सुनवाई के अंत में, न्यायालय ने अंतरिम निर्देश प्रस्तावित किए कि न्यायालयों द्वारा वक्फ घोषित की गई किसी भी संपत्ति को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए। इसने यह भी प्रस्ताव दिया कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के। इस तरह के अंतरिम निर्देश देने के पीछे न्यायालय का विचार यह है कि सुनवाई के दौरान कोई “कठोर” परिवर्तन न हो।
चूंकि एसजी मेहता ने अधिक समय मांगा था, इसलिए मामले की सुनवाई 17 अप्रैल को फिर से हुई, जिसमें उन्होंने बयान दिया कि मौजूदा वक्फ भूमि प्रभावित नहीं होगी और केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी। न्यायालय ने बयान को रिकॉर्ड में ले लिया और मामले को प्रारंभिक आपत्तियों और अंतरिम निर्देशों, यदि कोई हो, के लिए 5 मई को रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 के तहत चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि धर्म किसी का भी निजी मामला होता है। ऐसे में सरकार इस मामले को कानून बनाकर दखल नहीं दे सकती है। देश के कई गैर सरकारी संगठनों, मुस्लिम संगठनों और विपक्षी कांग्रेस समेत कई लोगों ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दे रखी थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह चुनिंदा याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। पिछली सुनवाई में ये बातें उठ चुकी हैं।
याचियों का कहना है कि नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इस अनुच्छेद के तहत भारत के हर व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा के मुताबिक धर्म को मानने, अपनी परंपराओं का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। साथ ही किसी भी धार्मिक प्रथा से जुड़ी किसी भी वित्तीय, आर्थिक, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियंत्रित और प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। ये अनुच्छेद अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संपत्ति और संस्थानों का प्रबंध करने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर वक्फ संपत्तियों का प्रबंध बदलता है या इसमें गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जाता है तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, नया वक्फ कानून अनुच्छेद 26 का भी उल्लंघन करता है। यह अनुच्छेद धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक संगठनों के रखरखाव का अधिकार देता है। मगर, अब नए वक्फ कानून से धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार छिन जाएगा। इसी तरह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को छीनना अनुच्छेद 29 और 30 का उल्लंघन माना जाता है। इन अनुच्छेदों का उद्देश्य अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की रक्षा करना और उनकी संस्कृति, भाषा और शिक्षा को बढ़ावा देना है।
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण- किसी भी नागरिक वर्ग को अपनी अलग भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।धर्म, नस्ल, जाति, भाषा या उनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यक वर्गों के शैक्षिक संस्थानों का अधिकार- अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति और विरासत के संरक्षण के लिए अपनी पसंद का शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार है। सरकार द्वारा सहायता देते समय धर्म या भाषा की परवाह किए बिना किसी भी अल्पसंख्यक समूह के संचालित किसी भी शैक्षिक संस्थान से भेदभाव नहीं होगा। अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया प्रवेश परीक्षा या योग्यता पर आधारित हो सकती है और राज्य के पास इनमें सीटें रिजर्व करने का कोई हक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीन मुख्य सवाल उठाए हैं-
पहला सवाल है कि क्या वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसका मतलब है कि क्या ऐसी वक्फ प्रॉपर्टी जिन्हें कोर्ट ने वक्फ घोषित किया है या फिर ऐसी वक्फ प्रॉपर्टी जिसका वाद किसी कोर्ट में चल रहा है, उन्हें वक्फ की संपत्ति मानने से इनकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कोई आदेश दे सकता है।
दूसरा सवाल है कि क्या विवाद की स्थिति में कलेक्टर के अधिकारों पर रोक लगानी चाहिए। वक्फ कानून में एक नया प्रावधान है। इसके अनुसार, किसी वक्फ प्रॉपर्टी को लेकर विवाद होने पर कलेक्टर उसकी जांच करेगा। यह विवाद सरकारी जमीन या वक्फ की जमीन के निपटारे से जुड़ा हो सकता है। जांच के दौरान वक्फ की प्रॉपर्टी को वक्फ की प्रॉपर्टी नहीं माना जाएगा। केंद्र सरकार का कहना है कि विवाद की स्थिति में दूसरा पक्ष ट्रिब्यूनल जा सकता है।
तीसरा सवाल है कि क्या वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की एंट्री सही है। दूसरे धर्मों से जुड़ी संस्थाओं में गैर-मजहबी लोगों की एंट्री पर रोक है। याचिकाओं में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की एंट्री को गैर-संवैधानिक बताया गया है। कपिल सिब्बल ने कहा कि पुराने कानून के तहत बोर्ड में सभी मुस्लिम होते थे। हिंदू और सिख बोर्ड में भी सभी सदस्य हिंदू और सिख ही होते हैं। नए वक्फ संशोधित अधिनियम में विशेष सदस्यों के नाम पर गैर मुस्लिमों को जगह दी गई है। यह नया कानून अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था, वक्फ बाय यूजर क्यों हटाया गया। कई पुरानी मस्जिदें हैं। 14वीं और 16वीं शताब्दी की मस्जिदें हैं, जिनके पास रजिस्ट्रेशन सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर्ड किया जाएगा। इसका मतलब है कि कोर्ट को चिंता है कि पुराने वक्फ, जिनके पास कागजात नहीं हैं, उन्हें कैसे मान्यता दी जाएगी।
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर कोई संपत्ति वक्फ प्रॉपर्टी के तौर पर रजिस्टर्ड है तो वह वक्फ की संपत्ति ही रहेगी। किसी को रजिस्ट्रेशन से रोका नहीं गया है। 1923 में जो पहला कानून आया था उसमें भी सपत्ति का पंजीकरण अनिवार्य था। उन्होंने कहा कि कलेक्टर उसकी जांच करेगा और पता चलता है कि वो सरकारी संपत्ति है तो रेवेन्यू रिकॉर्ड में उसे सही किया जाएगा। इसके अलावा, किसी को कलेक्टर के फैसले से समस्या है तो वो ट्रिब्यूनल जा सकता है।
(जे पी सिंह कानूनी मामलों के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)