आज के दौर में और भी ज्यादा प्रासंगिक हैं डॉ अंबेडकर के विचार

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हमारे देश में कुछ ऐसे महापुरुष और मार्गदर्शक पैदा हुए हैं जो अपने समय से आगे की सोच रखते थे। महानायक भीमराव अंबेडकर भी ऐसे ही दूरदर्शी मनीषियों में से थे। वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। उनके विचार और भी मानीखेज हो गए हैं।

आज बाबा साहेब सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्‍व में प्रासंगिक हैं। अमेरिका ने उन्‍हें ‘सिम्‍बल ऑफ नॉलेज’ तो बहुत पहले ही मान लिया था। हाल ही उनकी एक भव्‍य मूर्ति की भी स्‍थापना की, जिसे ‘स्‍टैच्‍यू ऑफ इक्‍वलिटी’ कहा गया है।

बाबा साहेब की मानवतावादी विचारधारा का लोहा सारी दुनिया मान रही है। पर दुखद है कि हमारे अपने देश में ही बाबा साहेब के विचारों की अवहेलना की जा रही है। उन्‍हें दबाया जा रहा है। ऐसे में बाबा साहेब की मानवतावादी विचारधारा और भी जरूरी हो जाती है।

इस बार संविधान दिवस 26 नवंबर 2023 को एक अच्‍छी बात यह हुई के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ की पहल पर सु्प्रीम कोर्ट में बाबा साहेब की प्रतिमा लगाई गई। वरना तो यहां कानून के मंदिरों में महाराज मनु की मूर्ति दिख जाती थी।

कहां है सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र?

डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा के अपने बहुचर्चित भाषण में इशारा किया था,”भारत आज एक अंतर्विरोधों भरे जीवन में प्रवेश कर रहा है, जहां राजनीति में बराबरी होगी, लेकिन सामाजिक-आर्थिक जीवन में गैर-बराबरी। यह अंतर्विरोधों भरा जीवन हम कब तक जी पाएंगे? यह तय है कि यदि हम लंबे समय तक सामाजिक लोकतन्त्र से वंचित रहे तो हमारा राजनीतिक लोकतन्त्र भी खतरे में पड़ जायेगा।”

गौरतलब है कि हाल ही में 4 दिसंबर 2023 को दिल्‍ली में दलितों के अधिकारों और उनके सामाजिक न्‍याय के लिए अनेक संगठनों ने मिलकर दिल्‍ली के जन्‍तर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया और दलितों की मांगों को लेकर राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन सौंपा।

ये संगठन दलित अधिकारों की बात कर रहे थे। दलितों के लिए सामाजिक न्‍याय की मांग कर रहे थे। दलितों के लिए भूमि की मांग कर रहे थे। साथ ही वे निजीकरण का विरोध कर रहे थे। निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग कर रहे थे। और ये सब इसलिए कि दलितों को भी संविधान प्रदत्त समान अधिकार मिलें। उन्‍हें भी मानवीय गरिमा के साथ जीने का हक मिले यानी बराबरी का हक मिले। उन्‍हें न्‍याय मिले। स्‍वतंत्रता मिले।

स्‍पष्‍ट है कि यदि देश के सभी लोगों ने संविधान को अपनाया होता। बाबा साहेब की विचारधारा को अपनाया होता तो आज दलितों को अपने अधिकारों के लिए, न्‍याय के लिए जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने की आवश्‍यकता नहीं होती।

हमारे देश में जाति व्‍यवस्‍था शोषणकारी व्‍यवस्‍था बन गई है जिसके कारण कथित उच्‍च जाति के दबंग दलितों को शोषण कर रहे हैं। भले ही बाबा साहेब जाति का विनाश चाहते थे पर आज की हकीकत यह है कि जाति की खाई दिनोंदिन और गहरी होती जा रही है। ऐसे में भला सामाजिक लोकतंत्र की बात कैसे की जा सकती है।

इसके लिए दलितों को दिल्‍ली तक आकर अपने अधिकारों और न्‍याय के लिए आवाज उठानी पड़ रही है। आंदोलन करना पड़ रहा है।

जहां तक आर्थिक लाेकतंत्र की बात है तो सवर्णों और दलितों के बीच आर्थिक असमानता निरन्‍तर बढ़ रही है। आज के हालात ऐसे हैं कि अमीर और अमीर होता जा रहा है तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है। सच्‍चाई तो यह है कि देश के 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की 90 प्रतिशत संपत्ति है। संपत्ति और संसाधनों का यह असमान वितरण अमीर और गरीब के बीच और अधिक दूरियां बढ़ा रहा है।

संविधान पर हावी होता मनुविधान

संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबा साहब ने सही अर्थों में लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना संविधान के माध्यम से की। इसलिए हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र का रक्षक है। पर आज जैसे हालात पैदा हो रहे हैं ऐसे में अंबेडकर की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है।

आज हमारी अभिव्यक्ति की आजादी पर ही हमला हो रहा है। हम एक अघोषित इमरजेंसी जैसे दौर से गुजर रहे हैं। संवैधानिक मूल्यों का हनन हो रहा है। धर्मनिरपेक्ष देश में “हिन्दू राष्ट्र” को बढ़ावा दिया जा रहा है। लोकतांत्रित मूल्यों की बात करने वालों को देशद्रोही करार दे दिया जाता है।

साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। मॉब लिंचिंग की वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है। जातिगत भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। दलितों के साथ मार-पीट तो आम बात है ही। उनके ऊपर पेशाब कर अमानवीयता की सारी हदें पार की जा रही हैं। मानवता को शर्मशार किया जा रहा है।

विगत 23 नवंबर 2023 को उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर जिले के असरोपुर गांव के दलित किशोर को सवर्ण जाति के दो लोगों ने पहले जाति सूचक गालियां दी फिर बुरी तरह पिटाई कर दी। आरोप है कि किशोर ने पानी मांगा तो उन्‍होंने किशोर के मुंह पर पेशाब कर दिया।

अंबेडकर को पूजने की नहीं पढ़ने की जरूरत

आज बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर अनेक राजनेता उनका गुणगान कर रहे हैं। महिमा मंडन कर रहे हैं। दरअसल, आज के समय में बाबा साहेब को पूजनीय बनाने का चलन चल पड़ा है। उन्‍हें पूजने वाले तो बहुत हैं पर उनकी विचारधारा पर चलने वाले बहुत कम। जबकि बाबा साहब ने स्‍वयं इस तरह की प्रवृति का विरोध किया था। उन्‍होंने कहा था- “मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्‍छा है, मेरे बताए हुए रास्‍ते पर चलो।”

आज के दिन ये राजनेता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को “पूज्यनीय” तो बताएंगे पर उनके विचारों को नहीं अपनाएंगे। वे बाबा साहेब का चित्र लगाएंगे, उस पर माल्यार्पण करेंगे, उसके आगे नतमस्तक भी होंगे, पर उनके विचारों पर नहीं चलेंगे। असल में वे संविधान के मूल्यों को ताक पर रख कर मनुविधान को लागू कर रहे हैं। बाबा साहेब ने शिक्षा को सर्वाधिक महत्व दिया था और ये राजनेता उन्हें उनके शैक्षिक अधिकार से वंचित कर रहे हैं।

इसी प्रकार उन्होंने दलितों के उद्धार की ही नहीं बल्कि दलितों की आजादी, समानता, न्याय और सम्मान के अधिकार की बात की। यही वजह है कि आज भी दलितों के आत्मसम्मान का संघर्ष सीधे उनसे प्रेरणा पाता है।

और संक्षेप में अगर कहा जाए तो बाबा साहब अंबेडकर ही हैं जिन्होंने भारत के सबसे ज्यादा दमित और अन्याय सहने वाले दलित एवं स्त्री समुदाय के सम्मान की बात की। उनके लिए लड़ाइयां लड़ीं। आंदोलन किए। इसलिए वे इस सदी के महानायक के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं।

इसलिए यह कहने में कोई अतिशोक्ति नहीं होगी कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने जिस मानवतावादी विचारधारा के लिए आजीवन लोगों को प्रेरित किया। वह आज भी प्रासंगिक है और जब तक समाज में भेदभाव, विषमता, असमानता और अन्‍याय रहेगा तब तक प्रासंगिक रहेंगे बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर।

(सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े राज वाल्‍मीकि का लेख।)

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