क्या भारत सरकार इन सैकड़ा भर लद्दाखियों से डर गई?

Estimated read time 1 min read

पिछले दो अक्तूबर को गांधी जयंती पर दो ख़बरों ने प्रत्येक गांधी अनुरागी को विक्षुब्ध और उदास कर दिया। पहली दुखदाई घटना थी लद्दाख के सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके साथ लेह से दिल्ली तक पैदल चल रहे सौ से अधिक पदयात्रियों की गिरफ्तारी।

विदित हो इस यात्रा में अस्सी वर्षीय पुरुष और 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला भी शामिल हैं, जो 700 किमी की पदयात्रा पूर्ण कर राजधानी दिल्ली में गांधी समाधि राजघाट जाकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना चाह रहे थे। दिल्ली में उनके पहुंचने से पूर्व धारा 163 लगा दी गई तथा उन्हें अवज्ञा के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

वस्तुत: ‘लेह एपेक्स बॉडी’ ने ‘करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस’ के साथ मिलकर ‘दिल्ली चलो’ पदयात्रा का आयोजन किया था, जो पिछले चार साल से लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने, संविधान की छठी अनुसूची में इसे शामिल करने और अन्य मांगों को लेकर आंदोलन कर रहा है।

सोनम वांगचुक इससे पूर्व मार्च में 21 दिन का आमरण अनशन-11डिग्री तापमान में लेह के खुले आसमां तले कर चुके थे। लेकिन इस केंद्र शासित प्रदेश पर भारत सरकार की इनायत नहीं हुई तो उन्होंने दिल्ली का रुख किया था।

शर्मनाक यह है भारत सरकार इन सैकड़ा भर लद्दाखियों से डर गई। इनके साथ किसानों की तरह वादाखिलाफी की गई। उसे भारत सरकार को वे याद दिलाना चाहते थे। पर उन्हें सिंघु बार्डर पर भारी तादाद में जमा दिल्ली पुलिस ने घेर कर गिरफ्तार कर लिया।

लद्दाख से सांसद हजी हनीफा जन, सोनम वांगचुक को सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लेने पर उनके साथियों ने अलोकतांत्रिक बताते हुए उन्हें रिहा करने की मांग की।

प्रेस क्लब में आयोजित वार्ता में वांगचुक को समर्थन कर रही संस्था एपेक्स के सह संस्थापक टिजरिंग दोर्जय ने कहा कि लद्दाख में दो सांसद सीट, विधायिका स्थापना, भर्तियां शुरू करना और संविधान की अनुसूची छह के अंतर्गत लद्दाख को लाना जैसी उनकी मांगें हैं।

इधर प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी ने इस कृत्य को अलोकतांत्रिक बताया है तो आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भी इसकी घोर निन्दा की है।

गांधी जयंती पर गांधीवादी अहिंसक आंदोलन करते हुए सोनम वांगचुक और साथियों के साथ जो कृत्य भारत-सरकार ने किया उसका खामियाजा किसान आंदोलन की तरह ही इस सरकार को भुगतना पड़ सकता है।

राष्ट्रपिता की समाधि पर जाने से रोकना अक्षम्य अपराध है। बापू तो चंद लोगों को छोड़कर सबके प्यारे हैं। मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है।

वहीं सत्य अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जिनकी जयंती दुनिया अहिंसा दिवस के रूप में मनाती है, उसकी पूर्वसंध्या पर इज़राइल ने अनगिनत मिसाइल दागे व बम गिरा कर लेबनान के नेता को खत्म कर दिया तथा हज़ारों लोगों को मौत के मुंह में डाल दिया।

इसके जवाब में फिलीस्तीन समर्थक ईरान ने भी आक्रोशित होकर इज़राइल पर ज़बरदस्त हमला कर दिया। इससे शांति प्रिय राष्ट्र भी परेशान हैं और इसे अगामी विश्वयुद्ध के रुप में देखने लगे हैं।

जैसा कि सर्वविदित है इज़राइल के सिर पर अमरीका का वरदहस्त है और उसी के इशारे और हथियारों की आपूर्ति से फिलीस्तीन के गाज़ा को नेस्तनाबूद किया गया। अब उसका निशाना शेष बचे फिलीस्तीन के साथ खड़े देशों से हैं। उनमें लेबनान-ईरान प्रमुख हैं।

दुख इस बात का भारत समेत शेष अरब देश अमरीकी जाल में बुरी तरह जकड़े हुए हैं, इसलिए प्रतिरोध व्यक्त नहीं कर पाते उससे युद्ध करना तो दूर की बात है। ईरान लड़ने की बात कह रहा है किंतु भयावह होगा यह मंज़र। ईराक की तरह कहीं ईरान जैसा विकसित हमारा मित्र देश तबाह ना हो जाए।

अमरीका पेंटागन के सहारे दुनिया का सिरमौर बना हुआ। उसका लक्ष्य हथियार बेचना है, जिसके लिए वह इज़राइल जैसे राष्ट्रों की मदद के साथ हथियार बिक्री बढ़ाता रहता है।

हाल की पीएम ने अमेरिका यात्रा में उसे ख़ुश रखने हथियार खरीदी का समझौता किया है। इससे साफ़ ज़ाहिर है कि उसे सिर्फ और सिर्फ अपने हथियार बेचने से मतलब है। इसके साथ ध्वंस किए राष्ट्रों के पुनर्निर्माण के बहाने अपने बाज़ार को बढ़ाना है। आर्थिक आज़ादी का हरण करना है।

ये घटनाएं बहुत दुखद है। यह बात और भी कष्टप्रद है कि यह सब अहिंसा दिवस को हुआ है। गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन को जब उनके अपने देश में कुचला जा रहा है, तो क्या कोई इतने अवसाद के क्षणों में प्रतिकार नहीं करेगा। बापू हम सब दुखी मन से क्षमा प्रार्थी है। जो इनके ख़िलाफ़ शक्ति जुटाएं, उन्हें आशीष दें।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author