लोकसभा चुनाव: कांथी में अधिकारी परिवार और ममता बनर्जी के बीच सीधी लड़ाई, जनता प्रत्याशी नहीं पार्टी के नाम पर करेगी वोट

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कांथी। पश्चिम बंगाल में छठे चरण में सात सीटों पर 25 मई को वोट डाला जाएगा। जिसमें पूर्व मेदिनीपुर की दो सीटें कांथी और तुमलक पर सबकी नजर है। यही वह जगह है जहां से तृणमूल ने नंदीग्राम और सिंगूर की लड़ाई लड़कर 34 साल से राज कर रही वामफ्रंट की सरकार को हराकर बंगाल में अपनी सत्ता बनाई।

साल 2007 में हुए नंदीग्राम-सिंगूर आंदोलन में ममता बनर्जी के अलावा शुभेंदु अधिकारी मुख्य चेहरा बने थे। इससे पहले शिशिर अधिकारी (शुभेंदु अधिकारी के पिता) की पूर्व मेदिनीपुर जिले में अच्छी राजनीतिक पकड़ थी। पहले वह कांग्रेस में रहे और बाद में टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) में शामिल हो गए।

साल 2009 में पहली बार टीएमसी ने कांथी सीट जीती

साल 2009 में जिस वक्त बंगाल में वामफ्रंट की सरकार थी, शिशिर अधिकारी ने सात लाख से अधिक वोट पाकर कांथी सीट टीएमसी के नाम कर दी थी। जबकि साल 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी बंगाल की सत्ता में काबिज हुई।

शुभेंदु अधिकारी

यहीं से शुरू हुआ अधिकारी परिवार का पूर्व मेदिनीपुर जिले में दबदबा। लेकिन साल 2020 में शुभेंदु अधिकारी का टीएमसी छोड़ भाजपा में शामिल होना और उसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों का भी साल 2022 तक भाजपा में शामिल होना अब जनता को रास नहीं आ रहा है। इस सीट पर टीएमसी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है।

जनचौक की टीम ने कांथी सीट का दौरा कर जानने की कोशिश की कि इस बार उनका मूड क्या है औऱ वे किसे जीतने का मौका देनेवाले हैं? उनका वोट पार्टी के नाम पड़ेगा या उम्मीदवार को देखकर? हमने 25 मई को होने वाले मतदान के लिए एक जायजा लिया।

कांथी के अलग-अलग जगहों पर पार्टियों के झंडों के साथ प्रत्याशियों की भी फोटो लगी हुई है। अत्यधिक गर्मी होने के कारण दोपहर में न कार्यकर्ता नजर आ रहे हैं न ही जनता। शाम को मौसम ढलने के साथ ही पार्टी कार्यकर्ता और प्रत्याशी नजर आने लगते हैं।

दिग्गज नेताओं ने किया प्रचार

कांथी में सीधी लड़ाई भाजपा और तृणमूल के बीच है। जिसमें भाजपा के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी के भाई सौमेंदु अधिकारी और टीएमसी की तरफ से उत्तम बारिक को मैदान में उतारा गया है।

उत्तम बारिक, टीएमसी प्रत्याशी

साल 2021 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सौमेंदु अधिकारी ने टीएमसी को छोड़ भाजपा का दामन थामा था। वहीं उत्तम बारिक पतावपुर से विधायक हैं।

कांटे की लड़ाई के बीच दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता कांथी में प्रचार करने आए हैं। 16 मई को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रोड शो किया और 22 मई को गृहमंत्री अमित शाह कांथी में सभा करके गए। यहां पर शुभेंदु अधिकारी का पूरा परिवार था और पीएम मोदी के आने की भी बात थी पर वे आए नहीं।

किसी समय टीएमसी का गढ़ कहे जाने वाले पूर्व मेदिनीपुर की कांथी सीट पर लोगों को अब अधिकारी परिवार पर भरोसा नहीं रहा। शुभेंदु अधिकारी इस वक्त पश्चिम बंगाल में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा हैं साथ ही नेता प्रतिपक्ष भी हैं। आए दिन अपने राजनीतिक बयानों के कारण राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं।

सौमेंदु अधिकारी, भाजपा प्रत्याशी

फिलहाल वह अपने भाई के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लेकिन जनता के बीच अब इनका क्रेज कम हो गया है। लोग मोदी की गारंटी पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।

नेता नहीं पार्टी पर भरोसा

कांथी की स्थिति को जानने के लिए हमने कुछ लोगों से बातचीत की। राजनीतिक दबाव और आए दिन होते झगड़ों के बीच जनता भी कुछ कहने से बचती नजर आई।

कांथी जाते वक्त एक व्यक्ति से मैंने पूछा कि प्रत्याशी के नाम पर वोट करेंगे या पार्टी के नाम पर? नाम न लिखने की शर्त पर उन्होंने कहा कि “यह क्षेत्र तृणमूल का गढ़ रहा है। भले ही अधिकारी परिवार भाजपा में चला गया हो, फिर भी टीएमसी यहां अच्छी स्थिति में है। मेरे हिसाब से लोग पार्टी के नाम पर वोट करेंगे क्योंकि प्रत्याशी तो कभी भी किसी भी पार्टी में चले जा सकते हैं। जैसा कि साल 2020 में हुआ था”।

कर्मोकांतो मन्ना एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते हैं। वह कहते हैं “हम लोगों ने भाजपा को साल 2019 में भी वोट किया था। जब अधिकारी परिवार इसमें शामिल नहीं हुआ था। हमारे लिए प्रत्याशी की कोई अहमियत नहीं है”।

कर्मोकांतो मन्ना, स्थानीय दुकनदार

प्रत्याशियों का क्या है आज यहां कल वहां, ये लोग सिर्फ अपना ही लाभ देखते हैं। जहां लाभ होता है नेता वहीं चले जाते हैं। अधिकारी परिवार ने तृणमूल में रहते हुए कई घोटाले किए हैं। अब टीएमसी को ही चोर कह रहे हैं। सभी एक जैसे हैं।

यह स्थिति कांथी के कई लोगों की हैं। जो अधिकारी परिवार के नाम पर नहीं बल्कि भाजपा के नाम पर वोट करने की बात कह रहे हैं।

इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो साल 2007 के सिंगूर-नंदीग्राम आंदोलन के दौरान लेफ्ट के समर्थक या कार्यकर्ता थे।

सूरजोकांता उनमें से एक हैं। जो एक वक्त में लेफ्ट के कार्यकर्ता रहे, लेकिन अब भाजपा के समर्थक बन गए हैं। साल 2019 में हुए लोकसभा के दौरान उन्होंने सीपीएम को वोट दिया था। उनका कहना है कि “मैं तो राममंदिर और भाजपा के विकास के नाम पर वोट करुंगा न कि अधिकारी परिवार के नाम पर”।

सूरजोकांता मन्ना, भाजपा समर्थक

मैंने लेफ्ट छोड़ने का कारण पूछा तो सूरजोकांता ने साफ कहा वह मोदी के विकास के काम से प्रसन्न हैं। इसलिए उन्होंने भाजपा को ज्वाइन कर लिया।

कल्याणकारी योजना ममता का सहारा

अधिकारी परिवार के दबदबे के बीच ममता सरकार की कल्याणकारी योजना भी लोगों के बीच वोट का अहम मुद्दा है। जिसमें लक्ष्मी भंडार योजना ने पूरे राज्य में अहम रोल निभाया है।

पश्चिम बंगाल में महिलाएं दीदी की बड़ी समर्थक रही हैं। साल 2021 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान दीदी ने राज्य में 25 साल से ऊपर की सामान्य वर्ग की महिला को 500 और अनूसूचित जाति, जनजाति समुदाय को 1000 देने का ऐलान किया था। चुनाव जीतने के बाद महिलाओं को यह राशि प्रतिमाह मिलती है।

महिलाओं को लुभाने के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दीदी ने इसकी राशि बढ़ाकर सामान्य महिलाओं के लिए एक हजार और अनुसूचित जाति, जनजाति की महिलाओं को 1200 देने का ऐलान कर दिया। ममता का यह मास्टर स्ट्रोक महिलाओं को बहुत पसंद आया है और जिसका सीधा असर चुनाव में देखने को मिलेगा।

महिलाएं ममता की समर्थक

नोमिता आचार्य का कहना है कि पिछली बार (साल 2019) उन्होंने शिशिर अधिकारी (टीएमसी) को वोट दिया था। इस बार तो फिलहाल कुछ कह नहीं सकती हूं।

हमने पूछा क्या आप दीदी के काम से खुश है? जबाव था, हां, दीदी ने बहुत कुछ किया है, महिलाओं को लक्ष्मी भंडार का एक हजार रुपया दिया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में चाहे जो भी राजनीतिक गतिविधियां चल रही हों, लेकिन कांथी में सीधी लड़ाई ममता बनर्जी और अधिकारी परिवार के बीच है। स्थिति यह है कि भाजपा कार्यकर्ता खुलेआम टीएमसी को चोर पार्टी कह कर पुकार रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी द्वारा कई मामलों में भ्रष्टाचार किया गया है। जिसके जवाब में टीएमसी के कार्यकर्ता अधिकारी परिवार को दलबदलू कह रहे हैं।

कार्यकर्ताओं में एक दूसरे को चोर साबित करने की होड़

प्रकाश मैतय्यी का इस बारे में कहना है कि भाजपा टीएमसी को चोर कह रही है जबकि सबसे बड़ा चोर तो अधिकारी परिवार है। बाप बेटे दोनों ने मिलकर लूटा है। उनका कहना है अधिकारी परिवार का टीएमसी को छोड़ देना पार्टी के लिए काफी मंगलकारी है। जिसके कारण एक बार फिर यह सीट तृणमूल जीतेगी। यह सीट टीएमसी की थी और उसकी ही रहेगी।

प्रकाश मैतय्यी

कांथी में बीजेपी और टीएमसी दोनों के समर्थक जोरों-शोरों से अपनी-अपनी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं। हर प्रत्याशी जनता को अपनी पार्टी द्वारा किए गए कार्यों को बता कर वोट की अपेक्षा कर रहा है।

भाजपा जहां एक ओर केंद्र की योजनाओं का बखान कर रही है। वहीं दूसरी ओर टीएमसी के लोग राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच प्रत्याशियों के चेहरे कहीं खो गए हैं।

तपन कुमार मैतय्यी का कहना है पिछले कुछ सालों में कांथी की सीट पर जो कुछ भी हुआ वह किसी से छिपा नहीं है। अधिकारी परिवार भाजपा में शामिल हो गया। शिशिर अधिकारी ने उम्र का हवाला देकर यहां से लड़ने से मना कर दिया है। इसलिए बेटे को टिकट दिलाई।

लेकिन जनता के बीच अब भी प्रत्याशी की नहीं बल्कि पार्टी की चर्चा ज्यादा है। लोग सीधे तौर पर भाजपा और तृणमूल की लड़ाई को देख रहे हैं। जहां एक तरफ दीदी है तो दूसरी तरफ मोदी।

कांथी में राजनीतिक बदले का चुनाव

कांथी में प्रत्याशी के बजाए पार्टी के नाम पर हो रहे इस चुनाव के बारे में वरिष्ठ पत्रकार मणिशंकर तिवारी का कहना है कि “पूर्व मेदिनीपुर में लोग शुभेंदु अधिकारी के परिवार को इसलिए पसंद करते थे क्योंकि वह तृणमूल में थे। लेकिन साल 2020 में भाजपा में जाने के बाद कुछ लोग भ्रमित हो गए, कुछ लोग टीएमसी के पार्टी में रह गए, बाकी कुछ छोटा हिस्सा भाजपा में आया था।

उनका कहना है कि अगर अधिकारी परिवार का कांथी सीट पर इतना रसूख होता, तो साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सारी सीटें जीतती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सात में से चार भाजपा ने और तीन टीएमसी ने जीती थी।

साल 2021 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए वह कहते हैं यह चुनाव कांथी में बदले का चुनाव है। जहां साल 2021 में ममता बनर्जी की हार का बदला शामिल है।

वहीं दूसरी ओर अधिकारी परिवार के लिए रसूख का मामला है। साल 2021 में शुभेंदु ज्यादा कुछ नही कर पाए थे क्योंकि उस वक्त वह नए-नए भाजपा में शामिल हुए थे। लेकिन अब तो वह बंगाल में भाजपा के नंबर वन के नेता है। अब उनके लिए और अधिकारी परिवार के लिए यह सीट एक अग्निपरीक्षा है।

पहले से ही भाजपा में थे

कांथी में भाजपा कार्यकर्ताओं में वे लोग ज्य़ादा हैं जो शुभेंदु अधिकारी के आने से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। इसमें ऐसे लोग भी शामिल है जो लेफ्ट से भाजपा की तरफ आए हैं। ऐसे में यह देखा गया कि भाजपा में शुभेंदु के अपने लोग कम हैं जो हैं वह भाजपा के अपने लोग हैं। जो भाजपा के कार्यकर्ता है न कि अधिकारी परिवार के।

भाजपा ने एक कार्यकर्ता ने नाम न लिखने की शर्त पर इस बात की पुष्टि करते कहा कि हमारे इलाके खुजुरी विधानसभा में ऐसे कार्यकर्ता है जो शुभेंदु अधिकारी के आने से पहले ही यहां काम कर रहे थे।

इसमें ऐसे लोग ज्यादा शामिल हैं जो लेफ्ट में थे और तृणमूल के अत्याचारों से परेशान हो गए थे। अब कार्यकर्ता पार्टी द्वारा दिए गए दायित्व को पूरा कर रहे हैं। उन्हें अधिकारी परिवार नहीं पार्टी के नाम पर काम करना है।

हाईकोर्ट में मामला लंबित

साल 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी को चैलेंज करते हुए नंदीग्राम से चुनाव लड़ा था। लेकिन ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ा। यह हार बहुत ही विवादित रहा। दीदी और शुभेंदु अधिकारी के बीच मात्र 1956 वोट का अंतर था।

पहले दीदी की जीत का ऐलान कर दिया गया था। उसके बाद शुभेंदु के जीत की घोषणा की गई। फिलहाल इस मामले में हाईकोर्ट में केस चल रहा है। जिसके फैसले का इंतजार सबको है।

इस बारे में मणिशंकर तिवारी का कहना है कि इस घटना के बाद से ही कांथी सीट पर लोकसभा चुनाव ममता बनर्जी की इसी हार का बदला लेने वाला चुनाव है। जहां टीएमसी ने अपना पूरा जोर लगा दिया है।

शुभेंदु अधिकारी बंगाल में भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। उनका दावा है कि मोदी की गारंटी और भाजपा के विकास के दम पर बंगाल में भाजपा को 35 सीटें मिलेंगी।

पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में 42 सीटों में भाजपा को 18 मिली थी। जिसमें कांथी की सीट तृणमूल के पास थी। अब तृणमूल का अधिकारी परिवार भाजपा में शामिल हो गया है और शुभेंदु का भाई सौमेंदु यहां मैदान में हैं। अब देखना है अधिकारी परिवार और दीदी के बीच कांथी की जनता किसके सर पर जीत का सेहरा पहनाएगी।

कांथी सीट पर जातियों का समीकरण देखा जाए तो क्षेत्र में 16,57,068 मतदाता हैं। जिसमें 70 प्रतिशत हिंदू आबादी, 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 0.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 14.59% मुसलमान हैं। इसमें 5.9% शहरी और 94.1% ग्रामीण आबादी है।

(बंगाल से पूनम मसीह की रिपोर्ट)

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