Wednesday, April 24, 2024

LOKSABHA ELECTION 2024

पुरखे आते हैं देखने, कुर्बानियों की कद्र और वोट ठगेरों से बचने के उपाय

पर्व त्यौहार के दिन लोग नये-नये कपड़े पहनते हैं। अच्छा-अच्छा खाना खाते हैं। खुश रहते हैं। खुशियां मनाते हैं। घर में समाज में सभी जगह वातावरण सुहाना रखने की कोशिश मिलकर करते हैं। क्यों? इसलिए कि उस दिन देव-पितर...

लोकतंत्र का पेपर लीक है आखिर सन्नाटा क्यों है गुमराही चच्चा

कोलाहल का हद के पार चला जाये तो अपने पीछे सन्नाटा छोड़ जाता है। विपक्षी गठबंधन के नेताओं के भाषणों से शब्दों और वाक्य खंडों को चुन-चुनकर शब्द गोलों को उछालते रहना चुनाव प्रचार की शैली नहीं हो सकती...

कर्नाटक का चुनावी परिदृश्य: भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए विभाजित चुनावी संभावनाएं

(प्रिय पाठकगण, 2024 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जनचौक ने अपने हिंदी भाषी पाठकों के लिए दक्षिणी राज्यों के चुनावी परिदृश्य को गहराई से समझने के लिए दक्षिण भारत के राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर गहरी निगाह रखने वाले बी. सिवरामन (पूर्व...

बिहार मुसहर समुदाय: हमर जिंदगी तो ऐसे ही गुजर गईल, हमर बचवा का ऐसे ना गुजरी 

कुछ गज जमीन, जर्जर मकान, दिल्ली में काम करता पुरुष और खेत में काम करती महिलाएं! मुसहर समुदाय के जीवन नैया का बस यही आधार है। बिहार में सभी जाति की अलग-अलग पार्टी बन चुकी है। हम पार्टी के जीतन...

चालीस चोरों के खजाने के चौकीदारों की दरोगाईन के गरीबी के नखरे

इधर 400 पार का गुब्बारा फुलाने में खुद मोदी जी की सांसें फूली जा रही हैं उधर उनकी वित्तमंत्राणी ने लोकसभा चुनाव लड़ने से ही पल्ला झाड़ लिया। वे प्याज पहले ही नहीं खाती थीं, अब चुनाव भी नहीं...

धीमी आवाज पर कान हो हाथ में वोटर कार्ड हो कि यह मुल्क हम सब का ‎है

पूरी दुनिया भारत के लोकतंत्र के भविष्य पर भारत के निर्णय का बेकरारी से इंतजार कर रहा है। सब की नजर हिंदी पट्टी में भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति की ताकत और ध्रुवीकरण की मंशा पर लगी हुई है। जनादेश...

भारत का लोकतंत्र ‘लोक’ की हिफाजत में है ‘तंत्र’ की गिरफ्त में नहीं, बिल्कुल नहीं

भारत के लोकतंत्र के लिए गैरमामूली आम चुनाव 2024 सामने है। चुनाव प्रचार का सिलसिला जोर पकड़ चुका है। चुनाव प्रचार के सिलसिला में 2 अप्रैल 2024 को उत्तराखंड के रुद्रपुर के ‘मोदी मैदान’ में अपना भाषण देते हुए...

तो फिर क्या समाधान है, समझना होगा समाधान है साहस

ऐतिहासिक रामलीला मैदान एक बार फिर भारत के लोकतंत्र की अंगड़ाइयों के इतिहास का साक्षी बनेगा। कहते हैं जो चीज जहां खोती है, उसकी तलाश वहीं करनी चाहिए। कई बार खोनेवाले को पता ही नहीं चलता है कि जो...

आखिर बीजेपी को इस बार सत्ता क्यों जरूरी है ?

सत्ता तो सभी को चाहिए। सत्ता के बिना राजनीति कैसी? धनधारी और राजदार जब एक हो जाते हैं तो कोई भी सत्ता ज्यादा मुश्किल नहीं होती। लोकतंत्र में कहने के लिए भले ही जनता मालिक है लेकिन मालिक की...

अरे, इन्हें तो अभी से नानी याद आने लगी !

अभी अभियान ढंग से रफ़्तार भी नहीं पकड़ पाया है मगर लगता है मुंहबली की सांसें अभी से फूलने लगी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पल्टीमारों की उल्टापल्टी के लिए सारी थैलियां खोलने और पूरी ताकत झोंकने के बाद...

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स्मृति शेष: सत्यजीत राय- वह जीनियस फ़िल्मकार जिसने पहली फिल्म से इतिहास रचा

सत्यजित राय देश के ऐसे फ़िल्मकार हैं, जिनकी पहली ही फ़िल्म से उन्हें एक दुनियावी शिनाख़्त और बेशुमार शोहरत...