Saturday, April 20, 2024

पॉक्सो में महिला पहलवान को सबूत देने की जरूरत नहीं: ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ बृजभूषण पर है 

नई दिल्ली। बालसंरक्षण  और साईबर अपराध के विशेषज्ञ एम. एच. जैदी के अनुसार पॉक्सो में महिला पहलवान को सबूत देने की जरूरत नहीं: ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ बृजभूषण पर है। बृजभूषण ने दंभ से कहा है कि “आरोप लगाने वालों से पहले दिन भी मैंने पूछा था, आज भी पूछता हूं, अब भी पूछता हूं। कब हुआ, क्या हुआ, कैसे हुआ और क्या-क्या हुआ? किसके साथ हुआ? गंगा में मेडल बहाने से मुझे फांसी नहीं होगी, पहलवान सबूत दें। अगर एक भी सबूत साबित हुआ तो बृजभूषण सिंह खुद फांसी पर लटक जाएगा’’। 

30 मई को ये बयान भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह ने दिया है। वह यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली एक नाबालिग समेत 7 महिला रेसलर्स को सबूत देने की चुनौती दे रहे हैं। वहीं, दिल्ली पुलिस ने कहा है कि सबूतों के आभाव में बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

एम. एच. जैदी के अनुसार पॉक्सो एक्ट धारा 29 और 30 के प्रावधानों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि  यौन अपराधों से अभियुक्त पर सबूत का उल्टा बोझ: अर्थात ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ होता है। ‘’इंडियन एविडेंस एक्ट 1872’’ के सेक्शन 101 में ‘बर्डन और प्रूफ’ के बारे में प्रावधान हैं। 

आमतौर पर मुकदमा करने वाले (प्रॉसिक्यूशन) पर क्राइम को साबित करने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन पॉक्सो एक्ट में दर्ज होने वाले केस गंभीर किस्म के अपराधों में आते हैं। इस कानून में धारा 29 और 30 में प्रावधान हैं, जिसमें ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ की जिम्मेदारी आरोपी पर होती है। मतलब उसे वे सबूत जुटाने होते हैं, जो उसे निर्दोष साबित कर सकें।

रेप मामलों में सेक्सुअल इंटरकोर्स होने की बात साबित होने पर यह बात आती है कि क्या उन संबंधों में जोर-जबरदस्ती थी? आईपीसी की धारा 376 (2) के तहत रेप मामलों में एविडेंस एक्ट की धारा 114-अ में संशोधन के बाद यह माना जाता है कि रेप पीड़िता की कंसेंट नहीं है। ऐसे में आरोपी के ऊपर ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ आ जाता है और उसे कोर्ट में यह साबित करना होता है कि वह निर्दोष है और उसने पीड़िता की कंसेंट से संबंध बनाए थे।

बृजभूषण सिंह पर एक केस पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किया गया है। पॉक्सो एक्ट के सेक्शन- 29 के तहत कुछ प्रावधानों में आरोपी यानी बृजभूषण को ये साबित करना होगा कि वह निर्दोष हैं। कई हाईकोर्ट के फैसले हैं, जिनके अनुसार पॉक्सो एक्ट की गंभीर धाराओं के तहत दर्ज मामलों में प्री ट्रायल यानी जांच शुरू होने से पहले और पोस्ट ट्रायल यानी जांच पूरी के बाद आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करना होता है। इस मामले में पुलिस अगर बृजभूषण सिंह पर पॉक्सो एक्ट की धारा हटाने का फैसला करती है तो यौन उत्पीड़न के मामले पर अभियोजन पक्ष को सिंह के खिलाफ मामला साबित करना होगा। बृजभूषण सिंह के खिलाफ नाबालिग समेत 7 महिला रेसलर्स ने यौन शोषण के 2 केस दर्ज कराए हैं। इनमें महिला की लज्जा भंग करने के आरोप में आईपीसी की धारा 354, 354(A), 354(D) लगाई गयी है।

एक महिला रेसलर ने अपनी शिकायत में बताया कि 2018 में सांसद ने उसे काफी देर तक कसकर गले लगाए रखा। इस दौरान बृजभूषण के हाथ बिल्कुल उसकी छाती के करीब थे। इससे वह असहज हो गई। जिस वजह से उसने खुद को बृजभूषण के चंगुल से छुड़ाया। 

दूसरी महिला पहलवान ने भी बृजभूषण पर ऐसे ही आरोप लगाए हैं।

एम. एच. जैदी के अनुसार पाक्सो अधिनियम: केरल उच्च न्यायालय ने धारा 29 और 30 के तहत सबूत के विपरीत बोझ की संवैधानिकता को बरकरार रखा। जस्टिन @ रेनजिथ बनाम भारतीय संघ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम  की धारा 29 और 30 की संवैधानिक वैधता जो अभियुक्त पर सबूत का उल्टा बोझ बनाता है। न्यायमूर्ति सुनील थॉमस की एकल पीठ ने इन तर्कों को खारिज कर दिया कि ये प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 20(3) और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। न्यायालय ने कहा कि कुछ तथ्यों को स्थापित करने के लिए अभियुक्त पर सीमित बोझ डालने वाले कानून जो विशेष रूप से उसके ज्ञान के भीतर हैं, भारतीय आपराधिक कानून में दुर्लभ नहीं हैं। 

इसने आगे कहा कि इस तरह के प्रावधानों को इस तथ्य के कारण असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है कि वे अभियुक्तों के ऊपर अभियोजन पक्ष के सबूत के बोझ को उलट देते हैं यदि वे प्रमुख जनहित के आधार पर न्यायोचित हैं। पाक्सो अधिनियम की धारा 29 और 30, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का अपमान नहीं करती हैं। वे किसी भी तरह से संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन नहीं करते हैं।

बीजेपी सांसद और डब्ल्यूएफ़आई के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगाने वाली सातों खिलाड़ियों ने जो आरोप लगाए हैं वे एफ़आईआर में दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न और दुराचार की कई घटनाओं में पेशेवर सहायता के बदले शारीरिक संबंध बनाने की मांग, छेड़छाड़, ग़लत तरीक़े से छूना और शारीरिक संपर्क शामिल हैं। 

एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के यौन उत्पीड़न टूर्नामेंट के दौरान, वार्म-अप और यहां तक कि नई दिल्ली में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी डब्ल्यूएफआई के कार्यालय में भी किया गया।

एफ़आईआर के अनुसार पेशेवर सहायता के बदले शारीरिक संबंध की मांग करने के कम से कम दो मामले, यौन उत्पीड़न की कम से कम 15 घटनाएं हैं जिनमें ग़लत तरीक़े से छूना शामिल हैं, छेड़छाड़ जिसमें छाती पर हाथ रखना, नाभि को छूना शामिल है। इसके अलावा डराने-धमकाने के कई उदाहरण हैं जिनमें पीछा करना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ 28 अप्रैल को दिल्ली में दर्ज की गईं दो एफ़आईआर में ये प्रमुख आरोप हैं।

पहली एफ़आईआर में छह वयस्क पहलवानों के आरोप शामिल हैं। दूसरी एफ़आईआर एक नाबालिग के पिता की शिकायत पर आधारित है। इसमें पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 भी लागू होती है जिसमें पांच से सात साल की कैद होती है। इन एफ़आईआर में जिन घटनाओं का उल्लेख किया गया है वे कथित तौर पर 2012 से 2022 तक भारत और विदेशों में हुईं।

पाक्सो के आरोप

नाबालिक के पिता द्वारा दायर उसकी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि यौन उत्पीड़न के बाद से उनकी बेटी अभी भी पूरी तरह से परेशान रहती है। प्राथमिकी में नाबालिग का आरोप है-

‘तस्वीर लेने के बहाने आरोपी (सिंह) ने उसे कसकर पकड़ा और अपनी ओर खींचा, उसके कंधे पर जोर से दबाया और फिर जानबूझकर उसकी छाती पर हाथ फेरा। ”उसने स्पष्ट रूप से आरोपी (सिंह) से कहा कि वह पहले ही उसे बता चुकी है कि उसे किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है और उसे उसका पीछा करना बंद कर देना चाहिए’।

छह बालिग़ पहलवानों के आरोप

पहलवान- 1 

‘एक दिन जब मैं होटल के रेस्तरां में रात के खाने के लिए बाहर थी, तो आरोपी (सिंह) ने मुझे अलग से अपनी खाने की मेज पर बुलाया और मेरी सहमति के बिना, मेरी छाती पर अपना हाथ रखा और ग़लत तरीक़े से मुझे पकड़ा और फिर वो अपना हाथ मेरे पेट पर ले गया। मेरे लिए यह सदमे जैसा था। आश्चर्यजनक रूप से अभियुक्त (सिंह) वहीं नहीं रुका और फिर से अपना हाथ ऊपर की ओर मेरी छाती पर ले गया। उसने ग़लत तरीक़े से पकड़ा और फिर अपना हाथ मेरे पेट पर सरका दिया और फिर 3-4 बार उसने अपना हाथ बार-बार मेरी छाती पर ले गया।’

बृजभूषण सिंह के डब्ल्यूएफआई कार्यालय में, ‘उसने मेरी सहमति के बिना मुझे मेरी हथेली, घुटने, जांघों और कंधों पर ग़लत तरीक़े से छूना शुरू कर दिया। मैं उस क्षण कांपने लगी। जब हम बैठे थे तो वह मेरे पैरों को अपने पैरों से छू रहा था… मेरे घुटनों को छुआ … उसने मेरी सांस को जांचने के बहाने अपना हाथ मेरी छाती पर रखा और फिर हाथ को मेरे पेट तक सरका दिया… उसका एकमात्र इरादा ग़लत तरीक़े से छूने का था मेरी मोडेस्टी भंग करने का था।’

पहलवान- 2

‘जब मैं चटाई पर लेटी हुई थी, आरोपी (सिंह) मेरे पास आया और आश्चर्यजनक रूप से झुका और मेरे कोच की अनुपस्थिति में, मेरी अनुमति के बिना, मेरी टी-शर्ट खींची, अपना हाथ छाती पर रख दिया फिर पेट तक हाथ को सरका दिया। उसने मेरी सांस की जांच के बहाने ऐसा किया।’

‘फेडरेशन कार्यालय जाने पर मुझे आरोपी (सिंह) के कमरे में बुलाया गया था… मेरे भाई, जो मेरे साथ थे, उनको साफ़ तौर पर दूर रहने के लिए कहा गया था। अभियुक्त (सिंह) ने अन्य व्यक्तियों के जाने पर, दरवाजा बंद कर दिया… मुझे अपनी ओर खींच लिया और मेरे साथ जबरदस्ती शारीरिक संपर्क बनाने की कोशिश की।’

पहलवान- 3

‘उसने मुझे फोन पर मेरे माता-पिता से बात कराई, क्योंकि उस समय मेरे पास मेरा निजी मोबाइल फोन नहीं था। आरोपी (सिंह) ने मुझे अपने बिस्तर पर बुलाया जहां वह बैठा था और फिर अचानक उसने बिना मेरी अनुमति के बिना मुझे जबरदस्ती गले लगा लिया।’

‘अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए उसने मुझे सप्लीमेंट्स खरीदने की पेशकश करके शारीरिक संबंध बनाने के लिए मुझे रिश्वत देने की भी कोशिश की।’

पहलवान- 4

‘मुझे आरोपी (सिंह) ने बुलाया, मेरी सांस की जांच के बहाने मेरी टी-शर्ट खींची और अपना हाथ मेरे पेट के नीचे नाभि तक सरका दिया।’

‘चूंकि आरोपी (सिंह) हमेशा ग़लत बात / इशारों की तलाश में रहता था … लड़कियां, जिनमें मैं भी शामिल थी, सामूहिक रूप से नाश्ते, दोपहर के भोजन या रात के खाने के लिए अकेले नहीं जाने के लिए सहमत हुई’।

पहलवान- 5

‘जब मैं अंतिम पंक्ति में खड़ी थी (टीम फोटोग्राफ के लिए) … आरोपी (सिंह) आया और मेरे साथ खड़ा हो गया। मुझे अचानक मेरे नितंब पर किसी का हाथ महसूस हुआ। मैं आरोपी (सिंह) के कारनामों से दंग रह गयी। चूंकि वे बेहद घटिया और आपत्तिजनक थे और मेरी सहमति के बिना… जब मैंने दूर जाने की कोशिश की, तो मुझे जबरन मेरे कंधे से पकड़ लिया गया।

पहलवान- 6

“मेरे साथ एक तस्वीर क्लिक करने के बहाने, उसने मुझे मेरे कंधे से खींच लिया… खुद को बचाने के लिए, मैंने आरोपी (सिंह) से दूर जाने की कोशिश की… चूंकि आरोपी के व्यवहार से मैं सहज नहीं थी, मैंने चंगुल से बचने के लिए, बार-बार उसके प्रयासों का विरोध किया और उसे दूर धकेलने की कोशिश की। इस पर उसने (धमकी दी)- ‘ज्यादा स्मार्ट बन रही है क्या …आगे कोई प्रतियोगिता नहीं खेलने क्या तुने?'”

एम. एच. जैदी के अनुसार भारत के महान्यायवादी बनाम सतीश और अन्य (2021)मामले में, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने फैसला सुनाया कि “त्वचा से त्वचा संपर्क” किए बिना बच्चे के स्तनों को पकड़ना POCSO अधिनियम, 2021 के तहत छेड़छाड़ है। न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला को अपार घृणा मिली। भारत के महान्यायवादी, राष्ट्रीय महिला आयोग, और महाराष्ट्र राज्य ने इस उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर की, जिसे वर्तमान में न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने सुना। भारत बनाम सतीश और अन्य (2021) के लिए अटॉर्नी जनरल  का मामला। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामला वैधानिक व्याख्या के “शरारत नियम” का उपयोग करने के लिए उपयुक्त होगा।

( जे. पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

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