EXCLUSIVE: आजमगढ़ के गोधौरा में खाकीवर्दी ने रचा दरिंदगी और हैवानियत का नया इतिहास

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गोधौरा से लौटकर विजय विनीत

गोधौरा (आजमगढ़)। उत्तर प्रदेश पुलिस की दरिंदगी और हैवानियत भरे इतिहास में आजमगढ़ जिले की पुलिस ने एक और अध्याय जोड़ दिया है। 4 मई 2021 की शाम जहानागंज इलाके की करीब पांच सौ आबादी वाली गोधौरा दलित बस्ती में पुलिस ने जो नंगा नाच किया उसके खौफ से लोग अब तक नहीं उबर पाए हैं। इनका कुसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने पुलिस और प्रशासन की मनमानी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। बाद में करीब ढाई सौ पुलिस कर्मियों ने दलित बस्ती में पहुंचकर फायरिंग, लूटमार, तोड़फोड़ और आगजनी की। महिलाओं की इज्जत पर भी डाका डाला गया। आतताई खाकी वर्दी वाले महिलाओं के आभूषण ही नहीं, उनकी बकरियां, मुर्गे, बत्तख, बटेर तक लूटकर ले गए। पुलिसिया जुल्म के बाद गोधौरा दलित बस्ती से पालयन कर चुके लोग अभी नहीं लौटे हैं।

पुलिस की एकतरफा कार्रवाई के बाद जेल भेजे गए 38 लोग कुछ रोज पहले ही जमानत करा कर लौटे हैं। अभी चार लोग जेल में हैं। दलितों के बदन पर जख्मों के निशान अभी भरे नहीं हैं। कुछ लड़कियों और महिलाओं की हालत ऐसी है कि अभी तक वो चल-फिर पाने में असमर्थ हैं। फिलहाल दलित बस्ती में मरघटी सन्नाटा और रोती-विलखती दलित महिलाओं का करुण क्रंदन है। दलित महिलाओं ने पुलिसिया बर्बरता की जो कहानी सुनाई है वह दिल दहला देने वाली है। पुलिस जुल्म के शिकार कन्हैया कुमार राव कहते हैं, “दलित बस्ती में पुलिस वाले रोज आते हैं और जेल भेजने का डर दिखाकर दलितों की बेटियों और महिलाओं पर जुल्म-ज्यादती का पहाड़ तोड़ते हैं। यह सिलसिला काफी दिनों से चल रहा है। बस्ती के ज्यादतर लोग अपनी बहन-बेटियों की इज्जत  बचाने के लिए गांव से पलायन कर गए हैं।”

दर्दनाक दास्तान

गोधौरा दलित बस्ती में पुलिसिया तांडव के दो महीने बाद आठ जुलाई को हम पहुंचे। पहले तो अजनबी चेहरों को देखकर गांव के लोग सहमकर अपने घरों में दुबक गए। बाद में हमने अपना परिचय दिया तो कुछ लोग निकलकर बाहर आए। कुछ बच्चे भी हमारे साथ हो लिए। इनमें छोटे-छोटे वो बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें पुलिस वालों ने अकारण पकड़ लिया था और तीन दिनों तक जहानागंज थाने में यातनाएं दी थीं। हम जिस घर में जाते, महिलाओं की आखों से बेबसी के आंसू छलकने लगते। छोटे-छोटे बच्चे अपनी माओं को रोते हुए उदास आखों से निहारते रहे। माहौल में पूरी निस्तब्धता थी। कुछ के दरवाजे पर मवेशी बंधे थे, जिन्हें देखकर लगता था कि कई दिनों से उन्हें पेट भर चारा नहीं मिला है। हमने महिलाओं को हाल पूछा तो सभी ने अपना धीरज खो दिया और बेजार होकर रोने लगीं। कुछ देर बाद संयत होकर कहा, “अब तो घर में कुछ भी नहीं है। जो कुछ था सब पुलिस वाले ले गए।”  

हमारे पहुंचने की खबर गोधौरा और आसपास के गांवों तक फैल गई थी। इसलिए उस रोज पुलिस गांव में नहीं आई। जिला पंचायत के चुनाव में जबरिया हराई गई दलित प्रत्याशी जमुनती देवी जेल से लौटने के बाद अपनी जवान बेटी के साथ मंड़ई में उदास बैठी थीं। आस पास कई महिलाएं थीं, जिनके चेहरे की उदासी साफ-साफ पढ़ी जा सकती थी। इन औरतों की आंखों से ढुलक रहे आंसू ही सब कुछ बता देने के लिए काफी थे। हमने देखा कि गोधौरा कांड के सामने आजमगढ़ के पलिया गांव में दलितों का घर ढहाए जाने की घटना भी फीकी है।

पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इस क्षेत्र से लोकसभा में नुमाइंदगी करते हैं। हैरत की बात यह है कि दलित नेत्री मायावती के दूत गया चरण सिंह दिनकर (पूर्व विधायक) बीते दिनों पलिया आए और वहीं से लौट गए। उन्होंने गोधौरा के दलितों का दर्द सुनने की जहमत नहीं उठाई। दलित बस्ती के लक्ष्मण बताते हैं, “समूचा गांव बसपा का समर्थक रहा है। फिर भी बहनजी ने भी हमारी खबर नहीं ली। गांव में लगी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को भी पुलिस वालों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। आज तक प्रतिमा मरम्मत नहीं हो सकी है। पुलिस हमें रोज सता रही है। हमें इतना पीटा जा चुका है कि अब और लाठी खाने का दम नहीं है। अपना सब कुछ गंवा देने के बाद टूट से गए हैं हम लोग।”  

गोधौरा में दलितों पर अत्याचार क्यों?

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब आठ किमी दूर लबे रोड पर स्थित है गोधौरा गांव। जिला पंचायत के चुनाव में इस दलित बस्ती की जमुनती देवी ने पर्चा दाखिल किया। इनके बेटे कन्हैया ने अपनी मां के पक्ष में जमकर चुनाव प्रचार किया। जमुनती देवी का सीधा मुकाबला सूबे के वनमंत्री दारा सिंह चौहान की रिश्तेदार श्रीमती रंजना चौहान से था। जिला पंचायत की यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी। कन्हैया कहते हैं, “गिनती के बाद हमारी मां करीब 450 मतों से चुनाव जीत गईं थीं। इसके बवजूद नतीजा डिक्लेयर नहीं किया गया। बाद में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी आए और अचानक नतीजे को पलट दिया। रंजना के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें 950 मतों से विजयी घोषित कर दिया। री-काउंटिंग के लिए वो अफसरों से गुहार लगाते रहे, पर किसी ने नहीं सुनी।”   

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जमुनती देवी के पक्ष में आए नतीजे को पलटे जाने से इलाके के दलित गुस्से में आ गए और उन्होंने मतगणना स्थल के बाहर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। बाद में पुलिस ने लाठीचार्ज कर सभी को खदेड़ दिया। यह घटना चार मई के दिन की है। गोधौरा दलित बस्ती के लोग बताते हैं कि शाम सात बजे पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह, पुलिस क्षेत्राधिकारी सिद्धार्थ तोमर और इलाके के एसडीएम अपने साथ करीब दो सौ से अधिक पुलिस के जवानों को लेकर गांव में धमके। खाकी वर्दी वालों ने गांव को चारों ओर से घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। बदामी देवी कहती हैं, “पुलिस ने करीब 56 राउंड गोलियां दागी और आंसू गैस के अनगिनत गोले दागे। फायरिंग से समूची बस्ती थर्रा उठी। जान बचाने के लिए जिसे जहां मौका मिला भागने लगा।

कुछ लोगों ने गांव के बाहर खेतों में छिपकर अपनी जान बचाई। पुलिस ने करीब साढ़े तीन घंटे तक यहां जमकर नंगा नाच किया। जो जहां मिला उस पर लाठियां तोड़ी गईं। पुलिस अपने साथ गैता, रम्मा, टंगारी आदि लेकर आई थी। घरों के किवाड़ तोड़े गए। महिलाओं के आभूषण लूटे गए और बेशर्मी के साथ महिलाओं पर जुल्म व ज्यादती की गई। छोटे-छोटे बच्चों को पुलिस वालों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। बस्ती में चीख-पुकार मच गई। खाकी वर्दी वालों ने गांव में हैंडपंप तक उखाड़ दिया। खाने-पीने का सामन तहस-नहस कर दिया। कुछ बाइकें तोड़ दी गईं और करीब चालीस बाइकें पुलिस वाले लूट ले गए। महिलाओं के लाखों रुपये के जेवर भी पुलिस वालों ने लूट लिए। मन नहीं भरा तो लड़कियों और महिलाओं के साथ जोर-जबर्दस्ती की। बकरे, मुर्गे, बत्तख और बटेर तक पुलिस वाले ले गए।”   

लालमति सवाल खड़ा करती हैं, “हमें कोई आज तक बताने वाला नहीं है कि आखिर हमारा कुसूर क्या है? पुलिस की रिपोर्ट में कई अज्ञात लोगों के नाम हैं। इसी का वो फायदा उठा रही है। जहानागंज थाने से रोज पुलिस वाले आते हैं और यह कहकर हमसे मनचाही चीजों की मांग करते हैं कि तुम्हारा नाम काट देंगे, नहीं तो जेल भेज देंगे। पुलिस वाले वह सब डिमांड करते हैं जो हम नहीं दे सकते। हमारी भी इज्जत है। यहां उत्पीड़न और जुल्म-ज्यादती रोज का खेल है।”  

गोधौरा के लक्ष्मण बताते हैं, “बस्ती के तमाम छोटे-छोटे बच्चों को भी पुलिस वाले उठाकर ले गए। भूख से बिलबिलाते बच्चों को तीन दिनों तक अवैध तरीके से थाने में रखा गया। जमकर पीटा गया। कई लड़कियों के साथ थाने में कहर बरपाया गया। फिर रिश्वत वसूलने के बाद बच्चों को छोड़ा गया।”   

क्या है हकीकत?

ग्रामीणों के मुताबिक पहले दौर में कुल 38 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, जिनमें 13 औरतें और 20 पुरुष शामिल थे। करीब दस रोज पहले चार और लोगों को पुलिस उठा ले गई। इनके नाम रामबली, दलसिंगार, प्रभुनाथ और आनंद हैं। इन सभी को सिर्फ इसलिए जेल भेजा गया क्योंकि वे पुलिस को अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार नहीं थे। जेल से जमानत पर लौटने वालों में कन्हैया राव, लक्ष्मण, शहबल्ली, रोमी कुमार, योगेंद्र कुमार, गोली बौद्ध, संदीप कुमार, कतवारू राम, इंदल राम, अमन कुमार, दिलीप कुमार, दिनेश, जितेंद्र, बेचू प्रसाद, रविकांत, अवधेश विद्या सागर आदि हैं।

महिलाओं में जमुनती देवी, सुभावती, अनरमी, बदामी, रूना देवी, मीना, लालमति के अलावा किशोरी रविता, कविता, संध्या हाल में जेल से छूटकर आई हैं। कानपुर में रहकर बीटीसी की तैयारी कर रही खुशबू को भी पुलिस अपने साथ ले गई और जुल्म का पहाड़ तोड़ने के बाद जेल भेज दिया। ससुराल से कुछ रोज पहले मायके आई मीरा को भी पुलिस वालों ने नहीं बख्शा और उसे भी उठाकर ले गए। एक नाई की दुकान से बाल कटवाकर लौट रहे किशोर सूरज चौहान, सिंटू चौहान और गोलू को भी पुलिस ने पकड़कर जमकर पीटा, फिर जेल भेज दिया। करीब दो महीने के बाद ये सभी जमानत कराने के बाद घर लौटे हैं।

गोधौरा दलित बस्ती में गिट्टी बालू का कारोबार करने वाले रोमी कुमार कहते हैं, “उनकी कार भी पुलिस वाले ले गए थे। काफी मुश्किलों के बाद पुलिस को चढ़ावा चढ़ाने पर 45 दिन बाद वह अपनी गाड़ी हासिल कर सके। गांव वालों की लूटी गईं चालीस बाइकें कहां और किस हाल में हैं, किसी को पता नहीं है।”   

कैसा है आजमगढ़ पुलिस का चरित्र

गोधौरा बस्ती में दलितों के करीब डेढ़ सौ घर हैं। कोई ऐसा घर नहीं है, जिसमें पुलिस ने लूटपाट, तोड़फोड़, मारपीट और महिलाओं के साथ ज्यादती न की हो। घटना के समय एक दलित की दो बेटियां पढ़ाई कर रही थीं। पुलिस वालों को देखा तो अपने घर का शटर बंद कर दिया। पुलिस वालों ने गैंता से शटर को तोड़ डाला। दोनों लड़कियों पर जुल्म का पहाड़ तोड़ा। इनमें एक लड़की का हाल यह है कि वो आज तक चल-फिर नहीं पा रही है। पूरा बदन सूज गया है।

जेल में बंद रामबली के घर मे घुसकर पुलिस वालों ने पंखा, सिलाई मशीन, रसोई गैस का चूल्हा वगैरह तोड़ दिया और दो चारपाइयों में आग लगा दी। घर में रखे करीब दस हजार रुपये भी लूट लिए गए। 55 वर्षीय विकलांग भरत राम को भी पुलिस वालों ने नहीं छोड़ा। उन्हें बर्बर तरीके से पीटा। मौजूदा ग्राम प्रधान राम प्रसाद के घर का दरवाजा और खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले गए। इनके घर के पास स्थापित बाबा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा क्षतिग्रस्त कर दी गई। चंद्रिका का कूलर व टीवी तोड़  दिया गया। इनकी बहुओं और लड़कियों के गहने पुलिस वाले लूट ले गए। चंद्रिका बताते हैं, उनकी बेटी रुचि की शादी होने वाली थी। उसके सारे गहने लूट लिए। बेटी घर में पढ़ाई कर रही थी। पुलिस वालों ने खींचकर उसे पीटा। रुचि की मां रूना देवी को आंख से नहीं दिखता, फिर भी पुलिस वालों ने उन्हें दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। घर में कुछ भी सही-सलामत नहीं छोड़ा। टीवी, सिलाई मशीन, बाइक ही नहीं, घर की बहुओं के सारे गहने लूट ले गए पुलिस वाले।

रामजीत अभी तक पुलिसिया जुल्म से नहीं उबर पाए हैं। पुलिस ने इन्हें इतनी बुरी तरह से पीटा है कि वो चलने-फिरने लायक नहीं रह गए हैं। वो बताते हैं, “बेटी की शादी के लिए सात तोला सोने के हार के अलावा सोने की चूड़ियां, झुमका आदि गहने रखे थे। सब ले गए। बेटी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पुलिस की पिटाई से उसका बदन अब तक सूजा हुआ है। चल-फिर नहीं पा रही है। इनकी तेरह साल की नतिनी को तीन दिन तक अवैध तरीके से जहानागंज थाने पर रखा गया। पढ़ने वाली दोनों लड़कियों की स्कूटी भी पुलिस वालों ने तोड़ दी है।”   

बदामी और लाममति के दो टेम्पों को पुलिस वालों ने चकनाचूर कर दिया है। बदामी की बेटी रुबी के पांच थान गहने पुलिस वाले लूट ले गए। इनकी बेटी कुछ रोज पहले ही ससुराल से मायके आई थी। पुलिसिया तांडव से एक रोज पहले अनरमी की बेटी की शादी थी। सुबह बारात विदा हुई थी। शाम को पुलिस आ धमकी। शादी में शामिल होने के लिए रिश्तेदारी की कई महिलाएं आई थीं। पुलिस वालों ने अकारण पीटा और सभी के आभूषण लूट ले गए। रीता, महिमा ने बताया कि करीब तीन लाख रुपये के गहने पुलिस वाले ले गए। रुदल की दो बाइकें लूटी गईं। इनका टीवी तोड़ा गया। दो थान गहने भी ले गए आतताई पुलिसकर्मी।

बदन पर अपने पुराने जख्मो को दिखाते हुए अवधेश राम ने कहा, “हमारा हाल देखिए। बदन पर कोई जगह ऐसी नहीं, जहां पुलिस के लाठियों के निशान न हों। हालत इतनी खराब हो गई थी कि करीब एक महीने तक उन्हें जेल के अस्पताल में रहना पड़ा।”   

कतवारू समेत कई लोगों का परिवार गांव से पलायन कर गया है। विधवा राम दुलारी की तोड़ी गई टीवी, सिलाई मशीन और मुखलाल के घर के दरवाजे, हैंडपंप, कुर्सियां पुलिसिया जुल्म की कहानी कहते हैं। इनका मोबाइल और रुपये भी पुलिस वाले लूट ले गए। बलिया में पुलिस के कांस्टेबल सतीश कुमार के परिवार वालों को भी दरिंदे खाकी वालों ने नहीं बख्शा। इनकी बाइक तोड़ डाली और मां मुरती देवी को बुरी तरह पीटा। मिंटू राम की टीवी, सिलाई मशीन, हैंडपंप, साइकिल तोड़ी गई। इनके पांच थान जेवर और चार हजार रुपये लूट लिए गए। विनोद राम का टीवी, सिंगारदान और बाइक तोड़ी गई। 15 हजार नगद और दो माबाइल लूट लिया गया। विकलांग फिरतू राम का दरवाजा तोड़ा गया। फिरतूराम को सिर्फ पीटा ही नहीं गया, इनका सब कुछ तहस-नहस कर दिया गया। अब इनके पास खाने तक के लिए कुछ भी नहीं है। लाचारी में वो अपनी रिश्तेदारी में रह रहे हैं।

लालसा राम ने पुलिस द्वारा तोड़ी गई अपनी आलमारी, कुर्सी और सिंगारदान को दिखाते हुए कहा, “पुलिस ने जीना दूभर कर दिया है। घर के सारे कीमती सामान, मोबाइल से लेकर गहने तक से वो हाथ धो बैठे हैं।”  

सोहन राम अपनी तोड़ी गई टीवी और हैंडपंप का हत्था लेकर दिखाने चले गए। सामने धर्मेंद्र राम के शौचालय के टूटे दरवाजे को दिखाते हुए कहा, “हमारी दास्तां सुनेंगे तो दहल जाइएगा। हमारे साथ जो कुछ हुआ है वो हम नहीं बता सकते। हमारी भी इज्जत है। हम गरीब जरूर हैं, पर यह नहीं चाहते हैं कि हमारी इज्जत नीलाम हो जाए”। दलित बस्ती के युवक पंकज ने बताया, “दो साल पहले शादी में मिली बाइक पुलिस वालों ने तोड़ डाली है। उसे बनवाने तक के लिए पैसे नहीं हैं।”    

पुलिस ने कितनी लगाई हैं धाराएं

दिल दहला देने वाली इस घटना का काला पक्ष यह है कि पुलिसिया जुल्म के शिकार दलितों के खिलाफ अगले दिन पांच मई को अपराह्न 1.47 बजे जहानागंज थाने में मामला दर्ज किया गया। अपराध संख्या 0099 के तहत दर्ज मामले में दलितों के माथे पर इतने मुकदमे जड़े गए हैं, जितना पुलिस वालों के रोजनामचे में प्रचलित धाराएं मौजूद हैं। दलितों को जिन धाराओं में निरुद्ध किया गया है उनमें धारा-147, 148, 149, 323, 504, 506, 427, 341, 332, 353, 307, 188, 186,269, 336, 314 शामिल हैं। इनके अलावा अधिनियम सात के अलावा महामारी अधिनियम के तहत भी दो मामले दर्ज किए गए हैं।

गोधौरा का हर घर पुलिसिया जुल्म और ज्यादती की कहानी सुनाता है। पुलिसिया तांडव की कहानी इतनी लंबी है कि उसे लिख पाना बेहद कठिन है। पुलिस वाले सिर्फ आभूषण, मवेशी ही नहीं, गेहूं और चावल तक उठा ले गए। कई मड़इयों और गुमटियों में आग लगा दी। जेल से जमानत पर छूटे कन्हैया कुमार कहते हैं, “आजमगढ़ के एसपी सुधीर कुमार खुद गांव में आए थे और अपनी मौजूदगी में उन्होंने दलित बस्ती में तोड़फोड़, आगजनी और लूटपाट कराई। सीओ सिद्धार्थ तोमर, दरोगा संदीप यादव व योगेंद्र चारों दिशाओं में तांडव मचा रहे पुलिसकर्मियों को लूटपाट करने के लिए निर्देश दे रहे थे।”   

कन्हैया खुलेआम आरोप लगाते हैं, “सूबे के वन मंत्री दारा सिंह चौहान के इशारे पर दलितों पर जुल्म के पहाड़ तोड़े गए। सिर्फ गोधौरा ही नहीं, आस पास के  कई गांवों के दलितों को झूठे मामले में फंसाने के नाम पर सताया जा रहा है। अब तो जुल्म की इंतिहां हो गई है। किसके यहां न्याय की गुहार लगाएं। उनकी न मुख्यमंत्री योगी सुन रहे हैं और न ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती।” नतीजा यह है कि पुलिस वाले अब लोगों को डरा-धमकाकर अपने गुनाहों पर पर्दा डालने की जुगत में लग गए हैं।

कांग्रेस ने इस मसले को उठाया है, लेकिन असल मुद्दा पलिया बन गया है। गोधौरा की जुल्म ज्यादती तो किसी को दिखता ही नहीं। सच यह है कि आगजमगढ़ के पलिया की दलित बस्ती में सिर्फ चार घर ढहाए गए और गोधौरा में तो हर घर में लूटपाट व जुल्म-ज्यादती की पटकथा लिखी गई। कांग्रेस के प्रदेश संगठन सचिव अनिल यादव कहते हैं, “पहले गोधौरा और बाद में पलिया की दलित बस्तियों में गुंडागर्दी और डकैतों से बढ़कर उत्पात मचाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। दलितों के आंसू पोंछने के नाम पर मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश तक नहीं हुए। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रशासनिक जांच हो भी जाए तो उसका हस्र क्या होगा, यह पहले से ही स्पष्ट है, क्योंकि दलितों के घरों में आगजनी, लूटपाट और महिलाओं व बच्चों के साथ ज्यादती का क्रूर खेल खुद पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह की मौजूदगी में खेला गया।”

पलिया में दलितों पर अत्याचार की घटना के बाद पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह ने चुप्पी साध ली है। गोधौरा के मामले में पुलिस वाले कोई भी बयान देने से बच रहे हैं। एसपी का पक्ष जानने के लिए ट्वीट किया गया तो गोधौरा के बजाए पलिया की घटना के बाबत उनका जवाब उनके हैसटैग से हासिल हुआ।

जनचौक के लिए बातचीत करते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विश्व विजय सिंह ने कहा, “हमने गोधौरा के दलितों को साहस दिया है कि वो पुलिसिया जुल्म-ज्यादती के आगे कतई न झुकें। हमने भी गांव में जाकर देखा है कि यहां पुलिस वालों ने डकैतों को भी मात दे दिया है। यहां योगी सरकार की पुलिस का वो बदसूरत चेहरा भी दिख गया, जिस पर जितनी घृणा की जाए, उतना कम है। आजमगढ़ में दलितों पर ताबड़तोड़ हो रहे अत्याचार बेहद चौंकाने वाले हैं। यह भी स्पष्ट हो गया है कि डकैतों और गुंडों का सामना होने पर इस जिले की पुलिस भले ही दुम दबाकर अपना रास्ता नाप ले, गांवों और कस्बों में घर व बाजार से पकड़कर निरपराध लोगों पर जुल्म का पहाड़ तोड़ने के मामले में यहां खाकी वर्दी का कोई सानी नहीं है।”

गोधौरा में पुलिया अत्याचार के बाद आजमगढ़ की सभी दलित बस्तियों में आतंक और सनसनी का माहौल है। जुल्म और ज्यादती के शिकार दलितों की हालत देखने के बाद यह साफ हो चला है कि गोधौरा में पुलिस ने अत्याचार और जुल्म-ज्यादती की सभी सीमाएं तोड़ दी है। पुलिस ने अपनी कायरता को छिपाने के लिए यहां दलितों के साथ जो नंगा नाच किया है वह शातिर डकैतों से किसी मामले में कम नहीं है।

(लेखक विजय विनीत वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं। इनकी चर्चित पुस्तकें हैं ‘बनारस लाकडाउन’ और ‘बतकही बनारस की’। प्रेस में है इनका कहानी संग्रह ‘बनारसी इश्क’।)

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