अबूझमाड़ के आदिवासी फिर आंदोलन की राह पर, पुलिस कैंप के खिलाफ 32 गांव के लोगों ने रोड को किया अनिश्चित काल के लिए जाम

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बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल अंतर्गत नारायणपुर जिला मुख्यालय से 24 किमी दूर कुंदला गांव में 32 गांव के डेढ़ हजार आदिवासी सड़क पर उतर आए हैं जिसके कारण सोनपुर-नारायणपुर मुख्य मार्ग बाधित हो गया है। आदिवासी ग्रामीण पिछले चार माह से ब्रेहबेड़ा गांव में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए थे। मांगें पूरी नहीं होने पर उन्होंने अब मुख्य मार्ग पर कल देर शाम से आकर डेरा जमा लिया है।

आदिवासी ग्रामीण इकट्ठा होकर सरकार से अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने, पुलिस कैंप हटाने और पेसा कानून को लागू करने के लिए विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।

अबूझमाड़ के ग्रामीण अपनी पारंपरिक वेशभूषा और पारंपरिक हथियारों के साथ बीती रात कुंदला में पहुंचकर डेरा जमाए हुए हैं। आक्रोशित ग्रामीण कुंदला मुख्य मार्ग पर बैठ गए हैं जिसके वजह से आवागमन बंद है। ग्रामीणों को समझाने के लिए धरना स्थल पर पुलिस-प्रशासन के लोग पहुंच गए हैं। अधिकारी ग्रामीणों को लगातार समझा रहे हैं और उन्हें जाने को कह रहे हैं। परंतु ग्रामीण अपनी मांगों को लेकर लामबंद हैं।

पुलिस कैंप का विरोध कर रहे बस्तर अंचल के आदिवासी

ग्रामीणों ने बताया कि वे लगभग 4 महीने से अपनी मांगों को लेकर अबूझमाड़ के अलग-अलग गांवों में प्रदर्शन कर रहे हैं परंतु शासन-प्रशासन के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा है। ग्रामीण सोनपुर मार्ग पर चलने वाले वाहनों का आवागमन बाधित कर शासन-प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

नारायणपुर जिले के इरकभट्टी गांव की खुशी कोर्राम कहती हैं कि, “मैं गांव की मितानिन प्रशिक्षक हूं, हमारी समस्या यह है कि हम 2018 से आज तक कोशिश कर रहे हैं कि सरपंच आयें और हमारी समस्याओं को समझें, महीने में एक बार उनके आने का समय तय है लेकिन जब से चुनाव हुआ है तब से हम आज तक उन्हें एक दिन भी नहीं देखे हैं”।

खुशा आगे कहती हैं कि “यहां आंदोलन में इतनी सारी महिलाएं आईं हैं लेकिन कोई उनका चेहरा तक नहीं देखा है, हमारे सरपंच कानागांव के मंगलू नुरूटी हैं। इसके अलावा हम स्कूल की समस्या को लेकर 2 से 3 बार गए थे, पर वो स्कूल नहीं दे रहे हैं बल्कि अभी शासन-प्रशासन से यह कर रहे हैं कि पहले डॉक्टर और आंगनबाड़ी की जरूरत है। जबकि सबसे पहले स्कूल की जरूरत है, क्षेत्र में 0 से 5 साल तक के 60 से 70 बच्चे होंगे। कुल करीब 200 बच्चे होंगे, उनकी पढ़ाई बाधित है।”

खुशी आगे कहतीं हैं कि मोदी सरकार कहती है-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ पर बेटी को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं दे रहे हैं, स्कूल मांगो तो नारायणपुर में 200 से ज्यादा स्कूल होने के बाद भी वहीं खोला जा रहा है जहां जरूरत नहीं है, इन सभी मांगों को हम रखे हुए हैं, इसके अलावा जितने स्वास्थ्य केंद्र दिए गए हैं, उन स्वास्थ्य केंद्रों में न एएनएम पहुंच रहे हैं और न मितानिन पहुंच रहे हैं, जो मितानिन पहुंच रहे हैं उनके ऊपर कार्यवाही की जा रही है”।

32 गांव के डेढ़ हजार आदिवासी सड़क पर उतरे

एक ग्रामीण प्रदीप कुमार गोटा कहते हैं कि, “हम लोग इतनी दूर से आए हैं। हमारी मांग है कि हमको अस्पताल चाहिए, स्कूल चाहिए लेकिन हमको कैम्प नहीं चाहिए। इस चीज को लेकर हम लोग बहुत दिनों से कोशिश कर रहे हैं। हमारी जो 3 सूत्रीय मांग है वह भी अब तक पूरी नहीं हुई है।

एसडीएम आए थे वह भी हमारी मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए हम आज यहां पर उतरे हैं जनता जो यहां दूर-दूर से आई है हम जबरदस्ती जनता को नहीं लाए हैं। जनता अपनी इच्छा अनुसार आई है।

यहां लगभग 84 परगना के डेढ़ से दो हजार ग्रामीण शामिल हैं। “कैम्प आने से हम लोग जंगल नहीं जा पाते हैं और महिलाएं लकड़ी नहीं ला पाती हैं और न कुछ कर पाती हैं। इसीलिए हम लोग यहां उतरे हैं हम सरकार को यही बोलना चाहते हैं कि हम आदिवासियों की जगह सुरक्षित रहें हम किसी के भरोसे जीना नहीं चाहते हैं और हम खुद के अधिकारों और हक के लिए लड़ना जानते हैं।”

प्रदीप गोटा आगे कहते हैं कि अभी जो नया कैंप लगा है महिलाओं के ऊपर ड्रोन लगा दिया जाता है। जहां देखो बलात्कार हो रहा है, अत्याचार हो रहा है। इसलिए हम लोग कैंप नहीं चाहते हैं।

सोनपुर-नारायणपुर मुख्य मार्ग बाधित

आंदोलन में आई रीना उसेंडी कहती हैं कि हमारी समस्या यह है कि हम जब भी आंदोलन करते हैं तो हमारे आदमियों को, हमारे आदिवासी जनता को नक्सली और एरिया कमांडर बताकर गिरफ्तार कर लेते हैं।

पुलिस नक्सली केस बनाकर जेल में डाल देती है। ऐसे ही हम नारायणपुर में ज्ञापन सौंपने गए थे तो आयतु उसेंडी को अभी नक्सलियों से मिलकर आने की बात कहकर अंदर कर दिए, अंदर करने के बाद हम वहीं रात 9 बजे तक थे, मीडिया से भी बात किए कि हमारे आदमी को अंदर किए हैं, लेकिन अब रिहा नहीं कर रहे हैं।

सरकार द्वारा कहा जाता है कि 24 घंटे के भीतर मीडिया से बात करोगे तो केस दर्ज नहीं होगा पर ऐसा नहीं होता है, नक्सल मुठभेड़ में शामिल थे, हत्या में थे ऐसा कहकर जेल भेज देते हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि सरकार के विकास के दावे अबूझमाड़ में सब खोखले नजर आते हैं। शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में अबूझमाड़ के बीहड़ क्षेत्रों में आज भी लोग दवाइयां और अच्छे इलाज से कोसों दूर हैं। अबूझमाड़ के ब्रेहबेड़ा गांव में नया कैंप खुलने के बाद ग्रामीणों ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि पुलिस फोर्स ड्रोन कैमरे से नदी में नहाने वाली महिलाओं का वीडियो फोटो निकाल रही है जिससे ग्रामीणों में काफी आक्रोश है।


(बस्तर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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