31 मार्च को देहरादून के हिंदी भवन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की याद में विकल्प नागरिक मंच और नौजवान भारत सभा ने एक विचार गोष्ठी आयोजित की। जिसमें भगत सिंह और उनके साथी शहीदों का सपना और आज का भारत, विषय पर विस्तृत चर्चा की गयी। पूरे सभागार को भगत सिंह समेत देश-दुनिया के क्रांतिकारियों के कथनों और कविताओं से सजाया गया था। सभागार में ही विश्व के उत्कृष्ट साहित्य की एक पुस्तक प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी।
कार्यक्रम की शुरुआत भगत सिंह और उनके साथियों के पसंदीदा गीत “मेरा रंग दे बसंती चोला …” से हुई। भगत सिंह के जीवन परिचय के साथ ही वक्ताओं ने उनकी विचारधारा को भगत सिंह के कथनों के जरिये ही प्रस्तुत किया और इसे मौजूदा दौर के साथ जोड़ते हुए बताया कि कैसे यह आज भी प्रासंगिक हैं। आज शासकों ने अपने संकीर्ण स्वार्थों के लिए भारत को डब्लूटीओ, आईएमएफ जैसी संस्थाओं में शामिल करके साम्राज्यवादी देशों का गुलाम बना दिया है। देशी-विदेशी पूंजीपतियों के गठजोड़ ने किसानों, मजदूरों समेत तमाम मेहनतकशों की हालत बद से बदतर कर दी है। नौजवानों को बेरोजगारी और असुरक्षित भविष्य की अंधेरी गलियों में खींच लिया है। सारे देश में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, नस्लवाद, क्षेत्रवाद का जहर भर दिया है। जनता के संघर्षों को कुचलने के लिए एक नए तरह की हिटलरशाही देश में लागू की जा रही है। निश्चय ही भगत सिंह और उनके साथियों ने ऐसे भारत का सपना नहीं देखा था, उनका सपना आज भी अधूरा है जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी नौजवानों के कन्धों पर है।

भगत सिंह के विचारों पर रोशनी डालते हुए वक्ताओं ने उनकी प्रगतिशील विचारधारा को स्पष्ट रूप से सामने रखा। भगत सिंह खुद यह मानते थे कि “बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती। क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।” वह एक ऐसा भारत और ऐसी दुनिया चाहते थे जिसमें “एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का और एक देश दूसरे देश का शोषण न कर सके”। इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर उन्होंने अपने दौर के सभी महत्वपूर्ण विषयों पर अपने बहुत ही सटीक विचार जाहिर किये थे, साथ ही इसे जमीन पर उतारने के लिए संगठन का निर्माण भी किया। अपने समाज के बारे में समग्रतापूर्ण सोच और उसको बदल कर एक नए समाज की स्पष्ट रूप-रेखा की समझ ही भगत सिंह को आज के नौजवानों का नायक बनाती है।
वक्ताओं ने बताया कि भगत सिंह भारतीय जनता की पूर्ण मुक्ति चाहते थे, आजादी और उसके लिए संघर्ष के बारे में उनके विचार महात्मा गांधी और कांग्रेस से अलग थे, इसे जाहिर करने के लिए वक्ताओं ने भगत सिंह के दो कथनों पर विस्तार से बात रखी, 1. हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते… और 2. हम सोलह आना की लड़ाई लड़ते हैं, चार आना मिलता है तो उसे लेकर जेब में रखते हैं और बारह आना की लड़ाई जारी रखते हैं…।
भगत सिंह के विचारों की विरासत आज के छात्रों और नौजवानों के सामने आने वाली चुनौतियां से उभरने के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, वक्ता श्रोताओं के सामने इसकी एक स्पष्ट तस्वीर खींचने में सफल रहे। हाल ही में आयी आईएलओ की एक रिपोर्ट बताती है कि आज भारत में 83 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। कारण यह कि चौतरफा संकट के शिकार और अपने घुटनों से आगे नहीं देख पा रहे शासक पूंजीपति वर्ग के लिए अधिकतम बेरोजगारी तात्कालिक रूप से बहुत लाभकारी है। ‘हर हाथ को काम और काम का वाजिब दाम’ की गारन्टी करने वाली व्यवस्था कायम करके ही बेरोजगारी के संकट से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके लिए भगत सिंह के ‘विद्यार्थी और राजनीति’ तथा ‘युवक’ लेखों का हवाला देकर नौजवानों को राजनीति में उतरने का आह्वान किया गया।

वक्ताओं ने बताया कि आजादी के बाद भारत की सत्ता पूंजीपति वर्ग के हाथ में आयी। उसकी बनायी हुई मौजूदा व्यवस्था की खासियत ही यही है कि वह मजदूरों-किसानों की मेहनत की कमाई को जब्त करने का हक पूंजीपतियों को देती है जिससे चन्द लोगों के पास अकूत दौलत जमा हो गयी है और बहुसंख्यक मेहनतकश जनता कंगाल है। आज भले ही लाल किले पर ‘यूनियन जैक’ नहीं लहरा रहा है लेकिन देश की सारी आर्थिक नीतियां साम्राज्यवादी संस्थाओं द्वारा तय की जा रही हैं।
भारत के शासक उन्हीं साम्राज्यवादियों से गठजोड़ करके बैठे हैं जिन्हें भगाने के लिए भारत की जनता ने 200 साल तक संघर्ष किया था। देशी-विदेशी पूंजीपतियों का गठजोड़ जोंक की तरह भारत के मेहनतकशों के खून की एक-एक बूंद निचोड़ ले रहा है। तमाम तरह की रिपोर्टों में सामने आ चुका है कि भारत की लगभग सारी सम्पदा पर कुछ फीसदी लोगों का कब्ज़ा हो चुका है। देश में चल रहे मजदूरों-किसानों के संघर्षों की जड़ में इसी लूट से समाज में पैदा हुई गैरबराबरी है। इसका समाधान केवल और केवल एक समतामूलक समाज की स्थापना से ही हो सकता है।
विचार-गोष्ठी के अन्त की ओर बढ़ते हुए वक्ताओं ने बताया कि देशी-विदेशी पूंजी की लूट को बरकरार रखने के लिए भारत के शासक अंग्रेजों की ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति पर चल रहे हैं। इसके खिलाफ उठने वाले जनता के संघर्षों को भटकाने के लिए, उसमें फूट डालने के लिए साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसी सभी विघटनकारी नीतियों का सहारा लेते रहे हैं। इससे कई कदम आगे बढ़कर मोदी सरकार खुली हिटलरशाही पर उतर आयी है। व्यवस्था में एक आमूलचूल परिवर्तन ही भारत की जनता को इस संकट से बाहर निकल सकता है।
भगत सिंह ने नौजवानों का आह्वान करते हुए कहा था कि “नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुंचाना है। फैक्टरी, कारखानों की गन्दी बस्तियों और गांव की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।”
आज यूरोप के देशों में चल रहे जनान्दोलनों में छात्रों-नौजवानों की भागीदारी को चिन्हित करते हुए वक्ताओं ने बताया कि भारत के छात्रों-नौजवानों को भी इसी तरह बल्कि इससे भी आगे बढ़कर जनान्दोलनों में हिस्सेदारी करनी चाहिए। भारत की जनता में क्रांति की अलख जगाने की महान चुनौती उनका इन्तजार कर रही है।
विचार-गोष्ठी के अन्त तक जाते-जाते श्रोताओं के मन में यह तस्वीर बन गयी कि आज ‘काले अंग्रेजों’ के दौर में भगत सिंह के विचार गोरे अंग्रेजों के दौर से भी ज्यादा प्रासंगिक हैं। जोश और होश से लबरेज इस विचार-गोष्ठी का अन्त भगत सिंह को क्रन्तिकारी संगठन में भर्ती करनेवाले, अमर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की गजल “उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा …” से हुआ।
(आशीष की रिपोर्ट)