शासक वर्ग की हेजेमनी: शासक वर्ग के पास होता है उत्पादन के साधनों का स्वामित्व

Estimated read time 0 min read

शासक वर्ग मुट्ठी भर होता है, लेकिन वह बहुसंख्यक पर हर तरह से राज करता है। यह सवाल समाज के ढांचे और शासक वर्ग की शक्ति के स्रोतों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

शासक वर्ग का प्रभुत्व केवल आर्थिक या राजनीतिक ताकत के कारण नहीं होता, बल्कि वैचारिक, सांस्कृतिक और सामाजिक शक्ति के माध्यम से भी वह समाज के बड़े हिस्से पर अपनी पकड़ बनाए रखता है।

सवाल उठता है कि कैसे शासक वर्ग अपनी ताकत का इस्तेमाल करके समाज पर नियंत्रण बनाए रखता है और क्यों बहुसंख्यक वर्ग उनके इस प्रभुत्व को चुनौती देने में असमर्थ रहता है?

समाज में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व शासक वर्ग के पास होता है। उत्पादन के साधनों में ज़मीन, फैक्ट्री, मशीनरी और अन्य संसाधन शामिल हैं, जिनके माध्यम से समाज की आर्थिक गतिविधियां संचालित होती हैं।

जो वर्ग इन साधनों का मालिक होता है, वह न केवल उत्पादन पर, बल्कि श्रमिकों और बहुसंख्यक जनता पर भी नियंत्रण रखता है। चूंकि श्रमिकों के पास उत्पादन के साधनों पर अधिकार नहीं होता, उन्हें अपनी जीविका के लिए शासक वर्ग पर निर्भर रहना पड़ता है।

यह आर्थिक निर्भरता श्रमिकों को शासक वर्ग के अधीन बनाए रखती है। श्रमिक अपने श्रम को शासक वर्ग के लिए बेचते हैं, जबकि शासक वर्ग उनकी मेहनत से मुनाफा कमाता है।

इस प्रक्रिया में, शासक वर्ग आर्थिक शक्ति के आधार पर समाज के अन्य वर्गों को नियंत्रित करता है और अपनी स्थिति को बनाए रखता है।

शासक वर्ग केवल आर्थिक साधनों के माध्यम से ही नहीं, बल्कि राज्य की संस्थाओं का उपयोग करके भी अपनी सत्ता को बनाए रखता है। राज्य के विभिन्न अंग, जैसे कि न्यायपालिका, पुलिस, सेना और प्रशासनिक तंत्र, शासक वर्ग के हितों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं।

राज्य का मुख्य कार्य शासक वर्ग की प्रभुत्व को बनाए रखना होता है, चाहे इसके लिए बल प्रयोग करना पड़े या कानूनी ढांचे का सहारा लेना पड़े।

राजनीतिक प्रणाली भी शासक वर्ग के हितों की सेवा करती है। चुनावी राजनीति के माध्यम से शासक वर्ग अपने प्रतिनिधियों को सत्ता में लाता है, जो उनके हितों की रक्षा करते हैं।

इस प्रकार, राजनीतिक शक्ति का उपयोग करके शासक वर्ग अपने प्रभुत्व को बनाए रखता है और बहुसंख्यक जनता को नियंत्रित करता है।

शासक वर्ग का नियंत्रण केवल आर्थिक और राजनीतिक नहीं होता, बल्कि वैचारिक रूप से भी वह समाज पर अपना प्रभुत्व बनाए रखता है। समाज में प्रचलित विचारधारा अक्सर शासक वर्ग द्वारा बनाई और नियंत्रित होती है।

शिक्षा, मीडिया, धर्म और संस्कृति के माध्यम से शासक वर्ग अपने विचारों को समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाता है, जिससे लोग शासक वर्ग की सत्ता को स्वाभाविक और अपरिहार्य मानने लगते हैं।

यह वैचारिक प्रभुत्व या हेजेमनी इस बात को सुनिश्चित करता है कि बहुसंख्यक वर्ग शासक वर्ग की सत्ता को चुनौती न दे। शासक वर्ग अपनी विचारधारा को समाज में स्थापित कर देता है और लोग इस विचारधारा को अपने जीवन का सामान्य हिस्सा मानने लगते हैं।

इस प्रकार, शासक वर्ग वैचारिक रूप से भी बहुसंख्यक जनता पर राज करता है।

शासक वर्ग समाज में विभाजन की राजनीति का उपयोग करता है, ताकि बहुसंख्यक वर्ग एकजुट न हो सके। यह विभाजन जाति, धर्म, लिंग और अन्य पहचान आधारित समूहों के माध्यम से होता है। जब समाज के बहुसंख्यक वर्ग आपस में बंट जाते हैं, तो वे शासक वर्ग के खिलाफ संगठित होकर संघर्ष नहीं कर पाते।

इस प्रकार, शासक वर्ग बहुसंख्यक वर्गों के बीच आपसी संघर्षों को बढ़ावा देता है और अपने प्रभुत्व को और भी मजबूत करता है। विभाजन की इस राजनीति के चलते सत्ता पर शासक वर्ग की पकड़ बनी रहती है, जबकि बहुसंख्यक वर्ग आपस में ही संघर्ष करता रहता है।

बहुसंख्यक वर्ग के शोषण और उत्पीड़न के बावजूद, वे अक्सर शासक वर्ग के खिलाफ विद्रोह नहीं करते। इसका कारण यह है कि शासक वर्ग बहुसंख्यक वर्ग के भीतर एक “झूठी चेतना” विकसित कर देता है।

इस स्थिति में, बहुसंख्यक वर्ग अपनी वास्तविक स्थिति और शोषण के प्रति जागरूक नहीं होता। उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि उनके हालातों में सुधार संभव है, लेकिन वे इस सुधार के लिए शासक वर्ग की व्यवस्था पर ही निर्भर रहेंगे।

यह “झूठी चेतना” शासक वर्ग की वैचारिक शक्ति का परिणाम होती है। शासक वर्ग अपने विचारों और मूल्यों को इस तरह से समाज पर थोपता है कि बहुसंख्यक वर्ग उसे सही और स्वाभाविक मान लेता है। जब तक बहुसंख्यक वर्ग इस झूठी चेतना से बाहर नहीं निकलता, तब तक वे शासक वर्ग के प्रभुत्व को चुनौती देने की स्थिति में नहीं होते।

शासक वर्ग के प्रभुत्व को चुनौती देने का एकमात्र तरीका बहुसंख्यक वर्ग के भीतर “वर्ग चेतना” का विकास है। इसका अर्थ है कि बहुसंख्यक वर्ग अपने शोषण और उत्पीड़न के प्रति जागरूक हो और शासक वर्ग की सत्ता को चुनौती देने के लिए संगठित हो।

वर्ग चेतना का विकास तब होता है जब बहुसंख्यक वर्ग अपने वास्तविक हितों को समझता है और शासक वर्ग के खिलाफ संगठित होकर प्रतिरोध करता है। जब यह चेतना उत्पन्न होती है, तब ही शासक वर्ग के प्रभुत्व को समाप्त करने की संभावनाएं बनती हैं।

शासक वर्ग मुट्ठी भर होते हुए भी बहुसंख्यक पर इसलिए राज कर पाता है, क्योंकि उसके पास न केवल आर्थिक और राजनीतिक ताकत होती है, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व भी होता है।

वह बहुसंख्यक वर्ग को विभाजित करता है, उसकी चेतना को भ्रमित करता है और राज्य की संस्थाओं का उपयोग करके अपनी सत्ता को स्थायी बनाए रखता है।

शासक वर्ग का प्रभुत्व तब तक बना रहेगा, जब तक बहुसंख्यक वर्ग अपनी वास्तविक स्थिति के प्रति जागरूक नहीं होता और संगठित होकर प्रतिरोध नहीं करता।

(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author