हमारे देश के लोकतंत्र पर करोड़पतियों ने कब्जा कर लिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार इस समय 93 प्रतिशत लोकसभा के सांसद करोड़पति हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार 2024 में लोकसभा में करोड़पतियों की संख्या 504 है। यह लोकसभा के सदस्यों की 92 प्रतिशत है।
एडीआर के अनुसार 2004 में लोकसभा में करोड़पति सदस्यों की संख्या 153 थी। 2009 में संपन्न चुनाव के अनुसार इनकी संख्या 300 पार हो गई। 2014 में हुए चुनाव के बाद करोड़पति सदस्यों की संख्या 443 हो गई, जो लोकसभा का 81.09 प्रतिशत था। 2019 में इसकी संख्या बढ़कर 479 हो गई, जो लोकसभा का 88 प्रतिशत था। पिछले वर्ष हुए चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 504 हो गई जो लोकसभा का 92.08 प्रतिशत था।
जब से लोकसभा के सदस्यों को अपनी संपत्ति का विवरण देना अनिवार्य हो गया है तब से करोड़पति सदस्यों की संख्या में लगातार वृद्धि होती गई। सदस्यों को अपनी संपत्ति का मूल्य मार्केट के अनुसार बताना पड़ता है। 2004 से 2024 के बीच द्रुतगति से करोड़पति सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती गई।
इस वृद्धि का अर्थ यह है कि राजनीतिक पार्टियां अब सिर्फ धनवानों को टिकट देती हैं। इसका अर्थ यह है, कि जो करोड़पति नहीं है वह चुनाव के मैदान में उतरने का साहस नहीं करेगा। इस तरह ये सदस्य अपने कार्यकाल के दौरान जनता की समस्याओं के प्रति ध्यान देने के स्थान पर खुद की आर्थिक स्थिति को मज़बूत करने में अपना समय बिताते हैं।
करोड़पतियों को चुनाव लड़ने के लिए वित्तीय साधन देश के कुछ चंद पूंजीपति ही देते होंगे। यही कारण है कि आज हमारे देश की बड़ी आबादी को सरकार द्वारा निःशुल्क अनाज देना पड़ रहा है।
यदि यही स्थिति रही तो लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं पर भी करोड़पतियों का पूरा नियंत्रण हो जाएगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि इस समय विधानसभाओं पर इनका कब्जा कम नहीं है। परंतु यदि यही स्थिति जारी रही तो हमारी लोकसभा पर कुल दो-चार पूंजीपति घरानों का कब्जा हो जाएगा, वैसे आज भी नियंत्रण कम नहीं है। यदि यह रवैया बढ़ता गया तो कोई कारण नहीं कि हमारे देश की जनता की आस्था प्रजातंत्र में कम होती जाएगी।
(एल.एस. हरदेनिया राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक हैं)
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