किसी ने नहीं सोचा होगा, यहां तक कि खुद कोरियायी लेखिका हान कांग ने भी नहीं, कि 2024 का साहित्य नोबेल पुरस्कार उसे मिलेगा। दक्षिण कोरिया की इस साधारण सी दिखने वाली महिला ने अपने लेखन से पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है। उसकी किताबें पूरे विश्व में भारी लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं, और अब तक उनकी 10 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी है।
इसका काफी कुछ श्रेय अनुवादक डेबोरा स्मिथ को भी जाना चाहिये, जिनका अनुवाद अद्वितीय है। स्पाटलाइट दक्षिण कोरिया पर है; यह देश के लिये एक अजूबा है। मुद्रण से जुड़े लोगों का कहना है कि अब देश में और अधिक किताब की दुकानें और पुस्तकालयों की आवश्यकता होगी, क्योंकि पढ़ने में लोगों की रुचि बढ़ रही है। प्रकाशन और मुद्रण में एक बूम की पूरी सम्भावना है।
पहली एशियाई महिला सहित्य नोबेल पुरस्कार विजेता
काफी पहले से दक्षिण कोरिया को केवल सैमसंग, एल जी केम, ह्युंडाई, पोस्को स्टील, हाइनिक्स सेमिकंडक्टर्स (एस के हाइनिक्स) जैसी विशाल कम्पनियों की वजह से जाना जाता था।
दरअसल, इस देश का निर्यात भी जीडीपी का 44% रहा है और वह विश्व का छठा सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जिसके ट्रेड पार्टनर अमेरिका से लेकर जापान, हॉन्ग कॉन्ग, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया और सउदी अरब हैं।
इसके बाद अगर इस देश की विश्व भर में पहचान किसी वजह से बनी, तो वह उसका मनोरंजन उद्योग है, जिससे देश को 1.27 खरब यूएस डालर का राजस्व प्राप्त होता है। युवा बैंड बीटीएस की आज 9 करोड़ की ग्लोबल फालोविंग है, जो किसी म्यूज़िकल बैंड के लिये सबसे बड़ी संख्या है। के-पाप और के-ड्रामा ने भी विश्व भर में युवा पीढ़ी को आकर्षित किया है।
पर लोगों को कहीं से भी अंदाज़ा नहीं हो पाया था कि लगभग 5.2 करोड़ की जनसंख्या वाले इस छोटे से देश में एक इतनी कम उम्र की (53 वर्ष) महिला साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाकर पहली एशियाई महिला सहित्य नोबेल पुरस्कार विजेता और दक्षिण कोरिया की पहली महिला नोबेल पुरस्कार विजेता बनेगी।
आखिर क्यों लिखने लगी हान कांग?
एक लेखक के बतौर हान कांग की यात्रा खासी लम्बी है, 3 दशक लम्बी! अपने शब्दों में वह कहती हैं, “ मेरे पिता भी उपन्यासकार थे, और भले ही हम गरीब थे, हमारे पास अपनी एक व्यक्तिगत लाइब्रेरी थी, जिसमें बहुत सारी किताबें थीं। उनकी संख्या बढ़ती जाती थी और हमें लगता था कि हम किताबों से घिरे हुए बेहद सुरक्षित हैं, हम उनके संग जी रहे हैं।”
हान कांग को पढ़ने का ऐसा नशा था कि एक बार वह दोपहर से पढ़ना शुरू कीं और एक समय उन्हें अक्षर दिखाई देने बंद हो गये….तब उन्हें पता चला कि पढ़ते-पढ़ते रात हो चुकी थी।
14 साल कि उम्र से हान कांग लिखने लगी थीं। जब वह किशोरावस्था में कदम रख रही थीं, उनके दिमाग में सैकड़ों सवाल कौंधने लगे थे।
वह कहती हैं, “ मेरे दिमाग में सवाल उठते थे कि मैं कौन हूं, मैं इस दुनिया में क्या कर सकती हूं? मानव जीवन में पीड़ा क्यों है? हर कोई मर क्यों जाता हैं? इसलिये मैं इनके उत्तर ढूंढने के लिये पुन: उन किताबों को पढ़ती जो मैं पढ़ चुकी थी। फिर मैं लिखने लगी”।
“कई बार अन्य लेखकों की तरह मुझे किंकर्तव्यविमूढ़ और निराश लगता था। 19 वर्ष की उम्र में मैं फिक्शन लिखने लगी। कुछ छोटी और कुछ लम्बी कहानियां।”
हान कांग की यात्रा
हान कांग के पिता उपन्यासकार थे। पर हान कांग साहित्यिक पत्रिकाओं में लिखतीं, सम्पादन का काम करतीं, जर्नल लिखतीं। वह कहती हैं, “कविताएं बस अनायास मेरे गद्य में घुस जातीं हैं। मैं बेहद अभिभूत और बेचैन भी होती हूं…यह देखकर कि मानव ने इतिहास में क्या-क्या किया है। कई बार मुझे लगा कि यह असम्भव है कि मैं इसी मानव जति का हिस्सा हूं, जो इतना भयंकर है, वीभत्स है”।
“फिर यह भी सोचती हूं कि ऐसे लोग भी दुनिया में हैं जो बहुत स्वाभिमानी हैं, डिग्निफाइड हैं! मैं दुनिया को और मानवता को अपनाना चाह्ती हूं, पर हर समय द्वंद्व में रहती हूं। मेरे भीतर एक अंतहीन संघर्ष चलता रहता है, जैसे कि मैं दो पहेलियों के बीच झूलती रहती हूं। मेरी तलाश बहुत ही बुनियादी किस्म की है।”
हान कांग की दो किताबें, जो मैंने पढ़ीं, चर्चा के योग्य हैं-‘द वेजिटेरियन ‘और ‘ह्यूमन ऐक्ट्स ‘। इन दोनों उपन्यासों में कुछ रीयल है तो काफी कुछ स्वपनिल भी। पहली किताब एक महिला के संघर्ष की दृष्टि से लिखी गयी है। कहानी कि मुख्य किरदार यिओंग हाई एक साधारण कोरियाई महिला है जो दुनिया में व्याप्त हिंसा को देखकर इस कदर उद्वेलित हो उठती है कि वह मांस से घृणा करने लगती है और अचानक शाकाहारी बन जाती है।
उसे अपने पति की देह से मांस की बू आने लगती है, इसलिये उससे सम्बंध रखना असह्य हो जाता है। पति के बॉस द्वारा दी गयी पार्टी में भी वह बिना ब्रा पहने जाती है और वहां मांस खाने से मना कर देती है; पति को ‘शर्मिंदा’ होना पड़ता है।
इस एक व्यक्तिगत फैसले से उसके जीवन में ऐसा भूचाल आता है कि वह अपनों से बेगानी हो जाती है, और उसका तलाक तक हो जाता है। उपन्यास के तीन हिस्से हैं। पहला, उसके पति द्वारा कही गयी बातें हैं, दूसरा, उसके बहनोई के द्वारा बताए गये वाकये हैं, और तीसरा, उसकी बहन इन-हाई द्वारा बताई गयी बातें हैं।
तीनों में यिओंग हाई मुख्य किरदार है। शाकाहारी बनने के कारण को लेकर यिओंग हाई एक स्वप्न का ज़िक्र करती रहती है, जिसमें उसे एक खून के तालाब में किसी के चेहरे की परछाई दिखाई पड़ती है। पर कोई भी उसके स्वप्न को समझने को तैयार नहीं है।
उसे मनसिक रूप से अस्वस्थ माना जाता है। उसके पिता घर पर बुलाकर ज़बर्दस्ती उसे मांस खिलाने लगते हैं, और बेटी के मना करने पर उसके गाल पर ज़ोर-ज़ोर से तमाचे जड़ते हैं। उनका गुस्सा सातवें आसमान पर होता है। फिर उसका मुंह खोलकर मांस ठूंस देते हैं। वह थूक देती है, जानवर जैसे गुर्राती है, और उठकर बाहर की ओर भागती है।
फिर वापस आकर फल काटने वाले चाकू से अपनी कलाई की नस काट लेती है। उसका इरादा मरने का नहीं है, हिंसा का प्रतिरोध करना है। पर इस प्रक्रिया में वह खुद को लहूलुहान करती है।
पहले भी एक घटना का ज़िक्र है… कैसे जब उसे एक कुत्ते ने काटा था, उसके पिता ने कुत्ते को अपने मोटर्साइकिल से बांधकर ऐसे घसीटा था कि वह खून से लथपथ होकर मर गया था। पूरे समय उसकी कातर नज़रें यिओंग हाई पर टिकी थीं, पर वह कुछ भी न कर सकी।
सभी जान-पहचान वालों को दावत दी गयी थी और उस कुत्ते के मांस को पकाकर खिलाया गया था। यह एक परम्परा थी, जो कुत्ता काटे उसे काटकर पकाओ और सबको दावत दो। यिओंग हाई बच्ची थी; उसने भी वह मांस खाया था।
“मुझे याद है कि दो आंखें मुझे देख रही थीं, जब कुत्ते को भागने के लिए मजबूर किया जा रहा था, जब उसने झाग के साथ खून की उल्टी की थी, और बाद में वही आंखें मेरे सूप की सतह पर टिमटिमाती हुई दिखाई दीं।“
यिओंग हाई सिर्फ इतना ही प्रतिरोध नहीं करती, वह अपना ऊपरी अंतर्वस्त्र पहनना छोड़ देती है, घर में अपना ब्लाउज़ भी उतार देती है; बाद में कभी निर्वस्त्र भी हो जाती है। लेखिका बता रही है कि कैसे यिओंग हाई अपने को मानव जाति से पूरी तरह अलग करना चाहती है। वह कहती है कि वह एक पौधा या पेड़ बन जाना चाहती है, जो कभी हिंसक नहीं होता।
दूसरे भाग में इन-हाई का पति, जो एक वीडियो कलाकार है, यिओंग-हाई की स्थिति का फायदा उठाना चाहता है, और उसे मॉडलिंग कराने के नाम पर यौन कृत्यों में शरीक करता है और ऐसे वीडियोज़ से नाम कमाना चाहता है। साथ ही यिओंग हाई के ज़रिये यौन तृप्ति तलाशता है।
वह अपनी पत्नी इन-हाई को धोखा देता रहता है। यहां हान कांग ने दर्शाया है कि कैसे ये दोनों बहनें अलग-अलग तरीके से शोषण झेल रही हैं। एक विद्रोह करती है और दूसरी चुप रहकर और सामाजिक नियमों को मान कर नार्मल बनी रहती है।
पर इन हाई बहुत रोती है, जब उसे अपने पति के इरादों और कृत्यों का पता चलता है। वह मानसिक रोग केंद्र को फोन करके अपनी बहन और पति को ले जाने को कहती है।
उपन्यास का तीसरा हिस्सा इन हाई द्वारा अपनी बहन के बारे में बताई गयी कहानी है। वह मानसिक रोग चिकित्सालय में है। वह रोगियों का वर्णन करती है; और बताती है कि यिओंग हाई कैसे खाना छोड़ रही है और केवल पानी पर जीना चाहती है, एक पेड़ की तरह। वह जंगल में जाकर घनघोर वर्षा में हाथ उठाकर खड़ी हो जाती है, एक विशालकाय पेड़ की तरह।
“मैं अब जानवर नहीं रही, बहन,” उसने कहा, “मुझे खाने की ज़रूरत नहीं है, अब नहीं। मैं उसके बिना रह सकती हूं। मुझे बस सूरज की रोशनी चाहिए।”
पर यह देखना दिलचस्प है कि इन हाई अपने परिवार को छोड़कर हमेशा बहन के साथ रहने लगती है। शायद इसलिये कि दोनों ही समाज में प्रताड़ित रही हैं, अलग-अलग किस्म की हिंसा की शिकार रही हैं। हान कांग वर्णन करती है कि कैसे पत्नियों के रूप में दोनों बिना किसी भावना और प्यार के, अपने पतियों द्वारा यौन हिंसा भी झेलती थीं।
यिओंग-हाई को इसका एहसास रहता है, इसलिये वह मानव रूप को ही त्यागना चाहती है। पर इन-हाई के जीवन में यह नार्मल हो चुका था, वह इसे हिंसा मानती भी नहीं थी, पत्नी का फर्ज़ समझती रही। उसे अपनी बहन की स्थिति देखकर बाद में काफी कुछ एहसास होने लगता है;
“यह सब व्यर्थ है। मैं इसे और नहीं सह सकती। मैं और नहीं बोल सकती। मैं यह नहीं चाहती। उसने घर के अंदर मौजूद तमाम वस्तुओं पर एक बार फिर नज़र डाली। वे उसकी नहीं थीं। जैसे उसका जीवन कभी उसका नहीं था। उसका जीवन थके हुए धीरज का एक भूतिया तमाशा से ज़्यादा कुछ न था…”
सो वह अपने पति और बच्चे से अलग हो जाती है; वह सोचती है, क्या वह अपनी बहन के मामले में पहले हस्तक्षेप कर उसे बचा सकती थी? जिसे डाक्टर स्किज़ोफ्रेनिया कहते हैं, क्या सचमुच वही यिओंग हाई की बीमारी है?
या क्या एक हिंसक और बीमार समाज उसे पागल घोषित करके अपने अत्याचारों को जायज़ ठहराना चाहता है? हान कांग के उपन्यास में कई परतें हैं- मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, प्रतीकात्मक, समाज-शास्त्रीय और स्वप्निल या अवास्तविक, जिनकी गहराइयों में जाने के लिये उपन्यास को कई बार पढ़ना होगा।
दूसरा उपन्यास है ‘ह्यूमन ऐक्ट्स’, जो एक बेहद मार्मिक कृति है। इस पुस्तक में 1980 में दक्षिण कोरिया के ग्वांगचू शहर में चुन डू ह्वान के नेतृत्व में हुए सैनिक दमन का वीभत्स पर मार्मिक वर्णन है। यह शहर हान कांग का जन्म स्थान था। वह कहती हैं कि उनके पिता ने वहां से सियोल चले जाने का फैसला कर लिया था।
क्योंकि वह नौकरी छोड़कर एक कहानीकार व लेखक बन गये थे। परिवार के जाने के कुछ समय बाद छात्र-युवा विद्रोह को सैनिक सत्ता ने क्रूरतम तरीके से कुचल दिया था। 10 दिन तक विद्रोहियों ने सत्ता अपने हाथों में ली थी, पर फिर उन्हें कुत्तों की तरह सड़कों पर मार गिराया गया था।
जो अपने दोस्तों और परिवारजनों को खोजने आते उन्हें केवल लाशों के बदबूदार, बजबजाते ढेर मिलते… जिनको कीड़े खा रहे होते. फिर भी एक छात्र डॉन्ग हो के नेतृत्व में कुछ छात्र-छात्राएं प्रांतीय कार्यालय में एक-पर-एक लदे उन शरीरों को पोंछ्ने, उनपर कफन डालने, उन्हें पैक करने, उनकी लिस्ट बनाने और लेजर खाते में पोषाक से लेकर हुलिया का वर्णन लिखने में रात-दिन लगे रहते।
मृतकों के रिश्तेदारों से मिलते और अपने परिजनों की शिनाख्त करने में मदद करते। डॉन्ग हो को खेद था कि वह अपने प्रिय दोस्त जियोंग डे को मारे जाते हुए देखता रहा था। बाद में पता चला कि उसकी बहन जियोंग मी भी गायब हो गयी थी। जियोंग़ डे की आत्मा अपनी बहन को तलाशती, पर वह मर चुकी थी।
उसे जब जला दिया जाता है, उसकी आत्मा मुक्त होकर उन लोगों से बदला लेना चाहती है, जिन्होंने उसकी बहन को मारा था। बाद में वह देखता कि डॉन्ग हो भी मार दिया गया।
“यह देखना भी अजीब था कि हर ताबूत पर राष्ट्रीय ध्वज ताएगुकगी फैला हुआ था और उसे कसकर बांधा गया था। आप सैनिकों द्वारा मारे गए लोगों के लिए राष्ट्रगान क्यों गाएंगे? ताबूत को ताएगुकगी से क्यों ढकें? मानो यह वह राष्ट्र ही नहीं था जिसने उनकी हत्या की थी।“
ग्वांगचू में सेन्सरशिप के ये आलम हैं कि प्रतिरोध नाटक तक को प्रकाशित करने पर प्रतिबंध है। एक युवति इयोंग सूक मुद्रण कार्यालय में काम करती है। उसे पुलिस तलब करती है और जांच अफसर उसे सात बार थप्पड़ मारता है. उसके गाल पर चोट है। वह एक-एक दिन एक एक थप्पड़ को भूलने की कोशिश करती है।
एक नाटक का मसविदा सेंसर आफिस में टाइप कर जमा करती है; वहां से जब नाटक का मसौदा वापस मिलता है तो वह देखती है कि अधिकांश भाग पर काली स्याही का रोलर चला दिया गया है। पर नाटककार सो तय करता है कि नाटक को जस-के-तस मंचित किया जायेगा।
नाट्यकर्मी बिना शब्दों को ज़ोर से बोले, सारे डायलाग मौन भाषा में बोलते हैं, वह एक किस्म का साइलेंट प्ले होता है। एक महिला मंच पर बुदबुदा रही है: “तुम्हारे मरने के बाद मैं अंतिम संस्कार नहीं कर सकी, इसलिए मेरा जीवन जैसे एक अंतिम संस्कार बन गया।“ इयोंग सूक सोचती है नाटक खत्म होने के बाद क्या मिस्टर सो को गिरफ्तार किया जायेगा? क्या होगा?
बाद में जेल में कैद युवाओं को किस तरह रखा जाता है और थर्ड डिग्री यातनाएं दी जाती है, कैसे उनके शरीर को मांस के लोथड़े मे बदल दिया जाता है और आत्मा को सुन्न कर दिया जाता है।
उपन्यास में उसके वर्णन को पढ़कर रूह कांप जाती है। सबसे भयानक चित्रण है कैसे दो कैदी जब एक थाली में खाने को बाध्य किये जाते हैं, उन्हें लगता कि दूसरा मर जाता तो सारा खाना एक को मिल जाता। एक-एक कौर के लिये मारा-मारी होती।
“दिन में तीन बार, हर दिन, हमें जो भोजन दिया जाता था वह बिल्कुल एक जैसा होता था: मुट्ठी भर चावल, आधा कटोरी सूप और कुछ टुकड़े किमची। और यह दो लोगों के बीच बांटा जाता था।“ सबसे अधिक यातना जिन सू को दी गयी थी।“
“वही था जो प्रांतीय कार्यालय में लगा हुआ था… कामों में व्यस्त रहता था, घायलों की देख-रेख करना, लाशों को सही ढंग से रखना, ताबूत और झंडे जुगाड़ करना, अंतिम संस्कार समारोहों की व्यवस्था करना…, औरतों को सुरक्षित बाहर ले जाना। इस तरह के सभी काम वही करता।“
यिओंग चे कैदियों को विरोध करने के लिये संगठित करता है तो सभी को डॉन्ग हो के जुनून की याद आती है।
मृत युवक डॉन्ग हो की मां कितनी बार उसे घर वापस आने को कहती, पर वह प्रांतीय कर्यालय से नहीं जाता। मां उसके मरने पर कैसे अपने बेटे के साथ बिताये एक-एक पल को याद करती है, यह पढ़कर आंखें भर आती हैं। कई बार उसे वहम होता कि वह जीवित है।
वही शब्द जो वह बचपन में बोलता था.. फिर गूंजते हैं, “चलो वहां चलते हैं, मां, जहां धूप है, हम चल सकते हैं न? वहां धूप है, मां और वहां बहुत सारे फूल भी हैं। हम अंधेरे में क्यों चल रहे हैं, चलो वहां चलते हैं, जहां फूल खिल रहे हैं।“
एक पर्यावरण कार्यकर्ता सियोन जू और लेबर ऐक्टिविस्ट सियोंग ही की बातचीत से यह पता चलता है कि सियोन जू गुप्त रूप से विद्रोह के समर्थन में काम करती है। पर उसकी गिरफ्तारी के बाद उसका ऐसा भयानक यौन शोषण होता है कि उसके प्रजनन अंग क्षत-विक्षत हो गये हैं और वह कभी मां नहीं बन सकती।
ऐतिहासिक घटनाओं को डॉन्ग हो के परिप्रेक्ष्य से कैसे प्रस्तुत किया गया है और मार्मिक ढंग से उसे फिक्शन में पिरोया गया है, उसकी यह उपन्यास एक नायाब मिसाल है। गिरफ्तार टेक्स्टाइल वर्कर युवतियां बस में गाती हैं:
हम न्याय के लिए लड़ने वाले हैं, हम हैं, हम हैं
हम साथ जीते हैं और साथ मरते हैं, हम ऐसा करते हैं, हम करते हैं
हम घुटनों के बल जीने की बजाय अपने पैरों पर खड़े मरना पसंद करेंगे
हम न्याय के लिए लड़ने वाले हैं
हान कांग ने अपने साक्षात्कार में कहा है कि वह किताब को इसलिये लिखना चाहती थी कि उसे आत्म-ग्लानि होती थी कि वह और उसका परिवार ग्वांगचू में नहीं थे, तो अपने शहर के लोगों की पीड़ा को बांट न सके।
वह डॉन्ग हो से परिचित थीं, इसलिये किताब में उसको प्रमुखता देती हैं और उसकी नज़र से विद्रोह को देखती हैं, “हमारी जगह कुछ और लोगों को दमन झेलना पड़ा, जान गंवानी पड़ी।”
हान कांग कहती हैं कि जो लोग बच गये थे, उनका साक्षात्कार लेना सम्भव न था क्योंकि उनके पुराने घावों को फिर से हरा करना सही नहीं लगा। इसलिये उन्होंने 900 लोगों की संकलित साक्ष्य, यानि टेस्टिमनीज़ पढ़ीं और अपने पिता व अन्य रिश्तेदारों से बात करने के बाद उपन्यास लिखा है। हान कांग लिखती हैं-
“मैंने किसी ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार पढ़ा, जिसे यातना दी गई थी; उन्होंने बताया कि इसके बाद के प्रभाव ‘रेडियोऐक्टिव विषाक्तता के पीड़ितों द्वारा अनुभव किए गए प्रभावों के समान हैं।’ रेडियोऐक्टिव पदार्थ दशकों तक मांसपेशियों और हड्डियों में रहता है, जिससे क्रोमोज़ोम्ज़ में परिवर्तन होता है”।
“कोशिकाएं कैंसरग्रस्त हो जाती हैं, जीवन खुद पर हमला करने लगता है। भले ही पीड़ित की मृत्यु हो जाए, भले ही उसके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाए, जिससे हड्डियों के जले हुए अवशेषों के अलावा कुछ न बचे, उस पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता”।
“जनवरी 2009 में, जब सेंट्रल सियोल से जबरन बेदखली का विरोध कर रहे कार्यकर्ताओं और किरायेदारों पर दंगा पुलिस द्वारा किए गए अवैध छापे में छह लोग मारे गए, मुझे याद है कि मैं टेलीविजन से चिपकी हुई थी, आधी रात को जलते हुए टावरों को देख रही थी। लेकिन वह ग्वांगजू है। दूसरे शब्दों में, ‘ग्वांगजू’ उन सबका दूसरा नाम बन गया जिन्हें जबरन अलग-थलग कर दिया गया हो, पीटा गया हो और क्रूरता से मारा गया हो, जो मरम्मत से परे विकृत हो गये हैं”।
“रेडियोऐक्टिव फैलाव जारी है। ग्वांगजू का पुनर्जन्म हुआ था, लेकिन एक अंतहीन चक्र में उसे फिर से कत्ल कर दिया गया। उसे जमीन पर धूसरित किया गया,और खून से लथपथ, पुनर्जन्म में उसे फिर से जीवित किया गया।“
एक ही कथा में क्रूरता की चरम पराकाष्ठा और प्रेम, बहादुरी, ममता और करुणा को कैसे बुना गया है, यह अनोखा प्रयोग है। और हर जगह आशा की एक किरण के प्रवेश का रास्ता छोड़ा गया है।
हान कांग कहती हैं- “वे विक्टिम (अत्याचार के शिकार लोग) नहीं हैं। वे स्वाभिमानी और बहादुर लोग थे। तभी तो उन्होंने समझौता नहीं किया और उन्होंने मौत को गले लगाया।” बाद में वह डॉन्ग हो के कब्र पर एक मोमबत्ती जलाकर उसको श्रद्धांजली देती हैं।
हान कांग का उपन्यास द वेजिटेरियन को पहले बुकर पुरस्कार से नवाज़ा गया है, पर ह्युमन ऐक्ट्स सहित उनकी कई अन्य कृतियां भी पुरस्कृत हुई हैं- ग्रीक लेसन्स, फेयरवेल, व्हाइल वन स्नोफ्लेक्स मेल्ट्स, बेबी बुद्ध और वी डू नाट पार्ट, उनमें से कुछ हैं।
इस वर्ष हान कांग को स्वीडिश अकादमी द्वारा साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.. उनके “गहन काव्यात्मक गद्य के लिए, जो ऐतिहासिक आघातों का सामना करता है और मानव जीवन की नाज़ुकता को उजागर करता है”। सम्पूर्ण एशिया के लिये यह गर्व का विषय है!
(कुमुदिनी पति महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं)
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