नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों से भाजपा को टक्कर देने की रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी (सपा) ने पार्टी की राज्य कार्यकारिणी में व्यापक बदलाव किया है। इस बदलाव में सपा के कोर समर्थक रहे यादव को कम और गैर-यादव ओबीसी नेताओं को अधिक जगह दी गई है। हाल के दिनों में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अति-दलित और अति-पिछड़ी जातियों के उभार को देखते हुए सपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। दूसरी तरफ इसे “केवल यादवों” की पार्टी के आरोप से बचने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
फिलहाल, सपा की राज्य कार्यकारिणी में जातियों के साथ-साथ क्षेत्रवार प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा गया है। नवगठित 182 सदस्यीय राज्य कार्यकारिणी में, जो पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने में विफल रहने के बाद भंग कर दी गई थी, 70 में से 30 पदाधिकारी गैर-यादव ओबीसी हैं, जबकि केवल पांच यादव नेताओं को जगह दी गई है। यहां तक कि अनुसूचित जातियों की संख्या-8-यादवों से भी अधिक है। पदाधिकारियों में जहां पांच ब्राह्मण नेता हैं, वहीं दो अनुसूचित जनजाति से हैं।
पार्टी ने सूची में 12 मुसलमानों को भी शामिल किया है, जो एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व है, जिसे अन्य पार्टियों की तरफ मुस्लिम वोटों को जाने से रोकने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदेश कार्यकारिणी समिति में 70 पदाधिकारी, 48 सदस्य और 62 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के नेतृत्व वाली पदाधिकारियों की टीम में चार उपाध्यक्ष, तीन महासचिव, 61 सचिव और एक कोषाध्यक्ष हैं।
राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि “नई टीम संतुलित है और इसमें सभी जातियों और समुदायों के नेताओं का प्रतिनिधित्व है। यह भाजपा का दुष्प्रचार है कि सपा एक जाति की पार्टी है। सपा ने हमेशा सभी जातियों और समुदायों को सम्मान और प्रतिनिधित्व दिया है। ”
गैर-यादव ओबीसी को बड़ा प्रतिनिधित्व देने के लिए अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के कदम का उद्देश्य ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के बाहर निकलने के बाद लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जाति के मतदाताओं का समर्थन हासिल करना है।
सपा गठबंधन को 2022 के विधानसभा चुनावों में गैर-यादव ओबीसी वोटों का अच्छा हिस्सा मिला था, जब उसने राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), एसबीएसपी, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन किया था।
हालांकि, चुनाव के बाद राजभर भाजपा के नेतृत्व वाले ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (एनडीए) में शामिल हो गए, जबकि महान दल ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की। इसके अलावा, हाल ही में सपा के कुछ ओबीसी नेता भाजपा में शामिल हुए, जिनमें पूर्वी यूपी के ओबीसी नेता विधायक दारा सिंह चौहान भी शामिल हैं।
सपा ने राज्य इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल के अलावा अन्य दो कुर्मी (ओबीसी) नेताओं और निषाद समुदाय के चार नेताओं को प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल किया गया है। यह प्रतिद्वंद्वी भाजपा के समीकरण को देखते हुए किया गया है। दरअसल, भाजपा का अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ गठबंधन है, जिनके पास क्रमशः कुर्मी और निषाद समुदायों का समर्थन आधार है।
क्षेत्रवार बंटवारे में 16 पदाधिकारी पूर्वी यूपी से हैं। पार्टी ने पश्चिम यूपी के (12) नेताओं को भी जगह दी है जहां उसका रालोद के साथ गठबंधन है। गाजियाबाद के धर्मवीर डबास और बागपत की शालिनी राकेश- दोनों जाट नेताओं को नोएडा से गुर्जर नेता सुनील चौधरी के साथ राज्य सचिव नियुक्त किया गया है।
सात पदाधिकारियों में मैनपुरी (दो), कन्नौज (तीन) और इटावा (दो) से हैं – जिन्हें यादव परिवार का गढ़ माना जाता है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव और अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव के आधा दर्जन से अधिक वफादारों को भी समिति में जगह मिली है। पहले सपा से अलग हो चुके और अखिलेश से मतभेद के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन करने वाले शिवपाल ने पिछले दिसंबर में अपनी पार्टी का सपा में विलय कर दिया था।
वरिष्ठ सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान, जिन्हें हाल ही में जालसाजी मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, को सचिव पद पर बरकरार रखा गया है।
जबकि पांच यादव नेता हैं- महिमा यादव, लाखन सिंह यादव, अवधेश यादव, रामसेवक यादव और महताब सिंह, किसी को भी उपाध्यक्ष और महासचिव का प्रमुख पद नहीं दिया गया है। पांचों को सचिव बनाया गया है। इसके विपरीत, तीन मुस्लिम प्रमुख पदों पर हैं।
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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