देश के कई शहरों में चुनाव आयोग के खिलाफ आम नागरिकों का प्रदर्शन   

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भारतीय निर्वाचन आयोग की ओर से कल 10 मई को कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को जवाबी पत्र लिखकर जमकर खरी-खोटी सुनाई गई है, जिसे देख समूचा विपक्ष और प्रबुद्ध नागरिक हैरत में है। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए चुनाव आयोग ने विपक्ष की ओर से अंतिम चुनावी आंकड़ों और मतदान प्रतिशत में की जा रही देरी पर तो कोई जवाब नहीं दिया, अलबत्ता उसने इंडिया गठबंधन के घटक दलों के बीच चले पत्राचार को सार्वजनिक किये जाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए इसे चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा बट्टा लगाकर समूचे भारतीय लोकतंत्र पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है।

बता दें कि 6 मई को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन के सभी साझीदार दलों को तीन पेज का एक पत्र लिखकर 6 सवालों पर गौर करने का अनुरोध किया था, जिसमें पहले और दूसरे चरण के चुनाव हो जाने के क्रमशः 11 और 4 दिन बाद चुनाव आयोग ने कुल मतदान प्रतिशत के अंतिम नतीजे जारी किये थे। इसमें संभावित मतदान प्रतिशत से तकरीबन 5।5% की वृद्धि हैरान करने वाली थी, क्योंकि अभी तक 1-2% मतों में बढ़ोत्तरी से अधिक हेरफेर देखने को नहीं मिला था। इसके अलावा खड़गे ने कई मीडियाकर्मियों की ओर से आगामी चरण के लिए पंजीकृत मतदाताओं की अंतिम सूची जारी नहीं किये जाने की शिकायत का भी उल्लेख किया था। 

इसके जवाब में इलेक्शन कमीशन ने कल 4 पन्नों का जवाबी पत्र आयोग के प्रधान सचिव, सुमित मुखर्जी के मार्फत जारी कर दिया। चुनाव आयोग आखिर क्यों विपक्षी दल से इतना बिफरा पड़ा है कि उसे इतना लंबा-चौड़ा जवाबी खत लिखने की जरूरत आन पड़ी? अपने पत्र में चुनाव आयोग ने इस बात को बताने की जरा भी जहमत नहीं उठाई है कि उससे अंतिम मतगणना और मत प्रतिशत को सार्वजनिक करने में आखिर इतनी देरी क्यों हुई? भविष्य में ऐसा न हो, उसके लिए क्या उपाय किये जा रहे हैं या विपक्ष और जनता-जनार्दन के बीच उठ रहे संदेह को दूर करने के लिए उसकी ओर से क्या कदम उठाये गये हैं? चुनाव आयोग ने खड़गे के पत्र में उठाये गये सवालों को तो अपने पत्र में बिन्दुवार पेश किया है, लेकिन उनका जवाब देने के बजाय इन्हें विपक्ष का पूर्वाग्रह और चुनाव प्रकिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर समूचे लोकतांत्रिक प्रकिया को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है, जो सर्वथा अनुचित है। 

हम सभी जानते हैं कि आम चुनाव से पहले किस प्रकार अचानक दो में से एक चुनाव आयुक्त ने अपना इस्तीफ़ा सौंपा था। इससे पहले ही सत्तारूढ़ दल ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रकिया से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बाहर कर पीएम, पीएम के द्वारा नियुक्त एक सदस्य और मुख्य विपक्षी दल के नेता के रूप में तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर, चुनाव आयोग की वैधता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था। चुनाव से ऐन पहले दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, जिनके पास चुनाव आयोजित कराने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था, के हाथ में 100 करोड़ भारतीयों के मताधिकार को जांचने-परखने का अधिकार सौंप दिया। 

हमें समझना होगा कि 2024 का चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं है। यही पहली बार है कि 10 वर्ष में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में कोई लहर देखने को नहीं मिल रही है। अभी तक 3 चरण के चुनाव संपन्न हो चुके हैं, लेकिन धरातल पर साफ़ देखा जा सकता है कि पीएम मोदी के 400 पार के दावे की हवा अपनेआप फुस्स हो चुकी है। पहले चरण के मतदान के बाद से ही उनके श्रीमुख से इस दावे को किसी भी सार्वजनिक मंच पर नहीं सुना गया है। 

तीनों चरण के मतदान और चुनाव आयोग की ओर से फाइनल मतदान प्रतिशत के आंकड़ों को जारी करने में हो रही भारी देरी के मुद्दे पर देखें तो 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान संपन्न हुआ था, जिसमें 102 लोकसभा सीटों का फैसला ईवीएम में कैद हो गया। इसके एक सप्ताह बाद 26 अप्रैल को दूसरे चरण का मतदान होता है, लेकिन 29 अप्रैल तक चुनाव आयोग की ओर से फाइनल वोटर टर्नआउट के आंकड़े जारी नहीं किये जाते।

पाठकों को याद रखना होगा कि मतदान की तारीख के दिन, सभी टीवी न्यूज़ पर हर कुछ घंटे पर ब्रेकिंग न्यूज़ जारी की जाती है कि सुबह 9 बजे, 11 बजे और अंततः शाम 5 बजे तक इतना-इतना मतदान फलां-फलां लोकसभा सीट पर देखने को मिला। ये सभी सूचनाएं जाहिर है, चुनाव आयोग ही जारी करता है। इसके लिए उसके पास सारी व्यवस्था मौजूद है। शाम 5 बजे के बाद पोलिंग बूथ पर मतदाताओं की एंट्री प्रतिबंधित कर दी जाती है, लेकिन जितने लोग उस समय तक लाइन में लग जाते हैं, उन्हें अपना मताधिकार का उपयोग करने की इजाजत होती है। 

यही वह बिंदु है, जिसमें शाम 6 से लेकर कहीं-कहीं 7 बजे शाम या उससे भी अधिक समय लग सकता है। ऐसे में बहुत संभव है कि रात 8 बजे तक भी चुनाव आयोग वोट प्रतिशत के बारे में सटीक आंकड़े जारी करने की स्थिति में न हो। लेकिन रात 9-10 बजे या अगली सुबह तक तो वह ऐसा कर ही सकती है। 

हैरानी की बात यह है कि 2024 चुनाव के पहले दो चरणों में ऐसा नहीं हुआ। आम नागरिकों ने तो शाम की हेडलाइंस टीवी पर देख ली कि 61-62% मतदान हुआ, और इस बार 2014 या 2019 की अपेक्षा बेहद कम मतदान हो रहा है। लेकिन बाद में चुनाव आयोग फाइनल आंकड़े जारी कर बताता है कि 66-67% मतदान हुआ है, तो अधिकांश लोग तब तक पहले और दूसरे चरण के आंकड़ों को भूल चुके होते हैं। 

लेकिन कुछ समाचारपत्रों और मुख्य विपक्षी दल इतने बड़े अंतर को देखकर पूरी तरह से भौंचक्के हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे के पत्र पर जिस प्रकार चुनाव आयोग ने हमलावर रुख अपनाकर अपनी गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश की है, उससे देश का प्रबुद्ध वर्ग बुरी तरह से आहत है। उसे लग रहा है कि कहीं न कहीं देश में पहली बार बूथ स्तर के बजाय शीर्ष स्तर पर जनादेश की चोरी करने का मन बनाया जा रहा है। यही वजह है कि कल और आज देश में चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर आम नागरिक और अब प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं।  

कल 10 मई को इंडिया गठबंधन के विभिन्न दलों ने शाम 5 बजे चुनाव आयोग से मुलाक़ात कर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई। इनमें प्रमुख मुद्दे थे, वोटर प्रतिशत के प्रकाशन में 11 दिन की देरी, जिसका चुनाव आयोग के पास कोई जवाब नहीं है। लेकिन अभिषेक मनु सिंघवी इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात वोटर प्रतिशत में भारी वृद्धि को मानते हैं। बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए सिंघवी का कहना था, “इसे तुलनात्मक रूप से 2019 के चुनावों से मिलान कर देखें तो तब ये आकंड़े इतने तेजी से नहीं बढ़े थे। अगर चुनाव आयोग डेटा को जल्द से जल्द रिलीज कर दे तो ये अटकलें नहीं उठेंगी। हमने ये शिकायत काफी दिन पहले की थी, लेकिन दुर्भाग्य है कि चुनाव आयोग ने उसका जवाब आज हमारी मीटिंग से थोड़ी देर पहले ही अपलोड किया है। इसके अलावा हमने PM मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ 11 शिकायतें की थीं, लेकिन उन पर अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। हमें इन सभी मुद्दों पर जल्द से जल्द जवाब चाहिए।” 

सोशल मीडिया पर भी अब आम लोग चुनाव आयोग से सवाल पूछ रहे हैं। पत्रकार रणविजय सिंह अपने सोशल मीडिया हैंडल  X पर चुनाव आयोग की डेटा टाइमलाइन को दर्शाते हुए बेहद 2024 में निष्पक्ष चुनाव को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं: 

“निष्पक्ष चुनाव आयोग के वोटिंग डेटा की टाइमलाइन 

पहला चरण

• 19 अप्रैल: 60% 

• 20 अप्रैल: 64%

• 30 अप्रैल: 66।1%

दूसरा चरण

• 26 अप्रैल: 61% 

• 28 अप्रैल: 67।7%

• 30 अप्रैल: 66।7%

तीसरा चरण

• 7 मई: 64।4%

• 8 मई: 65।6%”

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया भी आज से लोकतंत्र की रक्षा के लिए मैदान में 

आज प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने भी निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने में चुनाव आयोग की विफलता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए पत्र लिखा है। प्रेस क्लब के अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने आज मुख्य चुनाव आयुक्त, राजीव कुमार के नाम पत्र लिखकर कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े किये हैं। उनके मुताबिक, इस बार 3 चरण के चुनाव संपन्न हो जाने के बावजूद चुनाव आयोग ने एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस आयोजित नहीं की है। इससे पूर्व यह परंपरा रही है कि हर चरण के चुनाव के बाद चुनाव आयोग की ओर से प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जाती थी। 2019 आम चुनावों में भी हर चरण के बाद इसका पालन किया गया था, और एक संवैधानिक संस्था होने के नाते चुनाव आयोग की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह हर चरण के बाद आम नागरिकों को इस बात के लिए आश्वस्त करे कि मतदान का दिन किस प्रकार से गुजरा। 

इसके साथ ही गौतम लाहिड़ी ने चुनाव आयोग द्वारा पिछले तीन चरणों के अंतिम आंकड़े जारी करने में हो रही भारी देरी पर आश्चर्य और हैरानी जताते हुए पिछले चुनावों से इसकी तुलना करते हुए तत्काल सभी आंकड़ों को जारी करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि अबसे हर चरण के बाद चुनाव आयोग प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करे और साथ ही चुनाव के 24 घंटे के भीतर सभी अंतिम मतदान प्रतिशत और कुल मतदान संख्या को हर हाल में जारी करे।  

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से भी कल सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की भूमिका को लेकर याचिका डालकर उसे चुनाव संपन्न होने के 48 घंटे के भीतर हर पोलिंग बूथ पर कुल कितने वोट पड़े, का विवरण अपने वेबसाइट पर डालने का निर्देश देने की अपील की गई है। एडीआर की ओर से याचिका दाखिल करते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि हमारी याचिका का मकसद चुनाव में अनियमितताओं को रोककर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है। 

असल में देखें तो चुनाव आयोग के पास एक ऐसा ऐप है जो हर दो घंटे पर बूथ लेवल से वोटिंग के आंकड़े और परसेंटेज सार्वजनिक करता है, और रियलटाइम डेटा अपनेआप जेनरेट होकर सारी लोकसभा सीटों के आंकड़े चुनाव आयोग के पास मिनटों में पहुंचा देता है। लेकिन पहले दो चरण के चुनावों में इस बार चुनाव आयोग ने फाइनल डेटा जारी करने में इस बार इतनी देरी क्यों की, इसका कोई जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है। जब विपक्ष ने इस पर सवाल खड़े करने शुरू किये तो उसी दिन 30 अप्रैल की शाम 19 अप्रैल और 26 अप्रैल के आंकड़े 5-6% बढ़ाकर जारी कर दिए थे, जिसे देख विपक्ष हक्का-बक्का था। 

लेकिन जब खड़गे जी की ओर से इस प्रश्न को गठबंधन के साझीदार दलों और आम लोगों के संज्ञान में रखा गया, तो चुनाव आयोग बुरी तरह से भड़क रहा है। क्या चुनाव आयोग यह चाहता है कि वह अपना काम ढंग से चाहे न करे, लेकिन उसे कोई टोके भी नहीं? ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि यदि जनादेश में 4-5% की ही हेराफेरी कर हार को जीत में तब्दील कर दिया गया, जो कि ईवीएम पर उठ रहे सवालों से परे एक नई समस्या उठ खड़ी हुई है, जैसा हम पड़ोसी देश पाकिस्तान में देख चुके हैं, तो बताइए क्या हम पाकिस्तान के ही नक्शेकदम पर चलने की नहीं सोच रहे? 

दिल्ली, बेंगलुरु सहित तमाम शहरों में विरोध प्रदर्शन 

यही वजह है कि आज बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद सहित देश के तमाम शहरों में करीब 2,000 नागरिक #GrowASpineOrResign हैशटैग अभियान के तहत चुनाव आयोग से सवाल पूछने के लिए सड़कों पर उतरे हैं। सोशल मीडिया पर इस अभियान की शुरुआत हो चुकी है। बड़ी संख्या में नागरिकों की ओर से राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग के नाम पोस्टकार्ड पर #GrowASpineOrResign (अपनी रीढ़ सीधी रखो, अन्यथा इस्तीफ़ा दो), लिखकर प्रेषित किया जा रहा है।  

असली बात तो यह है कि अब चुनाव उस चरण में पहुंच चुका है, जिसमें सत्ता पक्ष ने भी मान लिया है कि वह बाजी हार चुकी है। लेकिन चुनाव आयोग को दबाव में लेकर क्या हारी हुई बाजी को पलटा जा सकता है, इसको लेकर देश में संदेह लगातार बढ़ रहा है। आज बेंगलुरु और दिल्ली में चुनाव आयोग कार्यालय के समक्ष आम नागरिकों एवं नागरिक संगठनों ने चुनाव आयोग को साफ-साफ़ बता दिया है कि या तो वह अपनी रीढ़ को साबित करे, वरना इस्तीफ़ा दे।

आम नागरिकों के द्वारा पोस्टकार्ड से चुनाव आयोग की अंतरात्मा को जगाने के लिए चिट्ठी भेजी जा रही है, ताकि देश को बनाना रिपब्लिक बनने से रोका जा सके। कोई जीते-हारे, इसका फैसला जनता से मिलने वाले वोट से ही तय होना चाहिए, और चुनाव आयुक्तों के जिम्मे देश ने यही कार्यभार सौंपा है। जनादेश के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़, असल में भारतीय संविधान, लोकतंत्र और उसकी आत्मा के साथ खिलवाड़ होगा।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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