एक वीडियो वायरल है। आरएसएस से जुड़े कुलश्रेष्ठ साहब का भाषण है, और इसे सुनते हुए जिस किसी ने भी संघ की वैचारिक दिशा को लेकर थोड़ी-सी भी समझ बनाई होगी, वह इस बात को फौरन पकड़ लेगा कि यह भाषण कोई निजी राय नहीं, बल्कि उस बड़ी परियोजना की एक सार्वजनिक झलक है, जो देश को बहुसंख्यक वर्चस्व और नफरत की राजनीति की ओर धकेल रही है।
इस वीडियो का पहला सीधा-सपाट संदेश यह है कि कुलश्रेष्ठ और उनका समूह न्याय या अन्याय, नैतिक या अनैतिक, जनहित या जनविरोधी जैसे सवालों से कोई वास्ता नहीं रखते। जो उन्हें सही लगता है, जो उनके मकसद को पूरा करता है, वही उनके लिए उचित है। उनका कहना है कि वे किसी भी ‘बहस’ में नहीं पड़ते, क्योंकि बहस उन्हें उनके घोषित लक्ष्य से भटका सकती है-और वह लक्ष्य है एक विशेष धार्मिक पहचान को सर्वोपरि बनाना, चाहे इसके लिए किसी भी तरह की अराजकता क्यों न फैल जाए।
दूसरा संदेश, जो इस भाषण में उभरकर आता है, वह यह है कि जनसरोकार-यानी जनता की असल ज़रूरतें-अब कोई मायने नहीं रखतीं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, महंगाई, किसान, मज़दूर, सामाजिक न्याय-ये सब “गैरज़रूरी” मुद्दे हैं। ज़रूरी सिर्फ़ यह है कि ‘सनातन’, ‘धर्म’, और ‘सभ्यता’ को बचाया जाए-और चूँकि यह काम भाजपा और संघ कर रहे हैं, इसलिए उन्हें हर हाल में वोट दिया जाए। यह एक सीधा आह्वान है कि लोकतंत्र के मूल सवालों को किनारे रखकर केवल धर्म के नाम पर मतदान करो।
तीसरी बात, और शायद सबसे ज़्यादा चिंताजनक, इस भाषण में जाति-आधारित विमर्श को लेकर कही गई है। कुलश्रेष्ठ साहब साफ़ कहते हैं कि जाति, भेदभाव, सामाजिक अन्याय जैसे सवालों पर बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है। उन्हें ‘इग्नोर’ कीजिए। यानी दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की ऐतिहासिक पीड़ा, उनके संघर्ष, उनके लिए सुरक्षित संवैधानिक अधिकार-सब कुछ बेकार है। वोट देते समय आप “सनातनी” बन जाइए और भाजपा को जिताइए। यह एक बेहद ख़तरनाक बात है, क्योंकि यह न केवल बहुसंख्यक वर्चस्व की ओर इशारा करता है, बल्कि समाज के भीतर मौजूद असमानताओं को स्थायी बनाए रखने की मंशा भी ज़ाहिर करता है।
इस भाषण की चौथी बात बेहद साफ़-साफ़ कही गई है-जिस दिन भाजपा को संसद में पूर्ण बहुमत मिलेगा, वक्फ़ बोर्ड हटा दिया जाएगा। यानी मुस्लिम समुदाय की संस्थाएँ ख़त्म कर दी जाएँगी। इसका मतलब है कि मुसलमानों का उत्पीड़न, उनका दमन, एक घोषित एजेंडा है, जिसे छिपाया नहीं जा रहा, बल्कि गर्व से बताया जा रहा है। और इस सबके पीछे यह भरोसा है कि समाज का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ़ मुसलमानों के प्रति घृणा की वजह से भाजपा को वोट देगा। यह भरोसा ऐसे ही नहीं बना; यह उन सामाजिक बदलावों का नतीजा है, जो पिछले कई दशकों में एक संगठित प्रचार के ज़रिए फैलाए गए हैं।
अब ज़रा रुककर सोचिए-जब कोई आपसे कहता है कि जाति, धर्म, न्याय, अन्याय जैसे सवालों को भूल जाइए और सिर्फ़ भाजपा को वोट दीजिए, तो उसी समय यह सोचना भी ज़रूरी है कि सरकार क्या कर रही है? क्या वह दिन-रात सिर्फ़ धर्म की रक्षा में लगी है?
हक़ीक़त इसके उलट है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो देश का अरबों-खरबों रुपया गैरकानूनी रास्तों से बाहर जा रहा है। बड़े-बड़े घोटालों की ख़बरें आती हैं, लेकिन कार्यवाही क्या होती है, कभी पता नहीं चलता। इस सरकार की आर्थिक नीति का फ़ायदा आम जनता को नहीं, बल्कि पूँजीपतियों को हो रहा है। भाजपा और संघ के दफ़्तरों की भव्यता, अरबों की संपत्ति, और इनके नेताओं की जीवनशैली बताती है कि असली ‘विकास’ कहाँ हो रहा है।
विडंबना देखिए, जिन मुग़ल बादशाहों को यह गिरोह रोज़ गालियाँ देता है, उनकी बनाई इमारतें आज भी देश की शान में इज़ाफ़ा कर रही हैं। अंग्रेज़ों द्वारा बनवाए गए पुल और संस्थाएँ आज भी टिकी हुई हैं। लेकिन आज की सरकार की बनाई सड़कें और पुल एक बारिश में ढह जाते हैं। इसके बावजूद जनता को धर्म के नाम पर गुमराह किया जा रहा है-कहा जा रहा है कि त्याग करो, सुविधाएँ मत माँगो, मुसलमानों से नफ़रत करो, दंगाई बनो, सामाजिक न्याय की बात मत करो।
हो सकता है कि आप कहें कि मिस्टर कुलश्रेष्ठ सरकार या पार्टी का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन संघ के काम करने का तरीक़ा यही है, वह अपनी बात अलग-अलग मंचों और व्यक्तियों के ज़रिए इस तरह कहता है कि ज़रूरत पड़ने पर उससे पल्ला झाड़ ले।
यहाँ जो बात बहुत अहम है, वह यह कि कुलश्रेष्ठ भाजपा के वर्तमान और भावी समर्थकों और वोटरों से बात कर रहे हैं, हिंदुत्व की राजनीति की जो छवि है, उसे ही मज़बूत कर रहे हैं।
अब यह तय करने का वक़्त है कि हिंदुत्व की इस पूरी परियोजना का उपयोग आम नागरिकों के जीवन में क्या है? क्या मुसलमानों को गाली देकर आपकी बेरोज़गारी दूर होगी? क्या ‘वक्फ़ बोर्ड हटाओ’ का नारा आपके बच्चों को बेहतर स्कूल दिला देगा? क्या किसी मज़ार को गिरा देने से अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत ख़त्म हो जाएगी?
नहीं। यह सब सत्ता की स्थिरता और बहुसंख्यक मनोविज्ञान को बनाए रखने के लिए है। और इसके लिए ज़रूरी है कि जनता सवाल न करे-न न्याय की बात करे, न रोज़गार की, न शिक्षा की, न सामाजिक बराबरी की। आप सिर्फ़ भक्त बन जाएँ, इंसान नहीं।
कुलश्रेष्ठ साहब का भाषण दरअसल चेतावनी है-उन सभी के लिए जो अब भी सोचते हैं कि संघ और भाजपा का एजेंडा सिर्फ़ चुनाव जीतना है। नहीं, यह सत्ता के ज़रिए समाज को स्थायी रूप से बदल देने की योजना है-एक ऐसा समाज जहाँ सवाल उठाना अपराध होगा, जहाँ न्याय की माँग करना ‘विघटनकारी’ होगा, और जहाँ मुसलमानों से नफ़रत करना ‘राष्ट्रभक्ति’ कहलाएगा।
अब भी अगर हम नहीं समझे, तो देर हो जाएगी। धर्म के नाम पर जो सत्ता मज़बूत हो रही है, वह अंततः लोकतंत्र को ही लील जाएगी। इसीलिए ज़रूरी है कि इस भाषण को केवल एक व्यक्ति की राय न समझा जाए, बल्कि इसे उस सामूहिक चेतना का हिस्सा समझा जाए, जो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के रास्ते पर ले जा रही है-और यह रास्ता किसी भी संवैधानिक मूल्य से मेल नहीं खाता।
सोचिए, सवाल कीजिए, और तय कीजिए कि आप किस तरफ़ खड़े हैं-लोकतंत्र की ओर या उसके विध्वंस की ओर।
(डॉ. सलमान अरशद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)