Saturday, April 20, 2024

‘मजदूर संगठन समिति’ पर माओवादी होने का चस्पा हाईकोर्ट से खारिज, प्रतिबंध हटा

रांची। रांची उच्च न्यायालय ने ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति (एमएसएस)’ पर लगे प्रतिबंध को वापस लेने का आदेश 11 फरवरी, 2022 को जारी किया है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चन्द्रशेखर ने अपने आदेश में कहा है कि कोई भी सबूत ऐसा पेश नहीं किया गया, जिसके हिसाब से मजदूर संगठन समिति को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का अग्र संगठन माना जाए। न ही कभी कोई ऐसी शिकायत दर्ज हुई थी, जिससे ये पता चले कि मजदूर संगठन समिति किसी भी प्रकार की चरमपंथी गतिविधि या अराजकता में शामिल हो। न्यायालय ने साथ-साथ ये नाराजगी भी जताई के सरकार ने इस मामले में पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया।

सरकार द्वारा दायर किये गए काउंटर एफिडेविट के छब्बीसवें पैराग्राफ में कहा गया कि 2008 में क्रान्तिकारी किसान कमेटी, नारी मुक्ति संघ और झारखण्ड ग्रुप अवाम, क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, उसी के बाद इन संगठनों के लोगों ने नए संगठन बनाये, जो नक्सलियों के अग्र-संगठनों के तौर पर काम करते थे, उन्हीं में मजदूर संगठन समिति का भी सब से अहम किरदार रहा। सत्ताइसवें पैराग्राफ में कहा कि ये संगठन सिर्फ ट्रेड यूनियन के नाम पर था, लेकिन ट्रेड यूनियन के काम की जगह नक्सल संगठनों की अगुवाई करता था और तीसवें पैराग्राफ में कहा कि मजदूर संगठन समिति की ओर से पीटिशन डालने वाले लोग नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन की पचासवीं वर्षगाँठ मना रहे थे, साथ ही साथ मोतीलाल बास्के के पुलिस एनकाउंटर का विरोध भी किया था। ये लोग नक्सलियों से साथ सम्बंधित हैं। इसके नेता दामोदर तुरी को 2012 में नक्सल मामले में तमिलनाडु से गिरफ्तार किया गया था। यह संगठन नक्सल समर्थक वरवर राव से भी प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में था।

उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश में कहा गया है कि उपरोक्त स्टेटमेंट्स के सिवा कुछ भी सबूत के तौर पर पेश नहीं किया गया, जिससे ये साबित हो सके कि मजदूर संगठन समिति भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से सम्बंधित है। 

मजदूर संगठन समिति के नेता बच्चा सिंह

मालूम हो कि बिना किसी पूर्व नोटिस के 22 दिसंबर, 2017 को झारखंड की तत्कालीन भाजपा की रघुवर दास सरकार ने 1989 में ही तत्कालीन बिहार में पंजीकृत ट्रेड यूनियन मजदूर संगठन समिति (एमएसएस) को भाकपा (माओवादी) का अग्र संगठन बताकर प्रतिबंधित कर दिया था। उस समय झारखंड गृह विभाग के सचिव एसकेजी रहाटे और कार्मिक सुधार एवं राजभाषा सुधार विभाग की सचिव निधि खरे ने संवाददाता सम्मेलन के जरिए प्रतिबंध की घोषणा करते हुए कहा था कि 1908 की धारा 16 के तहत इसे प्रतिबंधित किया है।

मजदूर संगठन समिति से प्रतिबंध वापसी के फैसले से मजदूर संगठन समिति (एमएसएस) से जुड़े रहे मजदूरों व उनके कार्यक्षेत्र के मजदूरों के बीच में काफी खुशी है। जगह-जगह पर मजदूर एक-दूसरे को मिठाई खिला रहे हैं। मजदूर संगठन समिति के सभी नेताओं को कानों-कान यह जानकारी मिल चुकी है, लेकिन पब्लिकली खुशी का इजहार वे अभी नहीं कर रहे हैं। मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन महासचिव कामरेड बच्चा सिंह कहते हैं कि ऑर्डर का सर्टिफाइड कॉपी हाथ में आ जाए, तो हमलोग सभी जगह विजय जुलूस निकालेंगे। सर्टिफाइड कॉपी के लिए 4 दिन पहले ही आवेदन दे चुके हैं। (जनचौक के पास ऑर्डर की ई-कॉपी है)    

मजदूर संगठन समिति का इतिहास

हमारे देश में जब उदारीकरण-निजीकरण-भूमंडलीकरण की नीतियां लाई जा रही थी, ठीक उसी समय तत्कालीन बिहार के एक कोने में क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन की आधारशिला रखी जा रही थी। 1989 में वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यनारायण भट्टाचार्य द्वारा बिहार श्रम विभाग में एक ट्रेड यूनियन पंजीकृत कराया गया, जिसका नाम था ‘मजदूर संगठन समिति’ और इसको पंजीकरण संख्या 3113/89 मिला। प्रारंभ में इस मजदूर यूनियन का कार्यक्षेत्र सिर्फ धनबाद जिला में ही था। धनबाद जिला के कतरास के आसपास में बीसीसीएल के मजदूरों के बीच इनकी धमक ने जल्द ही इसे लोकप्रिय बना दिया। इसका प्रभाव धनबाद के अगल-बगल के जिलों पर भी पड़ा और जल्द ही यह मजदूर यूनियन तेजी से फैलने लगा। 2000 ईस्वी में बिहार से झारखंड अलग होने के बाद तो मजदूर संगठन समिति ‘दिन दूनी रात चैगुनी’ की रफ्तार से मजदूरों के बीच फैलने लगी।

कालांतर में मजदूर संगठन समिति ने गिरिडीह जिला के रोलिंग फैक्ट्री व स्पंज आयरन के मजदूरों के बीच अपनी पैठ बना ली। साथ में जैन धर्मावलम्बियों के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल शिखर जी (मधुबन, गिरिडीह) में स्थापित दर्जनों जैन कोठियों में कार्यरत मजदूरों के अलावा वहाँ हजारों डोली व गोदी मजदूरों के बीच भी इनका कामकाज बड़ी तेजी से फैला। बोकारो जिला में बोकारो थर्मल पावर प्लांट, तेनुघाट पावर प्लांट, चन्द्रपुरा पावर प्लांट के मजदूरों खासकर ठेका मजदूरों के बीच इन्होंने अपनी एक मजबूत जगह बनाई। साथ ही बोकारो स्टील प्लांट के कारण विस्थापन का दंश झेल रहे दर्जनों विस्थापित गांवों में भी विस्थापितों को गोलबंद करने में इस यूनियन ने सफलता पायी। रांची जिला के खलारी सीसीएल के मजदूरों के बीच काम प्रारंभ करने के बाद यहाँ पर दैनिक मजदूरों के बीच इनकी मजबूत पैठ बनी।

संगठन द्वारा चलाया जाने वाला अस्पताल

राजधानी रांची के कुछ अधिवक्ता और विस्थापित नेता भी इस यूनियन से जुड़े। तत्कालीन हजारीबाग जिला के गिद्दी व रजरप्पा सीसीएल में ठेका पर काम करानेवाली कम्पनी डीएलएफ के बीच भी इन्होंने अपना पांव पसारा। कोडरमा में पीडब्लूडी के मजदूरों के बीच भी इस यूनियन का काम प्रारंभ हुआ। सरायकेला-खरसावां जिला के चांडिल में विस्थापितों के बीच इनका कामकाज काफी जोर-शोर से शुरु हुआ। साथ ही बिहार के गया जिला के गुरारू चीनी मिल में भी इन्होंने अपनी मजबूत पैठ बनायी। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला के बागमुंडी और झालदा में बीड़ी मजदूरों के बीच भी इन्होंने कामकाज प्रारंभ किया।

मजदूर संगठन समिति के मजदूरों के बीच बढ़ते प्रभाव व लगातार निर्णायक आंदोलन के कारण जल्द ही यह यूनियन सत्ता के निशाने पर आ गई और इसे भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित तत्कालीन माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआई) का फ्रंटल संगठन कहा जाने लगा। इनके नेताओं पर पुलिस दमन भी काफी बढ़ गया। अब जहाँ भी नये क्षेत्र में यूनियन के नेता संगठन विस्तार के लिए जाते, पुलिस और दलाल ट्रेड यूनियन द्वारा इस यूनियन के ‘नक्सल’ होने का प्रचार इतना अधिक हो जाता कि मजदूरों में इस यूनियन को लेकर पुलिसिया दमन का डर पैदा हो जाता।

खैर, इन्हीं परिस्थितियों में सत्ता की चुनौतियों का सामना करते हुए मजदूर संगठन समिति तीन राज्यों (बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल) में फैल गई थी, तब 2003 ईस्वी में इसका पहला केन्द्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता कामरेड सत्यनारायण भट्टाचार्य केन्द्रीय अध्यक्ष व बोकारो थर्मल पावर प्लांट के ठेका मजदूर कामरेड बच्चा सिंह केन्द्रीय महासचिव निर्वाचित हुए। 2003 के बाद प्रत्येक दो साल पर मजदूर संगठन समिति का केन्द्रीय सम्मेलन आयोजित होना शुरु हुआ, जिससे यूनियन के कार्यक्रम व आंदोलन के साथ-साथ संगठन विस्तार पर भी व्यापक सकारात्मक प्रभाव पड़ा। मजदूर संगठन समिति का आखिरी 5 वां केन्द्रीय सम्मेलन 21-22 फरवरी 2015 को झारखंड के बोकारो में हुआ।

वर्ष 2017 मजदूर संगठन समिति के लिए निर्णायक साबित हुआ। वर्ष 2017 में मजदूर संगठन समिति की सदस्यता संख्या लाखों में थी, झारखंड के कई इलाकों में मजदूरों के बीच इनकी मजबूत पैठ थी। कुछ इलाके तो ऐसे थे, जहाँ मजदूर संगठन समिति के अलावा कोई ट्रेड यूनियन था ही नहीं। इस समय तक मजदूर संगठन समिति का धनबाद के कतरास में केन्द्रीय कार्यालय होने के साथ-साथ गिरिडीह, मधुबन, बोकारो थर्मल, ललपनिया, बोकारो स्टील सिटी, गुरारू (बिहार) आदि कई जगहों पर शाखा कार्यालय सुचारू रूप से चल रहे थे। कई शाखा का अपना बैंक अकाउंट भी था।

इस बीच मजदूर संगठन समिति के मधुबन (गिरिडीह) शाखा द्वारा मधुबन में 5 मई, 2015 को ‘मजदूरों का, मजदूरों के लिए व मजदूरों के द्वारा’ बनाये गये ‘श्रमजीवी अस्पताल’ की स्थापना हो चुकी थी, जिसका उद्घाटन गिरिडीह के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर सिद्धार्थ सन्याल ने किया था। इस अस्पताल में प्रत्येक दिन सैकड़ों मजदूरों का फ्री में इलाज होता था।

हाँ, तो वर्ष 2017 मजदूर संगठन समिति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसी वर्ष महान नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान विद्रोह की 50वीं वर्षगांठ थी और इसी वर्ष रूस में हुई बोल्शेविक क्रान्ति की सौवीं वर्षगांठ भी थी। इन दोनों वर्षगांठ को हमारे देश में कई राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों व जनसंगठनों द्वारा मनाया जा रहा था। झारखंड में भी ‘महान नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह की अर्द्ध-शताब्दी समारोह समिति’ का गठन हुआ था, जिसमें मजदूर संगठन समिति के अलावा दर्जनों संगठन शामिल थे और इसके बैनर तले कई जगह सफल कार्यक्रम भी हुए, जिसमें आरडीएफ के केन्द्रीय अध्यक्ष व प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हुए।

इन कार्यक्रमों की सफलता से झारखंड की तत्कालीन भाजपा की सरकार के हाथ-पांव फूलने लगे और फिर से सत्ता द्वारा मजदूर संगठन समिति को माओवादियों का फ्रंटल संगठन कहा जाने लगा। इस बीच 9 जून, 2017 को मजदूर संगठन समिति का सदस्य डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या सीआरपीएफ कोबरा ने दुर्दांत नक्सली बताकर कर दिया। इसके खिलाफ गिरिडीह जिला में आंदोलन का ज्वार फूट पड़ा, जिसका नेतृत्व भी मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में बने ‘दमन विरोधी मोर्चा’ ने किया। यह आंदोलन गिरिडीह जिला से प्रारंभ होकर राज्य की राजधानी तक पहुंच गया, परिणामस्वरूप इस फर्जी मुठभेड़ की बात झारखंड विधानसभा से लेकर लोकसभा व राज्यसभा में भी उठी। 

संगठन का दफ्तर

मजदूर संगठन समिति के उपरोक्त दो कार्यक्रमों ने झारखंड सरकार की नींद हराम कर दी थी और अब बारी थी रूस की बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह की। झारखंड में इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ‘महान बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह समिति’ बनायी गई,  जिसमें मजदूर संगठन समिति के अलावा दर्जनों संगठन शामिल हुए। इस समिति के बैनर तले झारखंड में 17 जगहों पर शानदार कार्यक्रम आयोजित किये गये। इसका समापन 30 नवंबर, 2017 को रांची में हुए एक शानदार कार्यक्रम के जरिये हुआ, जिसमें मुख्य वक्ता के बतौर प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि वरवर राव शामिल हुए थे। 

मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन महासचिव केन्द्रीय कामरेड बच्चा सिंह बताते हैं कि इन तीनों कार्यक्रमों से झारखंड सरकार विचलित हो गई और उसने मजदूर संगठन समिति के खिलाफ साजिश करना प्रारंभ कर दिया। जिसका परिणाम 22 दिसंबर, 2017 को बिना किसी नोटिस या पूर्व सूचना के अचानक झारखंड गृह विभाग के प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे व निधि खरे ने प्रेस कांफ्रेंस के जरिये भाकपा (माओवादी) का फ्रंटल संगठन बतलाकर मजदूर संगठन समिति पर झारखण्ड सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी।

मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन केन्द्रीय सचिव रघुवर सिंह बताते हैं कि प्रतिबंध की घोषणा के बाद आनन-फानन में हमारे सारे कार्यालयों को सीज कर दिया गया। हमारे दर्जनों नेताओं पर काला कानून यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल में बंद कर दिया गया। हमारे यूनियन के तमाम बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिये गये। हमारे कई नेताओं के व्यक्तिगत बैंक अकाउंट भी फ्रीज कर दिये गये। सबसे दुखद तो यह रहा कि मजदूरों का फ्री इलाज करने वाले ‘श्रमजीवी अस्पताल’ को भी दवा समेत सीज कर दिया गया। वैसे तो हमारे सभी नेता जमानत पर छूटकर जेल से बाहर आ गया हैं, लेकिन अभी भी हमारे दर्जनों नेताओं के व्यक्तिगत बैंक अकाउंट फ्रीज हैं। श्रमजीवी अस्पताल समेत सभी कार्यालय सीज हैं।

संगठन के तत्कालीन केन्द्रीय उपाध्यक्ष सह बोकारो थर्मल शाखा के तत्कालीन अध्यक्ष कामरेड रज्जाक अंसारी कहते हैं कि बोकारो थर्मल में मजदूर संगठन समिति के गठन के बाद यहां के डीवीसी के पावर प्लांट में कार्यरत सप्लाई मजदूरों की स्थिति में काफी सुधार हुआ। पहले यहां पर सप्लाई मजदूरों से अधिकारी अपने घर का काम करवाते थे, उन्हें केन्द्र सरकार के द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती थी और ना ही उन्हें रहने का क्वार्टर मिलता था। स्थानीय लोगों को यहां काम भी नहीं मिलता था, लेकिन मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में हुए मजदूरों के आंदोलन के द्वारा मजदूरों को सम्मानजनक जिंदगी मिली।

इन्हीं की बातों को आगे बढ़ाते हुए बोकारो थर्मल शाखा के तत्कालीन कोषाध्यक्ष संजय तुरी कहते हैं कि हमलोगों ने लड़ाई के जरिए ही समय-समय पर बोनस का लाभ भी मजदूरों को दिलवाया, लेकिन जब मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लग गया, तो मेरे घर-परिवार के लोग भी काफी डर गये, क्योंकि मेरे नाम पर भी मुकदमा दर्ज हो गया था।

मजदूर नेता रामचंद्र महतो कहते हैं कि जब संगठन पर प्रतिबंध लगा, तो मजदूरों में मायूसी छा गयी लेकिन ठेकेदार व मैनेजमेंट काफी खुश हो गये। वे मजदूरों का शोषण करने लगे, तब हम लोगों ने ‘मजदूर एकता संघर्ष समिति’ बनाया, लेकिन उसे मैनेजमेंट कोई महत्व नहीं देता था क्योंकि वह रजिस्टर्ड नहीं था। फलस्वरूप, 2019 में हम लोग ‘झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन’ से जुड़ गये और मजदूरों के हक-अधिकार की आवाज उठाते रहे। अब जबकि हमारा संगठन प्रतिबंधन मुक्त हो गया है, हम लोग फिर से अपनी यूनिट बनाएंगे और मजदूर आंदोलन को एक नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे।

गिरिडीह जिला के मधुबन के रहने वाले व मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन नेता द्वारिका राय कहते हैं कि जब हमें पता चला कि हमारे संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया है, तो मुझे लगा कि मेरी मां ही मर गयी है। कमोबेश, यहां के सभी मजदूरों को यह एहसास हुआ कि उन्होंने अपना अभिभावक खो दिया है। मजदूर संगठन समिति के प्रतिबंधित होते ही मधुबन के जैन कोठियों द्वारा मजदूरों का शोषण प्रारंभ हो गया। सभी कोठी/संस्था में मजदूरों की मजदूरी घटा दी गयी, मजदूरों की छंटनी प्रारंभ कर दी गयी। मुझे भी नौकरी से निकाल दिया गया। पुलिसिया आतंक भी कम नहीं था, यहां से कई नेताओं की गिरफ्तारी हुई, तो कई लोगों का वारंट निकला। सभी लोगों को फरार हो जाना पड़ा। मेरे नाम पर भी मुकदमा दर्ज हुआ, बाद में मुझे उच्च न्यायालय से एंटीसिपेटरी बेल मिला।

मजदूर संगठन समिति के मधुबन शाखा के तत्कालीन सचिव थानूराम महतो कहते हैं कि कोरोना काल में ‘श्रमजीवी अस्पताल’ में लगे ताले को देखकर रोना आ जाता था। उस समय लोग इलाज के अभाव में मर रहे थे और मजदूरों के अस्पताल में रखी दवाइयां सड़ रही थीं।

बोकारो थर्मल स्थित पावर प्लांट में काम करने वाले मजदूर मोती तुरी कहते हैं कि संगठन पर प्रतिबंध लगने के बाद हम लोग बेसहारा हो गये थे, लेकिन अब फिर से सहारा मिल हो गया है। अब मजदूरों में खुशी और शोषकों में मातम छाएगा।

मजदूर संगठन समिति से जुड़े युवा रंजीत कुमार कहते हैं कि जब संगठन पर प्रतिबंध लगा, तो दोस्त-रिश्तेदार सभी मुझसे दूरी बनाने लगे थे। अखबारों में छपने वाली नकारात्मक खबरों को देखकर सभी को विश्वास होने लगा था कि हमारे संगठन के ऊपर लगाये गये सभी आरोप सही हैं, लेकिन जिस दिन से यह फैसला आया है, मैं सीना चौड़ा कर दोस्तों व रिश्तेदारों से कहता हूं कि देखो हम लोग सही थे और हमारी जीत हुई है।    

मजदूर संगठन समिति के तत्कालीन केन्द्रीय महासचिव बच्चा सिंह बताते हैं कि हमारे जनपक्षीय कार्यक्रमों से खार खायी झारखंड की तत्कालीन भाजपा सरकार ने ‘विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन’ के केन्द्रीय संयोजक कामरेड दामोदर तुरी को भी मजदूर संगठन समिति का नेता बतलाकर निशाने पर ले लिया। उन पर भी काला कानून यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया और इनका भी व्यक्तिगत अकाउंट फ्रीज कर दिया। ये भी जमानत पर जेल से छूट तो गये हैं, लेकिन इनका व्यक्तिगत अकाउंट अभी भी फ्रीज ही है।

वे बताते हैं कि पुलिस ने हमारे सभी कार्यालयों को ताला तो लगा दिया, लेकिन उसकी देख-रेख नहीं की। फलस्वरूप, हमारे गिरिडीह कार्यालय के गेट व खिड़की, बोकारो थर्मल कार्यालय की चारदीवारी के दोनों गेट व कई खिड़की को उखाड़कर कोई ले गया। मजदूरों ने पाई-पाई जोड़कर कार्यालय का निर्माण किया था, उसका हर्जाना कौन देगा!

कामरेड बच्चा सिंह रांची उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि झारखंड सरकार की इस तानाशाही भरे फैसले के खिलाफ हम लोग 9 फरवरी, 2018 को ही रांची उच्च न्यायालय में रीट दाखिल किये थे, जिसपर 4 साल के बाद फैसला आया है। अब जल्द से जल्द सरकार हमारे सभी साथियों पर लगे फर्जी मुकदमों को वापस ले, हमारे सभी कार्यालयों पर लगे तालों को खोले व हमारे संगठन के साथ-साथ हमारे नेताओं के बैंक अकाउंट को भी चालू करे। ऑर्डर का सर्टिफाईड कॉपी मिलते ही हम लोग सभी जिला के डीसी व एसपी को ऑर्डर की कॉपी देते हुए कार्यालय व बैंक अकाउंट खोलने की मांग करेंगे।

(रुपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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