विपक्ष रोजगार को राजनीतिक मुद्दा बना सका तो 2024 के चुनाव की तस्वीर बदल जाएगी

आज देश में रोजगार के सवाल पर स्थिति कितनी विस्फोटक हो चुकी है, इसे पिछले दिनों संसद के अंदर घुसकर और उसके बाहर युवाओं द्वारा किये गए प्रदर्शन से समझा जा सकता है।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार उसमें शामिल चारों युवा या तो बेरोजगार थे या रोजगार को लेकर परेशान थे। बंगलौर के डी मनोरंजन कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद पिता के साथ भेड़ पालन और पॉल्ट्री बिज़नेस में थे। लखनऊ के सागर शर्मा हायर सेकेंडरी के बाद आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पढ़ नहीं पाए। अब ऑटो रिक्शा चलाते थे।

हरियाणा की नीलम वर्मा संस्कृत से M Phil करने के बाद नौकरी की तलाश में थीं। उनकी मां के अनुसार नीलम कहती थीं- ‘इससे अच्छा तो मर जाना है। इतनी पढ़ाई के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही’। महाराष्ट्र के अमोल शिंदे कोविड लॉक-डाउन के कारण सेना भर्ती में शामिल होने से वंचित रह गए थे। अब पुलिस भर्ती की कोशिश में लगे थे।

युवाओं ने पुलिस को बताया कि वे बेरोजगारी से निपटने में सरकार की विफलता के खिलाफ अपना विरोध जताना चाहते थे। कथित ‘मास्टर-माइंड’ बताये जा रहे ललित झा के पुजारी पिता ने गुहार लगाई- “बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाना राष्ट्रद्रोह नहीं है। मेरा बेटा निर्दोष है।”

यह अनायास नहीं है कि संसद में घुसपैठ के मामले में विपक्ष की जो बहुत सामान्य और स्वाभाविक सी मांग थी कि गृहमंत्री बयान दें, उसे सरकार ने स्वीकार नहीं किया। उसके पीछे एक बड़ा कारण बेरोजगारी का इसके केंद्र में होना भी था।

आपदा में अवसर के सिद्धांतकारों द्वारा इस मौके का इस्तेमाल विपक्ष-विहीन संसद में बिना बहस किये चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और IPC, CrPC आदि में बदलाव के अत्यंत गम्भीर बिलों को पास करवाने के लिए किया गया। इस प्रकरण ने साफ कर दिया कि मोदी-शाह ने पूरी सत्ता अपने हाथ में संकेंद्रित कर ली है और व्यवहारतः संसदीय लोकतंत्र का निषेध कर दिया है।

यह भी गौरतलब है कि विपक्ष को देशद्रोही घोषित करने के लिए वे जिस राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल को राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, आतंकवाद से जोड़कर बड़ा मुद्दा बनाते रहे हैं, उस सवाल पर ही मोदी सरकार और उनके महाबली गृहमंत्री अमित शाह इस मामले में कटघरे में खड़े हैं। सिक्योरिटी ब्रीच भी भाजपा सांसद के पास पर हुआ था।

उससे बड़ी बात यह कि इस प्रकरण पर बहस होती तो राहुल गांधी समेत तमाम लोग जो बात संसद के बाहर उठा रहे हैं, वह संसद के पटल पर भी होती कि यह घटना मोदी-काल में देश में बेरोजगारी की विस्फोटक स्थिति और उससे युवा पीढ़ी में पैदा होती चरम हताशा की अभिव्यक्ति है।

जाहिर है चुनावों के ठीक पहले बेरोजगारी की इस भयावह तस्वीर का संसद के पटल पर उठना सरकार के लिए बेहद असुविधाजनक और नुकसानदेह हो सकता था।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़े दिखा रहे कि नाउम्मीदी के कारण पहले से कम लोग आज रोजगार की तलाश कर रहे हैं और उनमें से भी पहले की तुलना में बड़ा हिस्सा बेरोजगार रह जा रहा है।

2019 से नवम्बर 2023 तक देखा जाय तो 9.2% के साथ बेरोजगारी दर (UR) आज अपने सर्वोच्च मुकाम पर है। जबकि Labour Force Participation Rate (LFPR) FY23 में 39.5% रहा जो FY17 के 46.2% के बाद का निम्नतम स्तर है। पुरुषों में यह 66% है और महिलाओं में घटते हुए यह 8.7% के चिन्ताजनक स्तर पर पहुंच गया है। यानी महामारी के दौर के बाद भी न रोजगार में वृद्धि हुई, न रोजगार की तलाश करने वालों की। CMIE के अनुसार यह गिरावट कोविड के पहले से- पिछले 7 साल से जारी है, जिसे महामारी ने और बढ़ा दिया।

2022-23 में बेरोजगारी दर 7.6% रही जो महामारी से पहले के 2016-17 के 7.4% और 2017-18 के 4.7% से भी ऊपर है। सितम्बर की तिमाही के तुलनात्मक आंकड़ों में इस साल रोजगार दर ( ER ) 2016 से भी 7 पॉइंट नीचे, 7 साल के सबसे निचले मुकाम पर है। इस तिमाही की बेरोजगारी दर ( UR ) 8.1% के साथ 7 साल के उच्चतम मुकाम पर है- इसमें 2020 और 2021 का कोविड का दौर भी शामिल है।

यह स्वागतयोग्य है कि रोजगार का सवाल 2024 के आम चुनाव के पूर्व बड़ा सवाल बनता जा रहा है।

18 दिसम्बर को जवाहर भवन नई दिल्ली में संयुक्त युवा मोर्चा की मीटिंग में रोजगार के सवाल पर देशव्यापी अभियान चलाने और आम चुनाव में बेरोजगारी के सवाल को राजनीतिक विमर्श के केंद्र में लाने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई।

मीटिंग में संयुक्त युवा मोर्चा के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी मौजूद थे।

संयुक्त युवा मोर्चा ने तय किया कि मोर्चा द्वारा तैयार रोजगार-एजेंडा को विपक्षी दलों को भेजा जाएगा और उसे उनके प्रोग्राम में शामिल करने की मांग की जाएगी। समर्थन के लिए समाज के विभिन्न तबकों के बीच जाने का भी निर्णय लिया गया। 

मीटिंग में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि देश में आजीविका का संकट गहराता जा रहा है लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार इसे हल करने को लेकर कतई गंभीर नहीं है, उल्टे भाजपा सरकारों द्वारा रोजगार सृजन और रिकॉर्ड सरकारी नौकरी मुहैया कराने के बढ़ा-चढ़ा कर दावे किए जा रहे हैं, जिनका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है।

मीटिंग में बेरोजगारी से त्रस्त होकर छात्रों व युवाओं की तेजी से बढ़ती सुसाइड की घटनाओं पर गहरी चिंता जताई गई। हाल में बेकारी के मुद्दे को लेकर देश का ध्यान आकृष्ट कराने के मकसद से युवाओं द्वारा संसद में किए गए प्रदर्शन में यूएपीए जैसी धाराएं लगाने को अनुचित बताते हुए संसद सत्र में चर्चा कर आजीविका संकट हल करने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की गई।

संयुक्त युवा मोर्चा के ऐजेंडा में प्रमुख रूप से रोजगार गारंटी कानून बनाने, रिक्त पड़े एक करोड़ पदों को भरने, आउटसोर्सिंग/संविदा व्यवस्था पर रोक, रेलवे, पोर्ट, बैकिंग-बीमा, कोयला, बिजली, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निजीकरण बंद करने, शिक्षा-स्वास्थ्य अधिकार और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ऊपर के एक फीसद अमीरों पर संपत्ति व उत्तराधिकार जैसे कर लगाने जैसे मुद्दे शामिल हैं।

इस एजेंडा को विपक्षी दलों के कार्यक्रम और घोषणापत्र में शामिल करने की मांग की जाएगी।

दरअसल, मोदी राज में अर्थव्यवस्था का जो चौतरफ़ा ध्वंस हुआ है, उससे समाज के सभी वर्ग- मेहनतकश, किसान, कर्मचारी-मजदूर, छोटे व्यापारी, छात्र-युवा सब गहरे संकट में हैं। चरम महंगाई के दौर में भीषण बेरोजगारी ने सबके रोजी-रोटी के लिए गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है।

विपक्ष रोजगार के सवाल को राजनीतिक मुद्दा बना सका तो 2024 के चुनाव की पूरी तस्वीर बदल सकती है। यह न सिर्फ देश के हर मेहनतकश का सवाल है बल्कि देश की युवा पीढ़ी, छात्र समुदाय, first-time voters का जो चुनावी दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण ब्लॉक है, सबसे बड़ा मुद्दा है।

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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