महाराष्ट्र का परभणी अब बन चुका है बाबासाहेब के संविधान की लड़ाई का नया केंद्र

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नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के परभणी दौरे के साथ ही अब संविधान की रक्षा की लड़ाई एक नए दौर में पहुंच चुकी है। संसद के शीतकालीन सत्र में अंबेडकर और संविधान को अपने पक्ष में दिखाने की जो लड़ाई सत्तापक्ष और इंडिया गठबंधन के बीच ठनी हुई थी, उसका पटाक्षेप तो पहले ही गृहमंत्री अमित शाह के बयान से हो चुकी थी। लेकिन, जमीन पर यह लड़ाई परभणी में तब उठ खड़ी हुई जब मंगलवार,10 दिसंबर के दिन सोपान दत्ताराव पवार (45) नामक व्यक्ति ने शहर में स्थित बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा के साथ रखी संविधान की प्रतिकृति को कथित तौर पर फाड़ डालने के कृत्य को अंजाम दिया था। इस खबर के फैलने के तुरंत बाद पूरे शहर में बंद का आह्वान कर दिया गया था।

अगले दिन परभणी जिले में संविधान के अपमान को लेकर हिंसा भड़क उठी थी। कई इलाकों में आगजनी की घटनाएं देखने को मिली, जिसमें प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि संविधान का अपमान करने वालों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। कुछ वीडियो में देखने को मिला कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वैन पर पत्थरों और लाठियों से हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस बल को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। प्रशासन ने इस सिलसिले में एक व्यक्ति को हिरासत में लेकर यह दिखाने की कोशिश भी की कि वह मामले को संजीदगी के साथ देख रही है।

वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष और बीआर अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने अपने सोशल मीडिया हैंडल X पर बयान जारी कर कहा था : “परभणी में जातिवादी मराठा उपद्रवियों द्वारा बाबासाहेब की प्रतिमा पर भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाने पर कम से कम इतना तो कहना ही पड़ेगा कि यह बेहद शर्मनाक है। यह पहली बार नहीं है जब बाबासाहेब की प्रतिमा या दलित पहचान के प्रतीक के साथ इस तरह की तोड़फोड़ की गई हो। वीबीए परभणी जिले के कार्यकर्ता सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचे और उनके विरोध प्रदर्शन के कारण पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और एक उपद्रवी को गिरफ्तार किया।”

लेकिन जमीन पर यह मुद्दा काफी आगे बढ़ गया था। भारतीय संविधान की रेप्लिका (प्रतिकृति) को नुकसान पहुँचाने के विरोध में मध्य महाराष्ट्र के परभणी शहर में अगले दिन बुधवार को भी हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसे देखते हुए बीजेपी की नई-नवेली सरकार ने निषेधाज्ञा लागू करने का फरमान दे डाला और इंटरनेट बंद कर दिया गया। इस बीच परभणी के जिला मजिस्ट्रेट रघुनाथ खांडू के मुताबिक हिंसा से जुड़े 50 लोगों को हिरासत में लेने की बात कही गई। उनके अनुसार, प्रदर्शनकारी 11 दिसंबर को सांकेतिक विरोध प्रदर्शन करने वाले थे, लेकिन दोपहर 12-12।30 बजे के बाद कई जगहों पर सड़कें जाम कर दी गईं और कुछ जगहों पर आगजनी और पथराव की खबरें आने लगीं। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले भी दागे।

लेकिन हिरासत के दौरान प्रदर्शनकारियों के साथ महाराष्ट्र पुलिस का क्या सुलूक रहा, के बारे में पुलिस और महाराष्ट्र सरकार का रवैया साफ़ नजर आता है। 15 दिसंबर 2024 को पुलिस हिरासत में 35 वर्षीय सोमनाथ सूर्यवंशी की मौत ने इस पूरे घटनाक्रम को एक नया मोड़ दे दिया है। ऐसा बताया जा रहा है कि लॉ स्टूडेंट सोमनाथ दरअसल पुणे के निवासी थे, जो अंतिम वर्ष की कानून की परीक्षा देने परभणी आए हुए थे, लेकिन पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद न्यायिक हिरासत में उनकी मौत हो गई।

पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी; हालाँकि, उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनकी मौत का कारण “कई चोटों के बाद सदमे” के तौर पर दर्शाई गई है। सूर्यवंशी को सीने में दर्द की शिकायत के चलते परभणी पुलिस सरकारी अस्पताल ले गई, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस की ओर से दावा किया गया कि सूर्यवंशी के साथ मारपीट की कोई घटना नहीं हुई है।

चूंकि यह मौत न्यायिक हिरासत में हुई थी, इसलिए विभिन्न दलित संगठनों और विशेषकर प्रकाश अंबेडकर के वंचित बहुजन अघाड़ी ने मांग की कि शव का परीक्षण फोरेंसिक सुविधाओं वाले अस्पताल में कराया जाए। प्रकाश अंबेडकर के परभणी पहुंचने और हजारों की संख्या में दलित समाज के सड़क पर आ जाने से यह मुद्दा प्रमुखता से उठना शुरू हो गया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसकी गूँज अभी भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। हालांकि, राज्य विधानसभा के भीतर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) ने शीतकालीन सत्र के दौरान सूर्यवंशी की मौत की वजह पुलिस की ज्यादती के मुद्दे को उठाया था।

सोमवार, 23 दिसंबर को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के परभणी दौरे के बाद अब यह मुद्दा राष्ट्रीय परिदृश्य में एक बड़ी घटना बन चुका है। राहुल गांधी ने पुणे निवासी सोमनाथ सूर्यवंशी के परिवार से मुलाकात कर घटना के बारे में जानकारी हासिल की। सूर्यवंशी की माँ ने रोते-रोते राहुल गांधी को बताया, “मेरे लड़के को कोई रोग नहीं था। उसको बुरी तरह से मारपीट कर उसकी जान ले ली गई है। परिजनों की शिकायत है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस कह रहे हैं कि पुलिस वालों ने उसे नहीं मारा है, उसकी मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई है, जो कि गलतबयानी है।

राहुल गांधी ने परिवार से साफ़ कहा कि यदि आपके बेटे ने पत्थरबाजी भी की हो, तो भी उसकी हत्या तो नहीं की जा सकती। यहां पर सभी को चोटें लगी हैं, जो कि पुलिस हिरासत के दौरान हुई है। पुलिस की हिरासत से बाहर आये लोगों ने उस दौरान शरीर पर लगे चोटों की फोटो भी राहुल गांधी के साथ साझा की हैं।

परिजनों के मुताबिक सूर्यवंशी की “हत्या” इसलिए की गई क्योंकि वे दलित थे और संविधान की रक्षा कर रहे थे। परभणी में 10 दिसंबर को उस समय हिंसा भड़क गई थी, जब शहर के रेलवे स्टेशन के बाहर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा के पास संविधान की कांच से बनी प्रतिकृति को तोड़ दिया गया था। पुलिस ने बताया कि शंकर नगर निवासी सूर्यवंशी (35) उन 50 से अधिक लोगों में शामिल था, जिन्हें हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था और बाद में बीमार पड़ने के बाद सरकारी अस्पताल में उसकी मौत हो गई।

बाद में राहुल गांधी ने प्रेस के साथ इंटरव्यू में आरोप लगाया कि पुलिस ने सूर्यवंशी की “हत्या” की है और यह “शत-प्रतिशत हिरासत में मौत” की घटना है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने संवाददाताओं के साथ हुई अपनी बातचीत में कहा कि सूर्यवंशी के परिवार के सदस्यों ने उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ-साथ कुछ तस्वीरें और वीडियो भी दिखाए। पुलिस के अनुसार, सूर्यवंशी की मृत्यु 15 दिसंबर को एक सरकारी अस्पताल में हुई, जहां उन्हें न्यायिक हिरासत में रहने के दौरान सीने में दर्द और बेचैनी की शिकायत के बाद ले जाया गया था और परभणी जिला केंद्रीय कारागार में रखा गया था।

राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को इसका दोषी ठहराया है, क्योंकि उन्होंने पुलिस के बचाव में विधानसभा में झूठ बोला। उन्होंने कहा कि आरएसएस की विचारधारा संविधान को मिटाने की है। बता दें कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पिछले सप्ताह विधानसभा में कहा था कि सूर्यवंशी ने मजिस्ट्रेट से कहा था कि उसे हिरासत में प्रताड़ित नहीं किया गया और सीसीटीवी फुटेज में भी पुलिस की बर्बरता का कोई सबूत नहीं मिला है।

राज्य सभा में गृह मंत्री अमित शाह जहां एक तरफ बाबासाहेब अंबेडकर की चर्चा से उकताकर दिल की बात को अपनी जुबान पर लाकर मोदी सरकार के सारे किये-कराए पर पानी फेर चुके हैं, तो महाराष्ट्र में प्रचंड बहुमत के साथ फिर से एक बार मुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले देवेंद्र फडनवीस ने अपने चिरपरिचित अंदाज में जिस तरह से पुलिस प्रशासन का बचाव किया है, वह समूचे महाराष्ट्र को एक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल में डाल रहा है।

इसके साथ ही यह भी साफ़ नजर आता है कि भले ही ईवीएम और मतदाता सूची में लाखों लोगों को जोड़ने और गायब करने के बल पर बंपर जीत दर्ज कर ली गई हो, महाराष्ट्र आज भी पूरी तरह से विपक्ष के साथ खड़ा है। जो लोग महाराष्ट्र की चुनावी हार से विपक्ष के पराभव का चित्र खीँच रहे हैं, उन्हें जमीन पर इस खदबदाहट को कान लगाकर सुनने की जरूरत है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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