पर्यावरण और हिंसा से विस्थापन: डराने वाले हैं वैश्विक रिपोर्ट के आंकड़े

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11 मई, 2023 को आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट, 2023 आयी। यह रिपोर्ट टकराहटों, युद्ध, हिंसा और पर्यावरण से होने वाले विस्थापनों को रेखांकित करती है। पर्यावरण की एक बड़ी समस्या अल नीनो प्रभाव है जिससे 88 देश प्रभावित हुए हैं। इससे बाढ़ और सुखाड़ दोनों ही स्थितियां साथ-साथ बनती हैं। पाकिस्तान में लोग बाढ़ से विस्थापित हुए तो सोमालिया, इथोपिया और केन्या में सूखे के कारण लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

यह रिपोर्ट बताती है कि 2021 की तुलना में 2022 में आपदाओं के कारण विस्थापित लोगों की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। जबकि कुल आंतरिक विस्थापनों में पिछले साल की तुलना में 60 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। आपदा की वजह से विस्थापन की कुल संख्या 3.26 करोड़ है। जबकि युद्ध और हिंसा से विस्थापित होने वालों की संख्या 2.83 करोड़ बताई गई है।

भारत में प्राकृतिक आपदा से विस्थापित लोगों की संख्या 25 लाख के आसपास है तो पाकिस्तान में यह संख्या 81 लाख से अधिक है। पाकिस्तान में पिछले साल की बारिश ने तबाही का मंजर खड़ा कर दिया है। अमेरीका में प्राकृतिक आपदा से विस्थापितों की संख्या 6 लाख 75 हजार है। फिलीपींस में चक्रवाती तुफानों की आपदा ने 54 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया।

यदि हम रिपोर्ट के आंकड़ों को देखें, जिसमें प्राकृतिक आपदा और युद्ध व टकराहटों से होने वाले विस्थापनों पर गौर करें तब अफ्रीका में बेहद भयावह स्थिति दिखती है। मसलन, सोमालिया में प्राकृतिक आपदा से 1 लाख 71 हजार विस्थापित हुए, वहीं युद्ध और टकराहट से 2 लाख 76 हजार विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए। नाईजीरिया में प्राकृतिक आपदा से 24 लाख और टकराहटों से लगभग डेढ़ लाख लोग विस्थापित हुए। इथोपिया में स्थिति इसके उलट है। वहां प्राकृतिक आपदा से 8 लाख 73 हजार और टकराहटों से 20 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए। केन्या और दोनों सूडान में प्राकृतिक आपदा का प्रकोप ज्यादा है, लेकिन टकराहटों की भूमिका से विस्थापन इन आंकड़ों से थोड़ा ही पीछे दिखता है।

हालांकि यह रिपोर्ट बताती है कि यूक्रेन युद्ध से होने वाली हिंसा ने पिछले वर्षों की तुलना में विस्थापन की संख्या में अचानक वृद्धि कर दिया है। लेकिन, यदि हम अफ्रीका की स्थिति पर नजर डालें तो यहां प्राकृतिक आपदा, अपासी टकराहटें और युद्ध एक दूसरे को प्रभावति करते हुए दिखते हैं। इस संदर्भ में, प्रो. अमर्त्य सेन की थीसिस ‘गरीबी और अकाल’ को जरूर पढ़ा जाना चाहिए। अफ्रीका में सूखे की समयावधि में लगातार वृद्धि देखी गई है। इसकी वजह से औपनिवेशिक दौर में जिस उत्पादन पद्धति को अपनाया गया वह यहां के मौसम में अब कारगर साबित नहीं हो रही है। चारागाहों की कमी की वजह से इससे जुड़ी जनजातियों के सामने नये चारागाहों को खोजने की समस्या खड़ी है, वहीं नियमित खेती-किसानी करने वाली जनजातियां पानी के स्रोतों पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाह रही हैं।

यहां मसला सिर्फ आहार की कमी, आय के स्रोतों का कम होते जाना ही नहीं है, साथ ही यह प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण के साथ जुड़ जाता है। राज्य की सत्ता पर नियंत्रण और नियंत्रणकारी जनजाति समूहों द्वारा अन्य जनजातियों पर हमला एक ऐसा कुचक्र रचता है, जिसका एक सिरा औपनिवेशिक नीतियों से जुड़ता है, वहीं दूसरा सिरा जनजातियों के भीतर के अंतर्विरोधों की अनसुलझी गुत्थियों में जाकर उलझ जाता है। इस तरह यहां टकराहटों और युद्धों से होने वाला विस्थापन ठीक वैसा नहीं है जैसा रूस द्वारा यूक्रेन पर किये हमलों से हुआ है।

दुनिया के स्तर पर प्राकृतिक आपदा में सबसे बड़ी भूमिका बाढ़ की है। तूफान और चक्रवात दूसरे और तीसरे नम्बर पर हैं। सूखे से प्रभावित होकर विस्थापित होने वालों की संख्या 22 लाख से अधिक है। इसके बाद भूकंप से होने वाले विस्थापन हैं। गुजरे साल में पाकिस्तान में प्राकृतिक आपदा से विस्थापितों की संख्या दुनिया के आपदा से जुड़े विस्थापन का चौथाई हिस्सा के बराबर था। जबकि दूसरी ओर सोमालिया पिछले 40 सालों से सूखे से जूझ रहा है, और लाखों लोग हर साल उजड़ रहे हैं।

प्राकृतिक आपदा से अलग युद्ध और टकराहटों से पैदा होने वाले विस्थापन के आंकड़े भी काफी दिलचस्प हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की टकराहटें यानी दो देशों के बीच होने वाले युद्ध से विस्थापन की संख्या 1 करोड़ 70 लाख से अधिक है। लेकिन, यदि हम इस तरह के युद्धों से अलग तरह की टकराहटों से होने वाले विस्थापनों को देखें, तब पिछले के मुकाबले 75 प्रतिशत की वृद्धि देखते हैं। दक्षिण एशिया में म्यानमार में यह संख्या 10 लाख से अधिक है। इस मामले अफ्रीका के देश सबसे ऊपर हैं।

पूरी दुनिया के स्तर पर साम्प्रदायिक और अपराध जनित हिंसा से 10 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में टकराहटों और हिंसा की वजह से गुजरे साल के अंत तक 6 लाख 31 हजार लोग विस्थापन का जीवन जीने के लिए मजबूर हुए हैं। पिछले साल की जुलाई में 122 साल का रिकार्ड टूटा था, इस समय भारत में बारिश नहीं के बराबर हुई। मानसून की स्थिति बदतर और असामान्य बारिश की स्थितियां देखी गईं। इस रिपोर्ट के मुताबिक इससे 21 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए।

उपरोक्त आंकड़े डरावने हैं। पूरी दुनिया के स्तर पर मौसम, पर्यावरण, खेती और इंसानों के उजाड़ और विस्थापन का जो परिदृश्य उभरता है, इसमें पूंजीवादी-साम्राज्यवाद की लूट और युद्ध की नीति, औपनिवेशिक मानसिकता और जनवादी आंदोलनों की कमजोर स्थिति को उजागर करता है। विस्थापन का विश्व-परिदृश्य अपनी कई चुनौतियों के साथ दिख रहा है, जिसे निश्चय ही एक समन्वित विचारधारा के साथ ही समझा और उसी के द्वारा हल किया जा सकता है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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