ग्राउंड रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव- वोट में निर्णायक भूमिका निभाने वाले गरीब समुदाय को न पानी मिल रहा और न मनरेगा का बकाया

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पुरुलिया (पश्चिम बंगाल)। “मैंने तो टीवी पर देखा था कि अब हर घर में पानी आएगा, लेकिन हमारे यहां तो एक पाइप लाइन भी नहीं आई है”।यह कहना है लचन महतो का जो पानी की समस्या से बहुत परेशान हैं। पुरुलिया लोकसभा क्षेत्र के बाघमुड़ी विधानसभा क्षेत्र झालदा ब्लॉक वन में रहने वाली लचन के घर में छह लोग रहते हैं। जिसमें तीन पुरुष दो महिलाएं और एक बच्चा है। जो पानी की समस्या से बेहद परेशान हैं। गर्मी के दिनों में तो कुआं भी सूख जाता है।

यह स्थिति देश के कई हिस्सों की है। जहां जल शक्ति मंत्रालय की “जल जीवन मिशन के हर घर नल जल योजना” के अंतर्गत देश के ग्रामीण हिस्सों के हर घर तक पीने के पानी की आपूर्ति करना। इसकी शुरुआत साल 2019 में पीएम मोदी द्वारा की गई थी। इसकी घोषणा के पांच साल बाद भी लोगों तक पीने का पानी नहीं पहुंच पाया है।

यहां पानी कोई चुनावी मुद्दा नहीं

फिलहाल देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। सात चरणों में होने वाले चुनाव में पुरुलिया में छठे चरण में 25 मई को मत डाला जाएगा। जिसके लिए पीएम मोदी ने पुरुलिया में रोड़ शो भी किया।

जहां एक ओर देश के दिग्गज नेता जाति-धर्म, खानपान पर अपनी रैलियों में बात कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर आधारभूत सुविधा पानी पर कोई भी नेता बोलने को तैयार नहीं है।

पानी की इस स्थिति को जानने के लिए जनचौक की टीम ने पश्चिम बंगाल की दो लोकसभा सीटें आसनसोल और पुरुलिया का दौरा किया। यहां दोनों सीटें झारखंड के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। साथ ही आसनसोल औद्योगिक क्षेत्र है और पुरुलिया पश्चिम बंगाल का सबसे पिछड़ा हुआ जिला है।

अप्रैल की चिलचिलाती गर्मी में जनचौक की टीम पुरुलिया के झालदा ब्लॉक वन गई। जो पुरुलिया जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। यही स्थिति है मल्हडील गांव की। चारों तरफ सूखे खेतों के बीच एक तरफ अयोध्या की पहाड़ियां दिखाई देती हैं तो दूसरी ओर सूखे खेत। एक लंबी सड़क पार करने के बाद एक गांव की शुरुआत होती है। जिसमें 150 घरों के लिए दो पाड़े (मोहल्ला) हैं। यहां प्रत्याशी के लिए पानी कोई समस्या नहीं है।

गर्मी में कुएं भी सूख जाते हैं

गांव की शुरुआत पक्की सड़क और बगल में पड़े कूड़े से होती है। इस गांव में पानी को लेकर लोग बहुत परेशान हैं। कोई बाहरी व्यक्ति अगर इनसे पानी के बारे में बात करता है तो इन्हें लगता है कि वह इसका निवारण करने आया है।

गर्मी में कुएं भी सूख जाते हैं

पुरुलिया पश्चिम बंगाल के उन जिलों में शामिल है जहां हर साल 45 डिग्री से ऊपर तापमान जाता है। अप्रैल के महीने में जब उत्तर भारत में गर्मी की शुरुआत होती है यहां कुआं, तालाब, नदी, नालों का पानी सूख जाता है। जिसका अतिरिक्त भार महिलाओं पर पड़ता है।

यही बात हमें लचन ने भी बताई। मूल रुप से कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाली इस महिला के अनुसार घर के पुरुष सुबह थोड़ा बहुत पानी ला देते हैं तो ठीक, वरना उनके काम पर जाने के बाद मुझे और मेरी बहू को ही पानी लाना पड़ता है।

लचन के घर में रसोई में एक बाल्टी में पानी रखा हुआ था। इसके अलावा कहीं भी पानी नहीं था। उसने अपने आसपास दो छोटे और एक बड़े कुएं को दिखाते हुए कहा कि यह लोगों के निजी कुएं हैं। जिसमें अप्रैल के महीने तक पानी सूख जाता है। अगर हमारी किस्मत अच्छी हुई तो किसी साल अप्रैल में थोड़ी बहुत बारिश हो जाने से थोड़ा पानी कुएं में रह जाता है। लेकिन मई के महीने से तो टैंकर के भरोसे ही जीना पड़ता है। गांव में इतने घर हैं कि सभी के लिए पानी बड़ी मुश्किल से मिल पाता है।

लचन महतो

इस गांव में सभी परिवार पानी की कमी के कारण परेशान हैं। हमें किसी भी योजना के बारे में नहीं पता लेकिन इतना जानते हैं कि सरकार ने सभी घरों में नल लगाने की बात कही है। जिसको लेकर लोगों ने स्थानीय बीडीओ को कई पत्र भी लिखे हैं।

सरकारी सर्वे हुआ लेकिन पानी नहीं आया

इसी गांव के जगत महतो को पानी की समस्या के कई सरकारी सर्वे की जानकारी है। वह बताते हैं कि आठ साल पहले बीडीओ गांव आए थे इस समस्या को देखने के लिए, उसके बाद सात सर्वे हो चुके हैं जिसमें सोलर सर्वे भी शामिल है। लेकिन पानी की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई।

गांव में कई दीवारों पर लगे पोस्टर पर विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों के नाम उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ वोट देने की अपील लिखी हुई है। जिसमें कांग्रेस के उम्मीदवार नेपाल महतो की चर्चा ज्यादा है। स्थानीय लोगों के अनुसार गांव में कांग्रेस का प्रभाव ज्यादा है। क्योंकि गांव का प्रधान भी कांग्रेस पार्टी का है।

राजनीतिक हिसाब से देखा जाए तो पुरुलिया लोकसभा सीट बीजेपी की है। ज्योतिर्लिंग महतो सांसद हैं। बाघमुड़ विधानसभा से सुशांत महतो विधायक हैं और गांव का प्रधान कांग्रेस का है।

गांव के कई घरों में महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती हैं। ज्यादातर लोग खेत मजदूरी करते हैं। बहुत कम लोगों के पास अपनी जमीन है। लचन के अनुसार जिस वक्त खेत या मजदूरी का सीजन कम रहता है उस वक्त घर के पुरुष राधा कृष्णा कीर्तन करने चले जाते हैं। जहां से उन्हें कुछ पैसे और सामान भी मिल जाते हैं।

गांव में हैंडपंप भी है लेकिन उसमें पानी नहीं आता है। जिसके कारण लोगों को पास की नदी में नहाने और पीने का पानी भी लेने जाना पड़ता है।

टैंकर से भी नहीं होती पूर्ति

बालिका महतो सिंगल महिला हैं जो अपने मायके में अकेली रहती हैं। आंगनवाड़ी में सहायिका के तौर पर काम करती हैं। वह कहती हैं कि गर्मी के दिनों में पानी की कमी के कारण कुएं तो सूख जाते हैं। उस समय गांव में टैंकर आता है, पर वह भी रोज नहीं आता।

घर के कुओं में भी पानी की किल्लत

हमने उनसे पूछा, टैंकर कौन भेजता है? वह कहती हैं हम लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। दीदी भेज रही हैं या मोदी भेज रहे हैं। हमारी तो बस यही मांग है कि जैसे आस पास के गांव में पानी पहुंच गया है हमारे यहां भी पानी आए।

मैंने इस मामले में झालदा ब्लॉक वन के बीडीओ को फोन किया। लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई जवाब नहीं दिया।

वहीं दूसरी ओर पुरुलिया के मौजूदा सांसद ज्योर्तिमय सिंह महतो से पूछा कि वह किन मुद्दों पर जनता से वोट मांग रहे हैं तो उनका जवाब था मोदी जी के विकास के नाम पर। भाजपा की सरकार के दौरान जो विकास हुआ पुरुलिया में जनता उससे खुश है। लेकिन पानी की सुविधा मौजूदा सांसद के लिए कोई मुद्दा नहीं है।

25 मई को होने वाले मतदान के लिए पुरुलिया में जोर-शोर से प्रचार चल रहा है। पानी के मामले में कहीं कोई बात नहीं है।

इस बारे में पुरुलिया के वरिष्ठ पत्रकार पीके राजहंस का कहना है कि पुरुलिया में पानी एक बड़ी समस्या रही है। चुनाव के दौरान प्रत्याशी इस मुद्दे को उठाते हैं। जिसके कारण पुरुलिया के कई इलाकों में पानी की समस्या कम हुई है।

छोटा नागपुर का पठार होने के कारण यहां पठारी भूमि बहुत ज्यादा है। जिसके कारण पानी का कोई ठोस स्रोत नहीं है। छोटी-छोटी नदियों में बारिश के दिनों में पानी भर जाता है और गर्मी आने तक नदी भी सूख जाती है।

खासकर झालदा ब्लॉक की स्थिति ज्यादा खराब है। यह पूरी तरह से पठारी हिस्से में आता है। जिसके कारण यहां पानी की पहुंच थोड़ी मुश्किल है।

मनरेगा का बकाया नहीं मिला

पश्चिम बंगाल में कोरोना के बाद से ही मनरेगा की मजदूरी लोगों को नहीं मिली है। जिसके कारण पिछले साल फरवरी के महीने में दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसान मजदूर संगठन के बैनर तले देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था।

पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा का पैसा नहीं दिए जाने के आरोप-प्रत्यारोप पर पिछले साल केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि “पश्चिम बंगाल में बहुत भ्रष्टाचार है इसे रोकने के लिए पैसा रोका गया है। जिस दिन केंद्र सरकार बंगाल की व्यवस्था में पारदर्शिता को लेकर संतुष्ट हो जाएगी। वैसे ही पैसा जारी कर दिया जाएगा”।

केंद्रीय मंत्री के इस बयान के बाद भी इस साल फरवरी में चुनाव की तारीख का ऐलान होने से पहले राज्य सरकार ने प्रदेश के 30 लाख मनरेगा मजदूरों को बकाया भुगतान करने का ऐलान कर दिया।

इससे पहले तृणमूल महासचिव और सांसद अभिषेक बनर्जी ने टीएमसी के सांसद और  नेताओं के साथ मिलकर दो अक्टूबर को राजघाट पर काली पट्टी सिर पर बांधकर केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को पैसा नहीं दिए जाने का विरोध भी किया था।

फरवरी के महीने में राज्य सरकार द्वारा 2700 करोड़ रुपये मनरेगा मजूदरों के खाते में ट्रांसफर करना शुरु किया गया। जिसकी आखिरी तारीख 11 अप्रैल रखी गई।

लेकिन पुरुलिया लोकसभा क्षेत्र में कई ऐसी आदिवासी और दलित महिलाएं हैं जिन्हें उनकी मजदूरी का पैसा नहीं मिला। इनमें कुछ ऐसी थीं जो दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन भी करने गई थीं।

बेला नायक 25 साल की है। उनके दो बच्चे हैं। पति दिहाड़ी मजदूरी करता है। खुद बीड़ी बनाती हैं और एक हजार बीड़ी बनाने पर 140 रुपये मिलते हैं। प्रतिदिन वह बमुश्किल 700 से 800 बना पाती हैं।

बेला बताती हैं कि उन्होंने 15 दिन काम किया था। उसका पैसा नहीं मिला न ही दोबारा काम मिला है। अब मजबूरी में कम पैसों में बीड़ी बना रही हूं। महंगाई बहुत है पति की 250 रुपये की दिहाड़ी से घर चलाना मुश्किल है।

पैसा न मिलने के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं कि “हमें बीडीओ द्वारा यह जानकारी मिली कि सभी लोगों को बकाया मिलेगा, बीडीओ गांव के पंचायत भवन में आए थे और दस्तावेजों की जानकारी देते हुए बकाया मिलने का आश्वासन देकर गए थे, लेकिन 11 अप्रैल तक हमें एक पैसा भी नहीं मिला है”।

बढ़ती महंगाई पर चिंता जताते हुए वह कहती हैं कि स्थिति यह है कि अगर हम लोग बीमार पड़ जाते हैं तो दवाई के लिए भी पैसे नहीं रहते। राशन कार्ड बंधक रखकर पैसा लेना पड़ता है। ऐसा करने से हमारा राशन भी किसी और को मिल जाता है। इसी लालच में लोग राशन कार्ड बंधक रख लेते हैं।

इझक गांव में कई लोग हैं जिन्हें मनरेगा का बकाया नहीं मिला है। जिसके कारण लोग अब बीड़ी के धंधे या दिहाड़ी मजदूरी पर जाने को मजबूर हैं।

महिलाओं की संख्या इसमें ज्यादा है। बिलासी नायक (59 ) ने साल 2019 में काम किया है। लेकिन अब तक बकाया नहीं है। वह इसी आस में है आज नहीं तो कल पैसा मिलेगा।

वह कहती हैं मैं तो विधवा हूं अकेली रहती हूं, एक सरकारी पेंशन मिलती है। बाकी जीवन का गुजारा करने के लिए बीड़ी का काम करती हूं।

गांव का प्रधान सिर्फ कहता है कि पैसा आएगा लेकिन कब आएगा इसका कुछ पता नहीं है।

बिलासी की ही तरह गांव की अन्य महिलाएं भी इसी आस में हैं कि पैसा आ जाए तो उससे कुछ काम किया जाए।

आराथी नायक का यही कहना है कि मैं दो साल से बकाए पैसे का इंतजार कर रही थी कि एक कमरा बनाऊंगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बेटे की शादी की तो एक ही कमरा था। अब हम लोग बाहर सोते हैं। ममता बनर्जी के ऐलान के बाद पैसे मिलने की थोड़ी उम्मीद जगी थी। लेकिन 11 अप्रैल पार हो जाने के बाद यह उम्मीद भी खत्म गई है।  

आराथी नायक

हमने इस बारे में इझक गांव के प्रधान सिदेश्वर महतो से बात की तो उन्होंने माना कि इझक में कई लोगों को पैसा नहीं मिला है। इसका कारण पूछने पर वह कोई सही जवाब नहीं दे पाते हैं। उनका कहना है कि चुनाव खत्म होने के बाद दोबारा से यह प्रक्रिया शुरु होगी। जिसके बाद इन लोगों को बकाया दिया जाएगा। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह प्रक्रिया कब शुरु होगी।

चुनावी माहौल के बीच हमने पैसे न मिलने के पीछे राजनीतिक कारण को जानने के कोशिश की। एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि झालदा का इलाका कांग्रेसियों का है। यहां कुछ गांव में प्रधान भी कांग्रेस के हैं। यहां कांग्रेस का दबदबा है। इसलिए बकाया राशि मिलने पर इन्हें तव्वजो नहीं दिया गया है।

(पुरुलिया से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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