किसानों की समस्या जाने बिना नरवाई जलाने से रोकना उचित नहीं

देश के बिगड़ते पर्यावरण के लिए खेतों में जलाए जाने वाली नरवाई को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। सरकार का भी मानना है कि नरवाई जलाने से जो प्रदूषण फैलता है, वह बीमारियों को न्योता देता है। अनेक पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी सिफारिश की है कि नरवाई जलाने को रोका जाना चाहिए। लंबे समय से नरवाई जलाने पर रोक की मांग को देखते हुए सरकार ने कानून बना दिया है कि नरवाई जलाना दंडनीय अपराध है। इसको लेकर मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में और देश के कई राज्यों में किसानों को आर्थिक दंड भी दिया गया है, लेकिन फिर भी नरवाई जलाने का सिलसिला थमा नहीं है।

आज भी मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश या देश का कोई अन्य हिस्सा, जहां-जहां गेहूं का उत्पादन होता है, वहां के खेतों में नरवाई जलाने का सिलसिला जारी है। यदि आप सड़क मार्ग या रेल मार्ग से यात्रा करें, तो नरवाई का उठता धुआं चारों ओर दिखाई देता है।

किसानों का कहना है कि उनके पास गेहूं की कटाई के बाद खेत को फिर से बुआई के लिए तैयार करने का एकमात्र रास्ता नरवाई जलाना है। इसके अलावा खेत को बुआई के लिए तैयार करना संभव नहीं है। इसीलिए चाहे कानून बन जाए या दंडात्मक कार्रवाई हो, नरवाई जलाने का सिलसिला थमने वाला नहीं है।

यदि सरकार और पर्यावरणविद् नरवाई जलाने को रोकना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसे उपाय करने होंगे, जिनसे किसान नरवाई को अन्य तरीकों से नष्ट कर सकें। नरवाई को आग के हवाले करने से केवल एक दिन में खेत खाली हो जाता है, जबकि इसे प्लाऊ करके हटाने में समय और खर्च दोनों अधिक लगते हैं। यही किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। हालांकि कई विशेषज्ञों ने नरवाई के वैकल्पिक उपयोग सुझाए हैं, लेकिन इसके प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था सरकार ने नहीं की है।

किसानों के बीच नरवाई जलाना एक प्रथा-सी बन गई है। किसान जानता है कि वह नरवाई जलाकर वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, फिर भी अपनी सुविधा के लिए वह इसे छोड़ नहीं रहा है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि केवल 5 प्रतिशत किसान ही फसल अवशेष (भूसा) जलाकर इसका प्रबंधन करते हैं, ताकि अगली फसल की जुताई और बुआई में कोई अड़चन न आए। भूसा जलाना सबसे सस्ता उपाय है।

खेत में भूसा रहने की स्थिति में जुताई कर उसे मिट्टी में मिलाना एक कठिन और महंगा कार्य है। कटाई के लिए कम्बाइन हार्वेस्टर के उपयोग बढ़ने से यह समस्या और गंभीर हो गई है। इस कारण किसान भूसे को जुताई द्वारा मिट्टी में मिलाने से बचना चाहते हैं और नरवाई का सहारा लेते हैं। मध्य प्रदेश का किसान खरीफ की प्रमुख फसल की बुआई प्रथम वर्षा के तुरंत बाद करना चाहता है, ताकि उसे सोयाबीन का अच्छा उत्पादन मिले। इसके लिए वह गर्मियों में ही अपने खेत तैयार करना चाहता है। खेत में गेहूं के अधिक अवशेष होने पर यह संभव नहीं हो पाता। इसके लिए वह सरल उपाय के रूप में नरवाई का सहारा लेता है।

यह स्थिति उन क्षेत्रों में अधिक है, जहां की मिट्टी अधिक चिकनी होती है। ऐसी मिट्टी में जलभराव और मिट्टी के कठोर होने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस कारण किसान नरवाई को एकमात्र विकल्प मानता है। गेहूं की अधिक उपज वाले क्षेत्रों और खेतों में भूसे का उत्पादन भी अधिक होता है। ऐसी स्थिति में भूसे को जुताई द्वारा मिट्टी में मिलाना एक कठिन कार्य हो जाता है, जो किसान को नरवाई जलाने के लिए प्रेरित करता है।

धार के उपसंचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास, ने बताया कि जिले में गेहूं की फसल की कटाई हार्वेस्टर से करने के बाद कुछ किसान फसल अवशेष (नरवाई) में आग लगाकर खेत की सफाई करते हैं। नरवाई जलाने से वायु प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव, जैसे केंचुआ आदि, मर जाते हैं और मिट्टी कठोर हो जाती है। इससे खेत की तैयारी में अधिक ऊर्जा और समय लगता है। साथ ही मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ भी नष्ट हो जाता है, जिससे खेत की उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और उत्पादकता कम होती जा रही है। नरवाई जलाने से पशुओं का चारा (भूसा) भी जलकर नष्ट हो जाता है। इस प्रकार नरवाई जलाना किसानों के लिए एक आत्मघाती कदम है।

सरकार का कहना है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में कृषि विभाग के अमले द्वारा नरवाई प्रबंधन की जानकारी कृषक संगोष्ठियों के माध्यम से दी जा रही है। मैदानी अमले द्वारा किसानों को नरवाई न जलाने की सलाह दी जा रही है। विकासखंड स्तर पर कृषि, राजस्व, और पंचायत विभाग के साथ समन्वय कर किसानों से संवाद करके नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है।

साथ ही, पिछले सप्ताह से कृषि अभियांत्रिकी विभाग द्वारा नरवाई प्रबंधन के लिए जागरूकता रथ के माध्यम से विकासखंड स्तर पर नरवाई न जलाने के लिए प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। जागरूकता रथ के माध्यम से किसानों को स्ट्रॉ रीपर (भूसा मशीन) से भूसा बनाने, मल्चर मशीन और जिले में उपयोग होने वाले जुगाड़ू यंत्र (पाटा) द्वारा फसल अवशेषों को बारीक काटकर खेत में मिलाकर जैविक खाद बनाने, हैप्पी सीडर से बिना नरवाई जलाए सीधे तीसरी फसल (मूंग) की बुआई करने, स्ट्रॉ रीपर के बाद रोटावेटर या गहरी जुताई करने आदि के बारे में जानकारी दी जा रही है।

किसानों द्वारा लगातार नरवाई जलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। सैटेलाइट से प्राप्त डेटा के अनुसार तहसीलवार और ग्रामवार प्रतिदिन नरवाई जलाने से संबंधित आंकड़े प्रदर्शित हो रहे हैं। नरवाई जलाने की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए किसानों के खिलाफ राजस्व और कृषि विभाग के मैदानी अमले के अधिकारियों के माध्यम से पंचनामे तैयार किए जा रहे हैं। नरवाई जलाने वाले किसानों के खिलाफ अर्थदंड की कार्रवाई की जा रही है। अनुभाग धार के अंतर्गत विकासखंड धार, तिरला, नालछा, सरदारपुर, और बदनावर से लगभग 83 प्रकरण तैयार किए गए हैं। इन पर तहसीलदार के माध्यम से नोटिस तैयार किए जा रहे हैं और अर्थदंड के लिए नोटिफिकेशन एवं कार्रवाई राजस्व विभाग द्वारा की जाएगी।

नरवाई के लिए हर किसान की समस्या अलग होती है। किसान की समस्या को जाने बिना नरवाई जलाने पर रोक लगाना उचित नहीं होगा। न ही नरवाई जलाने वाले किसानों को आर्थिक दंड देना इसका समाधान है। इसके लिए यह आवश्यक है कि नरवाई जलाने के लिए बाध्य किसानों की समस्याओं का अध्ययन किया जाए और प्रत्येक किसान की समस्या के आधार पर उसके समाधान के उपाय अपनाए जाएं। फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने के लिए नए यंत्रों और नई तकनीकों का विकास किया जाए। उन किसानों के अनुभव, जो बिना नरवाई जलाए भूसे का प्रबंधन सफलतापूर्वक कर रहे हैं, अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।

(रामस्वरूप मंत्री, इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार और किसान संघर्ष समिति, मालवा-निमाड़ के संयोजक हैं)

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