गिरिडीह। ‘‘भगवान दास किस्कू हमारे गांव का सबसे पढ़ा-लिखा युवक है। वे हमारे गांव का नेतृत्व करते थे, हमें सभी चीज के बारे में बताते थे। आज गांव में बहुत सारे युवक हैं, लेकिन उनके बिना लगता है कि गांव में कोई है ही नहीं। मेरी शादी के 6 साल हो गये और मैं इसी गांव में रहती हूं, मैंने हमेशा उनको गांव में ही रहते देखा है। वे दुर्दांत माओवादी नहीं हैं, वे आदिवासियों के हक-हकूक की आवाज जरूर उठाते हैं’’- जब भगवान दास किस्कू की पड़ोसी रूपमनी हांसदा यह कह रही थीं, तो वहां मौजूद सोनिया बेसरा, बड़की देवी, हेमंती हांसदा, गोनौसी मुर्मू, जोसेफ हांसदा, रामू मुर्मू, बिशू सोरेन, सुशील हांसदा समेत झारखंड के गिरिडीह जिले के खुखरा थानान्तर्गत चतरो गांव के लगभग 150 ग्रामीण उनकी हां में हां मिला रहे थे।
दरअसल, गिरिडीह पुलिस ने 23 फरवरी, 2022 की रात 10 बजे बिना किसी के हस्ताक्षर के एक छोटी सी प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि भाकपा (माओवादी) के कमांडर कृष्णा हांसदा के दस्ते के सक्रिय सदस्य भगवान दास किस्कू को 22 फरवरी को खुखरा के चतरो जंगल से गिरफ्तार किया गया है। इन्होंने पर्वतपुर पुलिस कैम्प के खिलाफ आंदोलन को नेतृत्व किया था। प्रेस रिलीज में और भी कई नक्सल घटनाओं (6 घटनाओं) में भगवान के शामिल होने का जिक्र था।
24 फरवरी को जब इसकी खबर अखबारों में छपी, तो झारखंड के कई लोगों के लिए इस खबर पर विश्वास करना संभव नहीं था। क्योंकि भगवान दास किस्कू विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन से लंबे समय से जुड़े थे। वे पारसनाथ धर्मगढ़ रक्षा समिति, शहीद सुंदर मरांडी स्मारक समिति व झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से भी जुड़े थे। वे लगातार आदिवासियों पर हो रहे पुलिसिया दमन व विस्थापन के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। वे कई फैक्ट फाइंडिंग टीम के हिस्से थे। इसलिए जैसे ही दुर्दांत माओवादी के रूप में उनकी गिरफ्तारी की खबर झारखंड के लोगों को मिली, उन्होंने सोशल साइट्स पर विरोध करना प्रारंभ कर दिया। विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के झारखंड संयोजक अधिवक्ता शैलेन्द्र सिन्हा ने 24 फरवरी को ही प्रेस विज्ञप्ति जारी कर भगवान की गिरफ्तारी का विरोध किया और उन्हें अविलंब रिहा करने की मांग की।
25 फरवरी को इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब भगवान दास किस्कू के छोटे भाई लालचंद किस्कू ने झारखंड के कई लोगों को फोन कर बताया (इस पंक्ति के लेखक को भी फोन आया था) कि भगवान की गिरफ्तारी चतरो जंगल से नहीं बल्कि रांची के ओरमांझी के उनके कमरे से 20 फरवरी की रात के डेढ़ बजे हुई थी और उस रात सिर्फ भगवान दास किस्कू की ही गिरफ्तारी नहीं हुई थी, बल्कि साथ में उनकी यानी लालचंद किस्कू व उनके रूम पार्टनर कान्हू मुर्मू की भी गिरफ्तारी हुई थी। इन दोनों को 4 दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद 24 फरवरी को सुबह 10 बजे मधुबन थाने से छोड़ा गया था।
लालचंद किस्कू ओरमांझी (रांची) स्थित रामटहल चौधरी कॉलेज के बीए (हिन्दी ऑनर्स) फर्स्ट सेमेस्टर के छात्र हैं और कॉलेज के बगल में ही दिगंबर महतो के लॉज में किराये पर रहते हैं। वे बताते हैं कि भैया 20 फरवरी की शाम में मेरे पास आए थे। रात में खाना खाकर गहरी नींद में मैं, भैया और मेरा रूम पार्टनर कान्हू मुर्मू सो रहे थे, तभी दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई। मैंने दरवाजा खोला, तो कई लोग सिविल ड्रेस में वहां मौजूद थे। उनमें से एक ने पूछा कि भाड़े पर यहां रूम मिलेगा क्या? मैंने कहा कि मैं तो खुद ही भाड़े पर रहता हूं, इसलिए आप मकान मालिक से पता कर लीजिए। तभी दूसरा बोलने लगा कि हम लोग पुलिस हैं, तुम लड़की भगाकर लाया है? मैंने मना करते हुए कहा कि आप कमरे की तलाशी ले सकते हैं, यहां पर अभी मैं, मेरा भैया और मेरा दोस्त ही हैं।
यह सुनकर वे लोग कमरे में घुस गये और मुझे व मेरे दोस्त को कमरे से निकाल दिया। वे लोग भैया को बेल्ट से पीटने लगे और पूछने लगे कि तुम कौन-कौन यहां आए हो। कुछ देर मारपीट व पूछताछ करने के बाद हमारे पूरे कमरे की तलाशी ली गयी और मेरा टेक्नो कंपनी का मोबाईल, मेरे दोस्त का आई फोन-5, रेडमी व सैमसंग का कीपैड वाला मोबाईल, हम दोनों का कॉलेज आईकार्ड, आधार कार्ड, एक रजिस्टर व 10500 रुपये उन लोगों ने ले लिया और कमरे का सारा सामान बिखेर दिया। उसके बाद हम तीनों को पुलिस ने जबरन बोलेरो में बैठा लिया। मैंने काफी रिक्वेस्ट किया कि बगल वाले कमरे के लड़कों व मकान मालिक को हमें बताने दीजिए कि आप लोग हमें ले जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी। वहां से हमें गिरिडीह लाया गया, यहां पहले मुझे व मेरे दोस्त को एक कमरे में बंद कर दिया और बाहर में भैया को पुलिस पीटने लगी। कुछ देर बाद भैया को भी हमारे साथ ही बंद कर दिया। भैया से वे लोग बार-बार पूछ रहे थे कि माओवादी कृष्णा हांसदा कहां हैं? गिरिडीह एसपी ने भी हम लोगों से पूछताछ किया। 21 फरवरी को 12 बजे हमें खाना दिया गया, फिर शाम में मुझे व मेरे दोस्त को एक बोलेरो में बैठाकर मधुबन के कल्याण निकेतन में स्थित सीआरपीएफ कैम्प लाया गया और एक कमरे में बंद कर दिया गया।
21 फरवरी की शाम से 24 फरवरी के 10 बजे सुबह तक हम दोनों को वहीं पर रखा गया, इस दौरान सिर्फ दो बार सामान्य पूछताछ हुई, लेकिन दिन में सिर्फ 2 बार ही खाना दिया जाता था। चाय मांगने पर बोला जाता था कि साले तुम लोग वीआईपी हो, जो चाय पीओगे! 24 फरवरी की सुबह हम दोनों को मधुबन पुलिस को सौंप दिया गया। उन लोगों ने हम दोनों से एक कागज पर हस्ताक्षर करवा लिया कि हम दोनों को 23 फरवरी को हिरासत में लिया गया था और अभी इनके अभिभावक की उपस्थिति में छोड़ रहे हैं। जब हमने अपना सामान मांगा, तो 26 फरवरी की सुबह में आने के लिए बोला गया, सुबह तो नहीं जा पाये, लेकिन शाम को जाने पर हमें अपना मोबाइल तो दे दिया गया, लेकिन हमारे डॉक्यूमेंट, पैसा व रजिस्टर उन्होंने नहीं दिया। हमें मधुबन थाना प्रभारी द्वारा बोला गया कि अभियान एसपी ने उन्हें इतना ही सामान दिया है।
भगवान दास किस्कू के पिता जगरनाथ किस्कू ने बताया कि 24 फरवरी की सुबह में मेरी बेटी नीलमुनी हांसदा ने मोबाइल में देखकर बताया कि भगवान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वह बता ही रही थीं कि हमारे पंचायत नौकनिया के मुखिया उपासी किस्कू के पिता सरोगा किस्कू का फोन उसके मोबाइल पर आया और बताया कि तुम जल्दी से मेरे पास आओ। मेरी बेटी तुरंत मुखिया के घर पर गयी, तो उन्होंने बताया कि मेरा छोटा बेटा लालचंद किस्कू मधुबन थाना में है, जाकर उसको लेते आओ। मैंने उन्हें कहा कि आप भी साथ में चलिए, लेकिन वे चलने के लिए तैयार नहीं हुए। फिर हम लोग घर पर आए और यहां से मैं, मेरी पत्नी, मेरी बेटी, वार्ड सदस्य छोटूलाल हांसदा, उप-मुखिया हरि प्रसाद महतो समेत 12 लोग थाने पर गये, वहां पर एक कागज पर ठप्पा लगाकर लालचंद व उसके दोस्त को हमारे हवाले कर दिया गया।
भगवान दास किस्कू की बहन नीलमनी हांसदा पूरी घटना बताते हुए रोने लगती हैं। उन्होंने बताया कि मेरे भाई को जबरन पुलिस ने फंसा दिया है। अगर मेरे भाई पर 6-6 मुकदमा दर्ज था, तो उन्हें एक भी नोटिस क्यों नहीं आया? मेरे भैया तो लोकल प्रैक्टिसनर भी थे, जरूरत पड़ने पर गांव में एकमात्र वही डॉक्टर थे, जो सभी का इलाज करते थे। वे सभी जगह घूमते थे, लेकिन पुलिस ने कभी उन्हें माओवादी नहीं बताया, तो अब अचानक वे दुर्दांत माओवादे कैसे हो गये?
भगवान दास किस्कू की मां रानी देवी और पत्नी सूरजमनी हांसदा का तो हाल काफी बुरा था, उनके चेहरे को ही देखकर लग रहा था कि रोते-रोते उनका चेहरा सूज गया है। पता चला कि उन दोनों ने 24 फरवरी से ही कुछ भी नहीं खाया है। हमेशा चहकने वाली भगवान की 6 वर्षीय बेटी अंकिता किस्कू तो बोलना व मुस्कुराना ही भूल चुकी है।
26 फरवरी को ही झारखंड जन संघर्ष मोर्चा की ओर से 20 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम भी गांव में गयी थी, इसमें शामिल विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के नेता दामोदर तुरी बताते हैं कि भगवान दास किस्कू हमारे साथ 2012 से जुड़े हुए हैं, 20 फरवरी को 11 बजे से 4 बजे तक हमारी बैठक विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के केंद्रीय कार्यालय रांची के सरईटांड़ (मोराबादी) में चली थी, जहां भगवान किस्कू 12 बजे लगभग पहुंचे थे, मीटिंग समाप्त होने पर उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें अभी बस मिल जाएगी? तब उन्होंने बताया कि आज वह रांची में ही अपने भाई, जो राम टहल चौधरी कॉलेज में पढ़ाई करते हैं, के पास ही रूकेंगे क्योंकि उन्हें रूम भाड़ा और खाने के लिए पैसे वगैरह भी देने हैं।
अपनी गिरफ्तारी का मुख्य कारण वे बताते हैं कि जो उन पर आरोप लगाया गया है या जो गिरिडीह में पुलिसिया दमन है वह कोई नयी बात नहीं है, पुलिस जो कह रही है कि भगवान को उन्होंने जंगल से गिरफ्तार किया है जबकि यह गांव भी जंगल में ही है। भगवान किस्कू को तो शहर से गिरफ्तार कर जंगल दिखा रहे हैं, पर जब इनका गांव ही जंगलों में है ऐसे में पुलिस द्वारा इन गांवों-घरों से लोगों को गिरफ्तार करके जंगल से गिरफ्तारी दिखाना गिरिडीह क्षेत्र की परंपरा बन गयी है। इस दमन के खिलाफ हम हमेशा आवाज उठाते आए हैं। अभी भी दमन के मामले में वही चल रहा है जो रघुवर सरकार में चल रहा था। जब भाजपा की रघुवर सरकार थी, तो गठबंधन की पार्टियां झामुमो, कांग्रेस आदि कहती थीं कि सत्ता चेंज करेंगे तो आदिवासी-मूलवासियों पर जो दमन और अत्याचार, फर्जी मुठभेड़, आदिवासी जनता की नक्सली नाम पर गिरफ्तारी है, वह नहीं होगा। पर वास्तव में कोई बदलाव तो नहीं हुआ बल्कि दमन और भी तीखा हो गया है और बढ़ता जा रहा है। इसके खिलाफ हम आंदोलन की जल्द ही शुरुआत करेंगे।
इस इलाके में गोड्डा कॉलेज की प्रोफेसर रजनी मूर्मू पहली बार आयी थीं, वे कहती हैं कि मेरे अपने गांव की तरह यह गांव भी है। मैंने महिलाओं से बातें की तो वे भी वही समस्याएं बताईं जो मेरे गांव में हैं। शिक्षक स्कूल नहीं आते हैं, बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं, रोड बनी हुई नहीं है। यहां की महिलाएं बालू उठाती हैं और पहले उसके 30 रुपये और अभी 100 रुपये मिलते हैं। पुरुष यहां के डोली मजदूर के रूप में हैं, बड़ी मुश्किल से उन्हें काम मिलता है, 50-100 रुपये उनकी आय होती है। लोगों से बात करके मुझे पता चला कि यहां पुलिस ने 10-12 थाना-कैंप खोल के रखे हुए हैं, कैंप के लिए इतने पैसे तथाकथित नक्सलियों को पकड़ने के लिए लगाया हुआ है, लेकिन स्कूल, घर, सड़कें यहां नहीं हैं। सरकार इस चीज पर ध्यान नहीं दे रही है, यह देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य लग रहा है। भगवान किस्कू को मैं पिछले एक साल से जान रही हूं।
पिछले साल भी फैक्ट फाइंडिंग टीम के साथ पीरटांड़ जब मैं आई थी, तो वे मुझे एक जगह ले गये थे, जहां माओवादी बोलकर पुलिस ने वहां की महिलाओं के साथ बदसलूकी व हिंसा की थी, कुछ बच्चियां भी थीं मैंने उनका बयान भी लिया था। उन्होंने बताया था कि किस तरह से पुलिस रात के अंधेरे में आती है और जांच करने व नक्सली पकड़ने के नाम पर लड़कियों के साथ बदसलूकी करती है। मैं झारखंड जन संघर्ष मोर्चा की संयोजक हूं और भगवान किस्कू भी उससे जुड़े हुए हैं। पता नहीं सरकार को कैसे वे नक्सली लग रहे हैं। वैसे तो उन्हें झोलाछाप डॉक्टर कहकर बदनाम किया जाता है, पर यहां की महिलाएं बता रही हैं कि यहां कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है, पर वे सस्ती दरों, फ्री में, उधार पर भी सबका इलाज करते हैं और यदि यहां इलाज नहीं हो पाता तो बाहर के बड़े हॉस्पिटलों में अपने खर्चे पर भी इलाज के लिए लेकर जाते हैं। और इस तरह के लोगों पर सरकार ऐसा आरोप लगा रही है। खास तौर पर हेमंत सरकार के रहते हुए, जिनका मैं खुद भी पुस्तैनी वोटर हूं, अगर आज इनकी सरकार में ऐसी घटनाएं हो रही हैं हमारे आदिवासी भाईयों के साथ, तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड के रहने वाले कान्हू मुर्मू भी लालचंद किस्कू से साथ में रामटहल चौधरी कॉलेज के छात्र हैं, ये संताली भाषा से ग्रेजुएशन कर रहे हैं। पुलिस ने 20 फरवरी की रात में इन्हें भी हिरासत में लिया था। वे कहते हैं कि यह सरासर गलत है, हम पढ़े-लिखे लोगों के साथ जब यह सब हो रहा है, तो आम पब्लिक जो बूढ़े-बुजुर्ग हैं, पढ़े-लिखे नहीं हैं, उन लोगों के साथ कैसा होता होगा। हम लोग बार-बार कह रहे थे कि हम लोग स्टूडेंट हैं, हम लोगों के साथ कुछ तो न्याय कीजिए, लेकिन वे एक नहीं सुने। हम लोगों को 20 तारीख को रात डेढ़ बजे उठाया गया है और पेपर में दिया गया है कि भगवान किस्कू की 22 तारीख को गिरफ्तारी हुई, जिसमें हम दोनों लोगों का नाम भी नहीं है। हम लोगों को किसी भी मुसीबत में एक ही नंबर याद आता है 100 नंबर, जो पुलिस का नंबर है, लेकिन अब मैं पुलिस पर कैसे भरोसा करूं?
अधिवक्ता दीपनारायण भट्टाचार्य कहते हैं कि संविधान का मूलभूत आर्टिकल 22 सब क्लॉज 2 और सीआरपीसी की धारा 57 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को 24 घंटा के अंदर में न्यायिक हिरासत में प्रस्तुत करना पड़ता है। यहां भगवान किस्कू, उनके भाई व दोस्त को तीन दिनों तक हिरासत में रखा गया है। इस तरह के एक भी केस में सरकार ऑन रिकॉर्ड दिखा दे, जहां पर ये कनविक्शन कर सके हैं क्योंकि इनके पास कोई साक्ष्य होता ही नहीं है। बिना साक्ष्य के इन्होंने मजदूर संगठन समिति को बैन किया था। आखिर कब तक ये लोग बगैर साक्ष्य के यह सब करते रहेंगे। भगवान किस्कू पर 6 एफआईआर हुए हैं, पहले तो इन एफआईआर को हाई कोर्ट मे क्वेशिंग के लिए जाना चाहिए और इनके भाइयों को अपने स्तर पर सीपी केस करना चाहिए।
अधिवक्ता शिवाजी सिंह कहते हैं कि जब जनता कानून तोड़ती है तो उस पर कार्रवाई होती है, इस घटना में पुलिस ने कानून तोड़ा है तो जनता कहां जाएगी? हमें यह जानना चाहिए कि पुलिस नक्सली किसको कहती है, जो गांव के विकास के लिए लड़ रहा है, समाज में जो अत्याचार है उसका प्रतिरोध कर रहा है, गांव के लोगों आदिवासियों, मजदूरों, किसानों को उनके अधिकार के प्रति जागरूक कर रहा है, उनको बता रहा है कि संविधान ने तुमको यह अधिकार दिया है, तुम्हें यह हक मिलना चाहिए और अमुक अधिकारी तुम्हारा हक खा जाता है। तो अगर आप इन्हें नक्सली कहेंगे तो आप कहते रहिए, यह रुकने वाला आंदोलन नहीं है।
संस्कृतिकर्मी भइया मुर्मू कहते हैं कि हम भगवान दास किस्कू को बचपन से जानते हैं। वे नक्सली नहीं हैं। वे पढ़ाई-लिखाई में ध्यान दिये, वे दवा इलाज की प्रेक्टिस करते थे। उन्हें झूठा फंसाया गया है। जो हक के लिए बोल रहे हैं, उन्हें नक्सली व माओवादी बोलकर के जनता के बीच भय फैलाया जा रहा है। मुझे ख्याल है कि पुलिस नक्सली के नाम पर अब तक इस गांव से लगभग 10-15 आदमियों को यहां से पकड़ी है और सब बाइज्जत बरी हुए हैं। हमारा गांव जंगल के बगल में है, इसलिए पुलिस नक्सली कहकर पकड़ ले रही है।
मजदूर संगठन समिति के केन्द्रीय संयोजक बच्चा सिंह कहते हैं कि गिरिडीह जिले के पीड़टांड़ व डुमरी को माओवादियों का इलाका घोषित करने के बहाने सील कर दिया गया है, जबकि यहां की जनता मेहनत-मशक्कत करके किसी तरह अपना जीवन चला रही है। जनता किसी भी सरकार से इस तरह का डिमांड नहीं की है कि हमें यहां माओवादियों, नक्सलियों से दिक्कत है, वे लोग अपना रोजी-रोजगार करते हुए अपना जीविकोपार्जन करते आए हैं। 2017 में इसी एरिया में मोतीलाल बास्के को अपने घर आने के क्रम में सीआरपीएफ कोबरा द्वारा हत्या कर उन्हें दुर्दांत माओवादी बता दिया जाता है। इसको लेकर के पीरटांड़ प्रखंड के हजारों लोगों द्वारा काफी विरोध किया गया था, यहां तक कि आज के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, आज प्रतिपक्ष का नेता बनकर बैठे हुए बाबूलाल मरांडी, जो उस समय झारखंड विकास मोर्चा में थे, ऐसे कई नेताओं ने तत्कालीन रघुवर सरकार में मांग किया था और बोला था कि यह सीधा-सीधा आदिवासियों के ऊपर हमला है और यही हेमंत सोरेन ने रघुवर सरकार से पूछा था कि क्या बीजेपी की रघुवर सरकार को झारखंड के सभी आदिवासी नक्सली नजर आते हैं? अब सवाल उठता है कि वही दमन आज भी जारी है।
कुछ दिन पहले एतवारी किस्कू नामक डोली मजदूर को कहीं से उठाकर फर्जी मुकदमे में जेल में डाल दिया गया। भगवान किस्कू व ग्रामीणों की बात सुनकर ऐसा लग रहा है कि आज राज्य के अंदर पुलिस की जो कार्रवाई है वह न्याय के प्रति नहीं है बल्कि दमन के प्रति है। खासकर के आदिवासियों के ऊपर दमन चल रहा है। इस दमन के पीछे के कारण को हम अच्छी तरह से जानते हैं कि झारखंड के किस तरह से खनिज संपदा के ऊपर बड़े-बड़े कारपोरेटों की निगाह है और सरकार भी चाहती है कि तमाम क्षेत्रों में इन कॉरपोरेटरों को स्थापित किया जाए। इसलिए यह एक बहाना है कि झारखंड के इन क्षेत्रों को नक्सल क्षेत्र घोषित करो और झारखंड के जो खनिज संपदा के क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी-मूलवासी हैं अगर कारपोरेट के इन खनिज क्षेत्र को लेने का विरोध करते हैं, तो वहां वे सीधे आरोप लगाते हैं कि ये नक्सली व माओवादी हैं। झारखंड जनसंघर्ष मोर्चा स्पष्ट रूप से भगवान दास किस्कू की इस गिरफ्तारी की भर्त्सना और निंदा करता है और तुरंत हम लोग बैठक करके आंदोलन की रणनीति बनाएंगे।
भगवान दास किस्कू के गांव में माओवादी के नाम पर युवाओं की गिरफ्तारी कोई नयी बात नहीं है। इसी गांव के संस्कृतिकर्मी रवि सोरेन बताते हैं कि मेरे 18 वर्षीय छोटे भाई विजय सोरेन को एक महीने पहले पुलिस ने माओवादी बताकर गिरफ्तार कर लिया और पुलिस मुझे भी खोज रही है, जबकि मैं अपने गीतों से सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ व्यापक बदलाव के लिए आवाज उठाता रहा हूं।
चतरो गांव के ग्रामीण आदिवासी पुलिसिया दमन से अब तंग आ चुके हैं, इसलिए उन्होंने निर्णय लिया है कि इसके खिलाफ में जल्द ही बैठक कर गिरिडीह डीसी के सामने धरना देने का निर्णय लिया जाएगा और अगर दमन नहीं रुका, तो मुख्यमंत्री के सामने भी प्रदर्शन किया जाएगा।
गिरिडीह पुलिस के पास इन सारे आरोपों का एकमात्र जवाब 23 फरवरी को जारी उसकी प्रेस विज्ञप्ति ही है, इसके अलावा वह कुछ भी बोलना नहीं चाहती है।
आदिवासी कार्यकर्ता भगवान दास किस्कू के मामले में एक सच यह भी है कि 5 दिसंबर 2020 को इलाके के ग्रामीणों व गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार के साथ में ये मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर इलाके में हो रहे सीआरपीएफ कैम्प के निर्माण व पुलिसिया दमन की जानकारी एक आवेदन के जरिए दी थी। गिरिडीह पुलिस के जरिए जारी प्रेस विज्ञप्ति में दर्शाए गये मुकदमे को देखकर यह स्पष्ट होता है कि उसके बाद से ही भगवान दास किस्कू पर एफआईआर दर्ज होने प्रारंभ हो गये थे, जिसकी जानकारी तक भगवान दास किस्कू को नहीं थी। हां, लेकिन पुलिस की साजिश का उन्हें कुछ ना कुछ अंदाजा था, इसीलिए उन्होंने ह्यूमन राइट डिफेंडर एलर्ट के माध्यम से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी इस बात की जानकारी दी थी कि गिरिडीह पुलिस उन्हें फर्जी मुकदमे में फंसा सकती है।
सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि मुख्यमंत्री से मिलकर बात करने वाला एक आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता दुर्दांत माओवादी कैसे हो गया? उनका मुख्यमंत्री से मिलना ही उनके गुनाह का कारण तो नहीं बन गया?
(गिरिडीह से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)
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