अडानी ने हेराफेरी से बढ़ाए आयातित कोयले के दाम, जिससे महंगी हुई बिजली: राहुल गांधी

साल 2014 के बाद से अडानी समूह अक्सर खबरों में रहता आया है। पर यह सुर्खियां समूह की किसी उपलब्धि के कारण नहीं होती रही है; बल्कि कभी ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खान लेने के संदर्भ में पीएम मोदी की कथित भूमिका; तो कभी श्रीलंका में बंदरगाह हथियाने के मामले में मोदी जी की कथित सिफारिश के आरोप, जिसे वहां की संसद में वहां के मंत्री ने ही लगाया था; यह अलग बात है कि वे अपने बयान से बाद में पलट गए; तो कभी एयरपोर्ट, सीपोर्ट के अधिग्रहण के किस्से; तो कभी मुंद्रा बंदरगाह से भारी मात्रा में ड्रग की तस्करी के मामले; तो कभी सरकार द्वारा जारी एक अजीबोगरीब सर्कुलर आदेश, कि हर बिजलीघर अपनी कोयला खपत का कुछ प्रतिशत आयातित कोयला के रूप में इस्तेमाल करेंगे; और यह भी एक तथ्य है कि अडानी सबसे बड़े कोयला आयातक भी हैं; तो कभी शेल कंपनियों से मनी लांड्रिंग करके टैक्स हेवेन देशों से भारत में धन निवेश करने की खबरों के कारण; तो कभी अपने ही शेयरों के मूल्यों में हेराफेरी करके उसकी कीमतों में मैनिपुलेशन कर आम निवेशकों को ठगने के कारण यह सुर्खियां बनती रही हैं।

फिलहाल तो यह समूह राहुल गांधी के ताजा इंटरव्यू के कारण चर्चा में है, जो कोयला आयात और उसकी कीमतों में शिपमेंट के दौरान ही नकली वृद्धि कर उसे बिजली घरों को बेचने के आरोप पर है। यह आरोप फाइनेंशियल टाइम्स की एक खोजी रपट पर आधारित है। राहुल गांधी ने अपने एक इंटरव्यू में फाइनेंशियल टाइम्स का अखबार दिखाते हुए कहा, “अडानी ने बिजली की लागत बढ़ाकर, बिजली बिलों के माध्यम से देश के लोगों को सीधे तौर पर लूटा है। अडानी समूह आयातित कोयले के दाम बढ़ा कर जनता से अधिक पैसे वसूल रहा है।”

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो, वे अडानी घोटाले की जांच कराएंगे।

फिलहाल तो, फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अडानी पर यह आरोप है कि 

  • अडानी समूह कथित तौर पर कोयला आयात की कीमत में हेरफेरी कैसे कर रहा था?
  • इसका चांग चुंग-लिंग से क्या संबंध है? 
  • अडानी समूह ने आरोपों पर क्या प्रतिक्रिया दी है?

अपनी एक हालिया खोजी रिपोर्ट में फाइनेंशियल टाइम्स ने कहा कि, ऐसा प्रतीत होता है कि अडानी समूह ने बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर अरबों डॉलर का कोयला आयात किया है। यह रिपोर्ट 2019 और 2021 के बीच 32 महीनों में इंडोनेशिया से भारत तक कमोडिटी के 30 शिपमेंट की जांच पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि डेटा उपभोक्ताओं और व्यवसायों को बिजली के लिए अधिक भुगतान करने के लंबे समय से चले आ रहे आरोपों (कंपनी के खिलाफ) की पुष्टि करता है। हालांकि अडानी ग्रुप ने आरोपों से इनकार किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, आरोप समूह के एकीकृत संसाधन प्रबंधन (आईआरएम) व्यवसाय से संबंधित हैं। इस साल मार्च में एक क्रेडिट रिपोर्ट ने इसे निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू)- दोनों में अपने ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले थर्मल कोयले के देश के सबसे बड़े आयातक के रूप में रखा।

एफटी के अनुसार, जांचे गए शिपमेंट के आयात रिकॉर्ड में उल्लिखित कीमतें, संबंधित निर्यात घोषणाओं की तुलना में कहीं अधिक थीं। उदाहरण के लिए थोक नौवाहक डीएल बबूल ने जनवरी 2019 में 74,820 टन कोयले का परिवहन किया। निर्यात रिकॉर्ड में वस्तु की कीमत 1.9 मिलियन डॉलर और शिपिंग और बीमा के लिए 42,000 डॉलर बताई गई है। हालांकि, भारत के गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह (समूह द्वारा संचालित) पर पहुंचने पर घोषित आयात मूल्य 4.3 मिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया गया था। 

अलग से, इंडोनेशियाई घोषणाओं के अनुसार, कहा जाता है कि 30 नौपरिवहन ने उल्लिखित अवधि के दौरान 3.1 मिलियन टन कोयले का परिवहन किया है, जिसका मूल्य 139 मिलियन डॉलर है, जिसमें शिपिंग और बीमा लागत में अन्य 3.1 मिलियन डॉलर को छोड़कर (इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 142 मिलियन डॉलर) शामिल है। हालांकि, भारत में कस्टम अधिकारियों को घोषित कीमत 215 मिलियन डॉलर थी। इससे 73 मिलियन डॉलर का लाभ हुआ, जो कि, एफटी के अनुसार “प्रशंसनीय शिपिंग लागत से कहीं अधिक था”।

कोयला व्यापार मोटे तौर पर “कम या एकल अंकों में लाभ मार्जिन के साथ उच्च मात्रा में प्रतिस्पर्धी व्यवसाय” प्रतिमान का अनुसरण करता है। यानी, इसमें लाभ का मार्जिन कम रहता है। इसके अतिरिक्त कोयले की आवश्यक प्रकृति को देखते हुए कड़े सरकारी नियम भी आवश्यक हो जाते हैं। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि खनिक अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारण करते समय इन कारकों पर विचार करें ताकि व्यापारियों के लिए कुछ प्राप्त करना सार्थक हो सके। 

संबंधित संदर्भ में इंडोनेशियाई व्यापार के एक विशेषज्ञ ने एफटी को बताया कि बाजार मूल्य से कुछ डॉलर से, अधिक की कोई भी चीज़ लोगों की निगाह में संदिग्ध बना देती है।

यहीं यह सवाल उठता है, यह कथित प्रक्रिया कैसे चलाई गई?

जांच के केंद्र में तीन “बिचौलिये” या अपतटीय (ऑफशोर) संस्थाये हैं, जिन्होंने अडानी समूह को कोयले की आपूर्ति की और कहा जाता है कि उन्होंने “भारी मात्रा में” मुनाफा कमाया।  इनमें ताइपे में हाय लिंगोस, दुबई में टॉरस कमोडिटीज जनरल ट्रेडिंग और सिंगापुर में पैन एशियन ट्रेडलिंक शामिल हैं। जुलाई 2021 से आयात डेटा से संकेत मिलता है कि समूह ने कोयले की आपूर्ति के लिए संस्थाओं को कुल 4.8 बिलियन डॉलर का भुगतान किया- जो बाजार कीमतों के लिए पर्याप्त प्रीमियम है। 

आगे के परिप्रेक्ष्य के लिए सितंबर 2021 और जुलाई 2023 के बीच अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा 73 मिलियन टन कोयले का आयात (2,000 शिपमेंट में) किया गया था। 73 मिलियन आयातित कोयले में से 42.2 मिलियन टन की आपूर्ति, अपने स्वयं के संचालन द्वारा 130 डॉलर की औसत (घोषित) कीमत पर की गई थी। जबकि तीन बिचौलियों के लिए औसत कीमत 155 डॉलर प्रति टन थी। अलग से, हाई लिंगोज़ से आयात 149 डॉलर प्रति टन, टॉरस से 154.43 डॉलर और पैन एशिया से 168.58 डॉलर घोषित किया गया था।

फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, हाय लिंगोस का स्वामित्व ताइवानी व्यवसायी चांग चुंग-लिंग के पास था। ऐसा माना जाता है कि वह 2013 से कम से कम 2017 की शुरुआत के बीच गुप्त रूप से तीन- सूचीबद्ध अडानी कंपनियों में सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक था। उच्चतम प्रीमियम वाले पैन एशिया ट्रेडलिंक के पास अडानी पावर को छोड़कर कोई अन्य भारतीय ग्राहक नहीं था।

इन सब आरोपों के बारे में, अडानी समूह का खंडन दो बिंदुओं पर केंद्रित है। जिसका आधार राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के मार्च 2016 के परिपत्र में अंकित विंदु हैं। उक्त परिपत्र के अनुसार जारी नोटिस में कहा गया है कि, “इंडोनेशियाई कोयले के कुछ आयातक वास्तविक मूल्य की तुलना में कृत्रिम रूप से इसके आयात मूल्य को बढ़ा रहे थे”।

हालांकि उक्त सर्कुलर में रिलायंस इंफ्रा, जेएसडब्ल्यू स्टील्स और एस्सार सहित 40 निजी बिजली उत्पादकों के तो नाम है, लेकिन अडानी समूह का नाम इसमें शामिल नहीं किया गया है। यह भी एक संदेह का कारण है कि अडानी समूह का नाम इस परिपत्र में क्यों नहीं है? हालांकि, अडानी अपने बचाव में यही तर्क देते है कि डीआरआई ने उनका नाम नहीं लिया है।

अडानी समूह ने तर्क दिया कि परिपत्र में उल्लिखित 40 आयातकों में से एक को दिए गए कारण बताओ नोटिस को, सीमा शुल्क उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) द्वारा रद्द कर दिया गया था। यानी कोई अनियमितता नहीं मिली थी या अनियमितता प्रमाणित नहीं हो पाई थी। इसके अलावा डीआरआई की अपील को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 24 जनवरी 2023 को इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया कि ‘हम व्यर्थ मुकदमेबाजी में शामिल न होने के सरकार के रुख की सराहना करते हैं।’

दूसरे, अडानी समूह ने आरोप लगाया कि, फाइनेंशियल टाइम्स की खोजी रिपोर्ट में इस बात को नजरअंदाज किया गया कि, भारत में कोयले की खरीद “खुली, पारदर्शी, वैश्विक बोली प्रक्रिया के माध्यम से दीर्घकालिक आपूर्ति के आधार पर की गई थी, जिससे मूल्य में हेरफेर की कोई भी संभावना खत्म हो गई”। 

इसमें बताया गया है कि टैरिफ का मूल्यांकन, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग द्वारा “सभी पहलुओं, बिजली उत्पादन, वितरण, खुदरा उपभोक्ताओं साथ परामर्श के बाद” तय किए गए हैं। इस प्रकार कोयले के आयात मूल्य जैसे टैरिफ से संबंधित पहलुओं को निर्धारित करने के लिए कई अवसरों पर अध्ययन किया गया है। इस आधार पर अडानी समूह का तर्क है कि, “अधिक चालान over इनवॉइसिंग या मूल्य में हेरफेर का सवाल ही नहीं उठता है।”

अडानी कोयले घोटाले में संदेह का मुख्य कारण है सरकार का सर्कुलर, जिसमें आयातित कोयला मंगवाना अनिवार्य किया गया है। सवाल इस पर उठता है कि, जब कोल इंडिया का कहना है कि देश में कोयले का पर्याप्त भंडार है, रेलवे का कहना है कि उनके पास कोयले की ढुलाई के लिए रैक की कमी नहीं है, तब आखिर डॉलर खर्च करके विदेश से कोयला आयात करने की जरूरत क्या है।

देश में कुल 181 बिजली घर हैं, जिनकी निगरानी सरकार करती है। एक बात और, हर बिजलीघर में आयातित कोयला इस्तेमाल भी नहीं हो सकता है, और ऐसा बिजली घर की डिजाइन के कारण है। आयातित कोयले की बढ़ी कीमतों का असर लोगों के बिजली बिल पर पड़ रहा है। जो सरकारें रियायती बिजली देती हैं, यह खर्च उन पर पड़ रहा है और यह सारा भार प्रकारांतर से जनता के ऊपर पड़ रहा है, जो टैक्स के रूप में इसे भुगतती है।

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं।)

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