लोकसभा चुनाव 2024: मिर्जापुर में अनुप्रिया व राबर्ट्सगंज में रिंकी को मिल रही कड़ी चुनौती, रोमांचक मुकाबले में चौंका सकते हैं नतीजे !

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उत्तर प्रदेश में विंध्य की पहाड़ियों में बसे पर्वतीय इलाकों में लोकसभा चुनाव के प्रचार का शोर थम चुका है। इसी के साथ यह स्थिति भी साफ हो चुकी है कि हार-जीत का पलड़ा किस तरफ झुक रहा है। लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में होने वाले मतदान में इस इलाके की दोनों सीटों पर एनडीए को इंडिया गठबंधन की कड़ी चुनौती मिल रही है। इनमें एक सीट मिर्जापुर और दूसरी सोनभद्र है। बीजेपी ने दोनों सीटें अपने सहयोगी अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल को दे रखा है।

मिर्जापुर सीट पर खुद अनुप्रिया मैदान में हैं तो राबर्ट्सगंज सीट पर निवर्तमान सांसद पकौड़ी लाल कोल की बहू रिंकी कोल चुनाव लड़ रही हैं। पूर्वांचल में पहाड़ी अंचल की दोनों सीटों पर जनता खुद नेता बनकर अपना दल के प्रत्याशियों से चुनाव लड़ रही है। दोनों सीटों पर इनका सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों से है। एक जून को होने वाले आखिरी चरण के मतदान को लेकर सभी प्रमुख दल तैयारियों में जुटे हैं। राजनीतिक दलों को सिर्फ चुनाव से मतलब है। उन लोगों से कोई सरोकार नहीं है जो पूरे देश को रौशन करने वाले बिजली की कीमत चुका रहे हैं।

सोनभद्र में एनटीपीसी, अनपरा-लैंको, हिंडाल्को, कनोरिया केमिकल्स और जेपी ग्रुप जैसी कंपनियों के कई थर्मल पावर प्लांट, कोयला खदानें, केमिकल, सीमेंट, चूना और घिसाई फैक्ट्रियां और पत्थर की कटाई में जुटे अनगिनत कानूनी-गैर कानूनी क्रशर, इस इलाके को ‘ऊर्जा राजधानी’ बनाते हैं। इसकी कीमत है ज़हरीला प्रदूषण, विस्थापन, विकलांगता और घातक बीमारियां, जिसे चुकाने की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से यहां के लोगों पर डाल दी गई है।

सोनभद्र भले ही उद्योगों का सबसे बड़ा गढ़ है लेकिन जहां घर-घर में बेरोज़गारी है, बदहाली है और बीमारी है। कहानी दो राज्यों उत्तर-प्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच बंटे सोनभद्र और सिंगरौली की जो दिन रात बिजली की खेती करने के बावजूद सालों से अंधेरे में डूबा है। इस बदनसीब इलाके में बड़ी संख्या में बच्चे और व्यस्क गलियों में रेंगते, लाठियों के सहारे चलते और रास्तों पर लुढ़कते हुए दिख जाते हैं। यहां के पानी में फ्लोराइड है, जो सीधे शरीर की हड्डियों पर मार करता है। पानी में घुलते फ्लोराइड के चलते विकलांगता इस इलाके में महामारी की तरह फैल रही है और सरकार इस दिशा में कोई ठोक कदम नहीं उठा रही है।

मुश्किल में अपना दल

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रॉबर्ट्सगंज संसदीय सीट का अधिकतर हिस्सा सोनभद्र जिले में आता है। सोनभद्र उत्तर प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला है, जिसकी सीमाएं चार प्रांतों की सीमाएं जुड़ती हैं। एक छोर पर बिहार, दूसरे पर छत्तीसगढ़, तीसरे पर मध्य प्रदेश और चौथे पर झारखंड है। कीमती जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों से भरे पड़े इस इलाके की पांचो विधानसभा सीटों पर बीजेपी काबिज है। दुद्धी के पूर्व बीजेपी विधायक रामदुलार गोंड को 25 साल की सजा के बाद यह सीट खाली हो गई थी। लोकसभा चुनाव के साथ इस बार वहां भी वोट डाले जाएंगे।

साल 2019 के चुनाव में रॉबर्ट्सगंज सीट पर एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार पकौड़ी लाल कोल (अपना दल-एस) थे, जिनके सामने सपा-बसपा के गठबंधन के भाई लाल मैदान में थे। पकौड़ी लाल कोल को 447,914 वोट मिले तो भाई लाल के खाते में 3,93,578 वोट आए। पकौड़ी लाल कोल को 54,336 मतों के अंतर से जीत मिली थी। इससे पहले साल 2014 में इस सीट पर छोटेलाल खरवार ने बसपा के शारदा प्रसाद को 1,90,486 वोटों से हराया था। उस समय वह बीजेपी की प्रत्याशी थी। इस बार छोटेलाल सपा के टिकट पर मैदान में हैं। पकौड़ी लाल के विवादित बोल से खासतौर से सवर्णों में नाराजगी को देखते हुए अपना दल (एस) ने अबकी उन्हें टिकट न देते हुए मिर्जापुर की छानबे विधानसभा सीट से उनकी विधायक बहू रिंकी कोल को चुनाव मैदान में उतारा है।

पिछले चुनाव में सपा से गठबंधन के चलते गायब रही बसपा ने अबकी धनेश्वर गौतम पर दांव लगाया है। इस दुर्गम इलाकों में ‘मुफ्त राशन और आवास’ का असर तो है, लेकिन जंगलों से आदिवासियों को खदेड़े जाने का मुद्दा अहम है। पेयजल संकट और संविधान बचाने का मुद्दा भी वोटरों के जेहन में है। जनवादी नेता अजय राय कहते हैं कि, “इस बार जनता खुद चुनाव लड़ रही है। मौजूदा विधायक पकौड़ी लाल कोल का पिछले पांच साल तक लोगों का खोज-खबर लेने नहीं आए। अपना दल ने इनकी बहू को मैदान में उतारा तो अब सफाई देते फिर रहे हैं। बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले सवर्ण समुदाय के लोग भी इनसे खफा है। पिछले साल इनका एक आडियो खूब वायरल हुआ था, जिसमें वो सवर्णों को धारा प्रवाह गालियां देते सुने जा रहे हैं। इस चुनाव में भी वह आडियो वायरल किया जा रहा है।”

जनता लड़ रही चुनाव

आदिवासी समुदाय के हितों के लिए लगातार संघर्ष करने वाले अजय राय यह भी कहते हैं, “राबर्ट्सगंज सीट पर किसी सांसद अथवा विधायक का कोई मतलब नहीं है। इस बार बीजेपी से यहां की जनता चुनाव लड़ रही है। जनता ने मूड बना लिया है कि इन्हें हटाना है। अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल का अबकी दोनों सीटों पर सफाया होने की उम्मीद की जा सकती है। मुद्दा यह नहीं है कि पकौड़ी लाल कोल पांच साल नहीं दिखे। मुद्दा यह है मोदी हटाओ। आम जनमानस का मानना है कि मोदी की गारंटी झूठी है। पहाड़ी इलाके के वोटर इस बार नेताओं की बात नहीं सुन रहे हैं, चाहे वो जिस जाति का हो। जनता खुद नेता बनकर चुनाव लड़ रही है मोदी के खिलाफ। बहुत तेजी से विरोध की लहर पैदा हुई है। शुरू में यह स्थिति नहीं थी। भाषण में संयम नहीं बरते जाने की वजह से लोगों का इस पार्टी के नेताओं से मोह भंग हो गया है।”

रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट सुरक्षित है। यहां पर एससी और एसटी वोटों की अधिकता है। कुल वोटों में 23.9 फीसदी एससी वोटर हैं, जबकि एसटी वोटर 16.6 फीसदी हैं। मुकाबला सपा की ‘साइकिल’ और अपना दल (एस) के ‘कप-प्लेट’ के बीच ही है। सपा के छोटेलाल ऐसे प्रत्याशी होंगे, जो नया रिकार्ड बना सकते हैं। मिर्जापुर और सोनभद्र इलाके में बाबू सिंह कुशवाहा के चलते मौर्य समुदाय का थोक वोट इस बार इंडिया गठबंधन के साथ जा रहा है। यादव और मुस्लिम तो पहले से ही गठबंधन प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं। अल्पसंख्यक, दलित और ओबीसी के एक मंच पर आने की असल वजह पीडीए है। वोटरों का कहना है कि अखिलेश यादव कांशीराम के बाद दूसरे ऐसे नेता हैं जो 85 फीसदी की बात कर रहे हैं। मायावती के वोटरों को उनसे ज्यादा संविधान बचाने की चिंता है। वो अबकी गठबंधन के साथ जाते दिख रहे हैं। चकिया (चंदौली जिले की), घोरावल, राबर्ट्सगंज, ओबरा और दुद्धी सीटों पर आधी आबादी दलितों और आदिवासियों की है।

अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं वाली ओबरा और दुद्धी विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित है। साल 2014 में मोदी लहर के चलते राबर्ट्सगंज सीट पर भाजपा ने डेढ़ दशक बाद वापसी की थी। इस बीच बसपा और सपा के कब्जे में रही सीट को पिछले चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल (एस) के लिए छोड़ दिया था।

राबर्ट्सगंज सीट पर सर्वाधिक 35 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की कोल, गोड़, खरवार, चेरो, बैगा, पनिका, अगरिया, पहरिया आदि जातियों का दबदबा है। पिछले चुनाव में राबर्ट्सगंज सीट पर सर्वाधिक 21,118 ने नोटा का बटन दबाया था, जो चौथे स्थान पर था।

रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। 1962 से लेकर 2019 तक यहां पर कुल 16 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें से रॉबर्ट्सगंज की जनता ने सभी राजनीतिक दलों को नेतृत्व करने का मौका दिया है। तीन बार इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली चुकी है। एक बार जनता पार्टी, एक बार जनता दल और एक बार समाजवादी पार्टी को यहां पर जीत मिली है। वहीं, पांच बार भाजपा को और दो बार बहुजन समाज पार्टी को जीत मिली है। 2019 के चुनाव में पहली बार अपना दल के प्रत्याशी को जीत मिली थी।

मिर्जापुर में फंसी अनुप्रिया की सीट

मिर्जापुर सीट भी इस बार खासी चर्चा में है, जिसकी एक बड़ी वजह है अपना दल की मुखिया अनुप्रिया और बाहुबली विधायक राजाभैया में जुबानी जंग। हालांकि देश-दुनिया में मिर्ज़ापुर की पहचान कालीन कारोबार से है। कालीन के कारीगर फाइन क्वालिटी की कालीन बनाते हैं। एक वक्त वह भी था जब मिर्जापुर में हर घर से धागों को काटे जाने और उन्हें बैठाने की आवाजें सुनाई देती थीं। कालीन कारोबारियों ने श्रमिकों का शोषण किया, उन्हें समय से पर्याप्त मजूरी नहीं दी। रंगाई, बुनाई, धुलाई, कटाई, पैकिंग में काम करने वाले मज़दूरों की सेहत पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा, धीरे-धीरे यह कारोबार सिटमता चला गया। मिर्जापुर में पेयजल संकट, महंगाई और संविधान बचाने का मुद्दा प्रमुख है।

मिर्ज़ापुर लोकसभा में पांच विधानसभा सीटें हैं, जिसमें 2 ब्लॉक और 1967 गांव हैं। गंगा के बाई ओर कोन, मझवा और सीखड़ ब्लॉक है। नौ ब्लॉक गंगा के दाहिने तरफ़ स्थित है। लालगंज, हलिया, छानबे, पहाड़ी, पटेहरा, राजगढ़, जमालपुर ब्लॉक की भूमि पथरीली है, यह पहाड़ी क्षेत्र हैं। पत्रकार संजय दुबे कहते हैं, “मंहगाई के दौर में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा है। पढ़े-लिखे बच्चे बेरोज़गार घूम रहे हैं। दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और लोगों के ताने सुन रहे हैं। आत्महत्या तक कर रहे। इसके लिए सरकार और व्यवस्था दोनों ही दोषी है। मिर्जापुर में कोई भी अफसर अनूठा काम करता है तो उसे यहां टिकने नहीं दिया जाता। पिछले साल डीएम दिव्या मित्तल ने भीषण पेयजल संकट से जूझ रहे लहुरियादह में पीने का पानी पहुंचाया तो सरकार से शिकायत कर उन्हें हटवा दिया गया। मिर्जापुर की नुमाइंदगी करने वाले नेताओं से जनता का मोहभंग हो गया है। इस बार चौंकाने वाले नतीजे सामने आ सकते हैं।”

राजनीतिक समीकरण

मिर्ज़ापुर में पिछले 40 सालों से कोई भी स्थानीय प्रत्याशी संसद में नहीं पहुंचा है। इस सीट पर लगातार दो बार से अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल सांसद हैं। अपना दल (एस) बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा है। साल 2014 में अनुप्रिया पटेल के सांसद बनने से पहले इस इलाके के लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि वह मिर्जापुर में अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ बना लेंगी। साल 2019 के अनुप्रिया पटेल दूसरी बार सांसद चुनी गईं। फूलन देवी के बाद अनुप्रिया दूसरी महिला हैं जो मिर्जापुर सीट से सांसद चुनी गईं।

समाजवादी पार्टी ने अपनी ही पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र एस बिंद का टिकट काटकर रमेशचंद्र बिंद को मैदान में उतारा है। पिछली दफा भी सपा ने ऐन वक्त पर अपना प्रत्याशी बदल दिया था। सपा से चुनाव लड़ रहे रमेशचंद बिंद पूर्व में मिर्ज़ापुर की मझवा विधानसभा के लगातार तीन बार के विधायक रह चुके हैं, तब वे बसपा में थे। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा से इनकी पत्नी चुनाव लड़ीं तो उन्हें 2,17,457 वोट मिले। सपा प्रत्याशी रमेशचंद्र बिंद स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उठाया। उनकी नजर में कानपुर की अनुप्रिया पटेल बाहरी है। अनुप्रिया के विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है कि कुर्मी समाज के स्थानीय नेताओं को लगता है कि उनकी वजह से सत्ता में उन्हें कोई अहमियत नहीं मिल रही है।

मिर्जापुर और सोनभद्र में सबसे बड़ा मुद्दा भारतीय संविधान और आरक्षण रहा। पीएम नरेंद्र मोदी ने 400 पार का नारा दिया तो फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) से सांसद और बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह ने यह कहकर इस मामले को गरमा दिया कि सरकार तो 272 सीटों पर ही बन जाती हैं, लेकिन संविधान बदलने या संशोधन करने के लिए दो-तिहाई सीटों की ज़रूरत होती है। इसी बीच कर्नाटक बीजेपी के वरिष्ठ नेता और छह बार सांसद रहे अनंत कुमार हेगड़े ने एक बयान में कहा था कि संविधान को ‘फिर से लिखने’ की ज़रूरत है। मिर्जापुर और सोनभद्र में पूरे चुनाव में संविधान और आरक्षण का मुद्दा छाया रहा। चंदौली के चकिया क्षेत्र के प्रगतिशील किसान वशिष्ठ मौर्य कहते हैं कि प्रधानमंत्री संविधान को बदलने और आरक्षण को ख़त्म करने के लिए 400 सीट चाहते हैं।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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