आंध्रा सीएम के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई से हटे जस्टिस ललित

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उच्चतम न्यायालय के जस्टिस यूयू ललित ने सोमवार को उन याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया जिनमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ न्यायपालिका, विशेषकर जस्टिस एनवी रमना पर आरोप लगाने के मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।

दरअसल उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठता क्रम में चीफ जस्टिस एसए बोबडे के बाद जस्टिस एनवी रमना हैं यदि किन्हीं कारणों से जस्टिस बोबडे के बाद जस्टिस रमना चीफ जस्टिस नहीं बनते तो फिर जस्टिस नरीमन बन सकते हैं। इसके बाद जस्टिस यूयू ललित का नाम है। विधिक क्षेत्रों में माना जा रहा है कि जस्टिस  ललित अपने को इस विवाद से अलग रखना चाहते हैं।

जस्टिस ललित ने कहा कि मेरे लिए मुश्किल है। वकील के तौर पर मैंने एक पक्ष का प्रतिनिधित्व किया था। मैं इसे उस पीठ के समय सूचीबद्ध करने के लिए आदेश पारित करूंगा जिसमें मैं नहीं रहूं। इस मामले को प्रधान न्यायाधीश के निर्णय के अनुसार यथाशीघ्र किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये।

जस्टिस ललित, जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ को तीन याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि रेड्डी ने न केवल न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगाते हुए प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे को पत्र लिखा, बल्कि एक संवाददाता सम्मेलन करके झूठे बयान भी दिए।

पीठ जगनमोहन रेड्डी द्वारा उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना को बदनाम’ करने वाली टिप्पणियां किये जाने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाने के लिये दायर तीन याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ये जनहित याचिकायें तीन अधिवक्ताओं- जीएस मणि, प्रदीप कुमार यादव और सुनील कुमार सिंह तथा गैर सरकारी संगठन एंटी करप्टशन काउन्सिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट ने दायर की हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि जस्टिस रमना के खिलाफ रेड्डी के आरोप निराधार हैं। याचिका में इस तथ्य को भी रेखांकित किया गया है कि जगनमोहन रेड्डी पर 20 से ज्यादा आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने छह अक्तूबर को अभूतपूर्व तरीके से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बोबडे को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उनकी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और गिराने के लिए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है।

तीन अलग-अलग याचिकाएं वकील जी. एस. मणि, वकील सुनील कुमार सिंह तथा ‘एंटी-करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट’ की ओर से दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा लगाये गये आरोपों की उच्चतम न्यायालय के पीठासीन या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली आंतरिक समिति से न्यायिक जांच कराने या सीबीआई सहित किसी अन्य प्राधिकार से जांच कराने का अनुरोध किया है।

अधिवक्ता सुनील कुमार सिंह ने अपनी याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया है कि चीफ जस्टिस बोबडे को छह अक्तूबर को न्यायमूर्ति रमना के बारे में कतिपय आरोप लगाने वाला पत्र भेजने के बाद सरकारी अधिकारी द्वारा इसे सार्वजनिक किये जाने के मामले में जगनमोहन रेड्डी को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाये। याचिका में कहा गया है कि रेड्डी के इस आचरण से जनता का विश्वास डगमगाया है। क्योंकि उनका यह आचरण और कुछ नहीं बल्कि हमारे देश में स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्थिर करने का प्रयास है।

याचिका में यह दलील भी दी गयी है कि रेड्डी के इस कृत्य की वजह से उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति से निबटने के लिये न्यायालय को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। याचिका में इस तरह की गैर जिम्मेदाराना गतिविधियों से निबटने के लिये दिशा निर्देश प्रतिपादित करने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में यह दलील भी दी गई है कि संविधान की अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अदालतों की अवमानना और मानहानि के संबंध में उचित प्रतिबंधों के अधीन है। याचिका में कहा गया है कि आज के समाज में, जहां मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा दिनों या घंटों के भीतर फैल सकती है, यह न्यायपालिका की छवि को प्रभावित कर सकता है और इसलिए न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास कम हो जाता है, जो कुछ दांव पर लगा है वह विश्वास है जिसे एक अदालत को लोकतांत्रिक समाज में जनता के लिए प्रेरित करना चाहिए। मुख्यमंत्री संविधान की शपथ और निष्ठा के तहत हैं और इस प्रकार न्यायपालिका का सम्मान करने के लिए बाध्य हैं। इसके अलावा, इस तरह के आरोप लगाने के लिए समय का चयन अत्यधिक संदिग्ध है क्योंकि माननीय न्यायाधीश लंबे समय से भारतीय न्यायपालिका और जनता की सेवा में हैं।

इसके पहले एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके प्रधान सलाहकार अजेय कल्लम के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने से इंकार करने के अपने निर्णय पर पुन: विचार करने से इंकार कर दिया था। अजेय कल्लम ने ही न्यायाधीशों पर गंभीर आरोपों के बारे में प्रधान न्यायाधीश को भेजा गया पत्र सार्वजनिक किया था। भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पांच नवंबर को एटार्नी जनरल से यह अनुरोध किया था। एटार्नी जनरल ने कहा था कि प्रधान न्यायाधीश को इस मामले की जानकारी है ओर ऐसी स्थिति में उनके लिये सहमति देना और इस मामले में प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने से रोकना अनुचित होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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