हश्र होता है तो भाजपा के लिए 2029 में 200 सीट हासिल कर पाना भी सपना हो सकता है।
अंत में, आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से जाति जनगणना को लेकर कोई बधाई संदेश नहीं दिया है। कई सवर्ण सोशल मीडिया यूजर कल से मोदी को अनफॉलो करने की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जानते हैं कि इस ज्वलंत मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने के बजाय बीजेपी नेताओं से इसे आगे बढ़ाना ही श्रेयस्कर रहेगा। आगे चलकर, हवा का रुख देखकर और माहौल शांत होने पर श्रेय लेने का अवसर तो मिलना तय है। बीजेपी-आरएसएस के लिए आज भी चेहरा मोदी ही हैं, इसलिए उनकी छवि को दाग न लगे, और पारंपरिक सवर्ण हिंदुत्ववादी समर्थक वर्ग को इस हकीकत को हजम करने का वक्त मिल सके, यही पार्टी के दूरगामी हितों के लिए श्रेयस्कर होगा।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)