हेमंत सरकार, जो कहा, वो करो के नारे के साथ झारखंड जनाधिकार महासभा का राजभवन पर धरना

रांची। पूर्व घोषित कार्यक्रम हेमंत सोरेन सरकार को उनके चुनावी वादों सहित राज्य के जन मुद्दों को याद दिलाने के लिए झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा 30 मई 2025 को रांची में एक दिवसीय राज्य-स्तरीय धरना कार्यक्रम तय था, जिसके आलोक में आज यानी 30 मई 2025 को झारखंड के सभी जिलों से 2500 से अधिक लोग रांची पहुंचे और राज्य भवन के समीप “हेमंत सरकार, जो कहा, वो करो!” के नारों के साथ एक दिवसीय धरना दिया।

धरना कार्यक्रम में शामिल लोगों ने पिछले विधानसभा चुनाव में सोरेन सरकार द्वारा की गई लंबित घोषणाओं और चुनावी वादों को याद दिलाया और कहा कि “जो कहा, वो करो”।  

धरने की शुरुआत में एलीना होरो ने कहा कि 2024 के विधान सभा चुनाव में भी गठबंधन दलों ने जल, जंगल, जमीन, पहचान और स्वशासन सम्बंधित कई वादे किए थे। एलीना ने कहा कि सितम्बर 2024 में भी महासभा ने इन मुद्दों पर धरना दिया था और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिला भी था। आज फिर से हम उन्हीं मुद्दों पर सड़क पर आंदोलन करने को मजबूर है। 

अवसर पर सिराज दत्ता ने कहा कि बिना ग्राम सभा की सहमति के सुरक्षा बल कैंप भी लगातार बनाये जा रहे हैं। राज्य में 14,500 कैदियों में लगभग 80% विचाराधीन हैं। राज्य के 50% जेल में क्षमता से अधिक कैदी हैं। गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लम्बे समय से जेल में बंद विचारधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा और फर्जी मामलों के लिए न्यायिक आयोग का गठन होगा लेकिन चुनाव जीतने के बाद इस पर चुप्पी है।

कई वक्ताओं ने कहा कि हेमंत सरकार “अबुआ सरकार” होने का दावा करती है, लेकिन झारखंडी हितों के विपरीत काम कर रही है। 

सोमय मार्डी ने कहा 2016 में रघुवर सरकार ने झारखंड-विरोधी स्थानीय नीति बनाई थी। गठबंधन सरकार 6 साल में भी इसे रद्द कर आदिवासी-मूलवासियों के हितों की सुरक्षा करने के लिए उपयुक्त स्थानीय व नियोजन नीति नहीं बनाई।

सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े धर्म वाल्मीकि ने बताया कि दलितों के लिए महज़ जाति प्रमाण पत्र बनवाना एक संघर्ष है। अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढाई व रोज़गार से वंचित हो रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है।

यूनाइटेड मिली फोरम के अफज़ल अनीस ने कहा कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में राज्य में एक के बाद एक धर्म के नाम पर लिंचिंग हो रही थी। लोगों को आशा थी कि हेमंत सोरेन सरकार में ऐसी घटनाएं रुकेंगी। लेकिन इस सरकार के कार्यकाल में भी अल्पसंख्यकों पर धार्मिक हिंसा लगातार हो रही है। गठबंधन दलों ने कई बार मॉब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने का वादा भी किया था लेकिन आज तक यह अपूर्ण है।

अवसर पर आलोका कुजूर ने कहा कि चुनाव में आदिवासी-मूलवासियों ने फासीवादी, सांप्रदायिक और झारखंड विरोधी भाजपा के विरुद्ध इस अपेक्षा के साथ गठबंधन सरकार को चुना था कि जन मुद्दों पर कार्यवाई होगी। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बल्कि कई मामलों में तो सरकार ने झारखंडी हित के विपरीत फैसले लिए हैं। यह आदिवासी-मूलवासियों के साथ धोखा है।

धरना कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डेमका सोय ने कहा कि रघुवर सरकार ने राज्य के 22 लाख एकड़ गैर-मजरुआ व सामुदायिक ज़मीन को लैंड बैंक में डाल दिया था और भूमि अधिग्रहण कानून में 2017 में संशोधन कर जबरन अधिग्रहण का दरवाज़ा खोल दिया था। लेकिन बार-बार वादा करने के बावज़ूद गठबंधन सरकार ने आज तक उसे रद्द नहीं किया। 

वहीं बासिंग हेस्सा ने कहा कि PESA लागू करने के प्रति हेमंत सोरेन सरकार की उदासीनता से साफ़ झलकता है कि सरकार आदिवासी-मूलवासियों के लिए ‘अबुआ राज’ की स्थापना नहीं चाहती है।

अवसर पर श्यामल मार्डी ने कहा कि चांडिल बांध की नीलामी बाहरी लोगों को कर दी गयी है। 

पश्चिमी सिंहभूम के ईचाखड़काई बांध विरोधी संघ से जुड़े रेयांस समद ने कहा कि झामुमो हर चुनाव में बोलती है कि ईचा-खड़कई डैम नहीं बनेगा लेकिन हाल के TAC में इसे बनाने का निर्णय ले लिया गया। इससे सैंकड़ों आदिवासी परिवार विस्थापित होंगे। 

नंदकिशोर गंझू ने कहा कि व्यापक कटौती के साथ निजी पट्टा दिया जा रहा है। सामुदायिक वन अधिकार तो मिल ही नहीं रहा है।

बीरेन्द्र भगत कहा कि हेमंत सोरेन सरकार जब से जीती है, कभी अडानी के साथ मिल रही है तो कभी विदेश जाकर झारखंड की ज़मीन को बेचने का कार्यक्रम बना रही है।

मिथिलेश दांगी ने कहा अदानी के लिए प्रस्तावित गोंडुलपुरा कोयला खदान के विरुद्ध ग्रामीण 25 महीनों से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन सरकार अदानी के पक्ष में खड़ी है।

हेलन सुंडी ने कहा कि एक तरफ लोगों के जल, जंगल, जमीन और स्वायत्तता के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। वहीं दूसरी ओर, इस सरकार में भी आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन के तौर पर बंद रहना जारी है। 

धरना कार्यक्रम में शामिल लातेहार-पलामू से आये अनेक लोगों ने वन अधिकार कानून के तहत निजी और सामुदायिक पट्टा न मिलने के तथ्य दिए और सरकार की ‘अबुआ बीर दिशुम’ अभियान के खोखलेपन को उजागर किया। 

धरने में लोगों ने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया।

रश्मि यादव ने कहा कि अनगिनत बार बार घोषणा के बावज़ूद मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों को रोज़ अंडे नहीं मिल रहे हैं।

धरना के अंत में झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा मुख्यमंत्री के नाम आठ सूत्री मांग पत्र दिया गया, जो निम्नांकित है:-

1) भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून (2017) और लैंड बैंक नीति तुरंत रद्द हो। विस्थापन एवं पुनर्वास आयोग का गठन कर उसे सक्रिय किया जाए।

2) पेसा कानून को पूर्णतः लागू किया जाए।

3) सभी निजी व सामुदायिक वन अधिकार दावों एवं सामुदायिक वन संसाधनों पर अधिकार दावों पर बिना कटौती तुरंत पट्टा दिया जाए।

4) भूमिहीन दलितों को तुरंत जाति प्रमाण पत्र व भूमि पट्टा का आवंटन किया जाए।

5) ‘झारखंड पर आदिवासी-मूलवासियों का पहला अधिकार’– इसके आधार पर स्थानीयता और नियोजन नीति बनाई जाए।

6) लम्बे समय से विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाये और फर्जी मामलों को रद्द किया जाए।

7) मॉब लिंचिंग के विरुद्ध विशेष कानून बनाई जाए।

8) आंगनबाड़ियों और मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडे दिए जाए।

धरने का संचालन रिया तूलिका पिंगुआ और दिनेश मुर्मू ने किया।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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