अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों के प्रवेश में ‘एफरमेटिव एक्शन’ को खारिज किया

Estimated read time 1 min read

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों के प्रवेश में ‘एफरमेटिव एक्शन’ (सकारात्मक कार्रवाई) को खारिज कर दिया है। खंडपीठ में अनुदारवादी न्यायाधीशों के बहुमत ने उदारवादी खेमे के विरोध को नकारते हुए स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन नामक एंटी-एफरमेटिव कार्यकर्ता एडवर्ड ब्लूम के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। पिछले वर्ष भी अमेरिकी समाज को व्यापक स्तर पर प्रभावित करने वाले एक फैसले में अनुदारवादी न्यायाधीशों के नेतृत्व में अदालत ने 1973 में रो बनाम वेड फैसले में गर्भपात को क़ानूनी मान्यता को पलटते हुए अमेरिकी समाज को दक्षिणपंथी दिशा में धकेल दिया था।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अदालत के फैसले पर घोर असहमति व्यक्त करते हुए गुरुवार के फैसले को असामान्य करार दिया है। उन्होंने कॉलेजों से छात्र विविधता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ने का आग्रह किया है।

वहीं मुख्य न्यायाधीश जॉन राबर्ट्स ने अपने फैसले में लिखा है कि किसी भी छात्र/छात्रा को, “एक व्यक्ति के रूप में उनके अनुभवों के आधार पर तय किया जाना चाहिए न कि वह किस नस्ल से आते हैं। कई विश्वविद्यालय लंबे अर्से से इसका ठीक उल्टा करते आ रहे हैं, इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश की कसौटी व्यक्ति में मौजूद सर्वोत्तम चुनौतियों, कौशल एवं सीखे गये सबक के बजाय त्वचा के रंग को आधार बनाया गया। हमारा संवैधानिक इतिहास इस प्रकार के विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है।”

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि “विश्वविद्यालयों ने बहुत लंबे समय से ठीक इसके विपरीत काम किया है। और ऐसा करते हुए, उन्होंने गलत तरीके से निष्कर्ष निकाला है कि कसौटी किसी व्यक्ति की पहचान, सर्वोत्तम चुनौतियों, निर्मित कौशल या सीखे गए सबक से नहीं बल्कि उनकी त्वचा के रंग से होती है। हमारा संवैधानिक इतिहास उस विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है।”

2014 में ब्लम समूह द्वारा दाखिल अदालती मामले में आरोप लगाया गया था कि यूएनसी में श्वेत और एशियन अमेरिकन अभ्यर्थियों और हार्वर्ड में एशियाई मूल के अमेरिकियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 2016 से ही अमेरिकी कोर्ट में दक्षिणपंथ का पलड़ा भारी हो गया था, और इसमें तीन न्यायाधीश पिछली सुनवाई में भी ‘एफरमेटिव एक्शन’ प्रोग्राम के विरोध में थे।

इसके साथ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में भी 3 न्यायाधीशों की नियुक्ति के बाद से स्थिति पूरी तरह से दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर मुड़ चुकी है। बता दें कि ट्रम्प ने गुरुवार के अदालती फैसले को “अमेरिकी इतिहास में एक महान दिन” करार दिया है।

अमेरिका में लंबे समय से विभिन्न उच्चतर शैक्षिणक संस्थानों में ‘एफरमेटिव एक्शन’ का समर्थन किया जाता रहा है। इसका उद्देश्य मात्र अमेरिकी समाज में नस्लीय गैर-बराबरी को कम करने और बहिष्करण को खत्म करने से नहीं बल्कि कार्यस्थलों में व्यापक दृष्टिकोण वाले टैलेंट पूल के समावेश को सुनिश्चित करने का प्रयास शामिल था। 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अमेरिकी सीनेटरों सहित विभिन्न सामाजिक समूहों से बड़े पैमाने पर प्रतिक्रिया आ रही है। 

पहली अश्वेत महिला जस्टिस ब्राउन जैक्सन ने आदेश पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए लिखा है कि “यह क़ानूनी आदेश दरार डालने वाला है और ‘सभी के लिए रंग-अंधता’ की घोषणा करता है। लेकिन कानून द्वारा नस्ल को अप्रासंगिक मान लेने से जीवन में ऐसा नहीं हो जाता।” हार्वर्ड विश्वविद्यालय के साथ अपने पिछले जुड़ाव के कारण जस्टिस जैक्सन ने इस मामले में भाग नहीं लिया।

वहीं कोर्ट में पहली हिस्पैनिक न्यायाधीश के रूप में सोनिया सोतोमयोर ने लिखा कि “यह निर्णय समान सुरक्षा की संवैधानिक गारंटी को नष्ट कर देता है और शिक्षा में नस्लीय असमानता को और बढ़ाता है।” उन्होंने इस फैसले को दशकों की पूर्ववर्ती और महत्वपूर्ण प्रगति को पीछे ले जाने वाला बताया है।

एक देश के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंबे अन्तराल तक नस्ल के मुद्दों से जूझने में बिताया है। इसके लंबे इतिहास पर गौर करें तो यह अश्वेतों की गुलामी का इतिहास है, जिसका समापन लंबे गृहयुद्ध के बाद ही हो सका था। 50 और 60 के दशक में चले नागरिक अधिकार आंदोलन और हाल के वर्षों में नस्लीय न्याय से संबंधित लोकप्रिय विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर अश्वेतों के खिलाफ पुलिसिया दमन और हत्याओं का सिलसिला दर्ज है।

न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक उसके द्वारा मई माह में किये गये एक सर्वेक्षण में 49% अमेरिकियों ने नस्लीय भेदभाव के मद्देनजर समाज में समानता को बढ़ाने को जरूरी मानते हुए ‘एफरमेटिव एक्शन’ कार्यक्रम को आवश्यक बताया था। जबकि 32% इससे असहमत थे और 19% लोगों की इस पर राय नहीं बन पाई थी।

रिपब्लिकन पार्टी के तमाम नेताओं की ओर से इस फैसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, और मेरिट-आधारित प्रवेश को न्यायपूर्ण फैसला करार दिया जा रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति, बाराक ओबामा ने पत्नी मिशेल ओबामा के ट्वीट को री-ट्वीट करते हुए लिखा है, “बेहतर न्यायपूर्ण समाज बनाने की दिशा में ‘एफरमेटिव एक्शन’ कभी भी मुकम्मल जवाब नहीं था। लेकिन उन छात्रों की पीढ़ियों के लिए जिन्हें अमेरिका के अधिकांश प्रमुख संस्थानों से पूर्व-नियोजित तरीके से बहिष्कृत रखा गया था- इसने हमें यह दिखाने का मौका दिया कि हम मेज पर एक सीट की पात्रता से कहीं ज्यादा काबिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मद्देनजर, समय आ गया है कि अब हम अपने प्रयासों को दोगुना करें।”

मिशेल ओबामा का भावपूर्ण पत्र अमेरिकी समाज में अश्वेतों के संघर्षपूर्ण आंदोलनों से हासिल अधिकारों ने अश्वेतों की नई पीढ़ी के जीवन में नहीं बल्कि अमेरिकी समाज को लोकतांत्रिक बनाने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसका जीता-जागता नमूना पेश करता है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author