एडिटर्स गिल्ड को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के चार सदस्यों को पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा के संबंध में प्रकाशित एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर मणिपुर पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने ईजीआई सदस्यों द्वारा दायर रिट याचिका पर मणिपुर राज्य को नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया। इस मामले की सुनवाई 11 सितंबर (सोमवार) को होगी।

एफआईआर में गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, संजय कपूर, सीमा गुहा और भारत भूषण पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने सहित भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है। जिन शिकायतों के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई, उनमें ईजीआई रिपोर्ट में “गलत और झूठे बयान” का आरोप लगाया गया है।

याचिका आज सूचीबद्ध नहीं थी, लेकिन सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख किए जाने के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ इस मामले को उठाने के लिए सहमत हुए। दीवान ने कहा कि फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई हैं और आरोप लगाया गया है कि उनकी रिपोर्ट “दुश्मनी को बढ़ावा देती है।”

पीठ शुरू में सीमित सुरक्षा देकर रिट याचिका का निपटारा करने की इच्छुक थी जिससे याचिकाकर्ता हाईकोर्ट का रुख कर सकें। हालांकि दीवान ने कहा कि किसी और ने नहीं बल्कि खुद मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ईजीआई के खिलाफ आरोप लगाए और यहां तक कह दिया कि ‘ईजीआई ने भड़काऊ बयान दिए हैं’।

दीवान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुख्यमंत्री का बयान एक अतिरिक्त पहलू है जिस पर न्यायालय को विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि “रिपोर्ट जारी होने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के बयान सुनने के बाद गिल्ड को पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में गंभीर आशंकाएं थीं। मुख्यमंत्री ने एक कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कहा था कि एडिटर्स गिल्ड भावनाओं को भड़का रहा है और उत्तेजक बयान दे रहा है। अब मुख्यमंत्री के ऐसा कहने के बाद विशेष आयामों पर विचार करें”।

इसके बाद पीठ याचिका पर नोटिस जारी करने और अंतरिम सुरक्षा देने पर सहमत हुई। ईजीआई की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने शीर्ष अदालत से मामले की तत्काल सुनवाई करने का आग्रह किया क्योंकि मामले में शामिल सीनियर जर्नलिस्ट को गिरफ्तार करने की आशंका थी।

श्याम दीवान ने कहा कि “हम यहां अनुच्छेद 32 के तहत आपातकालीन दिशा-निर्देश मांग रहे हैं और मैं दिखाऊंगा कि कैसे ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी नियुक्त की। इसमें तीनों वरिष्ठ पत्रकार थे। वे मणिपुर गए और एक रिपोर्ट बनाई और निष्कर्ष निकाला कि स्थानीय समाचार रिपोर्टें पक्षपातपूर्ण हैं।”

सीजेआई ने पूछा था कि मामले में इतनी जल्दी क्या है? इस पर दीवान ने जवाब दिया कि पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई हैं और ईजीआई ऐसी दो एफआईआर को चुनौती दे रहा है। सीजेआई ने कहा- “कृपया कागजात तैयार रखें, हम इस पर विचार करेंगे।”

मणिपुर के वकील कानू अग्रवाल ने पीठ से अनुरोध किया कि मामले को सोमवार के लिए निर्धारित किया जाए या वैकल्पिक रूप से याचिकाकर्ताओं को मामले की योग्यता के आधार पर राहत के लिए मणिपुर उच्च न्यायालय से संपर्क करने का निर्देश दिया जाए।

हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने शुरू में ईजीआई पत्रकारों को चार सप्ताह की सुरक्षा देने का विचार किया था, लेकिन अदालत ने अंततः 11 सितंबर का आदेश सुनाया।

इससे पहले सुबह, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने श्याम दीवान से पूछा कि पत्रकारों ने पहले उच्च न्यायालय का रुख किए बिना रिट याचिका में सीधे शीर्ष अदालत का रुख क्यों किया। आप हाईकोर्ट गये बिना आ गये? लेकिन जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के साथ एक संक्षिप्त चर्चा के बाद, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने दीवान को मामले के कागजात तैयार करने के लिए कहा। अदालत ने आखिरकार याचिका पर सुनवाई की।

एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट में क्या है?

एडिटर्स गिल्ड के 24 पेज के निष्कर्ष 2 सितंबर को जारी किए गए थे। फैक्ट फाइंडिंग टीम को 7 से 10 अगस्त तक राज्य में मीडिया रिपोर्टों की जांच करने के लिए मणिपुर भेजा गया था।

गिल्ड की रिपोर्ट में हिंसा के दौरान मीडिया में गहरे जातीय विभाजन की बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि “जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफ़ा रिपोर्टें लिखीं। सामान्य परिस्थितियों में उनके संपादकों या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के ब्यूरो के प्रमुखों द्वारा उनकी क्रॉस-चेक और निगरानी की जाती है। लेकिन संघर्ष के दौरान यह संभव नहीं था।”

गिल्ड ने राज्य में मीडिया की रिपोर्टों के साथ-साथ इंटरनेट बंद होने के प्रभावों की जांच करने के लिए तीन सदस्यीय टीम को मणिपुर भेजा था। टीम ने पत्रकारों, संपादकों, एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर के प्रतिनिधियों, ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन, नागरिक समाज कार्यकर्ताओं, सार्वजनिक बुद्धिजीवियों, हिंसा से प्रभावित महिलाओं, आदिवासी प्रवक्ताओं और सुरक्षा बलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी।

दीवान ने कोर्ट में कहा कि गिल्ड की रिपोर्ट व्यापक यात्रा और पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों के साथ साक्षात्कार के बाद टीम द्वारा तैयार की गई थी। वरिष्ठ वकील ने कहा कि रिपोर्ट में आई एक त्रुटि को तुरंत ठीक कर लिया गया था।

एफआईआर पर गिल्ड का बयान

इसके पहले 5 सितंबर को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने मणिपुर सरकार से उसके अध्यक्ष और तथ्यान्वेषी टीम के सदस्यों के खिलाफ राज्य पुलिस द्वारा दर्ज मामलों को बंद करने का आग्रह किया। गिल्ड ने कहा कि जातीय झड़पों की मीडिया कवरेज पर उसकी रिपोर्ट का उद्देश्य ऐसी संवेदनशील स्थिति में मीडिया के आचरण पर आत्मनिरीक्षण और चिंतन की प्रक्रिया को सक्षम बनाना है।

गिल्ड ने कहा कि उसे नागरिक समाज के साथ-साथ भारतीय सेना से भी कई अभ्यावेदन मिले हैं, जिसमें चिंता जताई गई है कि मणिपुर में मीडिया बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और कुकी-चिन अल्पसंख्यकों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष में पक्षपातपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

ईजीआई ने कहा कि गिल्ड इस बात से बेहद परेशान है कि रिपोर्ट में उठाई गई चिंताओं का सार्थक तरीके से जवाब देने के बजाए, राज्य सरकार ने भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों को लागू करते हुए एफआईआर दर्ज की है। गिल्ड ने पहले ही एक फोटो कैप्शन के संबंध में बताई गई त्रुटि को स्वीकार कर लिया है और उसे सुधार लिया है और हम आगे की चर्चा के लिए तैयार हैं।

प्रेस क्लब और पीयूसीएल ने गिल्ड का किया समर्थन

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के पत्रकारों पर हुई एफआईआर को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने मणिपुर सरकार की आलोचना की है। क्लब ने कहा कि मणिपुर का पूरा मुद्दा मीडिया की भूमिका के इर्द-गिर्द घूमता है, और यह स्पष्ट है कि एडिटर्स गिल्ड ने जमीनी स्थिति और दबाई जा रही सूचनाओं की जांच के लिए एक फैक्ट फांइडिंग टीम भेजकर सराहनीय काम किया है।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) ने भी राज्य पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को तत्काल वापस लेने की मांग की है। पीयूसीएल ने कहा कि मणिपुर सरकार के इस कदम का उद्देश्य गिल्ड और अन्य पत्रकारों को तथ्य-खोज अभ्यास के दौरान मिली सच्चाई को उजागर करने से डराना है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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