Friday, April 19, 2024

  तेलंगाना में नरेंद्र मोदी की विवादस्पद टिप्पणी का तीखा विरोध

पीएम मोदी के संसद के भाषण का तेलंगाना में तीखा विरोध हो रहा है। बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का धारदार लेकिन बेहद गंभीर भाषण हुआ, जिसने नरेंद्र मोदी तक को पहली बार ट्रैक से बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी ने अपने लंबे भाषण में जिन राष्ट्रीय एकता और अखंडता के साथ भारत के संघीय ढांचे को अक्षुण्ण बनाये रखने और चीन और पाकिस्तान के पहली बार 7000 किमी की भारतीय सीमा पर एकजुट होने के प्रति देश को आगाह करने का काम किया है, उसने यह साबित कर दिया है कि कहीं न कहीं देश में नरेंद्र मोदी का विकल्प तैयार हो रहा है। नरेंद्र मोदी ने खुद स्वीकारा कि उन्होंने अपने पीएम निवास में इस भाषण को सुना। उन्होंने संसद में उसका जवाब देने में अपनी सारी उर्जा लगा दी।

हालांकि यह जवाब, जहां पिछले एक साल की सरकार की उपलब्धियों और अगले एक साल में सरकार क्या करने जा रही है, के बजाय राहुल गांधी के द्वारा खड़े किये उन गहरे सवालों से हैरान-परेशान मोदी समर्थकों के लिए ऐसी बूटी प्रदान करने पर खर्च हो गया, जिसमें नेहरू की किताब और भाषणों का सहारा लेना पड़ा। इसी क्रम में मोदी एक ऐसी बात बोल गये, जिसने तेलंगाना में कोहराम मचा रखा है।

पिछले दो दिनों से हैदराबाद का माहौल गरमाया हुआ है। कई जगहों पर पीएम मोदी के पुतले जलाए गए हैं, और इसी का नतीजा है कि गुरूवार को संसद के दोनों सदनों में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के सदस्यों ने प्रधानमंत्री के आन्ध्र प्रदेश के विभाजन पर की गई टिप्पणी पर भारी विरोध प्रदर्शन और विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया। राज्य सभा में सदन की शुरुआत के तुरंत बाद सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की, लेकिन जब उप सभापति हरिवंश ने इसकी इजाजत नहीं दी और सदन का कार्य सुचारू रूप से चलाने की सदस्यों से अपील की तो विपक्ष के कुछ सदस्य वेल में आ गए।

ज्ञातव्य हो कि मंगलवार को राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था, “याद करिए किस शर्मनाक तरीके से आन्ध्र प्रदेश को विभक्त किया गया था। माइक बंद कर दिए गये थे, मिर्ची स्प्रे किया गया, और कोई चर्चा नहीं की गई। क्या वह तरीका सही था? क्या वह लोकतंत्र था?” उन्होंने उल्लेख किया कि इसके चलते आज तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मनमुटाव बना हुआ है।

आन्ध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम पर की गई इस टिप्पणी का संज्ञान लेते हुए, टीआरएस सांसद के. केशव राव ने गुरुवार को सदन शुरू होते ही इस मुद्दे को उठाने की मांग की। जब उपसभापति ने यह कहते हुए इसकी इजाजत नहीं दी कि इसे आज ही दिया गया है और इसे सभापति के समक्ष विचार के लिए रखा जायेगा, तो के. केशव राव, जोगिनीपल्ली संतोष कुमार, के. आर. सुरेश रेड्डी और बी. लिंगारैया यादव ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया।

के. चंद्रशेखर राव ने इस बीच रामानुजम की मूर्ति ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनावरण के मौके पर उसमें हिस्सा लेने से साफ़ इंकार कर दिया था। इससे पहले अपने बयान में उन्होंने आम बजट भाषण के बाद बेहद गुस्से में इसके खिलाफ बयान दिया था और कहा था कि वे जल्द ही अन्य प्रदेशों के प्रमुखों से मिलेंगे और भारतीय जनता पार्टी को बंगाल की खाड़ी में फेंकने के लिए कृत संकल्पित होकर काम करेंगे।

ऐसा माना जा रहा है कि पिछले 7 वर्षों के दौरान तेलंगाना मुख्यमंत्री के केंद्र की भाजपा और पीएम मोदी के साथ बड़े मधुर संबंध रहे हैं, लेकिन इस बीच अचानक से यह परिवर्तन एक नए बदलाव का संकेत है।

कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों का इस बारे में विचार था कि यह सब एक सुनियोजित रणनीति के तहत किया जा रहा है, जिसमें गैर कांग्रेस और गैर मोदी-शाह विकल्प के लिए तीसरे पक्ष को कहीं न कहीं तैयार किया जा रहा है, जिसकी अगुआई बंगाल, तमिलनाडु के बाद अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के द्वारा की जा रही है।

नोटिस पर चर्चा करते हुए टीआरएस सांसदों ने कहा है कि वे नियम 187 के तहत, पीएम मोदी के 8 फरवरी को राज्य सभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रस्ताव को पास करने के दौरान आंध्र प्रदेश पुनर्गठन बिल को दोनों सदन में “सबसे ज्यादा शर्मनाक” तरीके से पारित करने वाले बयान के खिलाफ लाना चाहते हैं। पीएम के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव को अध्यक्ष एम. वेंकैया नायडू के द्वारा अस्वीकृत किये जाने के बाद उन्होंने सदन का बहिष्कार किया।

इस बीच टीआरएस राज्य सभा सांसद के केशव राव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ए. पी. पुनर्गठन बिल पर तेलंगाना के लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगने की मांग की है। उनकी ओर से मांग की गई है कि प्रधान मंत्री अपने बयानों को वापस लें। राव ने गुरुवार को नई दिल्ली में मीडिया के समक्ष अपने बयान में कहा, “जब एक बार बिल पारित हो जाता है, तो इस पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह कानून बन गया है। प्रधानमंत्री ने संसद की नियमावली और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया है। अपनी टिप्पणी से उन्होंने तेलंगाना के लोगों का विश्वास खो दिया है।”

टीआरएस सांसद ने स्पष्ट किया कि आमतौर पर प्रधानमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव नहीं लाया जाता, क्योंकि वे सदन के नेता होते हैं। लेकिन यहां पर प्रधानमंत्री ने स्वयं सदन की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किये हैं। अतीत में भी कई बार सदन की कार्यवाही सुचारू ढंग से चले, इसके लिए दरवाजे बंद किये जाते रहे हैं, गलियारे को खाली किया गया है। जबकि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को कई दौर की चर्चा और वोटिंग के बाद पारित किया गया था, ऐसे में इस तरह के सवालिया निशान पीएम की ओर से उठाना अत्यंत निंदनीय है।

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि केंद्र की गैर-भाजपा राज्यों के साथ रिश्ते लगातार बिगड़ रहे हैं, इसे गणतंत्र दिवस से पहले भी देखा गया था। गौर करने वाली बात यह है कि इस साल जीएसटी को लागू होने के 5 साल पूरे होने जा रहे हैं, और इस बीच केंद्र के द्वारा राज्य को दिये जाने वाले हिस्से में पहले से 6% की गिरावट आई है। राज्यों के पास संसाधनों की भारी कमी बनी हुई है। 5 साल पूरे हो जाने पर केंद्र के द्वारा दी जाने वाली वचनबद्धता पूरी होने जा रही है, ऐसे में राज्यों के पास कोरोना के बाद खुद से बुनियादी कार्यों जैसे, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित तमाम घोषित कल्याणकारी कार्यों एवं किसानों को दी जाने वाली तमाम सहूलियतों के लिए पैसे की घोर कमी बनी हुई है, जिसमें भविष्य में और अधिक कमी होने की संभावना है।

राहुल गांधी ने केंद्र-राज्य संबंधों का हवाला देते हुए इतिहास से सम्राट अशोक से लेकर अब तक का हवाला देते हुए समन्वित तौर पर काम करने और मिलजुलकर काम करने की नसीहत देकर नरेंद्र मोदी को शहंशाह की तरह व्यवहार से बचने की सलाह दी थी। यह सलाह नरेंद्र मोदी की गिरती छवि के लिए बेहद घातक है, जिन्होंने अपनी छवि पर ही समूची भाजपा की किस्मत को दांव पर लगा रखा है।

राज्यों में भले ही किसी भी सरकार पर आंच आये, उसे या तो अपदस्थ कर समूचे मंत्रिमंडल को गुजरात की तरह रातों-रात बदला जा सकता है, या उत्तराखंड की तरह एक साल से कम समय में ही तीन मुख्यमंत्रियों की अदलाबदली संभव है, लेकिन कहीं से भी यह आंच मोदी तक नहीं आनी चाहिए। यह आंच आते ही संघ की मशीनरी सक्रिय हो जाती है, जैसा 2018 में देखने को मिला था।

देखना होगा कि आने वाले दिनों में बढ़ते केन्द्रीयकरण के खिलाफ राज्यों की एकल इक्का-दुक्का पहल, क्या जल्द ही सामूहिक विरोध की आवाज बनती है, कांग्रेस के राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करती है या फिर केंद्र के पास मौजूद तमाम संसाधनों (ईडी, सीबीआई इत्यादि) और आर्थिक पैकेज का चारा उन्हें आगे भी अपनी अभिव्यक्ति को खुले तौर पर प्रकट करने से रोके रखेगा।

(रविंद्र सिंह पटवाल लेखक और टिप्पणीकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles