दोषसिद्धि को निलंबित करने की राहुल गांधी की याचिका गुजरात HC ने खारिज की, सुप्रीम कोर्ट जाएगी कांग्रेस

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गुजरात हाईकोर्ट ने मानहानि मामले में दोषसिद्धि को निलंबित करने की राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी। कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी ने ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी को लेकर आपराधिक मानहानि मामले में हुई सजा पर रोक लगाने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इससे पहले मई में अदालत ने राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि गर्मी की छुट्टियों के बाद अंतिम आदेश पारित करेंगे।

जस्टिस हेमंत प्रच्छक की पीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा, “(गांधी) बिल्कुल गैर-मौजूद आधार पर दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। दोषसिद्धि पर रोक कोई नियम नहीं है। (गांधी) के खिलाफ 10 मामले लंबित हैं। राजनीति में शुचिता की जरूरत है…एक मामला कैंब्रिज में गांधी द्वारा वीर सावरकर के खिलाफ शब्दों का इस्तेमाल करने के बाद वीर सावरकर के पोते द्वारा पुणे कोर्ट में (गांधी) के खिलाफ मामला दायर किया गया है…दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने से किसी भी तरह से आवेदक के साथ अन्याय नहीं होगा। दोषसिद्धि पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं है। दोषसिद्धि न्यायसंगत, उचित और कानूनी है।”

हाईकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा है कि याचिका खारिज करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राहुल गांधी अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट करके कहा है कि राहुल गांधी की संसद से अयोग्यता पर गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ का फैसला हमारे संज्ञान में आया है। माननीय न्यायाधीश के तर्कों का अध्ययन किया जा रहा है, हाईकोर्ट के फ़ैसले ने इस मामले को आगे ले जाने के हमारे संकल्प को दोगुना किया है।

जस्टिस हेमंत प्रच्छक की पीठ ने 2 मई को गांधी की याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया था। आपराधिक मानहानि का मामला 2019 के लोकसभा अभियान के दौरान राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणी पर दायर किया गया था। राहुल ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कह दिया था, कि ‘क्यों सभी चोरों का सरनेम मोदी ही होता है? चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी? सारे चोरों के नाम में मोदी क्यों जुड़ा हुआ है।’

राहुल गांधी के इस बयान का बीजेपी समर्थकों ने काफ़ी विरोध किया था। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने याचिका दायर की थी। यह मामला इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 499 और 500 के तहत अक्टूबर 2001 में दर्ज कराया गया था।

राहुल ने मोदी सरनेम वाली टिप्पणी कर्नाटक में एक चुनावी रैली में की थी। चुनावी रैलियों और सभाओं में अक्सर नेता विरोधी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ कई बार विवादित टिप्पणी कर बैठते हैं या फिर सीमा को लांघ जाते हैं। कुछ ऐसी ही टिप्पणी राहुल गांधी ने कर दी थी।

23 मार्च, 2023 को सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने राहुल गांधी को दोषी ठहराया और 2 साल कैद की सजा सुनाई, जिसके बाद उन्हें लोकसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया। हालांकि,उनकी सजा निलंबित कर दी गई और उसी दिन उन्हें जमानत भी दे दी गई ताकि वह 30 दिनों के भीतर अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील कर सकें।

इसके बाद 3 अप्रैल को, गांधी ने अपनी दोषसिद्धि पर आपत्ति जताते हुए सूरत सत्र न्यायालय का रुख किया और अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग की। इसे 20 अप्रैल को खारिज कर दिया गया। हालांकि, सूरत सत्र न्यायालय ने 3 अप्रैल को गांधी को उनकी अपील के निपटारे तक जमानत दे दी।

इस बीच, राहुल गांधी की दोषसिद्धि और अयोग्यता पर टिप्पणी करते हुए कानून के जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी को एक ऐसे मामले के चलते संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया है, जिस पर मानहानि कानून लागू ही नहीं होता। यानी एक इन-एप्लिकेबल मामले पर कानून का एप्लिकेशन किया गया है।

वजह नंबर 1: पूरे ‘वर्ग की मानहानि’ का सवाल ही नहीं

पहले तो मानहानि का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि यह व्यक्तिगत मानहानि नहीं है, वे एक वर्ग की मानहानि का दावा कर रहे हैं।

यह सही है कि आईपीसी की धारा 499 में कहा गया है कि मानहानि के आरोप “एक कंपनी या एक संघ या व्यक्तियों के समूह द्वारा लगाए जा सकते हैं।” लेकिन साथ ही यह गौरतलब है कि इसके अनुसार कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की क्षति करने वाला नहीं कहा जाता जब तक कि वह लांछन दूसरों की नजर में प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के नैतिक या बौद्धिक चरित्र की उपेक्षा न करे या उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके सम्मान की उपेक्षा न करे या उस व्यक्ति की साख को नीचे न गिराए या यह विश्वास न दिलाए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणित दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकॄष्ट समझी जाती है।

इसके अलावा यह बात बहुत निश्चित होनी चाहिए कि जिस व्यक्ति ने मानहानि का दावा किया है, उसकी पहचान समूह के सदस्य के रूप में की जाती है। एक ही सरनेम वाले लोग, प्रकृति से एक निश्चित समूह वाले नहीं होते (जिसे इनडेटरमिनेट क्लास कहते हैं), इसीलिए कोई व्यक्ति राहुल गांधी के बयान के आधार पर शिकायतकर्ता (पूर्णेश मोदी) के साथ खुद को नहीं जोड़ेगा।

वजह नंबर 2: उन्होंने यह नहीं कहा है कि ‘सभी मोदी चोर हैं’

तकनीकी रूप से उन्होंने यह नहीं कहा है कि ‘सभी मोदी चोर हैं’। उन्होंने कहा है कि ऐसा क्यों है कि सभी चोरों के नाम मोदी हैं।इसमें एक बुनियादी फर्क है।

राहुल गांधी के बयान ने सभी मोदी लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई है। यह ऐसा ही है जैसे यह कहा जाए कि सभी इंसान नश्वर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नश्वर होने वाले सभी इंसान हैं।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 199(1) के तहत, शिकायतकर्ता कथित अपराध से पीड़ित व्यक्ति होना चाहिये।

सीआरपीसी 199 (1): कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता के अध्याय 21 (जिसमें मानहानि शामिल है) के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति की शिकायत पर ही करेगा, वरना नहीं…

वजह नंबर 3: अधिकतम सजा क्यों?

पहली बार अपराधी होने के बावजूद राहुल गांधी को अधिकतम सजा कैसे मिली, यह भी स्पष्ट नहीं है। राहुल गांधी पहली बार अपराधी हैं और उन पर इससे पहले कोई दोष साबित नहीं हुआ। प्रोबेशन एक्ट और नियमों के अनुसार, पहली बार अपराध करने वाले को अधिकतम सजा नहीं दी जा सकती। तो ऐसे में उन्हें अधिकतम सजा कैसे दी गई है? अगर अदालत ने उन्हें 1 साल, 11 महीने और 29 दिन की जेल की सजा दी होती तो उनकी संसद सदस्यता नहीं छिनती। उन्हें दो साल की सजा (इस अपराध के तहत अधिकतम सजा) इसलिए दी गई है ताकि उनकी सदस्यता रद्द की जा सके। तो यह पहली नजर में, जानबूझकर किया गया गलत बर्ताव लगता है।

2020 में मद्रास हाईकोर्ट ने “राज्य के खिलाफ आपराधिक मानहानि (जिसे पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने 199 (2) सीआरपीसी के तहत दायर किया था) के कथित मामलों को खारिज कर दिया था, और कहा था कि आपराधिक मानहानि कानून अत्यंत जरूरी वास्तविक मामलों में सराहनीय उद्देश्य के लिए है, और इसे राज्य अपने विरोधी लोक सेवकों/संवैधानिक अधिकारियों से हिसाब बराबर करने के साधन के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता। राज्य लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए आपराधिक मानहानि के मामलों का इस्तेमाल नहीं कर सकता।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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