इंदौर विकास प्राधिकरण उतरा भू माफिया के रोल में!

इंदौर। शहर के नागरिकों की आवास समस्या हल करने के लिए बनाया गया इंदौर विकास प्राधिकरण भूमाफिया जैसी भूमिका में आ गया है। अधिकारियों की लापरवाही और लालफीताशाही के चलते प्राधिकरण से भूखंड खरीदने वाले हजारों लोग परेशान हैं। प्राधिकरण की विभिन्न स्कीमों में बचे हुए प्लाटों को निविदा के माध्यम से प्राधिकरण बेचने का काम करता है। नागरिक बड़ी उम्मीद से अपना घर बनाने की नीयत से निविदा भरकर प्लाट खरीदता है। पहले तो प्लाट आवंटन में ही अधिकारी मनमानी करते हैं। जब प्लाट आवंटित हो जाता है तो उपभोक्ताओं से पैसा भरवाने के बावजूद सालों तक न तो भूखंड का कब्जा दिया जाता है और न ही रजिस्ट्री की जाती है।

ऐसे कई उपभोक्ता स्कीम नंबर 71 स्कीम नंबर 98, 51, 151 सहित प्राधिकरण की विभिन्न स्कीमों में प्लाट लेने की नीयत से लाखों रुपये भरकर अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कही भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

गौरतलब है कि इंदौर विकास प्राधिकरण ने विकास के नाम पर शहर में कई योजनाओं को मूर्त रूप दिया है। योजना बनाते वक्त तो अधिकांश प्लाट आवंटित कर दिए जाते हैं, लेकिन बचे हुए प्लाटों की प्राधिकरण द्वारा निविदाएं मांगी जाती हैं और उन निविदाओं के माध्यम से नागरिकों को प्लाट आवंटित किए जाते हैं। पिछले कुछ सालों से प्राधिकरण में कुछ ऐसे अफसर कुंडली मारकर बैठे हैं कि वे प्लाट आरक्षित कर लोगों से पैसा तो भरा लेते हैं और उन्हें आवंटन पत्र भी जारी कर देते हैं, लेकिन जब प्लाट पर कब्जा देने और रजिस्ट्री करने की बात आती है तो उपभोक्ताओं को चक्कर पर चक्कर लगवाए जाते हैं।

स्कीम नंबर 71 में इसी तरह से 2018 में निविदाएं मांगी गई थीं। अखबारों में इश्तेहार देकर आवासीय प्लाट के लिए बुलाई गई इन निविदाओं में हजारों लोगों ने टेंडर भरे थे। इनमें से कुछ लोगों को प्राधिकरण के अधिकारियों ने आरक्षण पत्र दिए और उनसे लाखों रुपये भरवाने का काम किया गया। उसके बाद अप्रैल 2018 में आवंटन पत्र भी जारी कर दिए गए, लेकिन जब कब्जा देने और रजिस्ट्री करने की मांग की गई तो पहले तो प्राधिकरण के अधिकारियों ने कहा कि आप को आवंटित प्लाट छोटे-बड़े होंगे। इसलिए और बाकी राशि या तो आपको वापस की जाएगी या फिर प्लाट की साइज बढ़ेगी तो और राशि भरना पड़ेगी। उसके बाद ही आपको कब्जा और रजिस्ट्री होगी।

ऐसे ही एक प्लाट दीपिका बृजेश को स्कीम नंबर 71 का भूखंड सेक्टर सी में 36 नंबर का आवंटित किया गया था। 5 जनवरी 2018 को चार लाख रुपये अर्नेस्ट मनी भरकर और उन्होंने इसके लिए टेंडर भरा था। इसका 24 अप्रैल 2018 को आरक्षण पत्र दिया गया। इसके तहत छप्पन लाख रुपये से ज्यादा की राशि और आवंटन पत्र जारी किया गया। 135 वर्ग मीटर के इस भूखंड को बाद में कहा गया कि यह 112 वर्ग मीटर का हो गया है, इसलिए पूरे प्लाटों की नपती के बाद ही आपको कब्जा और रजिस्ट्री की जाएगी।

दीपिका और बृजेश ने इसके बाद प्राधिकरण के कई चक्कर लगाए और कई बार छोटे प्लाट की रजिस्ट्री करने और बचे हुए पैसे का वापस भुगतान करने का आवेदन भी दिया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। न तो प्लाट का कब्जा दिया गया और न ही बची हुई राशि। उक्त नागरिक पिछले 3 साल से लगातार इंदौर विकास प्राधिकरण के चक्कर लगा रहा है। सीईओ से लेकर संपदा अधिकारी तक सभी अधिकारियों से मुलाकात की। लिखित में शिकायतें कीं। लिखित में पैसे वापस करने और प्लाट की रजिस्ट्री करने की मांग की गई, लेकिन लापरवाह अधिकारियों की मनमानी के चलते तीन साल बाद भी न तो प्लाट का कब्जा मिला है और न ही रजिस्ट्री हो पाई।

उक्त नागरिक ने अपने आवास की समस्या हल करने के लिए प्लाट लिया था और उम्मीद की थी कि जल्द ही उनका अपना घर बन जाएगा, लेकिन प्राधिकरण की लालफीताशाही में ऐसी उलझन पड़ी है कि आज तक प्लाट नहीं मिला है। चूंकि प्राधिकरण में भरी गई राशि के लिए उक्त व्यक्ति ने बैंक से लोन लिया है और पिछले तीन साल में 10 लाख से ज्यादा ब्याज के रूप में बैंक में भर चुका है उसके बावजूद प्लाट नहीं मिला है।

गत दिनों प्राधिकरण के अधिकारी राज कुमार हलधर से भी उन्होंने तीन-चार बार चर्चा की। फाइल इधर से उधर घूमती रही, लेकिन काम नहीं हुआ। बृजेश और दीपिका रोज प्राधिकरण के चक्कर लगा रहे हैं और उन्हें टालने की प्रवृत्ति के तहत दो-चार दिन में रजिस्ट्री कराने का आश्वासन दिया जा रहा है। आश्वासनों से आजिज आ चुके पति-पत्नी अब शिकायत कर-कर थक चुके हैं। वे प्राधिकरण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का विचार बना रहे हैं। बृजेश और दीपिका की तरह सैकड़ों लोग इसी तरह प्राधिकरण के अफसरों की लालफीताशाही से परेशान हैं।

सोशलिस्ट पार्टी इंडिया मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रामस्वरूप मंत्री ने इस संबंध में प्रदेश के आवास मंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर प्राधिकरण से परेशानी से सभी उपभोक्ताओं को राहत देने तथा प्लाट की तत्काल रजिस्ट्री करने और प्लाट का कब्जा देने  की मांग की है और लालफीताशाही तथा परेशान करने वाले अधिकारियों पर जो कार्यवाही भू माफियाओं के खिलाफ होती है वही कार्रवाई करने की मांग भी की है। वर्तमान में प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में इंदौर के संभाग आयुक्त काबिज हैं, लेकिन  वे भी उपभोक्ताओं के साथ प्राधिकरण द्वारा की जा रही इस तरह की ठगी पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साधे हुए हैं।

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