प्रशांत भूषण अवमानना केस: मामले की सुनवाई पूरी, सजा की मात्रा पर फैसला सुरक्षित

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नई दिल्ली। प्रशांत भूषण अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है। सजा की मात्रा पर फैसला आना बाकी है। इससे पहले बहस के दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा कि रिटायर होने से पहले यह सब कुछ करना बेहद पीड़ादायक है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हमेशा आलोचना के लिए तैयार रहा है। मुकदमों की जिस तरह से लाइव रिपोर्टिंग की जाती है वह अक्सर एकतरफा होती है। क्या कभी कोर्ट ने उसमें कार्रवाई की? अभी सजा की मात्रा पर जस्टिस मिश्रा बोल ही रहे थे तभी एटार्नी जनरल ने एक व्यवस्था का प्रश्न उठा दिया। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में तीसरे पक्ष के तौर पर जज शामिल हैं। क्या उनका पक्ष सुने बगैर फैसला देना उचित रहेगा?

इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मौजूदा जजों के खिलाफ भी आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों को लगाया ही क्यों जाना चाहिए?

इसके पहले कोर्ट की कार्यवाही शुरू होने के साथ अपने प्राथमिक सबमिशन में प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने 2009 अवमानना मामले को संविधान पीठ को दिए जाने की मांग की थी जिसे कोर्ट ने दूसरी बेंच को सौंपने की सिफारिश कर दी।

इस तरह से तहलका इंटरव्यू वाले केस को एक दूसरी बेंच को सौंप दिया गया। और इसकी सुनवाई 10 सितंबर को होगी। आपको बता दें कि प्रशांत के खिलाफ दो अवमानना के मामले थे जिसमें एक चीफ जस्टिस के खिलाफ ट्वीट का मामला था जबकि दूसरा 2009 में तहलका में दिए गए साक्षात्कार में प्रशांत ने जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। जिसमें उनके खिलाफ अवमानना का केस दर्ज हुआ था। बीच में इस मामले को रोक दिया गया था। अभी जबकि चीफ जस्टिस के खिलाफ ट्वीट का मामला शुरू हुआ तो जस्टिस अरुण मिश्रा ने एक बार उस मामले को भी इसकी सुनवाई से जोड़ दिया था।

जस्टिस मिश्रा ने कोर्ट में मौजूद एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि आखिर इस मामले में क्या होना चाहिए। इस पर एटार्नी जनरल ने कहा कि “हमारे पास सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों के गंभीर बयान हैं जिनमें उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में लोकतंत्र नाकाम हो गया है।” आगे उन्होंने कहा कि मेरे पास उन जजों की भी सूची है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भ्रष्टाचार की बात कही है। उन्होंने कहा कि वह केवल इस तरह के दो या तीन बयान पढ़ेंगे।

एटार्नी जनरल ने कहा कि ये बयान खुद ही कोर्ट को बता रहे हैं कि कोर्ट में सुधार की जरूरत है। वे न्याय के प्रशासन में सुधार चाहते हैं। यही बात है जिसके चलते योर लार्ड आपको उन्हें (भूषण) क्षमा कर देना चाहिए या फिर कुछ चेतावनी देने के बाद छोड़ देना चाहिए।

एटार्नी जनरल ने कहा कि उन्हें दंडित किया जाना जरूरी नहीं है। इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि हम उनसे इससे बेहतर की कुछ उम्मीद कर रहे थे। अब क्या किया जा सकता है कि जब उन्हें यह बात लग ही नहीं रही है कि उन्होंने कुछ गलत किया है।

एटार्नी जनरल ने कहा कि भूषण ने ढेर सारे पीआईएल दायर किए हैं। जिनसे लोगों को बहुत लाभ हुआ है। कोर्ट को जरूर उनके इन सार्वजनिक कामों को ध्यान में रखना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि उन्हें चेतावनी देने से क्या फायदा जब वह खुद ही कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है। उन्होंने एजी से कहा कि वह खुद उनके खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किए थे और उनके माफी मांगने के बाद ही उन्होंने उसे वापस लिया था।

एटार्नी जनरल ने कहा कि माफी मांगने के लिए उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि फैसले को लेकर आपकी अलग राय हो सकती है लेकिन आप जजों पर आरोप नहीं लगा सकते हैं।

एटार्नी जनरल ने कहा कि उन्होंने इस बात को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई कि उनके भीतर कोर्ट के लिए बहुत सम्मान है। 2009 के मामले में उन्होंने पछतावा जाहिर किया था। अगर वह इसमें पछतावा जाहिर करते हैं तो उसके बाद इस दुर्भाग्यपूर्ण केस का खात्मा हो जाना चाहिए।

जस्टिस मिश्रा ने एटार्नी जनरल से कहा कि आप की सलाह स्वागत योग्य है। लेकिन उन्हें अपने आरोपों को वापस लेना चाहिए। इस पर एजी ने कहा कि हां उन्हें अपने आरोपों को वापस ले लेना चाहिए।

उसके बाद जस्टिस मिश्रा ने कहा कि बेंच तीस मिनट बाद वापस आएगी। इस बीच धवन और प्रशांत को आखिरी बार फिर से विचार करने का मौका देती है।

प्रशांत के वकील धवन ने कहा कि वह दो हैट पहनते हैं एक वरिष्ठ एडवोकेट के तौर पर उनकी कोर्ट के प्रति जिम्मेदारी है दूसरी अपने मुवक्किल के प्रति है।

जब आप दंडित करते हैं तो सबसे पहले आपको गलती करने वाले की तरफ देखना चाहिए। इस ‘आरोपी’ ने न्याय मित्र के तौर पर कोर्ट को बहुत ज्यादा योगदान दिया है और सब कुछ सार्वजनिक कल्याण में किया है जैसा कि एटार्नी जनरल ने अभी चिन्हित किया।

धवन ने कहा कि वह माननीय जस्टिस को याद दिलाना चाहेंगे कि जब वह कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के जजों के भ्रष्ट होने के बयान पर अवमानना की कार्यवाही नहीं शुरू की थी। उन्होंने कहा कि अगर आलोचना का सामना नहीं करेगा तो सुप्रीम कोर्ट ध्वस्त हो जाएगा।

धवन ने कहा कि वह पूरी गंभीरता के साथ इस बात को कह रहे हैं कि उन्होंने सिर्फ प्रमाणिक विश्वास को जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि क्षमा को कानून के शिकंजे से बचने के हथियार के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है। क्षमा बेहद गंभीर मामला है।

धवन ने कहा कि स्वत: संंज्ञान के अवमानना फैसले को कोर्ट को वापस लेना चाहिए। और प्रशांत भूषण के अपने बयान को वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता। धवन ने कहा कि मौजूदा विवाद में जस्टिस लोकुर, कुरियन जोसेफ और अरुण शौरी ने सार्वजनिक तौर पर मामले पर अपनी टिप्पणी की है। तो क्या वह भी अवमानना है।

धवन ने कहा कि हम कोर्ट से दया नहीं मांग रहे हैं बल्कि कोर्ट को स्टेट्समैनशिप दिखानी चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि कोर्ट भूषण को भी सुन सकती है। इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि उन्हें क्यों परेशान किया जाए। धवन ने कहा कि प्रशांत भूषण को शहीद मत बनाइये। अगर आप दंड देते हैं तो एक हिस्सा कहेगा सही हुआ जबकि दूसरा कहेगा कि बिल्कुल गलत हुआ। हम चाहते हैं कि यह विवाद यहीं खत्म हो जाए। यह केवल न्यायिक स्टेट्समैनशिप के जरिये ही संभव है।

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अपने को जायज ठहराने के लिए प्रशांत के दिए सभी बयानों को पढ़कर कष्ट हो रहा है। 30 सालों से कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे प्रशांत जैसे वरिष्ठ लोगों के लिए यह ठीक नहीं होता है।

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