वन डे-वन शिफ्ट’ की मांग : प्रयागराज में युवाओं का तूफ़ान भाजपा की चूलें हिला रहा है 

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प्रयागराज। कल सुबह 11 बजे से इलाहाबाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के सामने हजारों छात्रों का जो जुटान शुरू हुआ, वह अब चिंगारी से दावानल में तब्दील हो चुका है। यह चिंगारी उत्तर प्रदेश से निकलकर अब दिल्ली तक को प्रभावित कर रही है। खबर है कि दिल्ली के मुखर्जी नगर में भी सैकड़ों छात्र वन डे, वन शिफ्ट की मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं।

‘न बटेंगे, न हटेंगे’ और ‘ना बटेंगे, न कटेंगे। एक रहेंगे सेफ रहेंगे और नोटिस मिलने तक डटे रहेंगे’ जैसे नारों और पोस्टर्स के साथ हजारों की संख्या में छात्र-छात्राओं का हुजूम आज और भी बड़ी तादाद में इलाहाबाद (प्रयागराज) को ही नहीं लखनऊ के सिंहासन को डावांडोल कर रहा है।

लगातार तीन बार यूपी पीसीएस की परीक्षा की तारीख जारी करने के बाद लोक सेवा आयोग ने जब तीन शिफ्ट में परीक्षा कराने और नार्मलाइजेशन (मानकीकरण) का फार्मूला पेश किया तो 6-8 वर्षों से इलाहाबाद की डेलिगेशी में अपने मां-बाप की गाढ़ी कमाई को फूंक रहे उन दसियों हजार विद्यार्थियों का गुस्सा फूट पड़ा है, जिन्हें अहसास हो रहा है कि इस प्रकिया के जरिये योगी सरकार अपने चहेतों के लिए सीट पक्का करने का प्रबंध कर रही है।

इस आंदोलन की व्यापकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोदी मीडिया कहे जाने वाले नोएडा न्यूज़ चैनलों ने भी आंदोलनरत युवाओं के आंदोलन को प्रमुखता से स्वर देना शुरू कर दिया है। 

यह एक ऐसे आंदोलन का रूप लेता जा रहा है, जिसे यदि जल्द ही दबाया न गया तो यह योगी आदित्यनाथ ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी भारी मुसीबत का सबब बन सकता है।

लेकिन भाजपा के सर्वेसर्वा तो इस बीच महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों में अपना सर्वस्व झोंके हुए हैं। यहां तक कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कल झारखंड में अपने बंटेंगे तो कटेंगे का महात्म्य समझा रहे थे, और आज नागपुर के दौरे के वीडियो को सोशल मीडिया पर जारी करने में व्यस्त हैं।

अमरावती की सभा में योगी आदित्यनाथ अपने भाषण में उवाच रहे हैं कि जब भी बटेंगे, गणपति पूजा पर हमला होगा, लव जिहाद और लैंड जिहाद के नाम पर यहां की जमीनों पर कब्जा होगा, बेटी की सुरक्षा पर खतरा होगा। फिर वे कहते हैं, “जो भी होना है, आर-पार होना है।”

लेकिन, अपने कर्म क्षेत्र में बुरी तरह से फ्लॉप प्रदर्शन के बाद यदि विधानसभा उपचुनाव में पार्टी का प्रदर्शन फीका रहा तो ऐसा माना जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ की कुर्सी जा सकती है।  

हां, उप मुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य जरुर उत्तर प्रदेश की बिगड़ती फ़िजा को लेकर बीचबचाव की मुद्रा में नजर आते हैं। उनकी ओर से बयान जारी कर कहा गया है कि यूपी पीसीएस परीक्षा को लेकर छात्रों की चिंताएं गंभीर और महत्वपूर्ण हैं। छात्र निष्पक्ष और पारदर्शी परीक्षा की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी मेहनत का सम्मान हो, और उनका भविष्य सुरक्षित रहे।

इसके साथ केशव प्रसाद मौर्य ने अधिकारी वर्ग से मांग की है कि वे छात्रों की मांगों पर संवेदनशील होकर सुनने के साथ उसका शीघ्र समाधान करें।  

इस बार के आंदोलन की खासियत यह है कि इसमें महिला प्रतियोगियों की भागीदारी भी पहले दिन से देखने को मिल रही है। जब कल आन्दोलनकारियों और पुलिसबल के बीच बेरिकेडिंग के आर-पार संघर्ष जारी था, और आंदोलनकारी बेरिकेडिंग तोड़कर लोक सेवा आयोग की ओर बढ़ने लगे तो बड़ी संख्या में छात्राएं भी बेख़ौफ़ निकलती दिखीं।

आज के धरने में छात्राओं की बड़ी भागीदारी इस आंदोलन की व्यापकता को दर्शाती है। एक प्रतियोगी छात्रा ने कहा कि पिछली बार मात्र 2 अंक से वह परीक्षा उत्तीर्ण कर पाने से चूक गई थी। आज जब प्रदर्शन की बात उठी तो मुझसे अपने कमरे पर बैठे नहीं रहा जा सका। यदि आज मैं इस आंदोलन में अन्य छात्रों के साथ नहीं आती तो मेरी अंतरात्मा मुझे कचोटती रहती।

प्रदर्शनकारी अपने साथ बड़ी संख्या में थाली, चम्मच और कटोरी लिए हुए हैं, जिसे वे कोरोना काल की तरह बजा-बजाकर एक तरह से पीएम नरेंद्र मोदी का मखौल उड़ाते नजर आते हैं।

इन आन्दोलनकारियों के हाथों में कलावा साफ़ देखा जा सकता है, जो इंगित करता है कि इनमें से बड़ी संख्या में भाजपा और मोदी भक्त रहे हैं। लेकिन आज ये उसी सरकार की मंशा को लेकर सशंकित हैं, और पारदर्शी परीक्षा संचालित करने को लेकर अड़े हुए हैं।

आखिर छात्र इस बार इतने गुस्से में क्यों हैं?

यह पूरा विवाद असल में काफी पहले से चल रहा है। 1 जनवरी 2024 को यूपीपीएससी ने अपर सब-ऑर्डिनेट सर्विस (पीसीएस) प्रिल्म्स परीक्षा का नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके मुताबिक 17 मार्च 2024 को यह परीक्षा होनी थी, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया।

इसके बाद देश में आम चुनाव की तैयारियां होने लगीं। इसके बाद 3 जून 2024 को फिर से आयोग ने नया नोटिफिकेशन जारी कर घोषणा कर दी कि अब 27 अक्टूबर से परीक्षा होगी। लेकिन एक बार फिर से तय समय से पहले ही इसे रद्द कर दिया गया।  

अब 5 नवंबर को एक बार फिर से यूपीपीएससी ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए 7 और 8 दिसंबर में दो शिफ्ट में परीक्षा की घोषणा कर दी। 220 पदों के लिए कुल 5 लाख परीक्षार्थी इस परीक्षा में भाग लेने वाले हैं। इस नोटिफिकेशन में दो शिफ्ट में परीक्षा के लिए आयोग दो अलग-अलग प्रश्नावली के साथ पेश हुआ है। 

यह एक तरह से नियमों से छेड़खानी है। परीक्षार्थियों को लगता है कि आगामी कुंभ में 4-5 करोड़ यात्रियों की भारी भीड़ को एक स्थल पर अच्छी तरह से सार-संभाल करने में सक्षम योगी सरकार आखिर 5 लाख परीक्षार्थियों के लिए एक दिन में एक ही एग्जाम पेपर के साथ परीक्षा संचालित कर पाने में विफल कैसे हो सकती है? 

उन्हें आशंका है कि कहीं न कहीं इस बहाने नार्मलाइजेशन (मानकीकरण) के फार्मूले को लागू कराकर आयोग, सरकार और अमीरों के बच्चों के लिए राह आसान करने का प्रबंध किया जा रहा है। आयोग के इस निर्देश ने वर्षों से कुछ सौ सीटों के लिए खुद को झोंके हुए छात्रों को एकदम से हिला दिया है। 

उन्हें ऐसा लग रहा है जैसे उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार और लोक सेवा आयोग मिलकर उनके सपनों की हत्या करने का पूरा मन बना चुकी हैं। यही कारण है कि देखते ही देखते इतनी बड़ी तादाद में हजारों छात्र-छात्राएं सडकों पर जमा हैं कि प्रशासन को कुछ भी सूझ नहीं रहा है।

ये ही प्रतियोगी आगे चलकर उत्तर प्रदेश प्रशासन की बागडोर संभालेंगे, शायद इसलिए भी प्रशासन ने इनके खिलाफ मामूली लाठीचार्ज के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं किया है, जिससे हालात काबू से बाहर हो जाते।

आज भी छात्रों का हुजूम थाली, कनस्तर पीटते हुए अपनी मांगों को दुहरा रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश प्रशासन अभी भी अपने राजनीतिक आकाओं के दिशानिर्देश के इंतजार में है। 

RO/ARO PCS की जो परीक्षा पिछले वर्ष नवंबर में पेपर लीक होने की वजह से रद्द हुई, उसे यूपी आयोग एक साल बाद भी संचालित कर पाने में विफल साबित हुई है।

लाखों परीक्षार्थी जानना चाह रहे हैं, कि जो सरकार कोरोना के भीषण काल में भी पंचायत चुनावों को संपन्न कराने के लिए सैकड़ों शिक्षकों की मौत की भी परवाह नहीं की, वह मात्र 5 लाख परीक्षार्थियों को एक बार में परीक्षा केंद्र और पर्यवेक्षक नियुक्त का पाने का रोना क्यों रो रही है? 

योगी बनाम प्रतियोगी की इस लड़ाई का खामियाजा बीजेपी लोकसभा चुनाव में भुगत चुकी है, लेकिन सरकार की अक्षमता इतनी व्यापक है कि इसमें सुधार की गुंजाइश न के बराबर है।

चूंकि इस बार आन्दोलनकारियों का गुस्सा ऐन झारखंड, महाराष्ट्र और विधानसभा के उपचुनावों के बीच उभरा है, इसलिए उम्मीद है कि भाजपा की डबल इंजन सरकार निश्चित रूप से जल्द ही इस संकट से अस्थाई निजात पाने का उपाय तलाश करेगी।

हां, चुनाव बाद सरकार क्या रुख दिखाती है, उसे इन परीक्षार्थियों को अभी देखना बाकी है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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