Sunday, April 28, 2024

भाजपा-आरएसएस और मोदी के लिए प्रकाश सिंह बादल के सियासी वारिस हैं सुखदेव सिंह ढींडसा

अकाली दिग्गज प्रकाश सिंह बादल के देहांत के बाद ही कयास लगने लगे थे कि पंजाब में अकाली-भाजपा समझौता फिर नए रूप में हो सकता है। कहा जाने लगा था कि भारतीय जनता पार्टी कुछ शर्तों के साथ हावी रहेगी और शिरोमणि अकाली दल थोड़े समझौते के साथ गठजोड़ कर लेगा। राजनीति में पल-पल समीकरण बदलते हैं, इस प्रकरण में भी बदले। भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष सुनील कुमार जाखड़ ने साफ कहा कि शिअद से फिलहाल समझौता नहीं होगा और उधर शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा पूर्व उपमुख्यमंत्री और सांसद सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि भाजपा से हाथ मिलाना मुश्किल है और उनका समझौता बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ ही कायम रहेगा। भाजपा से गठबंधन की संभावनाएं अब अतीत की बातें हैं।

गौरतलब है कि 18 जुलाई को एनडीए के घटक दलों की अहम बैठक थी। प्रकाश सिंह बादल के पुराने सहयोगियों को उम्मीद थी कि इसमें शामिल होने के लिए सुखबीर सिंह बादल को न्यौता जाएगा लेकिन जूनियर बादल को एनडीए के घटक दलों की बैठक में शिरकत के लिए बुलावा नहीं भेजा गया। अलबत्ता यह करके भाजपा ने संदेश जरूर दिया कि वह प्रकाश सिंह बादल का सम्मान तो करती है लेकिन सुखबीर सिंह बादल के तौर-तरीके उसे नापसंद और नामंजूर हैं। अकाली-भाजपा गठबंधन कई महीने पहले टूट गया था लेकिन टूट के बाद एनडीए की यह पहली बैठक थी, जिसमें शिरोमणि अकाली दल का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं था। पहले खुद बड़े बादल और अन्य वरिष्ठ अकाली नेता मौजूद रहते थे।

इस बार भाजपा ने खास अहमियत दी प्रकाश सिंह बादल के पुराने साथी और सुखबीर सिंह बादल के घोर विरोधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा को। नरेंद्र मोदी शिगूफे की भाषा में भी अपनी राजनीति करते हैं और कई बार ऐसी बातें जानबूझकर कहते हैं कि संदेश दूर तक जाए और उसका असर भी सामने आए। 18 जुलाई को यही हुआ। एनडीए के घटक दलों की बैठक में अपना संयुक्त अकाली दल बना चुके सुखदेव सिंह ढींडसा को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। सियासत की बाजीगिरी में खासे माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रकाश सिंह बादल की गैरमौजदगी पर गम जताया और सुखदेव सिंह ढींडसा को उनका ‘सच्चा वारिस’ बताया। यह कोई मामूली बात नहीं है। कई संदेश इसमें छिपे हुए हैं।

सुखबीर सिंह बादल एंड कंपनी को बता दिया गया है कि एनडीए फिलहाल पहले जितना ही ताकतवर है और उसका हाथ जिस क्षत्रप पर होगा, राष्ट्रीय और राज्य की राजनीति में उसका दबदबा होगा। यानी बादल परिवार की बजाए दिल्ली अब ढींडसा को महत्व देगी और अपने हिसाब से प्रशिक्षण भी। शिरोमणि अकाली दल में सुखदेव सिंह ढींडसा अभी तक दूसरी कतार के नेता थे लेकिन नरेंद्र मोदी ने उन्हें प्रकाश सिंह बादल का सियासी वारिस घोषित करके पंथक राजनीति में पहली कतार में ला दिया है। कम से कम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की रणनीति में तो।

सुखदेव सिंह ढींडसा हर लिहाज से भाजपा को अपने लिए मुनासिब लगते हैं। 1998 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनाने के लिए अकाली समर्थन का सवाल आया तो बड़े बादल ने एक औपचारिक मीटिंग बुलाई थी। जानते सभी थे कि बादल फैसला ले चुके हैं। बैठक महज खानापूर्ति के सिवा कुछ नहीं। फिर भी बड़े बादल के अध्यक्षीय संबोधन के बाद सबसे पहले सुखदेव सिंह ढींडसा ने अनुमोदन किया कि शिरोमणि अकाली दल को भाजपा सरकार के गठन के लिए समर्थन देना चाहिए। वाजपयी के नेतृत्व में बनी तत्कालीन केंद्रीय सरकार में ढींडसा बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल हुए थे। उस वक्त उनके संबंध भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं से गहरे बन गए थे।

नरेंद्र मोदी संघ की ओर से पंजाब भ्रमण करते थे तो पहले वह प्रकाश सिंह बादल से मिलते थे और उसके बाद सुखदेव सिंह ढींडसा से। पंथक राजनीति में ढींडसा को एक समझदार राजनीतिज्ञ माना जाता है। पूर्ण तौर पर वह बड़े बादल से सियासी तौर पर दीक्षित हुए हैं। वह उनकी राजनीति के दांव-पेंच से बखूबी वाकिफ रहे और उन्होंने बड़े बादल के रहते भी अपना दबदबा शिरोमणि अकाली दल में कायम रखा। उन्हें कभी कमतर नहीं समझा गया। सुखबीर सिंह बादल कभी ढींडसा के पांव छूते थे और उनसे आशीर्वाद लेते थे।

बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की आमद के बाद शिरोमणि अकाली दल लीक से भटकने लगा। मजीठिया छोटे बादल की पत्नी पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं। सुखबीर सिंह बादल के साथ मिलकर बिक्रमजीत सिंह मजीठिया ने शिरोमणि अकाली दल को कॉर्पोरेट कल्चर में ढालने की कवायद शुरू कर दी। इस पर सबसे पहली सूक्ष्म निगाह सुखदेव सिंह ढींडसा की गई और उन्होंने इस बाबत बादल को कई बार अगाह किया।

जालंधर में एक सार्वजनिक मंच से बड़े बादल ने मजीठिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि मौजूदा शिरोमणि अकाली दल कड़े संघर्ष से निकला है। हमने जेलें काटी हैं। आज के कुछ युवा अकाली नेताओं ने तो कभी जेल की दहलीज तक नहीं देखी। तब मीडिया ने अंदाजा लगा लिया था कि इशारा किस और है। लेकिन सुखबीर सिंह बादल अपने पिता के पुराने सहयोगियों की अवहेलना करते हुए नए रास्तों पर चल पड़े। मनप्रीत सिंह बादल इसमें एक और अड़चन थे। उन्हें भी तत्कालीन अकाली-भजपा सरकार से रुखसत होने के लिए मजबूर कर दिया गया।

मनप्रीत सिंह बादल सुखबीर के चचेरे भाई हैं और माना जाता है कि छोटे बादल और मजीठिया ने उन्हें सरकार और पार्टी से दरकिनार कर दिया। तब आलम यह रहता था कि अधिकारी किसी भी काम के लिए मनप्रीत को प्रोटोकॉल के तहत ‘हां’ कह देते थे लेकिन काम अनिश्चित काल के लिए लटका दिया जाता था। यह खेल बहुत दिनों तक चला। बताते हैं कि सुखदेव सिंह ढींडसा ने तब भी प्रकाश सिंह बादल को सावधान किया कि उनकी राजनीतिक छवि को धूमिल करने वाली कारगुजारियां हो रही हैं। परिवार के ही कुछ लोग इसमें शामिल हैं।

किन्हीं वजहों से बड़े बादल बेबस थे और मनप्रीत बादल को जाते देखते रह गए। आज भी माना जाता है कि मनप्रीत सिंह बादल सूबे के बेहद काबिल वित्त मंत्रियों में से एक रहे हैं। मनप्रीत के बाद सुखदेव सिंह ढींडसा के बेटे परमिंदरजीत सिंह को राज्य का नया वित्त मंत्री बनाया गया और उन्होंने भी मंत्रालय को बहुत कामयाबी के साथ चलाया। लेकिन उनके और सुखबीर सिंह बादल तथा बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की टोली के साथ मतभेद पैदा हो गए। सुखदेव सिंह ढींडसा यहां भी तटस्थ नहीं रहे लेकिन तब तक बात दूर तक निकल गई थी। लोगों ने अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार को धता बताकर कांग्रेस को सत्ता सौंपी।

प्रकाश सिंह बादल संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे। पहले-पहल केंद्रीय मंत्री और सांसद सुखदेव सिंह ढींडसा ने अपने इस पुराने अग्रज साथी का खूब साथ दिया लेकिन हार के बाद भी सुखबीर संगठन पर हावी होने की कोशिशों में लगे रहे। प्रकाश सिंह बादल के पुराने साथी कमोबेश खामोश रहे लेकिन सुखदेव सिंह ढींडसा मुखर हो गए और बादल के लाख मनाने के बावजूद वह खामोश होकर घर बैठ गए और एक दिन संयुक्त अकाली दल की घोषणा कर दी।

सर्वविदित है कि ढींडसा परिवार का अपने इलाके में अच्छा-खासा सियासी दबदबा है। किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने आंदोलनरत किसानों का साथ दिया लेकिन भाजपा से उनके रिश्ते यथावत बने रहे। विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा का समर्थन किया था। एनडीए की मीटिंग में मिले विशेष सम्मान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी के बाद यकीनन उनका कद बढ़ा है।

फिलहाल सुखदेव सिंह ढींडसा इस सब पर खुलकर कुछ भी नहीं कहना चाहते लेकिन उनसे जुड़े विशेष सूत्र बताते हैं कि मोदी की थपकी के बाद वह उन अकाली नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं जो सुखबीर सिंह बादल और बिक्रमजीत सिंह मजीठिया की लीडरशिप में काम नहीं करना चाहते। इस बाबत शनिवार को चंडीगढ़ में करीब तीन घंटे तक चली बैठक में सुखबीर सिंह बादल के अंदरूनी विरोधी नेता शामिल हुए।

श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व प्रधान बीबी जागीर कौर भी सुखदेव सिंह ढींडसा के साथ हैं। बीबी जागीर कौर और भाई रणजीत सिंह के बादल शिरोमणि अकाली दल के कई वरिष्ठ नेताओं और कर्मठ कार्यकर्ताओं के साथ अच्छे संबंध हैं। दोनों को आमंत्रित किया गया था लेकिन पूर्व कार्यक्रमों के चलते वे बैठक में शामिल नहीं हो पाए। अलबत्ता अपने प्रतिनिधि बेझकर यह संदेश जरूर दे दिया कि वे ढींडसा के साथ हैं।

बताया जाता है कि मीटिंग में सभी पंथक दलों के बीच एकता बनाने और उन्हें एक मंच पर लाने के लिए अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कार्यप्रणाली में सुधार लाने, एसजीपीसी के चुनाव करवाने, कई पंथक मुद्दों पर चर्चा की गई। अपने संबोधन में ढींडसा ने कहा कि पहली बैठक में सभी नेताओं को एकजुट करने पर सार्थक विचार-विमर्श हुआ है। एकता का फार्मूला तैयार करने के लिए जल्द ही अगली बैठक बुलाई जाएगी। मीडिया के आगे तब पूरा खुलासा किया जाएगा। गौरतलब है कि सुखदेव सिंह ढींडसा ने शिरोमणि अकाली दल की रीढ़ एसजीपीसी का चुनाव करवाने का मुद्दा एनडीए की बैठक में भी पुरजोर उठाया था।

भाजपा और आरएसएस ने सुखदेव सिंह ढींडसा को प्रकाश सिंह बादल की राजनीति का सियासी वारिस घोषित किया है। यह बहुत बड़ी बात है। पंजाब में यह बात अभी पूरी तरह से नहीं फैली। सुखदेव सिंह ढींडसा में नरेंद्र मोदी का प्रकाश सिंह बादल का अक्स दिखना दरअसल सुखबीर सिंह बादल के शिरोमणि अकाली दल का बदल देखना है। यों भविष्य में कुछ भी संभव है, खासतौर पर जो नरेंद्र मोदी कर रहे हों। फिलहाल तो सुखदेव सिंह ढींडसा का कद पंथक सियासत में बहुत ज्यादा बढ़ गया है। सुखबीर सिंह बादल को यह रास नहीं आने वाला। नए मोहरों के साथ नई शतरंज बिछेगी, फिर पूरी दुनिया ही देखेगी कि पंजाब की राजनीति की दशा और दिशा किधर जाती है?

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles