महाकुम्भ का जनप्रवाह देखकर नाज़ुक मन वाले बच्चों पर इसका नशा तारी है। वे पाप पुण्य नहीं जानते। गंगा नदी के नाम से भी परिचित ना हों किंतु घर-घर से जाते लोग उन्हें इस भीड़ में शामिल होने का आमंत्रण दे रहे हैं। बहुत से बच्चे जो मां-बाप के साथ यहां गए हैं उनकी तरह मासूम भी जाने के लिए उतावले हैं। जिनके मां बाप वहां जाने में सक्षम नहीं हैं उनके बच्चे मानसिक तौर पर परेशान हैं। उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।
उमरिया जिले से एक आदिवासी बच्चा जो कक्षा चार का विद्यार्थी है ऐसे ही जुनून का शिकार हुआ उसने मात्र 150₹ की व्यवस्था की और चल दिया महाकुम्भ के लिए। उसने मां बाप और मित्रों से भी इसकी चर्चा नहीं की। पहले वह कटनी जा रही गाड़ी में बैठ गया वहां शायद वह जानता था कि प्रयागराज वाली गाड़ी मिल जाती है। इसलिए कटनी जंक्शन पर उतर गया। वहां उसे जो ट्रेन दिखी उसमें सवार हो गया। खुशकिस्मती से वह दमोह को प्रयागराज समझ उतर गया। वह स्टेशन पर उतरे लोगों के साथ प्लेटफार्म से बाहर नहीं गया। इधर-उधर ताकते हुए उसे एक रेलवे सुरक्षा बल के व्यक्ति ने देखा तो समझ गया यह भटका हुआ बच्चा है। उससे पूछताछ की, तो पता चला वह कुंभ के लिए निकला था और यहां उतर गया। प्रशासन इस भागे बच्चे को उसके घर भेजने की तैयारी में है।
अहम् सवाल ये है कि इस आदिवासी बच्चे को कुंभ जाने का स्लो प्वाइजन कहां से मिला। इसके लिए वह भीड़ जिम्मेदार है जिसने नन्हें मुन्नों को भी अपने आगोश में लिया है। ये बात दूसरी है कि इस अगाध भीड़ को आमंत्रण योगी-मोदी सरकार और उनके द्वारा पालित पोषित तथाकथित बाबाओं ने दिया।
ये अफीम के नशे में डूबे श्रद्धालु दर्दनाक हादसों के बाद भी उसी रफ़्तार से जा रहे हैं तो स्वाभाविक तौर पर बच्चों पर इसका असर होना ही था।काश मोदी-योगी मौनी अमावस्या की रात आठ बजे नोटबंदी की तरह इसे रोकने का ऐलान कर देते तो यह भीड़ थम जाती।
मगर कहां उन्हें इवेंट पूरा करना है हादसे होते रहें उन्हें लोग भूल जाएंगे। बहरहाल, जिस देश के प्रधानमंत्री को अपने देश के बेरोजगारों की हथकड़ियों-बेड़ियों में देखकर शर्म नहीं आई प्रयागराज, और दिल्ली में मरे कुंभ यात्रियों पर तरस नहीं आया हो। उससे बच्चों की बदहवासी पर क्या उम्मीद की जा सकती है।
आइए, सामाजिक कार्यकर्तागण और सजग नागरिक इस बिंदु पर विचार करें। मोबाइल की तरह चढ़ रहे इस खुमार को उतारने शिक्षकों, सरपंचों और जागरूक लोगों को पहल करनी चाहिए। कम से कम सुकुमार मानसिकता वाले बच्चों को तो बचा लीजिए। पता नहीं इस बच्चे की तरह और भी बच्चे कुंभ जाने की तैयारी में होंगे।
धर्म के इस अफीमी नशे में लोगों पर गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई का कोई असर दिखाई नहीं देता है उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार खोते जा रहे हैं। उनकी हैसियत गुलामों जैसी होती जा रही है। अफसोसनाक है यह नशा सत्तारूढ़ पार्टी 2014 से द्वारा कराया जा रहा है। नशे में धुत लोगों को झूठे वादे किए जाते रहे हैं।वे नशे में स्वविवेक खोते जा रहे हैं। अब बच्चों की बारी है क्योंकि यही तो कल अंधभक्त बन बेड़ा पार लगाएंगे।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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