मणिपुर में आखिर क्यों चल रहा है मैतेइयों और कुकियों के बीच खूनी संघर्ष?

Estimated read time 1 min read

(जनचौक की एक टीम 24-28 जुलाई के बीच मणिपुर के दौरे पर थी। इस दौरान टीम ने सूबे के विभिन्न इलाकों का दौरा किया। इसमें इंफाल में रिलीफ कैंपों के दौरों समेत कुकियों के जलाए गए चर्च और घर तक शामिल हैं। इसके साथ ही ‘वार जोन’ में तब्दील हो चुके चुराचांदपुर के कुछ इलाके भी इसके हिस्से रहे। इससे संबंधित कई वीडियो जनचौक के अलग-अलग प्लेटफार्मों पर दिए गए हैं। दौरे का पूरा ब्योरा टेक्स्ट फार्म में यहां श्रृंखलाबद्ध तरीके से दिया जा रहा है। इसकी शुरुआत इस परिचय के साथ किया जा रहा है-संपादक)

इंफाल/नई दिल्ली। आज़ादी के बाद देश ने बहुत झगड़े, विवाद और टकराहटें देखी होंगी। इसमें सांप्रदायिक दंगों से लेकर जातीय झगड़े जैसी हिंसक वारदातें भी शामिल रही हैं। लेकिन एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि इन सारे झगड़ों और विवादों में मणिपुर जैसी तस्वीर नहीं बनी होगी। जहां पूरा समाज दो खानों में बंट गया है। एक तरफ मैतेई हैं और दूसरी तरफ कुकी समुदाय के लोग। यहां तक कि पूरी राज्य मशीनरी उसी हिसाब से खानों में बंट गयी है। व्यवस्था देखने वाला प्रशासन तक अपने समुदायों और जातियों के हिसाब से व्यवहार कर रहा है। कोई मैतेई अफसर है तो मैतेई समुदाय के साथ है। और कुकी पुलिसकर्मी है तो कुकी समुदाय के साथ खड़ा है। और इस तरह से न्याय, व्यवस्था, सत्य समेत सारे आधुनिक मूल्य सेकेंडरी हो गए हैं और अगर कोई चीज प्राथमिक है तो वह जातीय और सामुदायिक पहचान।

बहरहाल आगे बढ़ने से पहले उस मणिपुर को जान लेना ज़रूरी है। जिस पर हम यहां बात को केंद्रित करेंगे। तकरीबन 37 लाख की आबादी वाले इस सूबे में मुख्य तौर पर तीन समुदाय मैतेई, कुकी और नागा रहते हैं। इसमें मैतेइयों की आबादी का प्रतिशत 53 के आस-पास है जबकि कुकी और नागा 20-20 फीसदी का निर्माण करते हैं। धार्मिक और जातीय हिसाब से मैतेई मूलत: हिंदू हैं जबकि कुकी और नागा का बहुमत हिस्सा ईसाई धर्म को मानता है। हिंदुओं में भी मैतेई वैष्णव संप्रदाय से रिश्ता रखते हैं और कृष्ण की पूजा करते हैं। भौगोलिक हिसाब से मणिपुर घाटी और पहाड़ी दो हिस्से में बंटा है। मैतेई घाटी में रहते हैं जबकि पहाड़ी हिस्से में कुकी और नागा। इस तरह से मैदानी यानि घाटी के बड़े हिस्से में रहने के चलते खेती पर पूरा अधिकार मैतेइयों का है और एक तरह से वो हर तरीके से साधन-संपन्न हैं। और अपने तरीके से वो रूलिंग क्लास का निर्माण भी करते हैं।

इंफाल स्थित एक रिलीफ कैंप में पीड़ितों के साथ महेंद्र मिश्र

यहां एक गलतफहमी को दूर कर देना बहुत ज़रूरी है। जिसमें कहा जा रहा है कि मैतेई मूल निवासी हैं और कुकी बाहर के रहने वाले या फिर घुसपैठिये हैं और कुछ ज्यादा एक्स्ट्रीम पर जाकर उन्हें आतंकी तक साबित करने की कोशिश की जा रही है। यह बात पूरी तरह से गलत है। सच्चाई यह है कि चीन के हिस्से से मैतेई पहले आए और फिर उसके कुछ दिनों बाद ही कुकी भी आए। हां एक बात ज़रूर है कि कुकी मैतेइयों की प्रजा के तौर पर देखे जाते हैं। और वह मूलत: आदिवासी हैं। और कुकी और नागाओं में भी तकरीबन 35 अलग-अलग एथनिक समूह हैं। चूंकि मैतेइयों में शासन की व्यवस्था राजा द्वारा संचालित थी लिहाजा राजाओं ने कुकियों को अपनी रक्षा के लिए घाटी के चारों तरफ पहाड़ियों में बसा दिया था जिससे उनकी सुरक्षा की गारंटी हो जाती थी।

यही वजह है कि कुकियों के बसाहट का क्षेत्र पहाड़ रहा। वहां के बुद्धिजीवियों का कहना था कि मैतेई सबसे पहले 33 एडी में मणिपुर आये थे। और उसी के कुछ दिनों बाद कुकी समुदाय के लोग भी आ गए थे। इसीलिए ओल्ड कुकी और न्यू कुकी का शब्द वहां प्रचलित है। हिंदू धर्म के संपर्क में आने से पहले मैतेई दूसरे धर्म और प्रकृति की पूजा करते थे। लेकिन 17 वीं शताब्दी में ढाका और फिर सिल्चर के रास्ते कुछ ब्राह्मण जाति के लोग मणिपुर पहुंचे और फिर उन्हीं के संपर्क में आने के बाद मैतेइयों के बड़े हिस्से का हिंदूकरण हो गया। हालांकि आज भी तकरीबन 5-10 फीसदी मैतेइयों की आबादी अपने पुराने धर्म को मानती है।

पश्चिमी इंफाल में स्थित ईसाई मिशनरी का जलाया गया एक स्कूल।

भौगोलिक तौर पर आदिवासी कुकी और नागा समुदाय के पास मणिपुर का बड़ा हिस्सा है। लेकिन वहां की जमीनें उपजाऊ नहीं हैं। क्योंकि उसका बड़ा हिस्सा पहाड़ी है। जबकि कम हिस्से पर काबिज होने के बावजूद खेती पर पूरी तरह से मैतेइयों का कब्जा है। और संसाधनों से लेकर आय के स्रोतों पर मैतेई काबिज हैं। संख्या में बहुमत होने के चलते विधानसभा से लेकर राज्य मशीनरी तक में उनकी वर्चस्वशाली भूमिका है। हां, एक जगह ज़रूर मैतेई को मात खानी पड़ती है वह है सिविल सेवा के मोर्चे पर। आदिवासियों के रिजर्वेशन के चलते कुकी समुदाय के लोगों की आईएएस और आईपीएस की नौकरियों में अच्छी संख्या है। ऐसा इसलिए हो पा रहा है क्योंकि ईसाई मिशनरियों के चलते कुकी समुदाय के लोगों को शिक्षा हासिल करने का मौका मिल जाता है। और इस तरह से वो खुद को मिले इस मौके का इस्तेमाल कर लेते हैं। यही वजह है कि बड़े-बड़े पदों पर वहां कुकी समुदाय के लोग पाए जाएंगे। मौजूदा डीजीपी भी कुकी समुदाय से थे। लेकिन विवाद होने के बाद उन्हें अपने पद से हटना पड़ा। 

मैतेई समुदाय के एक शख्स का कहना था कि पहले मैतेई समुदाय में डॉक्टर और इंजीनियर बनने की होड़ लगी रहती थी। और बचा हिस्सा अकादमिक की तरफ जाता था। जिसके चलते प्रशासनिक क्षेत्र में उनकी पैठ बेहद कम थी। लेकिन अब इस समुदाय के छात्र भी प्रशासनिक प्रतियोगिताओं की तैयारी करना शुरू कर दिए हैं लिहाजा तस्वीर बदलने लगी है। शायद इसी के चलते मैतेई समुदाय के लोगों को भी ट्राइबल श्रेणी में शामिल करने की मांग शुरू हो गयी। क्योंकि ऐसा होने पर मैतेई समुदाय को दोहरा लाभ मिलेगा।

एक तो बड़े स्तर पर बेरोज़गारी का सामना कर रहे मैतेई समुदाय के नौजवानों के लिए रोजगार की व्यवस्था हो जाएगी। और दूसरी तरफ आदिवासी क्षेत्र की जमीनों की खरीद-फरोख्त पर उनके ऊपर लगी पाबंदी भी हट जाएगी और इस तरह से संसाधनों और रोजगार के मोर्चे पर उन्हें बड़ी बढ़त मिल जाएगी। मणिपुर हाईकोर्ट का तीन तारीख का आदेश इसको हासिल करने का उनके लिए सुनहरा अवसर साबित हुआ। लेकिन यह जितना मैतेई के लिए लाभकारी था उतना ही कुकी समुदाय के लिए हानिकारक। और इतना ही नहीं बल्कि उससे सब कुछ छिन जाने जैसा था। लिहाजा कुकियों की ओर से उसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई जो 3 मई की हिंसा के तौर पर देश के सामने आयी।

(आजाद शेखर के साथ जनचौक के फाउंडिंग एडिटर महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

You May Also Like

More From Author

5 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Priyanka Agarwal
Priyanka Agarwal
Guest
9 months ago

Such detailed information is not available on Google as well. All should know about it.