लोकसभा चुनाव 2024: भाजपा ने संदेशखाली के मुख्य मुद्दे को पीछे कर सिर्फ यौन उत्पीड़न पर जनता से मांगा वोट

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संदेशखाली। लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले पश्चिम बंगाल का छोटा सा कस्बा संदेशखाली राष्ट्रीय स्तर की सुर्खियां बटोर रहा था। इसके पीछे राज्य की सत्तारूढ़ टीएमसी का एक स्थानीय नेता पर टापू की महिलाओं के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा। तब अखबारों में प्रकाशित हुआ कि तृणमूल नेता शेख शाहजहां और उसके साथी महिलाओं को डरा-धमका कर उनका रेप कर रहे हैं।

तृणमूल कांग्रेस के नेता पर यह आरोप जनवरी के महीने में लगता है, टापू की महिलाएं मुंह में कपड़ा बांधे हुए आंदोलन कर रही थी। इस खबर ने देश-दुनिया की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इससे ठीक पहले संदेशखाली में जमीन वापसी औऱ लीज के पैसों के लिए आम लोग आंदोलनरत थे। मामला बहुत साफ था स्थानीय नेताओँ ने अपनी गुंडागर्दी के दम पर लोगों की जमीन को या तो कम दाम में खरीदा या फिर लीज पर लेकर पैसा नहीं दिया।

यौन उत्पीड़न के पीछे छूट गया जमीन का मुद्दा

बीजेपी को आम चुनाव-2024 से ठीक पहले एक मुद्दा मिल गया और उसने यौन उत्पीड़न को चुनावी मुद्दा बनाया। देश के अलग-अलग हिस्सों में भी इसका खूब प्रचार किया गया। पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल में अपनी पहली चुनावी सभा बारासात में की और संदेशखाली की कथित पीड़िताओँ से भी मिले। लेकिन जमीन के मुद्दे पर कुछ नहीं बोलें।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता गया बीजेपी ने जमीन के मामले को पीछे छोड़ दिया जो संदेशखाली का मुख्य मुद्दा है। भाजपा ने सिर्फ यौन उत्पीड़न के मुद्दे को हवा दी।

लीज का पैसा नहीं दिया

जनवरी के महीने में संदेशखाली ब्लॉक वन में लोगों ने उत्तम सरदार, शिबू हाजरा और शेख शाहजहां द्वारा जमीन लीज पर लेने और उसका पैसे नहीं देने और फर्जी तरीके से जमीन अपने नाम करा लेने को लेकर प्रदर्शन किया। स्थानीय लोगों के अनुसार आंदोलन में किसी भी राजनीतिक पार्टी की कोई भी दखलअंदाजी नहीं थी। लेकिन जैसे-जैसे इसकी खबर लोगों तक पहुंची बीजेपी और लेफ्ट के लोगों ने आंदोलनकारियों का साथ देना शुरू किया।

संदेशखाली पश्चिम बंगाल के सुंदरवन हिस्से में आने वाला टापू है। जो बाकी जगहों से कटा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। यहां गाड़ियां भी वही चलती हैं जो आसानी से नाव से इस पार से उस पार जा सकें। नदी से जल की कई धाराएं दिखाई देती हैं।

मछली पालने के लिए खेती की जमीन पर तालाब

नाव से उतरते ही नीले रंग की सरकारी बिल्डिंग दिखाई देती हैं। यहां से शुरु होता है संदेशखाली का सफर। चुनावी माहौल के बीच सभी पार्टियों के झंडे तो दिखाई देते हैं। लेकिन लोगों में उत्साह नहीं दिखा। कोई कुछ कहना नहीं चाहता। लोगों ने मन बना लिया है कि वह सीधा वोट करेंगे।

जनचौक की टीम ने जमीन को लिए आंदोलनरत लोगों से मिलने की कोशिश की। कई लोग अभी भी इस आस में हैं कि उन्हें लीज का पैसा मिल जाएगा। लेकिन इस बारे में मीडिया के सामने बोलने वाले लोग बहुत कम हैं। खासतौर पर महिला उत्पीड़न के मामले में कोई कुछ बोलने के तैयार नहीं था।

धोखे से जमीन नाम करवा ली

जमीन के मामले में अभी भी लोग बोल रहे हैं और आस में है कि कुछ अच्छा होगा। मोनती सरदार उनमें से एक है, जिसकी 27 बीघा जमीन को सात साल पहले सिराजुद्दीन शेख ने धोखे से अपने नाम करवा लिया और आजतक केस जिला अदालत में चल रहा है।

मोनती के अनुसार जमीन हड़पने के इस काले धंधे में वह और उसका परिवार पिछले सात साल से डर के साए में जी रहा है। उसके अनुसार सात साल पहले सिराजुद्दीन ने जमीन के कागजात ठीक कराने के नाम पर उससे सारे कागजात लिए। परिवार के कई बार बोलने के बाद भी उसने वापस नहीं किया। इसके बाद उन्होंने जमीन के बारे में बीएलआरओ ऑफिस से पता किया तो मालूम चला कि 27 बीघा जमीन सिराजुद्दीन शेख ने अपने नाम कर ली है।

इसके बाद ही शुरु हुआ उत्पीड़न का खेल जिसके कारण उसे अपना घर छोड़कर आज एक झोपड़ी बनाकर भाईयों के पास रहना पड़ रहा है। पति रिक्शा चलते हैं। वह कहती हैं कि केस करने के बाद हमें तरह-तरह की धमकियां मिलने लगी। जान बचाने के लिए हमलोग यहां आकर रहने लगे। यहां भी उसके कुछ लोग केस को बंद करने की धमकियां देकर जाते रहे हैं।

लेकिन जनवरी में हुए इस आंदोलन ने हमें एक आस दी है कि हमें जमीन वापस मिल जाएगी। मैंने पूछा कोई राजनीतिक पार्टी भी इसमें शामिल थी। जवाब था नहीं, यह सिर्फ आम लोगों का आंदोलन था। जिसमें इतने सालों से प्रताड़ित होते लोगों की आवाज थी।

कुछ समय बाद यह आंदोलन राजनीतिक हो गया और मूल मुद्दा ही पीछे छूट गया। फिलहाल यहां के गुंडे लोग जेल में हैं। देखते हैं उन्हें कब सजा मिलती है।

संदेशखाली में कई ऐसे परिवार हैं जो जमीन से जुड़े मामले में पीड़ित हैं। किसी को लीज का पैसा नहीं मिला तो किसी की जमीन ही कम दाम पर ले ली गई। लोगों के बीच शेख ब्रदर्स और शिबू हाजरा और उत्तम सरदार का इतना खौफ था कि कोई उन्हें मना नहीं कर सकता था।

धमकाकर सस्ते में जमीन लेने का खेल

निमाई दास संदेशखाली में ही अपने परिवार के साथ रहते हैं और पानी का व्यवसाय करते हैं। उनकी नदी की उस पार की दो बीघा की जमीन को गुंडागर्दी के दम पर मात्र 50 हजार में शेख शाहजहां ने ले ली। निमाई हमें साल 2013 की पंचायत चुनाव के बारे में बताते हैं, वह कहते हैं कि साल 2013 में जब राज्य में ममता की सरकार थी तो संदेशखाली में लेफ्ट फ्रंट की पंचायत साथ-साथ पंचायत समिति और जिला परिषद में जीत हासिल की।

लेकिन यह जीत मात्र दो साल तक ही रही। तृणमूल के लोगों ने किसी तरह इसे समाप्त कर दिया और उसके लोग सभी जगह आ गए। यही से गुंडागर्दी का दौर शुरू हुआ। लोगों की जमीनें डरा धमकाकर कम दामों पर ले ली गई। खेती वाली जमीन को मत्स्य पालन वाली जमीन में तब्दील कर दिया।

उसी दौरान शाहजहां शेख ने एक शाम मेरी मां को जमीन के कागजात लेकर बारासात जाने को कहा। मैंने उनसे पूछा आपलोगों ने जाने से मना नहीं किया? वह हंसते हुए कहते हैं इतनी हिम्मत किसी में नहीं थी। हमारे साथ और 17 लोग थे अगर मना कर देते तो पता नहीं क्या हो जाता। दो बीघा जमीन का मात्र पचास हजार दिया।

उसके बाद लीज पर भी जमीन उत्तम सरदार ने ली। कुछ साल तक तो पैसा दिया उसके बाद पिछले तीन-चार साल से एक पैसा नहीं मिला। जबकि एक साल का 60 हजार बनता था।

संदेशखाली में चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी हैं। इसमें मत्स्य पालन किया जाता है। अब यह भी कारगर नहीं है। इसका कारण है मिट्टी का खराब हो जाना और मछलियों को बीमारी हो जाना। अब यह धंधा भी घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

लाभ के लिए जमीन उजाड़ना

इस बारे में संदेशखाली ब्लॉक 2 के सीपीआईएम के सेक्रेटरी सुभाष सरदार का कहना है कि संदेशखाली में जंगल को काटकर जमीन तैयार की गई है। यहां धान अच्छा होता था। लेकिन कुछ लोगों ने सिर्फ अपने लाभ के लिए इसे पूरी तरह उजाड़ दिया है।
वह बताते हैं कि आज से लगभग दस से बारह साल पहले यहां मत्स्य पालन की चर्चा हुई थी। हमें पता था इससे किसानों का फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा। इसलिए हम लोगों ने लोगों को इसके बारे में समझाने की कोशिश की।

सुभाष सरदार

लेकिन व्यापारियों ने अपने फायदे के लिए किसानों को समझाया कि इससे उन्हें बहुत फायदा होगा। जबकि इससे फायदा सिर्फ व्य़ापारियों को ही होने वाला था। अंत में वही हुआ किसानों के खेत भी खराब हो गए और पैसा भी नहीं मिला।

संदेशखाली के हाल के दृश्य के बारे में वह बताते हैं कि आज नहीं तो कल यह बात बाहर आनी ही थी। जहां तक भाजपा का सवाल हैं उन्हें जमीन के मुद्दे को भी तव्वजो देना चाहिए था।

वहीं संदेशखाली की खबरों की बात करें तो पहले भाजपा ने आरोप लगाया कि संदेशखाली में तृणमूल नेताओं द्वारा महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। उसके दो महीने बाद टीएमसी ने एक स्टिंग ऑपरेशन कर यह बताया कि यह सारी बात गलत है। भाजपा ने अपने फायदे के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया है।

अब इस बात का असर संदेशखाली में देखने को मिल रहा है। यहां लोगों के मन में स्टिंग ऑपरेशन को लेकर डर है। हमने बीजेपी ऑफिस में बात करनी चाही तो उन्होंने पहले तो स्टिंग ऑपरेशन और फिलहाल के माहौल को देखते हुए बात करने से ही मना कर दिया है। लेकिन जब हमने कहा कि हमें वीडियो नहीं चाहिए तब वह बात करने के लिए तैयार हुए।

भाजपा आंदोलन में शामिल नहीं

बशीरहाट लोकसभा के वाइस प्रेसिटेंड बिप्लव दास से हमने स्टिंग ऑपरेशन के बारे में पूछा तो उन्हें एक लाइन में जवाब दिया। टीएमसी ने लोगों को डरा धमकाकर ऐसा किया है। यहां आदिवासी लोगों को तंग किया जा रहा है।

हमने पूछा आपलोगों ने जमीन के मुद्दों को ज्यादा क्यों नहीं उठाया। वह कहते हैं कि भाजपा ने इस मुद्दे को पहले दिन से ही उठाया है। जिसके कारण उनकी जमीन अब लीज से छूट पाई है।

भाजपा ने संदेशखाली वाले आंदोलन को हाईजैक कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है क्या संदेशखाली की जनता को इससे कोई राहत मिल पाएगी?

वह कहते हैं कि यह आंदोलन भाजपा का नहीं बल्कि आम लोगों का था। जिसमें तरह-तरह से प्रताड़ित किए गए लोग शामिल थे। भाजपा की एंट्री तो इसमें बहुत दिन बाद हुई। यहां तक की शुभेंदु अधिकारी को कोर्ट से अनुमति लेने के बाद यहां एंट्री मिली। यह पूरी तरह से सताए हुए लोगों का आंदोलन था जिसमें भाजपा शामिल नहीं थी।

निमाई दास

निमाई दास का भी यही कहना है हमने भाजपा को समर्थन नहीं किया। लेकिन उस वक्त हमारे पास भाजपा और लेफ्ट के अलावा दूसरा कोई दरवाजा भी नहीं था। टीएमसी के लोगों के खिलाफ हमने जमीन वाले मुद्दे पर आंदोलन कर एक दरवाजा बंद कर दिया था और बचना भी जरुरी थी। उस वक्त भाजपा और लेफ्ट के लोगों ने हमारा साथ दिया। इसलिए आज लोग इनके साथ हैं।

कानूनी कार्रवाई हो रही है

फिलहाल टीएमसी इन सबके बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं है। संदेशखाली से टीएमसी के ब्लॉक प्रेसिडेंट दिलीप मल्लिक का कहना है कि जमीन के मामले में जो कुछ भी हुआ उसमें कानूनी कार्रवाई हो रही है। जिन पर जनता ने आरोप लगाए थे वह जेल में हैं और लीज पर ली गई जमीन भी वापस मिल गई है।

मैंने पूछा क्या पीड़ितों को पैसा दिलाने में पार्टी मदद करेगी? जवाब था इसमें पार्टी क्या कर सकती है। सभी लोग जेल में हैं वापस आने पर ही पता चलेगा। पैसा मिलेगा की नहीं। पार्टी का इसमें कोई रोल नहीं है। यह जनता का उनसे आपसी मामला है। लेकिन हमारी कोशिश रहेगी की लोगों को पैसा दिलाने में उनकी मदद की जाए।

170 लोगों की जमीन शामिल है

जनवरी के महीने में जब यह आंदोलन शुरू हुआ तो इसमें कई लोगों ने हिस्सा लिया। जिसमें कुछ नौकरी पेशा और बुद्धिजीवी लोग भी शामिल थे। जो लगातार किसान मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे हैं। सुजोए दास उनमें से एक है जो संदेशखाली में प्राइमरी स्कूल के टीचर हैं। उनका साफ कहना था कि बहुत ज्यादा गुंडागर्दी बढ़ गई थी। अब इसका अंत तो होना ही था। यह बात सिर्फ पार्टी की नहीं है, बात है उन लोगों की जिनके पास इतनी पावर आ गई और उन्होंने लोगों को इस तरह से प्रताड़ित किया।

आंदोलन की शुरुआत के बारे में वह कहते हैं कि जनवरी के महीने में स्थानीय लोगों ने मिलकर इसे शुरू किया। धीरे-धीरे इसमें लोग जुटते गए। यह संदेशखाली के अलावा अन्य जगहों पर भी हो रहा है।

सिर्फ हमारे यहां 170 लोगों की लगभग 500 बीघा जमीन चली गई थी। मत्स्य पालन के नाम पर एक तो लोगों की जमीन खराब हो गई दूसरा उन्हें लीज का पैसा भी नहीं मिला। इन 20 दिनों में टीएमसी और बीजेपी दोनों के लोग आंदोलन को देखने आते थे लेकिन यह पूरी तरह से अराजनैतिक आंदोलन था।

स्थिति यह है कि लेफ्ट फ्रंट की सरकार के दौरान जिन लोगों को पट्टे पर जमीन दी गई थी उसे भी इन लोगों ने हड़प लिया।

पार्टी के नेताओं की पिटाई

संदेशखाली में इन लोगों का आतंक था। दूसरी पार्टी के लोगों को तो छोड़िए अगर अपनी पार्टी का भी कोई शख्स इनको किसी काम के लिए मना कर देता था तो उसकी भी पिटाई हो जाती थी।

दिलीप मल्लिक

मैंने इस बारे में टीएमसी के दिलीप मल्लिक से जानना चाहा। उनका भी दबी जुबान से ही सही लेकिन जवाब हां था। वहीं दूसरी ओर सीपीएम के सुभाष सरदार ने भी बताया कि अपनी पार्टी के कामकाज के दौरान शिबू हाजरा और उत्तम सरदार ने मुझे रास्ते पर पीटा। मेरे घर पर हमला कर किया। इन लोगों की पूरे इलाके में गुडागर्दी थी। उत्तम सरदार तो पूरे इलाके में घूमता रहता था ताकि किसी तरह से लोगों की जमीन को हड़पकर पैसा कमाया जा सके।

भाजपा के लिए फायदे का मामला

वहीं इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकरमणि तिवारी का कहना है कि महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का मामला भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन जमीन के मुद्दे से उन्हें कुछ खास लाभ नहीं मिलता। इसलिए महिलाओं पर ज्यादा फोकस किया गया। वजह थी बंगाल में महिला वोटर्स की संख्या।

पिछले विधानसभा चुनाव में 55 प्रतिशत महिला वोटर्स ने ममता बनर्जी को वोट किया था। इसी वोट बैंक पर सेंध लगाने के लिए ही भाजपा ने यौन उत्पीड़न के मामले को मुद्दा बनाया। लेकिन टीएमसी द्वारा आज स्टिंग ऑपरेशन के बाद से ही जनता भी असमंजस में है, क्या गलत है और क्या सही। फिलहाल इस मामले का बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिल रहा है।

(पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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