देश में सूखे की दस्तक! गहरा सकता है खाद्य संकट

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नई दिल्ली। इस बारे में आधिकारिक घोषणा की जा चुकी है कि अगस्त 2023 का सूखा भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा सूखा है। इसे पिछले 122 साल के सबसे बड़े सूखे के तौर पर बताया जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की वेबसाइट में 2005 में -25% दर्ज है, 1902 में यह -20.7% था, लेकिन अगस्त 2023 में यह -35% दर्शा रहा है। क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि जैसा खाद्यान्न संकट 1965 या आजादी पूर्व 40 के दशक और 1905 के काल में हुआ था, वैसे हालात एक बार फिर से निर्मित हो सकते हैं?

1902 से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पास देश में बारिश के रिकॉर्ड मौजूद हैं। उससे पहले के रिकॉर्ड मौजूद नहीं हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार अगस्त माह में औसतन 200 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार पूरे देश भर में यह औसत 162.5 मिलीमीटर का रहा है। उत्तर-पश्चिम में यह 123.8 मिमी तो पूर्वोत्तर के राज्यों में 339.3 मिमी जबकि मध्य भारत में 165 तो दक्षिणी राज्यों में मात्र 76.4 मिमी दर्ज की गई है।

पूरे सीजन के लिहाज से भी सिर्फ उत्तर-पश्चिम का क्षेत्र ही है जहां पर 500 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो औसत से तीन प्रतिशत अधिक है। लेकिन दूसरी तरफ पूरे देश भर में औसतन 10% कम बारिश हुई है, और पूर्वोत्तर में 17% तो मध्य भारत में 10% और दक्षिणी राज्यों में 17% कम बारिश हुई है।

इसलिए यदि आंकड़ों के लिहाज से कहें तो तकनीकी रूप से भारत में सूखे की स्थिति है और देश का करीब 60-70% कृषि क्षेत्र वर्तमान में सूखे की चपेट में चला गया है। हालत यह है कि जून-जुलाई में जहां भारी बारिश हुई थी वहां पर भी अब पानी सूख चुका है, और रबी की फसल के लिए सिंचाई की व्यवस्था नहीं हो पा रही है।

भारतीय मौसम विभाग ने भी स्पष्ट कर दिया है कि बारिश कम हुई है, लेकिन सूखे की स्थिति के बारे में स्पष्ट रूप से घोषणा नहीं की है। मानसून के लिए जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर माह के हिसाब से 4 महीने होते हैं, जिसमें से 3 महीने गुजर चुके हैं। अब सारा दारोमदार सितंबर में पड़ने वाली बारिश पर टिका हुआ है। यदि मानसून की स्थिति अगस्त जैसी ही बनी रहती है तो देश में भयानक सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक अल-नीनो का असर अभी और प्रभावी होगा, ऐसी स्थिति में देश की बहुसंख्यक आबादी कैसे इस परिस्थिति से निपटेगी के बारे में भारत सरकार की ओर से कोई स्पष्ट गाइडलाइन आनी बाकी है। बेशक मोदी सरकार इस बार विशेष सतर्कता बरत रही है, और उसने गेहूं, चावल और चीनी के निर्यात पर आवश्यक रोक लगाकर आंतरिक खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी तैयारी की शुरुआत कर दी है, लेकिन भारत का खाद्यान्न भंडार 2014 की तुलना में आज काफी डांवाडोल स्थिति में है।

2014 में यूपीए सरकार ने जब सत्ता छोड़ी थी, तब देश में 3 वर्ष तक का पर्याप्त भंडार मौजूद था। लेकिन 2020 में कोविड-19 महामारी के बाद से भारत की बड़ी आबादी जिस प्रकार से सरकार द्वारा मुहैया कराये गये अनाज पर निर्भर रही है, जिसे संभवतः जून 2024 तक आगे बढ़ाने के बारे में मोदी सरकार विचार कर रही है, वैसी स्थिति में क्या आज 10 साल बाद भी खाद्य भंडार वैसे ही भरे हैं, इस बारे में भारी संदेह है।

लेकिन इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि देश में मौजूद जलाशयों का जलस्तर भी इस वर्ष रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। विशेष कर दक्षिण एवं मध्य भारत में हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं। मौसम विभाग के अनुसार जलाशयों के जलस्तर में 10 से 20% की कमी बनी हुई है। बरसात के दौरान बारिश का पानी अधिकांश जलाशयों के जलस्तर को भरने के काम आता है। इन जलाशयों से रबी की फसल की खेती का प्रबंधन होता है। लेकिन बारिश में आई इस कमी के कारण रबी की फसल भी प्रभावित होने जा रही है।

इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में जलाशयों के माध्यम से वर्ष भर पीने के पानी का प्रबंधन किया जाता है। इस बार जलाशयों में मौजूद जलस्तर का आंकड़ा 10 साल में सबसे कम है। औसतन जलस्तर में 23% की कमी बनी हुई है। इसकी एक वजह मानसून की शुरुआत में देरी रही, लेकिन जैसे ही मानसून ने रफ्तार पकड़ी उसी के साथ चक्रवात बिपोरजॉय भी देश में प्रवेश कर गया था। जून-जुलाई माह में चक्रवात के असर से देश के पश्चिमी इलाके में बारिश हुई, जबकि शेष भारत इससे अछूता बना रहा।

सेंट्रल वाटर कमीशन के अनुसार भारत में 150 बड़े जलाशय मौजूद हैं, जिनमें करीब 63% की क्षमता है। दक्षिण भारत और मध्य भारत के जलाशयों में यह कमी सबसे मुखर रूप से दिख रही है। यदि सितंबर माह में भी बारिश का यही हाल रहा, और जैसा कि अल नीनो के गहराने की आशंका बताई जा रही है तो रबी की फसल के लिए मिट्टी में जो आवश्यक नमी होनी चाहिए, उसके अभाव में रबी सीजन भी सूखे की चपेट में चला जायेगा।

आज के बिजनेस स्टैंडर्ड अख़बार के मुताबिक, अगस्त माह में सूखे की स्थिति के चलते मनरेगा में काम मांगने वालों की संख्या में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है। अखबार ने लिखा है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस साल मनरेगा में रोजगार की मांग करने वालों की संख्या 20% बढ़ी है। देश में अगस्त माह में ऐसे परिवारों की संख्या 1.91 करोड़ हो चुकी है जो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार की मांग कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सूखे की स्थिति को देखते हुए इसमें बढ़ोतरी की ही संभावना है।

2014-15 के बाद से अगस्त माह में मनरेगा के तहत काम की सबसे ज्यादा मांग 2023 में देखने को मिली है। इसमें कोविड-19 के 2020-21 और 2021-22 वर्ष को छोड़ देना होगा, क्योंकि इन दो वर्षों के दौरान लाखों-लाख श्रमिक देश के कोने-कोने से ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन कर गये थे, जिनकी आजीविका के लिए सरकार की ओर से मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया कराया गया था।

लेकिन इसके साथ ही बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने बेहद महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाया है कि मौजूदा वित्त वर्ष में लाखों ग्रामीण मनरेगा के तहत काम नहीं करना चाहते, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम (एबीपीएस) लागू किये जाने के बाद से बड़ी संख्या में श्रमिकों को मनरेगा का भुगतान नहीं मिला है। लेकिन उसके बावजूद अगस्त माह में रिकॉर्ड संख्या में मनरेगा के तहत काम करने की चाहत ग्रामीण अर्थव्यस्था में छाए संकट की गहनता के बारे में पूर्व चेतावनी दे रही है।

यही वजह है कि पश्चिम बंगाल में तो मनरेगा कार्यक्रम करीब-करीब बंद हो चुका है। वैसे भी ग्रामीण रोजगार के बाजार में मनरेगा को अंतिम उपाय के रूप में लिया जाता है। 31 अगस्त तक के आंकड़े बताते हैं कि अनुमानित 1.45 करोड सक्रिय मनरेगा श्रमिकों में करीब 17% लोग एबीपीएस के तहत दर्ज नहीं हैं। हालांकि 30 अगस्त को केंद्र सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि एबीपीएस के तहत मनरेगा के भुगतान को अब बढ़ाकर दिसंबर 2023 तक कर दिया गया है।

और साथ ही राज्यों को निर्देश दिया गया है कि इसके लाभार्थियों को आधार कार्ड प्रस्तुत करना होगा, हालांकि आधार कार्ड न होने की सूरत में भी उन्हें काम करने से नहीं रोका जाये। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यह सवाल खड़ा होता है कि यदि देश के व्यापक ग्रामीण क्षेत्रों में अगस्त माह की तरह ही सूखे की स्थिति बरकरार रहती है तो किसानों के साथ-साथ बेहद गरीब आबादी और खेतिहर मजदूरों के पास खुद को जिंदा रखने का क्या आसरा बचता है?

देश में गेहूं और चावल के दामों में तेजी बनी हुई है, जिसे रोकने के लिए केंद्र सरकार लगातार हाथ-पांव मार रही है। लेकिन अब मामला दलहन और तिलहन का भी गंभीर होता जा रहा है। हालिया बाजार के आंकड़े बताते हैं कि पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद चने के थोक भाव में 23% का उछाल आ चुका है। चने का थोक भाव 5,390 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 6,604 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच चुका है।

हालांकि खुदरा बाजार में अभी इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन जल्द ही चने की कीमतों में भी तेजी से इंकार नहीं किया जा सकता है। अरहर, उड़द और मसूर के दामों में पिछले 2-3 महीने से भारी तेजी आई हुई है, जिसके कम होने के कोई आसार नहीं हैं। देश में त्योहारी सीजन को देखते हुए चने, चना दाल, बेसन, मिठाई, कढ़ी सहित कई चीजों में इसके इस्तेमाल को देखते हुए यदि चने ने भी रफ्तार पकड़ ली तो औसत भारतीय के लिए दाल-रोटी भी नसीब होना भारी मुश्किल में पड़ जाने वाला है।

आइये एक बार फिर से मानसून के असुंतलित मिजाज को समझने की कोशिश करते हैं, जो इस वर्ष पूरी तरह से बिगड़ चुका है। हालांकि पिछले वर्ष औसत बारिश दर्ज की गई थी, लेकिन तब भी मानसून का पैटर्न बदला-बदला सा था। इस बार औसतन 26% की कमी देखी गई है। अगस्त माह में दक्षिण भारत में 60% और मध्य भारत में 47% कम बारिश हुई है। पिछले वर्ष के मुकाबले 24 अगस्त तक 21% कम और पिछले 10 वर्षों के औसत की तुलना में 10% कम बरसात दर्ज की गई है। अगस्त माह का सूखा 122 साल में पहली बार पड़ा है।

पहले भी अल नीनो से सूखे की मार पड़ी थी, लेकिन अगस्त में इतनी कम बारिश नहीं हुई थी। देश में यदि बारिश में औसत से 10% या अधिक कमी दर्ज की जाती है, तो उसे सूखे की स्थिति कहा जाता है। मौसम विभाग के चार्ट के हिसाब से भारत के अधिकांश हिस्से कम बारिश या बेहद कम बारिश को दर्शा रहे हैं। यह भी पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक बारिश में कमी एक साथ देखने को मिल रही है। हालांकि मौसम विभाग ने पहले ही अपने पूर्वानुमान में मानसून को सामान्य से कम बताया था, लेकिन हालात ऐसे होंगे इसकी संभावना किसी ने नहीं व्यक्त की थी। 

डाउन टू अर्थ के मुताबिक बारिश में 36% की कमी का सीधा असर खेती पर पड़ेगा। लेकिन सरकार द्वारा इस कमी के बारे में पूर्व-भविष्यवाणी कर पाना अभी तक संभव नहीं हो सका है। अगस्त में आई इस कमी से दलहन और तिलहन की फसल बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है।

देश में मुख्य रूप से महाराष्ट्र, बिहार, केरल और यूपी और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से सीधे प्रभावित हो रहे हैं। महाराष्ट्र राज्य में सूखे की स्थिति भयावह होती जा रही है। यहां पर गन्ने की खेती के बुरी तरह से प्रभावित होने की आशंका है। महाराष्ट्र के कुछ जिलों में टैंकरों के माध्यम से पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है। अहमदनगर में खेती तो सूख चुकी ही है, लेकिन लोगों को पीने के पानी के लिए प्रशासन द्वारा टैंकर मुहैया कराया जा रहा है। 

सरकारी आंकड़ों के मुतबिक 28 अगस्त 2022 तक महाराष्ट्र के बांधों में 83.70% पानी था। लेकिन इस वर्ष 28 अगस्त 2023 तक यह सिर्फ 64.35% ही है। सबसे भयानक स्थिति औरंगाबाद क्षेत्र के इलाकों में बनी हुई है। पिछले वर्ष 28 अगस्त तक यहां के बांध में 75.14% पानी मौजूद था, लेकिन इस वर्ष 28 अगस्त तक सिर्फ 31.57% पानी ही मौजूद है। 386 टैंकरों के माध्यम से 363 गांवों की 1403 बस्तियों में पानी की आपूर्ति की जा रही है, जबकि पिछले वर्ष मात्र 8 टैंकर इस काम में लगे थे।

स्थानीय लोगों के अनुसार जून माह से ही टैंकरों के माध्यम से जलापूर्ति की जा रही है, जो मानसून के 3 माह बाद भी बरकरार है। यदि यही स्थिति बनी रही तो आगे भारी संकट खड़ा होने वाला है। महाराष्ट्र के समूचे मराठवाडा इलाके में कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है।

बिहार राज्य में जहां अक्सर बाढ़ का प्रकोप हर बरसात में देखने को मिलता है, इस बार सुखाड़ की स्थिति से जूझ रहा है। इसके 38 जिलों में से 36 जिलों में पिछले माह तक सूखे की स्थिति बनी हुई थी। धान की फसल को सूखने से बचाने के लिए व्यापक पैमाने पर ट्यूबवेल का सहारा लिया जा रहा था। खेत की सिंचाई के लिए 200 रुपये प्रति घंटे की दर से ट्यूबवेल के पानी का इस्तेमाल गरीब किसान के लिए कहां तक संभव है, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन खून-पसीने को यूं ही खड़े-खड़े बर्बाद होते देखना किसी भी गरीब और मझोले किसान के लिए गवारा कैसे संभव है, लिहाजा कर्ज लेकर भी अंतिम दम तक उसे बचाने के सिवाय उसके पास कोई दूसरा चारा नहीं है।

इसी प्रकार केरल जिसे मानसून का प्रवेश द्वार माना जाता है, में भी इस बार सूखे की मार पड़ी है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 1 जून से 16 अगस्त के बीच की बारिश में केरल को इस बार 44% कम बारिश नसीब हुई है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार केरल को जहां सीजन में औसत 1500 मिमी बारिश की जगह अभी तक 877.1 मिमी बारिश ही प्राप्त हुई है। इसका सबसे अधिक प्रभाव इदुक्की जिले पर पड़ा है, जहां केरल का सबसे बड़ा पन-बिजली पॉवर प्रोजेक्ट मौजूद है।

जलाशय में पानी की रिकॉर्ड कमी बिजली उत्पादन को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है। जलाशय में क्षमता से मात्र 31.10% पानी ही बचा है, जो कि पिछले वर्ष के 80.2% की तुलना में बेहद कम है। जहां तक खेती का प्रश्न है इदुक्की और पलक्कड़ जिले पानी की कमी से पूर्ण बर्बादी की कगार पर खड़े हैं। अब केरल को अक्टूबर से दिसंबर के बीच में उत्तर-पूर्व से मानसून वापसी का इंतजार है, क्योंकि सूखे की स्थिति से निपटने के लिए राज्य को अपने जल संसाधनों, बिजली निर्माण और कृषि की स्थिति में गुणात्मक सुधार लाने की बेहद जरूरत है।

कुल मिलाकर कहें तो अगस्त के रिकॉर्ड सूखे को देखते हुए भारत सरकार को तत्काल श्वेत पत्र जारी करते हुए देश के हालात के बारे में सर्व-सामान्य को स्थिति से अवगत कराना चाहिए। एक देश-एक चुनाव की पैंतरेबाजी के बजाय एक सच्चे राजनेता और देशभक्त सरकार का कर्तव्य है कि ऐसे गाढ़े वक्त में पानी की एक-एक बूंद को नाले-नदी-समुद्र में व्यर्थ जाने के बचाने पर ध्यान देना चाहिए।

सरकारों को लाखों देशवासियों के हाथों को जगह-जगह गड्ढे खोदने, तालाब की खुदाई करने, बावड़ी की सफाई करने इत्यादि में लगाकर धरती की नमी को बनाये रखने पर सारा जोर देना चाहिए। देश में जमाखोरी, कालाबाजारी और सीमापार माल बेचने वालों पर सख्त नकेल लगाकर हम देश में मौजूद खाद्यान्न भंडार से काम चला सकते हैं। सवाल है, सरकार की प्राथमिकता पर पहले देश के गरीब हों।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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