नई दिल्ली। मणिपुर में लोग डरे और सहमे हैं। दो महीने बाद भी राज्य में हिंसक घटनाओं का सिलसिला रूका नहीं है। सशस्त्र बलों की उपस्थिति में हिंसक समूह हमला और आगजनी की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। आम नागरिकों की हत्या और उनके घरों को जलाने की घटनाओं के साथ अब विधायक, सांसद, मत्रियों और अधिकारियों के आवासों को भी निशाना बनाया जा रहा है। सरकार और सशस्त्र बल राज्य में अमन चैन और शांति स्थापित करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इस बीच सिर्फ मणिपुर में ही नहीं पूरे देश में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग हो रही है।
मणिपुर के नागरिकों को न्याय और सुरक्षा की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार से कई बार राज्य में कानून-व्यवस्था स्थापित करने के लिए सरकार की पहल और पीड़ित परिवारों के पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों पर स्टेटस रिपोर्ट मांगा है। लेकिन हर सुनवाई पर राज्य सरकार को स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के लिए और समय की दरकार होती है। दरअसल, एन बीरेन सिंह सरकार के पास मणिपुर हिंसा में जान गवां चुके लोगों की संख्या और संपत्ति के नुकसान का कोई आंकड़ा ही नहीं है।
मणिपुर दौरे पर गए वामपंथी सांसदों के प्रतिनिधमंडल का दावा है कि राज्य के नागरिकों का ‘सरकार’ और ‘सशस्त्र बलों’ से विश्वास उठ गया है।
मणिपुर का दौरा करने वाले वामपंथी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने राज्य की स्थिति को “भयावह” बताया है और कहा है कि सरकार नागरिकों की रक्षा करने में विफल रही है।
चार राज्यसभा सदस्यों – सीपीएम के जॉन ब्रिटास और बी. भट्टाचार्य, और सीपीआई के पी. संदोश कुमार और बिनॉय विश्वम – और सीपीआई के लोकसभा सदस्य के. सुब्बारायण के प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को इंफाल में कई राहत शिविरों का दौरा किया। गुरुवार उनके तीन दिवसीय दौरे का पहला दिन था।
सीपीआई के पी. संदोश कुमार ने कहा कि “स्थिति भयावह है। इम्फाल घाटी में सात राहत शिविरों का दौरा करने के बाद, यह बहुत स्पष्ट है कि लोगों का असम राइफल्स सहित सशस्त्र बलों और राज्य सरकार पर भरोसा नहीं रह गया है, क्योंकि वे उन लोगों की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं जिनकी जान और आजीविका अब दांव पर है। ”
प्रतिनिधिमंडल ने बड़ी संख्या में मैतेई समुदाय के हिंसा प्रभावित लोगों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, “हालांकि हम पहले से ही जानते हैं कि चर्च जला दिए गए हैं और घर नष्ट हो गए हैं और बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं, सबसे भयानक तथ्य यह है कि सरकार को कुल हताहतों की संख्या या क्षतिग्रस्त संपत्ति के मूल्य के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं है।”
प्रतिनिधिमंडल राहत शिविरों का दौरा करने के लिए आज यानि शुक्रवार सुबह चुराचांदपुर पहुंचा जहां कुकी समुदाय के सदस्यों ने अपने घरों से भागने के बाद शरण ली है।
कुमार ने कहा कि जो संदेश मणिपुर से निकलना चाहिए और पूरे देश में सुना जाना चाहिए वह “आरएसएस और भाजपा को अस्वीकार करें और भारत के विचार को बहाल करें।”
उन्होंने कहा, “यहां की जमीनी हकीकत देखने के बाद यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सभी समान विचारधारा वाले लोगों को भारत के विचार की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए और देश में कहीं भी ऐसी हिंसा को रोकना चाहिए।’ वरना ऐसा कहीं भी हो सकता है।”
शहर के सबसे बड़े राहत शिविरों में से एक में जाने से पहले प्रतिनिधिमंडल ने इंफाल के आर्कबिशप डोमिनिक लुमोन से मुलाकात की।
ब्रिटास ने केरल स्थित एक चैनल, कैराली टीवी को बताया कि “जिस राहत केंद्र का हमने दौरा किया वहां पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और नवजात शिशुओं को देखना दिल दहला देने वाला है। माताएं अपने बच्चों को, जिनमें से कई नवजात शिशु थे, लेकर अपनी जान बचाने के लिए भागीं। अब उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि तमाम अनिश्चितताओं और असुरक्षा के बीच उन्हें इन राहत शिविरों में कितने समय तक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।”
ब्रिटास ने कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने लौटने से पहले शुक्रवार या शनिवार को राज्यपाल से मिलने की योजना बनाई है। “हम नागरिक समाज के नेताओं से भी मिल रहे हैं। हम जिनसे भी मिले उन्होंने पूरा सहयोग दिया क्योंकि वे चाहते थे कि हम उनका संदेश और जमीनी हकीकत संसद तक पहुंचाएं।”
(जनचौक की रिपोर्ट।)
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